सोमवार, 26 मई 2014

Khajuraho- Western group of Temple खजुराहो- मुख्य पश्चिमी मन्दिर समूह

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-02

आज के लेख में दिनांक 27-04-2014 की यात्रा के बारे में बताया जा रहा है इस दिन सुबह सवेरे अपुन का खजुराहो पहुँचना हुआ। मध्यप्रदेश के धुर उत्तर दिशा के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो-ओरछा मध्यप्रदेश का सर्वाधिक गर्म क्षेत्र है। खजुराहो का मुख्य आकर्षण पश्चिम मन्दिर समूह देखने के लिये टिकट खिडकी से 10 रु का टिकट ले लिया। मेरे पास दस रु खुले रु नहीं थे। ऑटो वाले ने 50 रु उधार दे दिये। टिकट मिलते ही मैंने खजुराहो के प्राचीन व मध्यकालीन कामसूत्र शिल्प कला मूर्तियों से युक्त पश्चिमी मन्दिर समूह परिसर में प्रवेश किया। खजुराहो का प्राचीन नाम खजूरपुरा/ खजूर वाहिका था। जो समय के साथ-साथ खजुराहो हो गया। ताजमहल व गोवा के बाद यहाँ आने वाले विदेशियों पर्यटक काफ़ी संख्या में होते है। आज के लेख में सिर्फ़ खजुराहो का पश्चिमी मन्दिर समूह ही दिखाया जा रहा है। खजुराहो में इस मन्दिर समूह के अलावा जैन मन्दिर सहित बहुत सारे मन्दिर है। जिनके बारे में अगले लेख में बताया जायेगा।
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद

शुक्रवार, 23 मई 2014

Delhi To Khajuraho दिल्ली से खजुराहो की यात्रा

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-01

यह यात्रा इसी साल सन 2014 के अप्रैल माह में की गयी है। मध्यप्रदेश के खजुराहो इलाके में जाने का विचार मन में कई बार आता था। एक दिन बनारस के रहने वाले फ़ेसबुकिया दोस्त (अभी तक मुलाकात नहीं हुई) चन्द्रेश ने अपनी खजुराहो यात्रा का फ़ोटो फ़ेसबुक पर डाला तो खजुराहो जाने के मचल रहा, शैतानी मन उतावला हो बैठा। लेपटॉप चालू था इसलिये जेब से ATM निकाल कर सामने रख लिया। सबसे पहले erail.in पर जाकर दिल्ली से खजुराहो जाने व झांसी से वापसी आने की सीटों की खाली स्थिति की जाँच पडताल की। जब आने व जाने की टिकटे मिलने की सम्भावना प्रबल हो गयी तो irctc.co.in पर जाकर अपनी टिकटे आरक्षित कर ली।

इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद



जाने की 5 वेटिंग थी जबकि वापसी की टिकट झांसी से थी जो बुक करते समय ही पक्की हो चुकी थी। मैंने सोचा था कि यदि जाते समय टिकट RAC में ही रही तो देखा जायेगा कि कैसे सोया जायेगा? RAC में सबसे बडा पंगा यही होता है हमें पूरे दाम चुकाने के बाद भी अपनी सीट दूसरे के साथ साझी करनी होती है। दूसरे बन्दे का क्या पता? कैसा हो? अगर ठीक-ठाक हुआ तो रात बीत जायेगी लेकिन उल्टा नक चढा हुआ तो ना खुद चैन से बैठेगा, ना दूसरे को बैठने देगा। सोने की बात तो गयी तेल लेने।
ट्रेन चलने से चार घन्टे पहले चार्ट बनकर तैयार हो जाता है लेकिन ऑनलाइन दिखने में केवल तीन घन्टे पहले ही पता लग पाता है। मैं अपनी आदत अनुसार ट्रेन के चलने के वास्तविक समय से दो घन्टे पहले घर से निकल जाता हूँ इसलिये घर छोडने से पहले नेट पर अपनी सीट की वर्तमान स्थिति देखी। अब मेरी सीट पक्की हो चुकी थी। मेरी सीट S4 में थी। अब रात सोते हुए बीतेगी। अब किसी किस्म की चिन्ता नहीं है। सुबह आँख खुलेगी तो महोबा या खजुराहो पहुँच ही जाऊँगा। कल पूरे दिन घूमने में बीतेगा इसलिये नहाने का समय मिलना मुश्किल है। अत: घर से चलने से पहले नहा धोकर चलना ही बढिया रहेगा। नहाधोकर रेलवे स्टेशन जाने के लिये चल दिया। घर से करीब डेढ किमी तक पैदल ही जाना पडता है। तब जाकर आनन्द विहार व सराय काले खाँ/निजामुददीन तक सीधी बस मिलती है।
सीधी बस मिलने से पैसे की बचत होती है साथ ही धक्का-मुक्की से राहत भी मिलती है। इसलिये सीधी बस के इन्तजार में आधा घन्टा भी खडा होना पडे तो चिन्ता की कोई बात नहीं है। जैसे ही लोनी मोड पर अम्बेडकर कालेज के सामने वाले बस स्टॉप पर पहुँचा तो 210 नम्बर की बस आती दिखायी दी। यह बस सराय काले खाँ तक जाती है। सराय काले खाँ बस टर्मिनल का नाम है जबकि वहाँ से 200 मीटर दूरी पर निजामुददीन रेलवे स्टॆशन है शायद अगले साल के अन्त तक हमारे घर के नजदीक से मैट्रो रेल भी आरम्भ हो जायेगी। हमारे घर के नजदीक से जो मैट्रो लाइन बनने वाली है। वह आनन्द विहार, निजामुददीन होकर मेडिकल, धौला कुआँ, पंजाबी बाग, आजादपुर होते हुए मुकुन्दपुर बाइपास तक जायेगी। यह दिल्ली की सबसे लम्बी मैट्रो लाइन होगी। उसके बाद समय व मुसीबत में कमी हो जायेगी।
इस बस में मात्र 15 रु का टिकट लगा। वैसे भी दिल्ली की साधारण बसों में सबसे ज्यादा किराया 15 रु ही लगता है सबसे लम्बी बस सेवा चाहे 50 किमी से ज्यादा की दूरी ही क्यों ना तय करती हो। दिल्ली में रिंग रोड पर चलने वाली बाहरी मुद्रिका नाम की बस सेवा एक चक्कर में करीब 90 किमी से ज्यादा चलती है उसका अधिकतम किराया भी 15 रु ही है। AC बस का किराया 25 रु है। इसी तरह एक दिन का बस पास मात्र 40/50 रु में बनता है। जिसमें दिल्ली परिवहन निगम की बसों में दिनभर यात्रा की जा सकती है। दिल्ली परिवहन निगम की कुछ विशेष बसों में यह पास मान्य नहीं होता है जैसे हवाई अडडा जाने वाली बस, जिसका किराया ही 100 रु है। दिल्ली से बाहर जैसे गाजियाबाद या फ़रीदाबाद जाने वाली बसों में पास मान्य नहीं होता है। जिस बस में मैं सवार था उसने लगभग घन्टॆ भर में सराय काले खाँ बस अडडे के सामने उतार दिया।
मैं बस अडडे की ओर जा रहा था कि मेरी नजर एक ऐसी युवती पर पडी जिसकी काया देख नजरे हटाने का मन नहीं कर रहा था। वह युवती मेरे सामने ही चल रही थी। थोडी देर उसे निहारने के बाद उससे आगे निकलता हुआ रेलवे स्टेशन जा पहुँचा। ट्रेन चलने में आधा घन्टा बाकि था अभी रात के 8 भी नहीं बजे थे। थोडी देर में ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर आ गयी। ट्रेन के रुकते ही उसमें घुसने के लिये मारामारी मच गयी। जब खिडकी खाली हुई तो अपुन भी डिब्बे में दाखिल हुए। डिब्बे में घुसते ही पता लग गया कि इसमें सीटों की संख्या से कही ज्यादा यात्री घुसे हुए है।  
मैं अपनी सीट पर पहुँचा तो देखा कि नीचे सही से खडे होने की जगह भी मुश्किल से बची है। मेरी सीट साइड में ऊपर वाली थी। मेरे नीचे जो सीट थी, उसमें RAC के दो बन्दे थे लेकिन उस सीट पर चार लोग बैठे थे। थोडी देर बाद पता लगा कि नीचे वाली सीट पर बैठे लोग एक ही परिवार से है उन लोगों के पास दो सीटे है जबकि वे कुल 6 लोग है। वह परिवार अपना जरुरत मन्द का अधिकतर सामान लेकर आया था। जिसमें कई शूटकेस के अलावा लोहे का एक बडा सा बक्सा भी था। बाद में पता लगा कि ये लोग सीजनल कार्य करने वाले है जो कुछ माह दिल्ली में रहते है तो कुछ माह अपने गाँव वापिस लौट आते है। सामान इनके लिये जी का जंजाल बन जाता है।
लोहे के बडे बाक्स के आने-जाने वाली जगह में रखने के कारण आने-जाने के लिये बिल्कुल भी जगह नहीं थी। जिस कारण लोगों को आने-जाने में बडी मुश्किल आ रही थी। वह बाक्स सीट के नीचे भी नही आ पा रहा था। पास बैठी कई सवारियों ने उस पर आपत्ति भी जतायी। लेकिन अब बाक्स को रखे तो कहाँ रखे। मैंने उस परिवार को कहा कि जब ट्रेन चल पडे तो इस बाक्स को सामने वाली सीटों के बीच फ़ैला देना जिससे कि वहाँ बैठी सवारियाँ उस पर अपना पैर फ़ैला कर बैठ जाये।
मेरी बात पर बक्से वाली ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन सामने वाली सीट पर विराजमान एक महाशय को मेरी सलाह कुछ ज्यादा ही कडुवी लगी। उसने तुरन्त जवाब दिया। लोगों को सलाह देने के अलावा कुछ काम नहीं होता। उसकी बात सुनकर अब मेरी बोलती बन्द हो चुकी थी। मैं मौके की तलाश में चुपचाप बैठा रहा। लगभग 10-12 मिनट बाद मुझे चौका मारने का मौका मिल गया। मेरी बोलती बन्द करने वाला बन्दा काफ़ी देर से ज्यादा चपर-चपर कर रहा था।
उसने एक ऐसी बात बोल ही दी कि जिसकी बेसब्री से प्रतीक्षा थी। वह देश के वर्तमान हालत पर बोल रहा था। उसकी बातों से लग रहा था कि वह देशभक्त तो बिल्कुल नहीं है। जब उसने कहा कि इस देश के फ़ौजी दुश्मनों का सामना करने से डरते है तो मैंने तुरन्त कहा। अरे हमें तो पता ही नहीं था कि अभी तक दुश्मन देशों के रहमो कर्म पर यह देश सुरक्षित है। जब तक हमारे देश में देशद्रोही, अलगाववादी दल्ले जिन्दा है तब तक सैनिकों की शहादत पर सवाल उठते रहेंगे। मेरी बात सुनकर उसको जैसे साँप सूंघ गया। मेरी बात का लगभग सभी लोगों ने समर्थन किया। कुछ देर तक शांति छायी रही। मैं काफ़ी देर तक उसे देखता रहा कि अबकी बार अगर यह फ़िर से बोला तो इस साले की बोलती फ़िर से बन्द करनी पडेगी लेकिन वो कायर नहीं बोला।
मैंने घन्टा भर बीतने के बाद सोने की तैयारी कर दी। नीचे वाली सीट पर बैठे बन्दे से कहा कि जरा लाइट बन्द कर दे। ऊपर वाली सीट पर लाईट बहुत तंग करती है। तीन सीट वाली लाइन में तो सबसे ऊपर सही से बैठा भी नहीं जाता है। आधे घन्टे बाद टिकट निरीक्षक आया। टिकट मोबाइल में था लेकिन मोबाइल देखने के बाद भी, वह पहचान पत्र दिखाने को कहता इसलिये मैंने पहले ही आधार कार्ड निकाल लिया था। आधार कार्ड देखने के बाद वह आगे चलता बना। टीटी के जाने के बाद सोने की कोशिश करने लगा। नीन्द देर से ही आ पायी। रात में दो बार आँखे खुली। लेकिन ऊपर की सीट पर होने के कारण पता नहीं लग पाया कि कहाँ है? इसलिये फ़िर से सो जाता।
जब दिन का उजाला हो गया तो ट्रेन के किसी स्टेशन पर रुकने की प्रतीक्षा करने लगा। जैसे ही ट्रेन रुकी तो ऊपर से नीचे उतर गया। ट्रेन खडी थी। इसलिये बाहर आकर देखा कि कौन सा स्टेशन है? महोबा। अरे अभी महोबा पहुँचे है। इसका अर्थ है कि ट्रेन अपने समय से देरी से चल रही है। यहाँ ट्रेन काफ़ी देर खडी रही। मैं जिस डिब्बे में था उसके आगे एक डिब्बा छोडकर जनरल डिब्बा लगा हुआ था। बीच में जनरल डिब्बा क्यों लगाया गया है? समझ नहीं पाया। मन में विचार आया कि चलो ट्रेन के पहले डिब्बे तक घूम कर आता हूँ।
मैं अभी कुछ मीटर आगे गया था कि ट्रेन ने चलने के लिये हार्न बजा दिया। लेकिन यहाँ हार्न उल्टी दिशा में बजा था। इसका अर्थ हुआ कि ट्रेन अब उल्टी दिशा में जायेगी। महोबा जंक्सन से खजुराहो की लाइन अलग होती है। दिल्ली से जाने वाली गाडियों को महोबा से उल्टा चलना होता है। ट्रेन चल पडी। लेकिन यह क्या हुआ? जहाँ मैं खडा था वहाँ के डिब्बे तो वैसे ही खडे थे जबकि मेरा वाला डिब्बा उल्टी दिशा में चल दिया था। मैं भाग कर अपने डिब्बे में बैठ गया।
यदि मैं तीन चार डिब्बे पार गया होता तो गजब हो जाता। मैं इस चक्कर में खडा रहता कि ट्रेन तो अभी चली ही नहीं है जबकि मेरी ट्रेन वहाँ से जा चुकी होती। दिल्ली से खजुराहो आने वाली ट्रेन में आधे डिब्बे खजुराहो आते है जबकि आधे डिब्बे आगे चले जाते है। आज अच्छा दिल्लीवाला (खुजली वाला जिसे बहका दे वैसा उल्लू) बन जाता यदि मैं आगे के डिब्बे तक घूमने चला जाता तो? लेकिन अन्त भला तो सब भला। महोबा से वापिस आते समय ट्रेन ने कुछ आगे बढते ही झांसी वाली लाइन छोड दी। दो छोटी सी पहाडियों के बीच से होकर हमारी ट्रेन खजुराहो के लिये चलती रही। खजुराहो से पहले रेलवे लाइन किनारे पानी की एक विशाल झील दिखायी दी। जैसे ही खजुराहो आया तो सभी यात्रियों ने उतरना आरम्भ कर दिया।
खजुराहो स्टेशन पर उतरते ही कई फ़ोटो लिये। स्टेशन के बाहर आते ही बहुत सारे ऑटो वाले खडे रहते है। खजुराहो की आवाज लगाने वाले ऑटो में सवार हो गया। एक सवारी ने किराया पूछा तो उसने कहा 15 रु। सवारी बोली 10 रु लगते है। कोई पहली बार आया हूँ।  ऑटो वाला 15 से कम पर नहीं माना। कुछ देर में ऑटो भर गया। मैंने किनारे वाली सीट पर कब्जा जमाया हुआ था। फ़टाफ़ट ढेर सारे ऑटो भरते जा रहे थे और वहाँ से चलते जा रहे थे। एक बस भी खडी थी। कुछ देर में बस भी भर जायेगी तो खजुराहो जायेगी। ऑटो वाला हमें लेकर चल दिया। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते समय ऑटो वाले ने 10 रु टैक्स चुकाया। यह शायद पार्किंग शुल्क रहा होगा।
स्टेशन से बाहर आने के बाहर 300-400 मीटर ही चले होंगे कि एक बडी सडक आ गयी। यह सडक खजुराहो जायेगी। वैसे अभी तक ट्रेन सिर्फ़ खजुराहो तक ही आती है लेकिन आगामी वर्षों में यह लाइन आगे भी जायेगी। आगे अभी शायद कुछ किमी तक ही लाइन बनी है। खजुराहो का रेलवे फ़ाटक पार करने के बाद खजुराहो शहर की ओर चलने लगे। सडक किनारे एक जैसे पेड अधिक संख्या में थे। यह मुझे बाद में पता लगा कि वे महुआ के पेड है। महुआ के पेड के नीचे कई जगह बच्चे व बडे महुआ के छोटे-छोटे फ़ल इकटठा करते हुए मिले। महुआ का फ़ल खाने में बुरा नहीं लगता है। मैंने पहली बार खाया तो स्वाद कुछ अजीब सा लगा। जिसे ना स्वादिष्ट कहना चाहूँगा ना बुरा। स्थानीय लोग इसकी मिठाई व सब्जी भी बनाते है।
महुआ के पेड काफ़ी बडे होते है। मजबूत होते है कि नहीं यह तो नहीं पता। लेकिन छायादार जरुर होते है। रेलवे स्टेशन से खजुराहो की दूरी लगभग 7-8 किमी है। 20 मिनट में खजुराहो बस अडडे के सामन पहुँच गये। बस अडडा एकदम सुनसान पडा हुआ था। कुछ सवारियाँ वही उतर गयी जबकि चार सवारी वही बैठी रही। उनके साथ मैं भी बैठा रहा। खजुराहो का मुख्य आकर्षण पश्चिमी मन्दिर समूह है। जब ऑटो इसके करीब से होकर निकलने लगा तो मैंने कहा, ऑटो वाले यह बताओ कि पूरा खजुराहो घूमा सकते हो। ऑटो वाला बोला पहले ये दोनों सवारी छोड दूँ। उसके बाद चाय की दुकान पर आपसे बात करुँगा।
उन सवारी को छोडने के बाद ऑटो वाला चाय की एक दुकान के सामने पहुँच गया। जब उसने दो चाय के लिये कहा तो मैंने कहा दूसरी चाय किसके लिये? आपके लिये। मैं चाय नहीं पीता। कुछ मटठी आदि तो लोगे। नहीं मैं अपने साथ लडडू व मटठी लेकर आया हूँ। तुम अपना किराया बताओ। खजुराहो के सभी मन्दिर दिखाने है उनमें जैन मन्दिर भी है। ऑटो वाला बोला 350 रु दे देना। कितना समय लगेगा। वह बोला सभी को देखने में कम से कम 4 घन्टे तो लगेंगे। ठीक है अभी सवा सात बजे है। 10 बजे मुझे स्टेशन के लिये छोड देना। 250 रु में सौदा मंजूर है तो बताओ। वह बोला रेलवे स्टेशन तक नहीं छोडूँगा। ठीक है लेकिन बस अडडे तक छोडना होगा। वहाँ से 10 रु में दूसरा ऑटो मिल जायेगा।
उसने चाय पी ली और मैंने लडडू व मटठी खा ली तो उसने मुझे पश्चिम मन्दिर समूह की ओर लेकर आ गया। मन्दिर के बराबर में ही एक विशाल तालाब दिखायी दिया। जिसमें बहुत सारे कमल के फ़ूल दिखायी दिये। कमल का फ़ूल भारत का राष्ट्रीय फ़ूल है। यह भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की पार्टी का चुनाव चिन्ह भी है। टिकट खिडकी के सामने पहुँचाकर कहा कि अब आप यहाँ से टिकट लेकर अन्दर चले जाओ। मैं टिकट लेने लगा तो टिकट बाबू ने 100 रु का नोट खोलने से मना कर दिया। टिकट का दाम मात्र 10 रु था। ऑटो वाले ने 50 रु दिये। उसके बाद मैंने खजुराहो के सेक्सी मन्दिर कहे जाने वाले पश्चिमी मन्दिर समूह को देखने के लिये प्रवेश किया। अगले लेख में इस समूह के सभी मन्दिरों के फ़ोटो दिखाये जायेंगे। (यात्रा जारी है।)




























शुक्रवार, 9 मई 2014

Bageshwar to Delhi Via Almora बागेश्वर से अल्मोडा होते हुए दिल्ली तक

KUMAUN CAR YATRA-04                                                      SANDEEP PANWAR
पाताल भुवनेश्वर देखने के लिये जाते समय एक दुकान पर खीरे का रायता बोल कर गये थे। वापसी में उस दुकान से रायता पीकर ही आये। रायते के साथ आलू की चाट भी थी जिससे स्वाद कई गुणा बढ गया। जब तक राजेश जी ने गाडी मोडी। तब तक मैंने सडक किनारे के होटलों पर कमरों के दाम के बारे में पता किया। उन्होंने बताया कि 500 रु तक में कमरा मिल जायेगा। मेरे गाडी में बैठते ही राजेश जी गाडी लेकर चल दिये। वापसी में राई आगर के उसी होटल पर आइसक्रीम की पेट भर दावत खाने की बात तय हुई थी जहाँ रात को ठहरे थे। राई आगर पहुँचते ही आइसक्रीम का 5 लीटर वाला डिब्बा ले लिया। 

मंगलवार, 6 मई 2014

Patal bhuvaneshwar cave detail story पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा का विस्तृत विवरण

KUMAUN CAR YATRA-03                                                       SANDEEP PANWAR
इस यात्रा में आपने शुरु के दो लेखों में दिल्ली से भीमताल, नौकुचियाताल व सातताल, नैनीताल, अल्मोडा होकर राई आगर तक की यात्रा पढी है अब उससे आगे चलते है। आज दिनांक 14 अप्रैल 2014 की बात है। रात में राई आगर के जिस होटल में ठहरे थे उसकी मालकिन से रात में ही तय कर लिया था कि सुबह गर्मा-गर्म पानी में स्नान करना है। अत: सुबह 6 बजे गर्मागर्म पानी आ भी गया। नहाने का साबुन लिया नहीं था जिस कारण नहाने में ज्यादा समय नहीं लगा। ठन्ड का मौसम था इसलिये फ़टाफ़ट नहाधोकर अपना सामान अपने बैग में समेट कर गाडी में जा बैठे। इस यात्रा में हम केवल एक जोडी कपडे लेकर ही गये थे। घर से चलते समय हरिदवार के लिये निकले थे। लेकिन उत्तराखण्ड के पिथौरागढ जिले में आ पहुँचे। यहाँ का मौसम काफ़ी ठन्ड वाला है जबकि दिल्ली में काफ़ी गर्मी थी। आज हमारी मंजिल धरती में 100 फ़ीट गहरे बेहद संकरे मार्ग वाली पाताल भुवनेश्वर है। 


शनिवार, 3 मई 2014

Nainital to Patal bhuvaneshwar Cave नैनीताल झील से पाताल भुवनेश्वर

KUMAUN CAR YATRA-02                                                       SANDEEP PANWAR

इस यात्रा के पहले लेख में आपने दिल्ली से रात भर चलकर सुबह-सुबह भीमताल, नौकुचियाताल व सातताल तक की यात्रा देखी। अब उससे आगे। हम चारों गाडी में सवार होकर नैनीताल के लिये बढ चले। आज दिनांक 13 अप्रैल 2014 की बात है। सातताल से नैनीताल जाने के लिये पहले भवाली पहुँचना होता है। भवाली कस्बे/बाजार से एक सीधा मार्ग अल्मोडा जाता है। जबकि ऊपर चढाई की तरफ़ उल्टे हाथ जाने वाला मार्ग नैनीताल व दिल्ली/काठगोदाम के लिये अलग होता है। इस मार्ग पर लगभग तीन किमी चलने के बाद एक तिराहा आता है यहाँ से दिल्ली वाला मार्ग नीचे की ओर कट जाता है जबकि नैनीताल वाला मार्ग ऊपर चला जाता है। हमें नैनीताल जाना था जाहिर है हम भी ऊपर वाले मार्ग पर चलते गये। यहाँ इस तिराहे से नैनीताल की दूरी मात्र 7 किमी ही रह जाती है। नैनीताल पहुंचते ही सबसे पहले नैनी झील के दर्शन हुए। नैनीताल में हमारा स्वागत बारिश ने किया।
 

गुरुवार, 1 मई 2014

Sandeep Panwar's Life book April 2014 संदीप पवाँर की जीवनी- अप्रैल २०१४

MAY 2014 माह में आने वाले मुख्य त्यौहार व अवकाश निम्न है।
01 PARSHURAM JAYANTI,      परशुराम जयंती
01 MAJDOOR DIWAS,           मजदूर दिवस
01 SONGARH MELA            सोनगढ मेला
02 SHIVAJI JAYANTI           शिवाजी जयंती
02 AKSHAYA TRITIYA,          अक्षय तृतीया/तीज
02 GURU ARJUN DEV JAYANTI गुरु अर्जुनदेव जयंती
04 SURDAS JAYANTI           सुरदास जयंती
05 AJMER URSH               अजमेर उर्स आरम्भ    
08 REDCROSS DAY             रेडक्रास दिवस
13 HAJRART ALI JAYANTI      हजरत अली जयंती
14 BOODHA POORNIMA/ NEW YEAR बुद्द पूर्णिमा/बौद्द नव वर्ष
16 NARAD JYANTI              नारद जयन्ती
23 GURU AMARDAS BIRTHDAY गुरु अमरदास जयन्ती
26 SABBE MIRAJ                शब्बे मिराज  
29 ASCENSION OF JESU        प्रभु इसु/जीसस का पुनर्जन्म
31 RANA PARTAP JAYANTI     राणा प्रताप जयन्ती
बीते माह अप्रैल 2014 में हुआ लेखा जोखा विवरण नीचे दिया है।


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