SACH PASS, PANGI VALLEY-05 SANDEEP PANWAR
11- हिमाचल के टरु गाँव की पद यात्रा में जौंक का आतंक व एक बिछुड़े परिवार को मिलवाना
12- रोहान्ड़ा सपरिवार अवकाश बिताने लायक सुन्दरतम स्थल
13- कमरुनाग मन्दिर व झील की ट्रैकिंग
14- रोहान्ड़ा-सुन्दरनगर-अम्बाला-दिल्ली तक यात्रा।
मेरी बाइक (नीली परी) उस बर्फ़ीले नाले से
सुरक्षित पार हो गयी, लेकिन जब साथी बाइकर की बाइक उस नाले की रफ़्तार में उलझ गयी
और पानी की दिशा में उछल गयी। हम उस घटना को बाइक से दूर खड़े देख रहे थे मैंने
तुरन्त अपनी बाइक साइड़ स्टैन्ड़ पर लगायी और बर्फ़ीले पानी में दूसरी बाइक को बहने
से बचाने के लिय भागा। पानी के नाले के दूसरी और खड़े दोनों साथी देवेन्द्र रावत व
विशेष मलिक इस घटना को देख अचम्भित थे। पल्सर बाइक को घटना के समय महेश रावत चला
रहा था, पल्सर के मालिक देवेन्द्र रावत को तो लगा होगा कि बाइक भी गयी व महेश भी
गया। मुझे ड़र था कि कही बाइक रोकने के चक्कर में महेश भी बहकर नीचे दूसरी ओर ढ़लान
में बर्फ़ वाली दीवार में बनी गुफ़ा में ना सरक जाये। उधर पानी के दूसरी ओर से
देवेन्द्र रावत जी बाइक व महेश को बचाने के लिये भागे।
यहाँ पर गड़बड़ यह हुई थी कि जब महेश रावत पानी
से बाइक निकाल रहा था तो उसके अगले पहिया के आगे पानी के अन्दर ही कोई बड़ा पत्थर
आया होगा या पानी के तेज बहाव से उसका संतुलन बिगड़ गया और वह सीधा ढ़लान की ओर लुढ़क
गया। महेश ने बाइक सम्भालने की कोशिश भी की थी लेकिन छोटा कद होने के कारण वह बाइक
लुढ़कने से नहीं रोक पाया, पानी का बहाव तेज था जिस कारण बाइक पानी के साथ बहकर 8-10 फ़ुट दूर तक चली
गयी। यहाँ सबसे बड़ा शुक्र यह रहा कि महेश बाइक के साथ-साथ हैंडिल पकड़े खड़ा रहा यदि
महेश एक बार भी उस भयंकर ठन्ड़े बर्फ़ीले पानी में लुढ़क गया होता तो वहाँ उसकी जान
के लाले पड सकते थे?
महेश भी हिम्मत वाला बन्दा निकला, बाइक लुढ़कने
के दौरान बाइक सम्भालने की कोशिश में साइलेंसर के ऊपर नंगा पैर लगने से पैर जला भी
बैठा था। लेकिन बाइक के साथ पानी में कूदने के कारण जले हुए पैर को ठन्ड़े पानी ने
बहुत राहत भी पहुँचायी थी। अगर महेश का झुकाव बाइक के उल्टे हाथ की ओर होता तो
शायद बाइक पानी में बहने से बच सकती थी। लेकिन महेश के बाइक के सीधे हाथ होने का
लाभ यह हुआ कि महेश ने उसको आगे खाई में गिरने से रोके रखा था। जहाँ बाइक व महेश
रुके हुए थे वहाँ से सिर्फ़ 3 फ़ुट की दूरी से
ढ़लान वाली बर्फ़ की गुफ़ा शुरु हो रही थी यदि हमारे पहुँचने से पहले महेश या बाइक उस
बर्फ़ की गुफ़ा में बहते पानी के साथ चले गये होते तो वहाँ किसी के बाप की हिम्मत
नहीं थी जो उन्हे निकाल लाता? एक जरा सी चूक और आफ़त शुरु हो गयी। हम तीनों ने
मिलकर बाइक को खड़ा किया। बाइक पानी के बहाव के बीचों-बीच अटकी हुई थी जिससे
बर्फ़ीला पानी बाइक के ऊपर से होकर ही बह रहा था।
हम तीनों को वहाँ से बाइक निकालने में मुश्किल
से 50-60 सेकन्ड़ का समय ही लगा होगा लेकिन इस छोटे से
समय ने ही बर्फ़ीले पानी की दुश्वारियाँ दिखा दी थी। हमारे पैरों के पंजों में दर्द
होने लग गया था। मलिक पानी के दूसरी ओर खड़ा सब कुछ चुपचाप देख रहा था। बाइक निकल
जाने पर मलिक भी पानी पार करने लगा लेकिन यह क्या हुआ? बर्फ़ीले पानी के बहाव के
ठीक बीच में खड़े होकर मलिक चिल्लाया मुझे बचाओ, खीचों लो मुझे, मैं पानी में गिर
जाऊँगा! पहले तो मैंने समझा कि मलिक मजाक कर रहा है लेकिन जब वह कई बार चिल्लाया
तो मुझे पूरी दाल ही काली दिखायी देने लगी।
अभी बाइक निकालने के लिये उस खतरनाक ठन्ड़े
बर्फ़ीले पानी में एक मिनट से ज्यादा बिताया था अब मलिक को बचाने के लिये फ़िर से
पानी में घुसना पड़ रहा था। मुझे मलिक पर इतना गुस्सा आ रहा था कि यदि वहाँ से
वापिस जाने का कोई वाहन मिलने की उम्मीद होती तो उसे वही से भगा देता। मैं ना
चाहते हुए भी तीसरी बार उस प्यारे से ठन्ड़े से जानलेवा पानी में घुस गया। मैंने
चप्पल भी नहीं पहनी थी जिस कारण पत्थरों में चलने में दिक्कत आ रही थी। मलिक का हाथ
पकड़ कर पानी का तेज बहाव पार कराया। पानी से बाहर आते ही मलिक को खूब सुनायी कि हद
है यार, घुटने तक के पानी में तुम पैदल नहीं निकल पाये जबकि हम तीनों उसमें कई बार
निकले-गये है। मलिक की बोलती बन्द थी उसने कुछ नहीं कहा।
चारों बाइक के पास आ गये। सबसे बड़ी राहत की बात
यह थी कि हम चारों में से किसी के साथ(महेश के पैर को गर्म साइलेंसर वाली बात छोड़
दे) कोई खरोंच तक नहीं आई थी। मेरी बाइक तो पहले से ही सही सलामत थी मैंने बाइक
स्टार्ट की ओर आगे चलने लगा। पल्सर पानी में डूबी थी उसका स्टार्ट होना फ़िल्हाल
बेहद ही मुश्किल था। नजदीक ही नीचे खाई में साच पास पार कर किलाड़ की ओर का एकमात्र
ढ़ाबा दिखाई दे रहा था। चूंकि अब आगे चन्द्रभागा नदी के पुल तक ढ़लान ही ढ़लान है
इसलिये इस बात की चिन्ता नहीं थी बाइक स्टार्ट हो या ना हो। अगर बाइक स्टार्ट ना
भी हुई तो कोई बात नहीं, हम तो वैसे भी साच पास से बाइक बिना स्टार्ट किये ला रहे
थे।
बाइक पर बैठकर फ़िर से बिना स्टार्ट नीचे किलाड़
की ओर चलने लगे। 300 मीटर बाद ही किलाड़ की ओर
वाला ढ़ाबा आ गया था। बर्फ़ीले पानी में घुसने के कारण पैरों के पंजों में दर्द हो
रहा था। मुझे फ़िर भी ठन्ड़ सहन करने की थोड़ी बहुत आदत है। लेकिन मलिक व महेश पंजे
में दर्द के कारण ज्यादा परेशान हुए जा रहे थे। हमने अपनी बाइके उस ढ़ाबे पर जाकर
रोक दी। अपना सामान बाइक पर ही छोड़कर हम ढ़ाबे में घुस गये। मलिक व महेश ढ़ाबे वाली
के चूल्हे के पास जा पहुँचे। इस ढ़ाबे की मालकिन एक नेपाली मूल की महिला है। हम इस
ढ़ाबे में आधा घन्टा बैठे रहे। अब तक सभी के पैरों में राहत मिल चुकी थी।
यहाँ पर भी रात्रि विश्राम का इन्तजाम है। यहाँ
रुका जाये या किलाड़ पहुँचा जाये? अभी दिन छिपने में 3 घन्टे से ज्यादा का समय था इसलिये फ़ैसला हुआ कि
किलाड़ चलते है। बाइक का पानी भी अब तक सूख गया होगा। ढ़ाबे से बाहर निकलकर बाइक को
स्टार्ट करने की असफ़ल कोशिश में लगे रहे, लेकिन बाइक स्टार्ट नहीं हो पायी। हमने
ढ़ाबे के अन्दर बैठकर योजना बनायी कि बन्द बाइक ही लेकर चलते है आगे ढ़लान है कोई
समस्या नहीं आने वाली। हमारी बात सुनकर ढ़ाबे वाली बोली कि आगे दो नाले और भी
आयेंगे। उनसे से तो आप किसी तरह निकल भी जाओगे लेकिन एक जगह सड़क के ऊपर पूरा झरना
ही गिरता है वहाँ से बिना भीगे निकलना बेहद मुश्किल काम होगा। इन सबसे पार हो
जाओगे, लेकिन चन्द्रभागा/चेनाब नदी के पुल के बाद किलाड़ तक लगातार 10 किमी की कठिन चढ़ाई है। खराब बाइक उसपर कैसे
चढ़ाओगे?
अब क्या करे, यहाँ से किलाड़ 35 किमी दूरी पर है। यहाँ से वहाँ पहुँचने का कोई
साधन कैसे मिले? साच पास अभी दो दिन पहले ही खोला गया है इसलिये चम्बा से किलाड़ की
ओर आने वाली गाडियों की उम्मीद बिल्कुल नहीं के बराबर है। ढ़ाबे वाली का जानकार एक
लड़का प्रकाश जो दिल्ली में ही रहता है उस समय वही था। बातों-बातों में यह जानकर की
हम दिल्ली से ही आये है तो बहुत खुश हुआ था प्रकाश बोला आपका किलाड़ पहुँचने का
इन्तजाम मैं कर दूँगा। उसने बताया कि एक पिकअप गाड़ी ऊपर साच तक जेसीबी मशीनों के
लिये डीजल छोड़ने गयी हुई है वह घन्टे भर में वापिस आयेगी। वह गाड़ी खाली है किलाड़
तक आप उसमें जा सकते हो।
हमने उस गाड़ी का इन्तजार शुरु कर दिया। लगभग
घन्टे भर बाद वह खाली गाड़ी आ गयी। गाड़ी वाले से
किलाड़ तक बाइक ले जाने की बात की, उसने किलाड़ तक बाइक ले जाने के बदले 1000 रुपये की माँग की, जो 35 किमी के लिये ज्यादा लग रहे थे। महेश को गाड़ी
वाले से अकेले में बात करने के लिये कहा महेश के उससे बात की कि “तु भी पहाड़ी मैं भी पहाड़ी कैसे जायेगी हमारी गाड़ी?” लगता था गाड़ी वाले पर पहाड़ी वाली बात जम गयी वह किलाड़ तक
बाइक ले जाने के बदले 600 रुपये पर मान
गया।
गाड़ी वाला बोला मैं यहाँ से खाना (मुर्गा) खाकर ही किलाड़ के लिये
निकलूँगा। उसको खाने के लिये वहाँ रुकता देख मैंने साथियों से कहा कि अब किलाड़
पहुँचने में रात काफ़ी हो जायेगी इसलिये कुछ खाना पीना हो तो यही खा लो, मैंने ढ़ाबे
वाली से अपने लिये चार प्लेट मैगी बनाने को बोल दिया। मैंगी खाने के बाद देवेन्द्र
रावत जी ने कहा कि जाट भाई आप अपनी बात भूल गये हो आपने नकरोड़ में खाना खाते समय
कहा था कि अब रात होने से पहले जो खाने की बात करेगा वो आज के खाने के पैसे देगा।
ठीक है किलाड़ पहुँचकर हिसाब कर लेंगे। उस ढ़ाबे में दो जिन्दा मुर्गे एक कोने में
रखे हुए थे प्रकाश ने उनमें से मुर्गा काट कर बनाने के लिये बाहर ले गया। वह तो
ढ़ाबे के अन्दर ही उस मुर्गे को काट ड़ालता, लेकिन हमारे टोकने पर वह उसे बाहर ले
जाकर काटने चला गया। मुर्गा काटने के बाद अन्दर उसका कच्चा मीट ही लेकर आया। गाड़ी
वाले को मुर्गा पकवा कर चट करने में घन्टा भर लग गया।
अगर दूसरी बाइक भी सही होती तो हम दिन रहते ही
कब के किलाड़ पहुँच गये होते? यहाँ दो घन्टे से पड़े-पड़े बोर हो रहे थे। वहाँ दो
घन्टे रहने के दौरान ढ़ाबे वाली की जवान लड़की की प्रेम कहानी और चौचले बाजी देखते
रहे। उस लड़की की हरकत देखकर यह अंदाजा लगाने में मुश्किल हो रही थी कि इस लड़की का
चक्कर वहाँ मौजूद दो लड़कों में से किसके साथ ज्यादा है? प्रकाश और सोनम नामक दो
लड़के वहाँ उस ढाबे वाली छोरी के साथ कुछ ज्यादा ही घुले मिले दिखायी दिये थे। उन
तीनों की हरकत हम सबको चौकन्ना कर रही थी कि शहरों में ही गुलछर्रे उड़ाने वाले
नहीं होते पहाड़ भी उससे अछूते नहीं है। सच कहू तो पहाड़ की लड़कियाँ, शहरी लड़कियों
से ज्यादा खुले विचारों की है।
मुर्गा खाने के बाद गाड़ी चालक किलाड़ रवानगी ले
लिये तैयार हो गया। इस बीच हमने अपनी दोनों बाइके खराब वाली व सही वाली दोनों ही
उस गाड़ी में चढ़ा कर बाँध दी थी। मलिक और महेश गाड़ी में आगे बैठा दिये गये जबकि
पीछे बाइक पर मैं और देवेन्द्र जी अपनी-अपनी बाइक पर सवार होकर बैठ गये। उस ढ़ाबे
से चलने के कुछ देर बाद ही पानी का नाला आया लेकिन यह नाला मुझे जरा सा भी खतरनाक
नहीं दिखाई दिया। इससे आगे एक जगह कच्ची सड़क के ठीक ऊपर ही पूरा नाला झरने की शक्ल
मे गिर रहा था। अगर बाइक से आते तो इसको पहाड़ के साथ निकल कर बिना भीगे पार कर
जाते! लेकिन हम गाड़ी में पीछे बैठे थे जैसे ही गाड़ी इस झरने के नीचे आयी तो बचने
के लिये हमने गाड़ी की तिरपाल ओड़कर बचने की कोशिश की थी लेकिन फ़िर भी पानी पीठ पीछे
से अच्छी तरह भीगो कर ही माना।
आगे जाने पर एक तीसरा नाला और आया लेकिन वह
नाला ना होकर सिर्फ़ हल्का फ़ुल्का पानी जैसा दिख रहा था। इन तीनों जगह पर गाड़ी के
टायर के काले हिस्से भी पानी में नहीं डूबे थे। सिर्फ़ झरने वाले पानी को छोड़ दे तो
ये झरने बहुत ज्यादा चिंतित करने वाले नहीं थे। इन झरनों को पार करने के थोड़ी देर
बाद अंधेरा होने लगा। तीखी ढ़लान बराबर साथ निभाती चली आ रही थी। बाइक एक बार भी
पीछे की ओर नहीं सरकी थी। मार्ग में एक जगह तीन बकरी लावारिस हालत में घूमती हुई
दिखायी दी। इन बकरियों को गाँव वालों या बकरियों वालों ने जान बूझ कर रास्ते में
खुला छोड़ा होगा कि कोई गाड़ी वाला इन्हे उठाकर जैसे ही गाड़ी में ड़ाले और फ़िर ये
उन्हे जमकर मारपीट करे। सौदे बाजी करने के बाद ही बकरी उठाने वाले को वे लोग जाने
देते होंगे।
मार्ग में बकरियों के कई झुन्ड़ मिले जो बीच
कच्ची सड़क पर ही रात्रि विश्राम के लिये डेरा ड़ाले हुए थे। किलाड़ तक ही सड़क की
हालत बेहद ही खराब थी। उस गाड़ी में बैठे-बैठे मैं सोच रहा था कि इससे अच्छा तो यही
रहता कि मैं अपनी बाइक से ही किलाड़ आ जाता! रात को 9 बजे के करीब हमने
चन्द्रभागा नदी का पुल पार कर लिया था। अंधेरे में कुछ खास दिखायी नहीं दे रहा था
मैंने तभी सोच लिया था कि किलाड़ में बाइक ठीक कराने के बाद इस पुल को देखने 10-11 किमी वापिस जरुर आयेंगे। रात को ठीक पौने 10 बजे हमारी गाड़ी हमारी बाइके लादकर किलाड़ पहुँच
चुकी थी। हमारी बाइक किलाड़ में ठीक हुई या वहाँ से 80 किमी दूर उदयपुर
में, या 120
किमी दूर कैलांग में, या
फ़िर 250 किमी दूर मनाली में जाकर बाइक ठीक हो सकी।
इसकी जानकारी अगले लेखों में मिल जायेगी। हमारा पाँगी वैली में घुसते ही आरम्भ हुआ
पंगा, अभी समाप्त नहीं हुआ है। देखते रहे। (यह यात्रा अभी जारी है)
इस साच पास की बाइक यात्रा के सभी ले्खों के लिंक क्रमवार नीचे दिये जा रहे है।
12- रोहान्ड़ा सपरिवार अवकाश बिताने लायक सुन्दरतम स्थल
13- कमरुनाग मन्दिर व झील की ट्रैकिंग
14- रोहान्ड़ा-सुन्दरनगर-अम्बाला-दिल्ली तक यात्रा।
After joom |
before joom |
7 टिप्पणियां:
बकरी छोड़कर लोगों को फ़साने की तो ये नई जानकारी है
ram -ram ji.panga vally me aur kya- kya pange hue uska hume intjaar rahega.ek photo me chandrma dershan ho rahe hai woh photo bahut acha kecha hai aap ne.
राम राम जी, ऐसे हादसो से बचकर रहा करो भाई....
अब ये सोचना है कि आगे क्या होगा? धारावाहिक वाली स्टाईल हो गई। :)
ये तो स्वर्ग की ही यात्रा हो गयी... एक से एक बेहतरीन चित्र एवं मनोरम दृश्य....
रोचक होती यात्रा..
तु भी पहाड़ी मैं भी पहाड़ी कैसे जायेगी हमारी गाड़ी? हा हा हा... सही है देवता।
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