LTC- SOUTH INDIA TOUR 05 SANDEEP PANWAR
सुबह उठकर रामेश्वरम के लिये निकलना था।
इसलिये सुबह पाँच उठकर नहा धोकर तैयार भी हो गये। बस वाले ने सुबह 6 बजे
का समय दिया था। लेकिन जब सवा 6 बजे तक भी हमें लेने कोई
नहीं आया तो मन में खटका हुआ कि हमें यही छोड़कर तो नहीं भाग गये? लेकिन शुक्र रहा
कि ठीक 6:30 पर हमें लेने के लिये एक बन्दा आया हम उसके साथ
बस तक चले गये। जिस बस से कन्याकुमारी से मदुरै तक आये वह बस मदुरै से ही वापिस कन्याकुमारी चली
जाती है यहाँ से दूसरी बस में बैठकर रामेश्वरम के लिये निकलने की तैयारी होने लगी।
दूसरी बस कल वाली बस से बड़ी थी या यह कहे कि आज वाली बस है कल वाली मिनी बस थी।
दिन में |
बस रेलवे स्टेशन वाले मोड़ पर आकर कुछ देर
के लिये रुक गयी। यहाँ पर सुनील रावत नीचे जाकर चारों के लिये चाय ले आया। लगे हाथ
रामेश्वरम पहुँचने तक खाने के लिये बिस्कुट के कई पैकेट भी ले लिये गये। बस ठीक
सात बजे मदुरै से रामेश्वरम के लिये रवाना हो गयी। आज वाली बस बड़ी होने के साथ-साथ अच्छी
हालत में थी। अच्छी तो कल वाली भी थी लेकिन यह उससे भी नई थी। रामेश्वरम पहुँचने तक बस चालक ने बस को एक बार भी बीच में कही भी नहीं रोका। खिड़की
के पास बैठकर बाहर के नजारे देखते हुए कब पम्बन पुल पर पहुँचे? पता ही नहीं लगा! जब
हमारी बस पम्बन पुल के ऊपर सड़क मार्ग से जा रही थी तो सामने दिखायी दे रहे रेलवे ब्रिज को देखकर
मन कर रहा था कि आज ही उस पर भी यात्रा कर ली जाये, लेकिन हमारी रेल कल रात की थी
जिसमें बैठकर हमें त्रिरुपति जाना था। अत: मैं चुपचाप बस में बैठा रहा।
हमारी बस सीधे रामेश्वरम मन्दिर के मुख्य प्रवेश
द्धार के सामने ही जाकर रुकी। बस की लगभग सभी सवारियाँ वही उतर गयी। हमें आज की रात
यही रुकना था, कल रात को नौ बजे के करीब हमारी ट्रेन थी इसलिये सबसे पहले एक कमरा लेने की तैयारी
होने लगी। मन्दिर समिति की ओर से बनाये गये कमरे के बारे में पता किया, जवाब मिला कोई कमरा
खाली नहीं है। मन्दिर के सामने वाली गली जो सीधी समुन्द्र में अग्नितीर्थ तक चली जाती है। उस पर
कई होटल व धर्मशाला बनी हुई है लेकिन किसी में भी एक दिन के लिये जगह खाली नहीं
थी। यदि मैं अकेला होता तो कमरा लेने की आवश्यकता ही नहीं होती, कही भी अपना डेरा
जम जाता। लेकिन परिवार साथ हो तो समस्या आ जाती है। हमने मन्दिर की चारदीवारी के साथ कमरा
देखते हुए चलना शुरु किया।
कमरा देखते हुए हम मन्दिर के साथ-साथ काफ़ी
दूर तक चलते चले गये। मैं और सुनील कमरा देख रहे थे जबकि महिलाएँ मन्दिर के पास ही
एक जगह बैठी हुई थी। मन्दिर से स्टॆशन की ओर जाने पर एक जगह कमरे खाली मिले लेकिन
वह साधारण कमरे के लिये ही 500 रुपये के हिसाब से बता रहा था हमें कम से
कम दो कमरे लेने थे। वहाँ से चक्कर लगाते हुए मन्दिर का पूरा परिक्रमा पथ पूरा कर
गये। आखिरकार उसी मोड़ पर पहुँच गये जहाँ से मदुरै से यहाँ आये थे। यहाँ ठीक मोड़ पर
एक शंख आदि बेचने वाले की एक दुकान थी। वह अच्छी हिन्दी बोल रहा था उससे काफ़ी देर
तक बाते होती रही। हम वापिस मन्दिर के प्रवेश द्धार पर आये जहाँ पर हमारे साथ की
तीनों महिलाएँ हमारा इन्तजार कर रही थी।
हमने कमरे तलाशने के क्रम में मन्दिर के सामने वाली गली में ही एक बड़ा
सा दो कमरे वाला लाज देखा था उसका मालिक बोल रहा था कि दो घन्टे में यह खाली हो
जायेगा। अब तक दो घन्टे होने को आ गये थे। हम एक बार फ़िर उसके पास पहुँचे। अब उसके
दोनों कमरे खाली हो रहे थे। हमने सफ़ाई होने की भी प्रतीक्षा नहीं की और अपना सामान
रख दिया। सामान रखकर हम मन्दिर देखने चल दिये। जब हम कमरा देखने गये थे तो साथ गयी
महिलाएँ मन्दिर में आते-जाते लोगों को देख रही थी कि वहाँ मन्दिर के अन्दर से लोग स्नान कर बाहर आ रहे
थे। यह बताया गया था कि मन्दिर में लगभग 21 कुएँ बनाये हुए है जिनका पानी अलग-अलग तीर्थ का पुण्य लिये हुए है।
मुझे छोड़कर अन्य चारों मन्दिर के उन कुएँ
में नहाने के लिये चल दिये। मैं उनके साथ ही था, यहाँ नहाने की इच्छा वाले लोगों
को नहलाने के लिये स्थानीय लोगों ने कमाई का जुगाड़ बनाया हुआ है। एक बन्दा लगभग एक
समूह को नहलाने के लिये लेकर जाता है। एक समूह में लगभग 10 लोग
हो जाते है। यह सबसे कुएँ से पानी निकालकर नहलाने के बदले 10-20 रुपये शुल्क के तौर पर वसूल करता है। ऐसे बहुत सारे लोग वहाँ पर छोटी सी
बाल्टी लेकर खडे रहते है। नहाने वाले लोग उसे साथ लेकर कुए दर कुए पर आगे बढ़ते
रहते है। वह एक कुए का पानी निकाल कर उनके ऊपर डालता है उसके बाद अगला कुआ, ऐसे ही
क्रमवार सभी कुओं का पानी नहाने के लिये ड़ाला जाता है। मैं ऐसे आलतू-फ़ालतू चक्करों
से दूर ही रहता हूँ। मैं बाद में कमरे पर जाकर आराम से नहाया था, कमरे पर तो अन्य
सभी को भी नहाना पड़ा था।
नहाधोकर मन्दिर में दर्शन करने चल दिये।
मुझे किसी जानकार ने गंगाजल की एक छोटी सी शीशी यहाँ चढ़ाने के लिये दी थी। मन्दिर
में भगवान के प्रतीक चिन्ह शिवलिंग के दूर से (कोई 20 मीटर दूर) ही दर्शन कराये जाते है। जब मैंने एक
पुजारी को वह शीशी शिवलिंग पर चढ़ाने के लिये दी तो पुजारी मुझसे उसके बदले 50 रुपये
शुल्क के माँगने लगा। मैं पुजारी की इस भिखारी वाली आदत से ही नफ़रत करता हूँ इसलिये पुजारी को भीख रुपी शुल्क देने से दूर रहता हूँ। यहाँ पर
मन्दिर में दो तरह के दर्शन की सुविधा बनायी हुई है एक आम लोग जिसमें कोई शुल्क
नहीं लगता है दूसरी 50 रुपये वाली लाईन जिसमें लगने वाले
लोगों को अन्दर ले जाकर कुछ देर बैठने का मौका दिया जाता है। वहाँ भिखारी वाली सोच के पुजारी उनसे
कुछ और वसूली करने के बाद ही आगे जाने देते है। मैंने गंगा जल की वह शीशी सुनील को
दे दी थी। जो 50 रुपये वाली पंक्ति में जाकर बैठ गया था।
मन्दिर में दर्शन करने के उपराँत, मन्दिर
को तसल्ली से देखते हुए वापिस कमरे पर आ गये। रात को एक बार फ़िर मन्दिर में दर्शन
करने पहुँच गये। अब दिन के मुकाबले ज्यादा भीड़ नहीं थी जिससे आसानी से दर्शन हो
गये। शाम के समय हम समुन्द्र किनारे अग्नितीर्थ नामक किनारे पर काफ़ी देर तक बैठे
रहे। यहाँ टहलते हुए समुन्द्र किनारे-किनारे काफ़ी दूर तक चलते रहे। समुन्द्र किनारे
मछुआरों की बस्ती आने पर मछलियों की जबरदस्त बदबू से हमारा बुरा हाल हो गया तो
हमें वापिस आना पड़ा। यहाँ पहली बार एक जीवित शंख को देखा जिसे एक मछुआरा पानी से
निकाल कर लाया था। अंधेरा होने से पहले अपने कमरे पर वापिस पहुँच गये। रामेश्वरम मन्दिर की गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा है।
जहाँ हम रुके हुए थे उसका नाम मधु काटेज था। सामने ही एक भोजनालय था उसमें दक्षिण भारतीय व्यंजन तो हर समय उपलब्ध रहता था लेकिन उत्तर भारतीय भोजन तलाशने पर भी नहीं मिला। कल दोपहर का खाना यही खाया था हम रात का खाना खाने के लिये दुबारा यही पहुँच गये। हमने रोटी की बात की तो बताया कि रोटी
बनाने वाला बीमार है आज रोटी नहीं मिल पायेगी। हमने दाल-चावल ही खाने के लिये बोल
दिया। हमारी मेज पर प्लेट की जगह केले के बड़े से पत्ते पर चावल परोस दिये गये थे।
बिना चम्मच चावल खाने की अपुन की आदत नहीं। अत: जब मैंने चम्मच देने के लिये कहा
तो होटल वाले बोले कि वो क्या होता है? आखिरकार गुलामों को मालिकों की भाषा में जब
यह बताया गया कि स्पून spoon चाहिए तब उनकी समझ में बात आयी और एक
चम्मच मेरी पत्ते की हरी प्लेट के सफ़ेद चावलों को मेरे मुँह तक पहुँचाने के लिये
उपस्थित की गयी। खाना दाल-चावल बहुत अच्छे बने थे। खाना खाकर अपने कमरे पर आकर सो गये।
अगले दिन सुबह आराम से सोकर उठे, आज हमें
दिन भर में सिर्फ़ राम सेतू तक ही आना-जाना करना था। मन्दिर के पास से ही लोकल बस
धनुष कोड़ी के लिये हर आधे/घन्टे में चलती रहती है। हम भी ऐसी ही एक बस में बैठकर
धनुष कोड़ी की ओर चल दिये। रेलवे स्टेशन से थोड़ा सा आगे जाते ही मछलियों की भयंकर
दुर्गन्ध से होकर हम निकल रहे थे। धनुष कोड़ी पहुँचकर बस खाली हो गयी। हम भी बस से
उतर गये। यहाँ पर समुन्द्र की जोरदार लहरे व साफ़ पानी देखकर एक बार फ़िर नहाने का
मन कर आया लेकिन वहाँ पर समुन्द्र के नमकीन पानी से नहाने के बाद साफ़ पानी से नहाने
के लिये कोई इन्तजाम नहीं था। इसलिये हमने नहाने का इरादा बदल दिया।
यहाँ से राम सेतू अभी काफ़ी आगे था वहाँ
पहुँचने के लिये कई किमी की दूरी तय करनी होती है यहाँ से वहाँ तक जाने के लिये दो
ही उपाय थे एक पैदल व दूसरा वहाँ चलने वाली जीप। हम जीप से वहाँ चलने के लिये
तैयार हो गये, लेकिन वापिस आने वाले एक बन्दे ने जब यह बताया कि राम सेतू दिखायी
नहीं दिया है तो हमने वहाँ जाने का इरादा बदल दिया। बताया गया कि राम सेतू
फ़रवरी/मार्च के महीने में साफ़ दिखायी देता है। दो-तीन घन्टे वहाँ मौज मस्ती करने
के बाद हमने एक बार फ़िर लोकल बस से रामेश्वरम की यात्रा कर ड़ाली। रामेश्वरम
पहुँचकर हमने अपने बैग होटल वाले के आफ़िस से प्राप्त किये क्योंकि दोपहर को जाते
समय हम बैग पैक करके उसके पास छोड़ गये थे ताकि अपने कमरे किसी अन्य यात्री को दे सके।
हमारी ट्रेन जाने में अभी 5 घन्टे
थे इसलिये हम आसपास के अन्य स्थल देखते हुए रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ते रहे। शाम का
खाना हमने नहीं खाया था क्योंकि चावल खाकर हम परेशान हो गये थे। इससे तो पहाड़
अच्छे, वहाँ कम से कम मैगी तो मिल जाती है। ट्रेन रात को 8:30
पर जाने वाली थी इसलिये यह तय था कि ट्रेन में खाने के लिये
जरुर कुछ ना कुछ मस्त मिलेगा और ट्रेन में जो गजब का खाना मिला, वह हमें आजीवन याद
रहेगा। (क्रमश:)
दिल्ली-त्रिवेन्द्रम-कन्याकुमारी-मदुरै-रामेश्वरम-त्रिरुपति बालाजी-शिर्ड़ी-दिल्ली की पहली LTC यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
रात में |
राम सेतू के लिये अभी आगे जाना पडेगा। |
12 टिप्पणियां:
मुझे त्रिवेंद्रम कन्याकुमारी २ माह बाद जाना है , तुम्हारी यह पोस्ट लगता है मेरे काम की होंगी , हो सके तो कुछ महत्वपूर्ण टिप दिया करो जिससे मेरे जैसे लोग लाभान्वित होंगे !
पैसे जाट के फायदा हमारा :)
आभार चौधरी !!
पम्बन का पुल अपने आप में तकनीक का नमूना है, जिस तरह वह खुलता है और बन्द होता है, दर्शनीय है।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
सतीश जी मह्त्वपूर्ण टिप वाली बात पर अवश्य ध्यान दिया जायेगा।
मै भी कल ही दक्षिण भारत की यात्रा पर निकल रहा हूँ जिसमे कन्याकुमारी, सेतुबंध रामेश्वरम, तिरूपति बालाजी, मीनाक्षी मंदिर, पद्मनाभ स्वामी मंदिर तथा अन्य जो भी दर्शनीय स्थल है सम्मिलित है ।
विकास जी आपकी यात्रा के लिये शुभकामनाएँ।
क्या अभी भी रामेश्वरम में रामसेतु के पत्थर मिल जाते है जो पानी मे तैरते है
जी मिल जाते है। जिन्हें हम तैरते पत्थर कहते है असलियत में वह कोरल रीफ, मूंगे की चट्टान है जो जीवों द्वारा बनाई गयी होती है।
समुद्र किनारे बहुत सी जगह दिख भी जाती है।
रामेशवरम जाने के लिए पम्बन पुल ,ट्रेन से ही जाया जा सकता है
शकुन जी ट्रैन और बस दोनों की सुविधा है।
ट्रैन पम्बन पुल से तो बस के लिए इसके बराबर में ही दूसरा पुल बनाया गया है।
रामेस्वरम कौन से मौसम में जाना चाहिए जिससे मंदिर के दर्शन भी हो जाये और प्राकृतिक सुंदरता को भी देखा जाए।। plz बताइयेगा
हमें
मदुरै कन्याकुमारी तिरुपति रामेश्वरम इन चारो जगहों का दर्शन
एक बार की यात्रा में हो जायेगा क्या महोदय
रुपति मदुरै कन्याकुमारी रामेश्वरम इन चारो जगहों में जाना है
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