मंगलवार, 23 जुलाई 2013

Mathura-Krishna Birth place and Vrindavan मथुरा कृष्ण जन्म भूमि व वृन्दावन

AGRA-MATHURA-VRINDAVAN-03                             SANDEEP PANWAR 
आगरा से मथुरा की सड़क मार्ग से दूरी लगभग 50 किमी है सड़क भी बेहतरीन है क्योंकि दिल्ली आगरा राष्ट्रीय राज मार्ग जो है। अगर यह राष्ट्रीय राज मार्ग नहीं होता तो यहाँ की सड़क की दुर्दशा भी बेहद ही बुरी होती! जैसे हमारे घर वाले मार्ग यमुनौत्री राज्य मार्ग की है। बस में आगरा निकलने तक जल्द ही इतनी भीड़ हो गयी कि एक बन्दा बोला आप बच्चों को गोद में बैठा लो। मैंने कहा क्यों तुम्हे खड़ा नहीं रहा जा रहा तो दूसरी बस में आ जाना। हम बस अड़डे से खाली सीट देखकर बैठे थे, इसलिये बैठ कर ही जायेंगे। जब उस बन्दे का सीट के कोई जुगाड़ नहीं दिखा तो उसने कन्ड़कटर को आवाज लगायी।


जैसे ही कन्ड़क्टर हमारे पास आया और उसने उसे सीट वाली बात बतायी तो कन्ड़क्टर के जवाब ने उसकी बोलती ऐसी बन्द की कि वह मथुरा बस से उतरने तक भी कुछ नहीं बोल पाया था। सोचिये बस कन्ड़क्टर ने क्या जवाब दिया होगा? चलिये रहस्य से पर्दा उठाते है मैंने पहले ही बच्चों का पूरा टिकट लिया हुआ था क्योंकि मुझे पता था बिना टिकट लिये बच्चों की सीट पर कोई ना कोई बैठने की जिद जरुर करेगा। बच्चों के आराम के लिये क्यों पैसों का लालच करना, व अपनी समस्या बढ़ानी। बस ने घन्टा भर में ही मथुरा उतार दिया होगा।

बस वाले अच्छे थे लेकिन मार्ग में एक जगह बस की चैकिंग होने लगी। यहाँ पर कन्ड़क्टर की चालाकी या लापरवाही जो भी हो ऊपर वाला परमात्मा जाने या फ़िर कन्ड़क्टर जाने कि तलाशी में दो सवारियों पर टिकट नहीं मिले। सवारियों ने चैकिंग वालों को बोल दिया कि पैसे लेने पर भी इसने टिकट नहीं दिये है। अब मामला ऐसा था कि उसमें कन्ड़क्टर की नौकरी पर आफ़त आनी थी। उसका समाधान यही निकला कि नगद जुर्माना देकर अपना पीछा छुड़ाये या फ़िर जुर्माना ना देने की दशा में आगे कार्यवाही हेतू शिकायत को उच्चाधिकारियों को प्रेषित किया जाये। कन्ड़क्टर ने 2500 रुपये नगद नारायण देकर अपनी नौकरी बचायी।

मथुरा बस अड़ड़े पहुँचते ही मुझे ट्रेन से दिखायी देने वाला सीन याद आया कि अरे यह बस अड़ड़ा तो दिल्ली से आगरा जाते समय मथुरा आने से दो किमी पहले ही ट्रेन से दिखायी देता है। बस से उतरते ही हम सड़क पर रिक्शा या ऑटो की इन्तजार में खड़े थे कि एक ऑटो वाला आया और बोला कि कहाँ जाओगे? मैंने कहा जन्म भूमि। उसने बैठो कहा तो हम उसके ऑटो में बैठ गये। कुछ दूर तक तो वह जन्म भूमि/वृन्दावन रोड़ पर चला, लेकिन यह क्या वह 300 मीटर जाते ही मुख्य सड़क छोड़कर एक अन्य गली में मुड़ गया। मैं उसकी इस हरकत पर चौकन्ना हो गया। पत्नी व बच्चे साथ ही बैठे हुए थे उन्हे मैंने कुछ नहीं कहा कि ऑटो वाला क्या गुल खिला रहा है?

ऑटो वाला हमें लेकर एक होटल के बाहर पहुँचा और बोला कि आप अपने रात्रि विश्राम के लिये कमरा देख लो मैंने कहा मुझे पहले जन्म भूमि देखनी है उसके पास ही कमरा देखना है। ऑटो वाला हमें लेकर वापिस चल दिया। मैं सोच रहा था कि अब शायद यह हमें जन्म भूमि तल लेकर नहीं जायेगा क्योंकि यह होटल वालों से कमीशन खाने वाला दलाल है। मेरी शंका सही निकली उसने हमें पुन: बस अड़ड़े लाकर छोड़ दिया और बोला आप यहाँ से जन्म भूमि जाने वाले ऑटो ले लो क्योंकि इस समय वैसे भी जन्म भूमि पर प्रवेश बन्द कर दिया गया होगा दूसरा हमारा ऑटो वहाँ नहीं जाता है (हा हा हा) समय देखा रात के 8 बजने वाले थे। कमरा देखने से पहले बस अड़ड़े के पास ही एक ढ़ाबा दिखायी दिया। पहले खाना खाने पहुँच गये। हमने तीन थाली भोजन लगवाया दो अपने व एक थाली दोनों बच्चों के लिये काफ़ी थी।

खाना खाकर हमने ढ़ाबे वाले से ही पता किया कि जन्म भूमि यहाँ से कितनी दूर है? व वृन्दावन जाने के लिये बस/ऑटो आदि कहाँ से मिलते है। ढ़ाबे वाले ने बताया कि सामने जो ऑटो खड़ा है यह जन्म भूमि से होता हुआ ही वृन्दावन जाता है यहाँ से वृन्दावन जाने के लिये और कोई मार्ग ही नहीं है। अगर आप जन्म भूमि देखना चाहते हो तो चले जाओ क्योंकि अभी एक घन्टा बाकि है उसके बाद नौ बज जायेंगे फ़िर कल सुबह ही दर्शन होंगे। हम सामने खड़े बड़े वाले ऑटो में जन्म भूमि जाने के लिये बैठ गये। यह ऑटो कुछ अलग तरह के होते है इसमें 10-12 लोग आसानी से आ जाते है। बस अड़्ड़े से लगभग एक किमी दूरी पर ही जन्म भूमि है जन्म भूमि से कुछ पहले ही दिल्ली मथुरा वाली रेलवे लाइन के नीचे से होकर निकलना पड़ा।

जब ऑटो जन्म भूमि के सामने पहुँचा तो मैंने जन्म भूमि देखना का इरादा बदल दिया। जन्म भूमि के दर्शन कल सुबह किये जायेंगे। अब सीधे वृन्दावन चलते है। यहाँ से चलते ही मथुरा से वृन्दावन जाने वाली छोटी रेलवे लाइन के फ़ाटक को पार करते हुए हमारा ऑटो आगे बढ़ता रहा। बीच में सवारी चढ़ती-उतरती रही। आगे जाने पर हमें बारिश भी मिली, जिससे मौसम एकदम सुहावना हो चला था। ऑटो में चलते समय हवा लग रही थी जिससे हल्की-हल्की ठन्ड़क का एहसास भी हो रहा था। रात 8:30 बजे के करीब हम वृन्दावन जा पहुँचे जब ऑटो वाले ने कहा कि मेरा ऑटो यही आटो स्टैन्ड़ तक ही जाता है हमने उसका किराया जो शायद 10-10रुपये सवारी के हिसाब से लिया था देकर रात रुकने के लिये ठिकाने की तलाश में चल दिये।

अभी हम 100 मीटर भी नहीं चले थे कि एक घर के बाहर लगे बोर्ड़ पर नजर गयी। उसका कुन्ड़ा बजाया, 10-12 साल का एक लड़का बाहर आया, हमें देखकर बोला कमरा चाहिए? हाँ, है खाली? उसने कहा कि आप कमरा देख लो। उसने कमरा दिखाया कमरा बिना टीवी वाला था। सोने के लिये दो तख्त थे उन्हे मिलाकर पलंग जैसा रुप दे दिया गया था। छत पर गर्मी से बचने से पंखा भी था। हमने मच्छर से बचने का इलाज पूछा तो उसने कहा कि आपको मच्छर भगान के लिये एक कोयल मिलेगी। चलों ठीक है किराया-भाड़ा, आपके पास पहचान पत्र तो है ना। है सब कुछ है। किराया बताओ। उसने कहा 300 रुपये। बहुत ज्यादा है अब कोई सीजन नहीं है। 150 में हाँ या ना। कहकर हम बाहर आने के लिये चल दिये। जैसे ही उसके घर से बाहर आये तो उसने कहा कि मम्मी से पूछ लेता हूँ। वैसे रात के नौ बजे थे। यात्री आने का सीजन था ही नहीं। उसकी मम्मी ने सोचा होगा कि 150 रुपये क्यों जाने दिये। वैसे मैं उसे 200/300 भी दे देता। लेकिन जब कम में बात बन गयी तो तो बच गये ना पैसे।

रात को आराम से सोये। कोयल जलाने से मच्छर भी नहीं आये। सुबह बाहर कुछ आवाज सुनकर आँख खुली खिड़की से बाहर झांककर देखा तो वहाँ कुछ बन्दर उछल कूद कर रहे थे। उनकी आवाज सुनकर अपना इन्सानी बन्दर भी उठ गया। नहा धोकर वहाँ के मन्दिर देखने चल दिये। सबसे पहले रंगनाथ मन्दिर देखने के चुना। यह मन्दिर वृन्दावन का सबसे बड़ा मन्दिर माना जाता है। जिस प्रकार दक्षिण भारत के किले जैसे आकार के मन्दिर होते है यह भी ठीक उसी तर्ज पर बनाया गया मन्दिर है। इस मन्दिर में चारों ओर विशाल दीवार है इस दीवार के साथ ही मन्दिर में काम करने वाले पुजारी/सेवक आदि के रहने के लिये घर भी बनाये गये है। मन्दिर के अन्दर ही एक विशाल तालाब है। हमने मन्दिर के दर्शन किये। यहाँ प्रसाद का लड़डू बड़ा स्वादिष्ट होता है लेकिन फ़्री में नहीं मिलता है मैंने चारो के लिये एक-एक लडडू खरीद कर ले लिया जिसकी कीमत पुजारी को दे दी गयी।

इस मन्दिर के बाद पैदल ही घूमते-घामते हम सीधे बाके बिहारी मन्दिर जा पहुँचे। मन्दिर में जाने के लिये कई आड़े तिरछे मोड़ वाली लम्बी गली से होकर जाना पड़ा जिस कारण कई बार स्थानीय लोगों से मन्दिर के बारे पता करना पड़ा। बांके बिहारी के दर्शन करने के बाद हमने यमुना नदी की ओर प्रस्थान कर दिया। यमुना के किनारे पहुँचते ही नाव दिखायी जिसे देखते ही बच्चों ने नाव में बैठने की उमंग दिखायी दी। नाव वाले से बात हुई उसने 50 रुपये में इस पार से उस पार आना-जाना करने के लिये हाँ की तो हम उसकी नाव में बैठकर यमुना के दोनों किनारे देख आये। वैसे मेरा गाँव भी यमुना किनारे ही पड़ता है जो कि शबगा, छपरोली बड़ौत के नाम से जाना जाता है। 

नाव की सवारी के बाद हमने कुछ और मन्दिर का भ्रमण किया था जिसमें से मुझे सिर्फ़ गोपीनाथ मन्दिर व राधा दामोदर मन्दिर का ही नाम याद है बाकि मन्दिर के नाम पता याद नहीं है। 10 बजे तक हमने वृन्दावन में अपने मतलब की जो जगह थी सब देख ड़ाली थी। यहाँ से वापिस जाने के लिये रंगनाथ मन्दिर की ओर वापिस चले आये। रंगनाथ मन्दिर वाले चौक पर रुककर हमने कचौरी व आलू की सब्जी का स्वाद चखा। वैसे इस इलाके में कचौरी का चलन कुछ ज्यादा ही दिखायी दिया था। कचौरी से निपटने के बाद हमने जन्म भूमि/मथुरा जाने वाले ऑटो में बैठ अपनी वापसी की यात्रा आरम्भ कर दी।

ऑटो वाले ने आधे घन्टे में ही हमें जन्म भूमि के पास उतार दिया। जन्म भूमि वाले मार्ग पर पुलिस बल तैनात था जिसे देखते ही समझ गया कि यहां भी शांत धर्म के लोगों का आतंक है जिस कारण सुरक्षा के लिये पुलिस तैनात की हुई है। मन्दिर देखने से पहले अपना मोबाइल आदि सामान गेट पर बने काऊँटर पर ही जमा कराना पड़ा। मन्दिर देखने के सख्त सुरक्षा जाँच से होकर अन्दर गये तो वहाँ पर एक गुफ़ा नुमा झाँकी को देखने का मन कर गया। यह झांकी मुझे मन्दिर से भी अच्छी लगी। इसका देखने का शुल्क मात्र 5 रुपया था। झांकी देखने के बाद मन्दिर की ओर बढ़ चले। सामने ही मन्दिर था। मन्दिर कुछ ऊँचाई पर बनाया गया है। मन्दिर की बराबर में ही कथित रुप से शांत धर्म के लोगों का विवादित पूजा स्थल भी है। असली जन्म भूमि के ऊपर ही विवादित मस्जिद बनायी गयी है।

कायर हिन्दुओं के देश में कुछ मुट्ठी भर लोग सैकडों साल राज-काज कर गये। जो ज्यादा कायर थे वे ड़र के मारे उनके धर्म में परिवर्तित हो गये। कथित रुप से शांत धर्म अपनी जनसंख्या धीरे-धीरे बढ़ाता जा रहा है। एक ऐसा धर्म जो मात्र 1400 साल पर बनाया गया था इनका भगवान भी तब उत्पन्न हुआ/किया/बनाया/ जो भी हो। तब अस्तित्व/दुनिया में पता लगा जब दुनिया में सब कुछ आ चुका था। यहाँ तक की सुअर व कुत्ता जैसे जानवर भी जिसके बारे में कहते है कि इनके कथित भगवान का आदेश है कि इन जानवरों से बच कर रहो। हा हा काहे का भगवान जो उसकी मर्जी के बिना 1400 सालों से ये दो जानवर संख्या में उतने ही मिले जायेंगे जितने ये शांत धर्म वाले लोग है। मन्दिर दर्शन करने के उपराँत हम बाहर चले आये।

मन्दिर से बाहर आते ही सड़क किनारे गर्मागर्म जलेबी बनती हुई दिखायी दी। आइसक्रीम और जलेबी सामने दिख जाये फ़िर किसकी मजाल कि मुझे खाने से रोक सके? आधा किलों जलेबी लेकर सपरिवार खाने के लिये टूट पड़े। उसके बाद एक-एक समोसा भी गायब कर दिया। जलेबी से निपटने के बाद दिल्ली जाने के अलावा और कोई कार्य शेष नहीं बचा था इसलिये पैदल ही टहलते हुए भूतेश्वर स्टेशन की ओर चले आये। जन्म भूमि से यह स्टेशन मुश्किल से पौन किमी दूरी पर ही होगा।

भूतेश्वर स्टेशन नजदीक ही था यहाँ आकर पता लगा कि अभी चार घन्टे तक दिल्ली की ओर जाने वाली कोई लोकल ट्रेन नहीं है। यहाँ एक्सप्रेस रेल रुकती नहीं है। इस स्टेशन से ही गोवर्धन जाने के लिये बस व शेयरिंग ऑटो नियमित अन्तराल पर मिलते रहते है। हमने एक रिक्शा में बैठकर मथुरा स्टेशन जाने का निर्णय लिया। लेकिन जब पैड़ल रिक्शा बस अड़्ड़े के सामने पहुँचा तो दिल्ली जाने वाली बस चलने को तैयार खड़ी थी। तुरन्त फ़ैसला बदलकर बस में सवार हो गये। रिक्शा वाले को मथुरा स्टेशन तक का तय किराया दे दिया गया था। बस में बैठकर हमने दिल्ली के लिये प्रस्थान कर दिया। आगरा मथुरा की दिशा में जाने वाली बसे सराय काले खाँ (निजामुददीन स्टेशन से एकदम सटा हुआ) तक आती है इसके बाद हमें दिल्ली की स्थानीय बस में बैठकर बाकि दूरी तय करनी पड़ी। शाम होने से पहले ही हम अपने घर पहुँच चुके थे। (समाप्त)

7 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

jai shri krishan. sandeep ji bus photo ki kami reh gayi.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कान्हा की नगरी में घूम कर आनन्द आ जाता है..

DJ_knight ने कहा…

कचौरी जलेबी का चलन नाश्ते के रूप में ब्रज क्षेत्र से हाडौती तक है... मुंह में पानी आ गया ......

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

kanha ki nagari ki badhiya sair ho gayi

hindugoonj ने कहा…

101% कटु सत्य कहा आपने -
कायर हिन्दुओं के देश में कुछ मुट्ठी भर लोग सैकडों साल राज-काज कर गये। जो ज्यादा कायर थे वे ड़र के मारे उनके धर्म में परिवर्तित हो गये। कथित रुप से शांत धर्म अपनी जनसंख्या धीरे-धीरे बढ़ाता जा रहा है। एक ऐसा धर्म जो मात्र 1400 साल पर बनाया गया था इनका भगवान भी तब उत्पन्न हुआ/किया/बनाया/ जो भी हो। तब अस्तित्व/दुनिया में पता लगा जब दुनिया में सब कुछ आ चुका था। यहाँ तक की सुअर व कुत्ता जैसे जानवर भी जिसके बारे में कहते है कि इनके कथित भगवान का आदेश है कि इन जानवरों से बच कर रहो। हा हा काहे का भगवान जो उसकी मर्जी के बिना 1400 सालों से ये दो जानवर संख्या में उतने ही मिले जायेंगे जितने ये शांत धर्म वाले लोग है। मन्दिर दर्शन करने के उपराँत हम बाहर चले आये।

बेनामी ने कहा…

भाई जब मैं तुझे पढ़ रहा था... तब वहां का एक एक नजारा मेरी आंखों के सामनेआ रहा था... अच्छा यात्रा वृतांत और कटु सत्य बताया है... मुझे तो मथुरा मंदिर में प्रवेश करने के बाद ही पता चला कि ऐसा केवल रामजन्मभूमि के साथ नहीं बल्कि हमारे कृष्णा के साथ भी है... सोचा था लिखूगां... पर बहुत सोचने के बाद इस विषय पर टिप्पणी बहुत बाद में की..

बेनामी ने कहा…

भाई जब मैं तुझे पढ़ रहा था... तब वहां का एक एक नजारा मेरी आंखों के सामनेआ रहा था... अच्छा यात्रा वृतांत और कटु सत्य बताया है... मुझे तो मथुरा मंदिर में प्रवेश करने के बाद ही पता चला कि ऐसा केवल रामजन्मभूमि के साथ नहीं बल्कि हमारे कृष्णा के साथ भी है... सोचा था लिखूगां... पर बहुत सोचने के बाद इस विषय पर टिप्पणी बहुत बाद में की..

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