EAST COAST TO WEST COAST-23 SANDEEP PANWAR
यहाँ एक बिन्दु वन ट्री हिल के नाम से जाना जाता है इसका यह नाम इसलिये है कि इस पहाड़ी पर केवल एक ही पेड़ खड़ा हुआ है। जब हम इस पहाड़ी के सामने पहुँचे और वन ट्री हिल को देखा तो दिमाग में कुछ उथल-पुथल मच गयी कि क्यों ना इस पहाड़ी पर चढ़कर देखा जाये कि वहाँ से कैसा दिखता है? मैंने इस पहाड़ पर चढ़ने के इरादा विशाल के सामने प्रकट नहीं किया। विशाल थोड़ा कमजोर दिल का मानव है अगर मैं उसे कहता कि मैं उस पहाड़ पर जा रहा हूँ तो वह मुझे कतई आगे नहीं जाने देता। मैंने विशाल से कहा, "विशाल मैं इस पहाड़ी के नीचे तक जा रहा हूँ तुम वहाँ से मेरे फ़ोटो ले लेना। विशाल ऊपर खड़ा होकर मेरे फ़ोटो लेने के लिये तैयार हो गया। जब मैं नीचे पहुँचा तो मैंने ऊपर चढ़ने से पहले हालात का जायजा लिया, जब मुझे लगा कि ऊपर जाने में बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी होगी सिर्फ़ एक जगह चट्टान को सावधानी से पकड़ते हुए शरीर को ऊपर खीचना है बाकि तो पगड़न्ड़ी जैसा माहौल लग रहा है।
जब मैं ऊपर खड़ा था तो दो लड़के ठीक उसी जगह खडे हुए थे जहाँ अब मैं खड़ा हुआ हूँ। वे नौजवान लड़के उम्र यही कोई 17-18 साल रही होगी, इस जगह की विकटता देखते हुए वापिस आ गये थे। तब मैंने ठान लिया था कि ऐसी जगह जाना बच्चों का खेल नहीं है इसके लिये जिगर चाहिए होता है वह बनाने से बनता है। सड़कों पर बाइक के स्टंट दिखाने से नहीं, खैर वह जिगर मुझमें है या नहीं, यह देखने के लिये वन ट्री हिल पर चढ़कर देखना था। कि यहाँ जाना वाकई में इतना कठिन है क्या? कि जिस कारण लोगों की हिम्मत इस पर चढ़ने की नहीं होती है। मैं दोनों पहाड़ी के मध्य बनी खाई में खड़ा हुआ था। विशाल के सामने इस बात का जिक्र नहीं हुआ था कि मेरा इरादा ऊपर जाने का बन रहा है मैं नीचे खाई में उतरते समय विशाल को यह बोल कर आया था कि मैं बस गया और आया।
नीचे खाई में पहुँचकर दोनों ओर की पहाडियाँ देखी, इसके बाद वन ट्री हिल पर ऊपर चढ़ने के लिये जगह तलाश करने लगा। ऊपर दूसरी पहाड़ी से वन ट्री हिल पर जाने के लिये एक पतली सी मात्र आधा फ़ुट चौड़ी पानी बहने से बनी पगड़न्ड़ी दिखाई दे रही थी लेकिन नीचे जाने के बाद उसका कुछ अता-पता नहीं लग पा रहा था। यहाँ ऊपर जाने के लिये जो स्थान सही लग रहा था मैंने उसपर चढ़कर सामने वाली पहाड़ी को हाथों से पकड़ लिया। यहाँ चढ़ने के लिये मुझे कम से कम तीन फ़ुट के दो कट पहाड़ पकड़ कर चढ़ने पड़े। इन दोनों को पार करते समय नीचे देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं यह नहीं कहता कि मुझे ड़र नहीं लगा, मुझे भी लगा, लेकिन ड़र के आगे ही तो जीत है। यहाँ विज्ञापन की तरह कोल्ड ड्रिंक पीकर चढ़ाई पार करने की नौंटकी करने की बेवकूफ़ी की सम्भावना नहीं है।
विशाल मेरे फ़ोटो लेने के लिये तैयार था उसने चिल्लाकर संदीप भाई क्या कर रहे हो? ऊपर जाते समय ना नीचे देखा ना किसी आवाज पर ध्यान दिया। मैं दे दना-दन ऊपर चढ़ता चला गया। पहाड़ी की बेहद तीखी ढलान की लम्बाई नापी जाये तो मुश्किल से बीस-तीस मीटर ही होगी, लेकिन ये मात्र बीस मीटर बेहद ही ड़रावने है। जिसे मेरी बात का यकीन ना हो, वो यहाँ जाकर इस वन ट्री हिल पर आना-जाना कर आये फ़िर अपनी आय प्रकट करे। अगर कोई इसे आसान कहेगा तो आश्चर्य होगा। ऊपर चढ़ते समय मैं तेजी से आया था कुछ ड़र से, कुछ गति के कारण साँस फ़ूल गयी थी। कुछ देर रुककर साँस सामान्य हुई। इस रोमांचक व खतरनाक चढ़ाई के कारण मेरी दिल की धड़कन भी अपनी सामान्य गति से दुगनी हो चुकी थी।
साँस सामान्य होते ही विशाल की ओर नजर गयी। विशाल को हाथ हिलाकर ऊपर चढ़ने की खुशी साझा की गयी। विशाल कुछ कहना चाह रहा था लेकिन वह मुझसे काफ़ी दूर था जिस कारण उसकी आवाज स्पष्ट सुनायी नहीं दे रही थी। मैंने वहाँ वन ट्री हिल के टॉप पर ठहरने में 4-5 मिनट बिताये थे। इस दौरान मैंने उस पहाड़ी पर दोनों दिशा में घूमते हुए नीचे गहरी खाई में झांकने की कोशिश की थी लेकिन वह पहाड़ ज्यादा ढ़लान वाला है जिस कारण ज्यादा आगे नहीं जाया जा सकता था। ऊपर से नीचे जहाँ तक दिखायी देता था वहाँ तक ऐसा लगता था जैसे हम किसी हवाई जहाज में पहाड़ों के ऊपर यात्रा कर रहे हो और नीचे खाई आ गयी हो।
ऊपर का काम निपटने के बाद अब नीचे जाने की बारी थी ऊपर जाना मेरे लिये हमेशा आसान कार्य रहा है लेकिन नीचे जाने के नाम पर शरीर सावधान की मुद्रा में स्वत: ही आ जाता है। नीचे उतरने से पहले मैंने उसी नाम की पगड़न्ड़ी का अवलोकन किया और धीरे-धीर उतरना शुरु किया। ऊपर आते समय तो तेजी से चला आया था अब कदम से कदम मिलाकर उतरना पड़ रहा था आधा मार्ग पार्क करते ही बड़े-बड़े पत्थर आये जहाँ खड़े होने की जगह बैठकर उतरना ही सुरक्षित लगा। बैठकर कई मीटर पार हो गये तो सबसे बड़ी आफत वो तीन-तीन फ़ुट वाली चट्टान भी आ गयी जहाँ से एक जरा सी चूक नीचे हजारों फ़ुट गहरी खाई में लुढ़काने के लिये बहुत थी। पहले मैंने बैठकर उतरने की सोची लेकिन इसमें खाई की ओर मुँह होने से पहाड़ से पकड़ ढ़ीली पड रही थी इसलिये खड़े होकर पहाड़ की ओर मुँह कर उतरने की कोशिश की गयी। चढ़ते समय जहाँ तीन फ़ुट ऊँचाई ज्यादा नहीं लगी थी वही उतरते हुए पैर नीचे वाले पत्थर तक पहुँचने में मुश्किल हुई।
जैसे ही मैंने नीचे वाले पत्थर पर पैर रखा तो मैंने चैन की लम्बी साँस ली, इस पत्थर पर पहुँचने के बाद मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं कोई किला जीत कर लौट रहा हूँ। कुछ लोग इसे यह भी कह सकते है कि जान बची लाखों पाये लौट के जवान वापिस आये। लेकिन एक कहावत सबसे अच्छी है कि जो जीता वही सिकंन्दर। जैसे ही विशाल के पास पहुँचा तो सबसे पहले विशाल ने कहा "क्या संदीप भाई खतरों से खेलने का कुछ ज्यादा ही शौक है।" मैंने कहा "क्यों भाई रोमांच नहीं लगा।" अरे रोमांच की बात करते हो, मेरी तो हालत देखते ही हालत पतली हो गयी। मैंने फ़ोटो लेने के लिये विशाल का धन्यवाद किया। इस यात्रा में मेरे पास मोबाइल के फ़ोटो थे विशाखापटनम में नारायण जी के कैमरे के फ़ोटो मिल गये थे। यहाँ विशाल का कैमरा साथ निभा रहा था। चलिये वन ट्री का पहाड़ तो जीत लिया है अब आगे पिसरनाथ मन्दिर की ओर चलते है। वहाँ एक झील भी है लगे हाथ उसे भी देखते चलेंगे। (क्रमश:)
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के आंध्रप्रदेश इलाके की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
04. विशाखापट्टनम का कब्रगाह, और भीम-बकासुर युद्ध स्थल।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के महाराष्ट्र यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के बोम्बे शहर की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
1 टिप्पणी:
किला जीतने जैसा ही है भाई, हम तो यकीन कर रहे हैं।
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