SACH PASS, PANGI VALLEY-04 SANDEEP PANWAR
सतरुन्ड़ी नामक जगह पर बने हुए टीन की छत वाले एकमात्र ढाबे कम विश्रामालय में साथियों ने चाय पीकर अपने शरीर को काफ़ी राहत पहुँचायी होगी। मुझे तो पता ही नहीं है कि लोग चाय क्यों पीते है? चाय पीने वाले साथियों को हर 4-5 घन्टे बाद चाय की तलब लग ही जाती थी। अभी समय क्या हुआ था मोबाइल निकाल कर समय देखा तो उसमें अभी दिन के तीन भी नहीं बजे थे मौसम भी कुल मिलाकर ठीक-ठाक सा ही लग रहा था। सतरुन्ड़ी के एकमात्र ढ़ाबे वाले ने हमें बताया कि इस साल आप पहले बाइक वाले हो जो साच पास पार कर रहे हो। पहले क्यों? क्या इस साल कोई बाइक वाला यहाँ नहीं आया? उस छोटे से ढ़ाबे कम रात्रि विश्राम स्थल वाले ने बताया कि साच पास कल ही खुला है वैसे भी जुलाई में मुश्किल से ही गिने चुने बाइक वाले इसे पार करने की हिम्मत उठाते है। साच पास पार करने के लिये सितम्बर का महीना सर्वोत्तम माना जाता है। हमें अभी तक तो सब कुछ आसान ही लगता आ रहा है फ़िर कठिनाई कहाँ आयेगी? अभी आप साच पास से 12 किमी दूर हो, यहाँ से आगे कई कैंची मोड़ आयेंगे वहाँ देखना आपकी बाइके आपको रुलायेगी?
यहाँ से आगे रात्रि विश्राम कहाँ मिलेगा? उसने बताया कि साच से नीचे उतरने पर कोई 10-12 किमी नीचे जाने पर आपको बर्फ़ समाप्त होने के बाद अगला ढ़ाबा मिल जायेगा। इस पास पर रात्रि विश्राम की कोई समस्या नहीं आती है क्यों आगामी कुछ दिनों में यहाँ व उस पार कई ढ़ाबे आरम्भ हो जायेंगे। हमने एक बार सोचा कि यही इसी चाय वाले के यहाँ रात्रि विश्राम कर लेते है लेकिन वहाँ घने कोहरे के कारण कुछ दिखायी नहीं दे रहा था इसलिये वहाँ से आगे चलने में ही भलाई समझी। उसी दौरान उस चाय वाले ने हमें बताया था कि यहाँ से साच पास पार करने के लिये ऊपर की ओर सीधा पैदल मार्ग बना हुआ है बर्फ़ पड़ने व गाडियाँ बन्द होने के बाद स्थानीय लोग पैदल ही साच पास कर लेते है। लेकिन पैदल मार्ग भी कम से कम 5 किमी लम्बाई का बताया गया था। इतनी ऊँचाई पर जहाँ आक्सीजन की कमी हो जाती है वहाँ पैदल चलने में बहुत समस्या आ जाती होगी?
आखिरकार चाय पीने के बाद हम वहाँ से साच जोत की ओर चल दिये। यहाँ सतरुन्ड़ी से आगे चलते ही बर्फ़ की गलियाँ व ऊँची-ऊँची बर्फ़ के बीच से बर्फ़ काट कर बनायी गयी सड़क से होकर निकलना पड़ा। जैसे-जैसे साच पास नजदीक आता जा रहा था वैसे-वैसे हमारी समस्या भी बढ़ती जा रही थी कालावन में कई बार मलिक को तीखी चढ़ाई के कारण बाइक से नीचे उतारना पड़ा था अब तो उससे भी बड़ी दिक्कत आनी आरम्भ हो गयी थी। साच पास से पहले बताये गये कैची मोड़ आने आरम्भ हो चुके थे जैसे ही कैची मोड़ आता बाइक की गति मोड़ के चक्कर में कम करनी पड़ती थी बस बाइक की गति कम करते ही ऐसी-ऐसी हो जाती थी। शुरु के दो मोड़ को तो बाइक किसी तरह रो पीट कर पार कर गयी लेकिन तीसरे मोड़ पर जाते ही बाइक ने ऊपर चढ़ना बन्द कर दिया।
इतनी ज्यादा ऊँचाई पर आने के बाद बाइकों में इस प्रकार की दिक्कत का उत्पन्न होना मामूली बात है मुझे अच्छी तरह याद है कि लेह वाली यात्रा में चाँग ला जाते समय भी भयंकर बर्फ़बारी में हमें ऐसी ही समस्या से उलझना पड़ गया था मेरे साथ पीछे बैठा हुआ मलिक लेह वाली यात्रा में भी मेरे पीछे ही बैठा हुआ था इसलिये इस यात्रा के दौरान लेह वाली घटनाएँ भी ताजा हो गयी। जब कोई मोड़ आने वाला होता था मैं बाइक को दूर से ही जोर से भगाकर लाता था ताकि बाइक का मौसम बना रहे और मोड़ आने पर बाइक तेजी से ऊपर चढ़ जाये लेकिन बाइक भला कहाँ मानती? वहाँ आक्सीजन की बेहद ही कमी थी ऊपर से रही सही कसर एकदम कबाड़े कच्चे मार्ग ने पूरी कर दी थी।
किसी तरह बाइक के ऊपर बैठे-बैठे जोर लगाते रहते कि शायद बाइक इन्ही झटको से लाभ उठा ले और ऊपर की ओर चलने लगे, लेकिन लगता था कि मेरी नीली परी की जान बिना आक्सीजन निकली जा रही थी। एक मोड़ आने पर मैंने मलिक को कूदने के लिये बोल दिया था, मलिक तो चलती बाइक से कूद गया लेकिन उस तीखी चढ़ाई पर बाइक ने मुझे अकेले को भी लेकर चढ़ने से इन्कार कर दिया। मैं बाइक को स्टार्ट कर दुबारा कोशिश करने लगा लेकिन सब बेकार, बाइक आगे बढ़ने को तैयार नहीं थी। आखिरकार मैं बाइक से नीचे उतर गया अब बाइक में जैसे ही गियर लगाया और क्लच छोड़ा तो बाइक धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगी मैं समझ गया कि यहाँ पर इन्जन को इन्धन जलाने के लिये पर्याप्त आक्सीजन ना मिलने के कारण यह समस्या आ रही है। पीछे-पीछे मलिक भी मेरे पास आ पहुँचा।
मलिक की पैदल चलने से बुरी हालत हो चुकी थी। यहाँ शरीर को या गाड़ी को ज्यादा तकलीफ़ देना बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता था। आगे आने वाले कई मोड़ पर हमने यही तरकीब लगायी थी कि मोड़ आते ही मलिक को कूदने के लिये बोल दिया जाता था चलती बाइक की गति मुश्किल से ही 10-15 तक पहुँच पा रही थी। मेरी बाइक मात्र 135 cc की है साथी बाइकर जिनके पास 150 cc की पल्सर बाइक थी उन्हे मोड़ पर हमसे कम समस्या आ रही थी। आखिर के चार किमी हमने बेहद सावधानी व कष्ट उठाकर पार किये थे। मोड़ पार करने पर हम कुछ पल के लिये रुक जाते थे ताकि वहाँ के नजारे देख सके। फ़ोटो लेने के बाद हमारी बाइक सीधे कच्चे मार्ग पर तेजी से दौड़ने लगती थी।
जब साच पास 1-2 किमी बाकि बचा होगा कि तभी हमें सड़क पर काम करते हुए कुछ मजदूर मिले। यहाँ पर कुछ देर रुककर मजदूरों से बात की गयी, उन्होंने बताया कि आप लोग चढ़ाई वाला इलाका पार कर आये हो अब अगले एक/डेढ किमी तक सड़क ज्यादा चढ़ाई वाली व मोड़ वाली नहीं है सामने जो पहाड़ समाप्त होता दिख रहा है उसके पीछे ही साच पास है। हम साच पास के बेहद ही करीब पहुँच चुके थे। लेकिन साच पास से ठीक कुछ सौ मीटर पहले अचानक एक बहुत तीखी ढ़लान व उसके तुरन्त बाद उसकी माँ चढ़ाई भी आ गयी यहाँ यह पक्का दिख रहा था कि बाइक दो बन्दों को तो क्या एक को लेकर भी मुश्किल से चढ़ पायेगी। इसलिये मलिक को पहले ही बाइक से उतार दिया गया।
इसके बाद मैंने अकेले ने बाइक को पूरी ताकत से ऊपर की ओर चढ़ाया लेकिन वही ढ़ाक के तीन पात बाइक 85% चढ़ाई चढ़ने के बाद बन्द हो गयी। इसके बाद मुझे बाइक से उतरकर ही वह चढाई पार करनी पड़ी। यहाँ पर कैमरा निकालने की फ़ुर्सत नहीं थी इसलिये मलिक ने अपने मोबाइल से ही इस चढ़ाई के फ़ोटो लिये थे जो मेरे पास अभी नहीं है जैसे ही मलिक से मुलाकात होगी उससे फ़ोटो लेकर यहाँ लगा दिये जायेंगे। इसके बाद अगले 3-4 मिनट में हम साच पास पहुँच चुके थे। पल्सर वाले हमसे पहले ही साच पास आकर खड़े थे।
हमने अपनी बाइक साच पास के किनारे लगा कर, नीचे खाई में दिखायी देने वाली बर्फ़ के फ़ोटो लेने के लिये पैदल ही वापिस कुछ दूर तक चले आये। साच पास के शीर्ष पर कुछ देर रुकने के दौरान वहाँ बना मन्दिर व बर्फ़ को हटाने के लिये काम कर रही जेसीबी मशीन को देखा। अपने फ़ोटो लिये और वहाँ से आगे किलाड़ की ओर उतरने को तैयार हो गये। चढ़ते समय आक्सीजन की कमी से होने वाली समस्या की अब चिंता नहीं थी लेकिन उतराई में जो मार्ग हमारे सामने आया उसे देखकर हमारे होश उड़ गये। कहाँ तो हम सोच रहे थे कि उतराई में तेजी से नीचे उतरते जायेंगे लेकिन उतराई के दौरान कच्ची सड़क कई जगह कीचड़ से लथपथ मिली किसी तरह बाइक पर उछलते कूदते हुए कीचड पार करते रहे, जहाँ थोड़ा सा भी समतल मिलता वही बाइक ऐसी भागती थी जैसे सात जन्मों से साच पास में कैद की गयी हो और आज इसे यहाँ से निकलने का मौका मिला हो।
किलाड़ की ओर के मार्ग व चम्बा के ओर के मार्ग की तुलना करे तो चम्बा वाला स्वर्ग है किलाड़ वाला नरक है। कई बार बड़े-बड़े पत्थर सड़क में सामने आ जाते थे अगर उन पर बाइक का पहिया चढ़ जाये तो गिरना तय था इसलिये इन पत्थरों से सावधानी से बाइक निकालते हुए दूसरी ओर एक नदी के किनारे जा पहुँचे। मैं सोच रहा था कि अब मार्ग सीधा-सीधा उतरता जायेगा लेकिन नदी किनारे आते ही मार्ग वापिस नीचे नदी की बहाव की दिशा में जाने लगा। अभी तक सब कुछ मस्त बीतता जा रहा था लेकिन जब आखिरी बर्फ़ पार करने लगे तो सड़क के दोनों ओर बर्फ़ की आखिरी दीवारों के बीच से निकलना पड़ा।
यहाँ बर्फ़ की आधी गली पार की ही थी कि इस गली में बर्फ़ के ग्लेशियर के नीचे से आता बर्फ़ीला पानी का तेज बहाव देखकर हमें रुकना पड़ा। यहाँ मार्ग में पानी के दोनों ओर चढ़ाई नहीं दिख रही थी इससे मैंने अंदाजा लगाया कि जहाँ से पानी निकल रहा है वहाँ पर कम से कम 1 फ़ुट पानी जरुर है। पानी की चौड़ाई भी 8-10 फ़ुट से कम नहीं होगी। मैंने फ़टाफ़ट अपने जूते निकाल कर मलिक को दे दिये। इस पानी को पार करने के लिये बाइक पर अकेले ही जाना सुरक्षित लग रहा था इसलिये मलिक को वही रुकने के लिये कहा। पहले गियर में बाइक ड़ालकर आराम से बाइक उस पानी में घुसा दी जब अगला पहिया पानी में आधा ही डुबा तो मैंने पिछले पहिया के पानी में घुसते ही एक्सीलेटर बढ़ा दिया। मेरे दोनों पैर पानी के अन्दर बाइक का संतुलन बनाने के लिये घुसे हुए थे। बर्फ़ीले पानी में कुछ सेकन्ड़ पैर डूबे होंगे लेकिन अत्यधिक ठन्ड़े पानी में भीगने से पैर सुन्न होते दिखायी दिये। जैसे ही बाइक पानी से बाहर आने को हुई तो पानी के अन्दर एक पत्थर से अगला पहिया टकराया जिससे बाइक हल्की सी ड़गमगायी थी लेकिन दोनों पैर इस आकस्मिक घटना के लिये पहले ही चौकन्ने थे पैरों के चौकन्ने होने से सब सही सलामत रहा।
मैंने अपनी बाइक सही सलामत निकाल लेने पर महेश रावत को ईशारा किया कि मेरी तरह निकल आओ, महेश कुछ हिचकता हुआ दिखायी दिया। लेकिन अगले ही पल महेश ने भी बाइक पानी में घुसा दी लेकिन यह क्या हुआ? बाइक सीधी चलने के जगह पानी के बहाव की दिशा में उछल गयी और जिसका ड़र था वही पंगा हो गया। बर्फ़ीला पानी बर्फ़ की गली के बीच में नीचे बर्फ़ की दीवार में बड़ा सुराख बस बाकि पंगा अगले लेख में (पाँगी के इस दर्दनाक पंगे के बारे में अगले लेख में विस्तार से बताया जा रहा है)
इस साच पास की बाइक यात्रा के सभी ले्खों के लिंक क्रमवार नीचे दिये जा रहे है।
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मस्ती भरा है समाँ |
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बर्फ़ पर फ़िसला |
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देखी ऐ ऐसी गलियाँ |
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ये बर्फ़ीली गलियाँ |
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आने वाला है साच पास |
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साच पास/जोत/दर्रा |
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बर्फ़ की घाटी |
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हम है विजेता 2013 के |
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जूम करने क बाद |
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बिना जूम लिये हुए |
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साच पास के बाद एक खुली जगह मे |
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नीली परी |
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चाय वाले की दुकान में कुछ पल विश्राम के |
9 टिप्पणियां:
sandeep ji kuch katrnak kathnie ke baad sugam yatra rahi aapki jiska hum ne purn roop se luft uttaya.
बिन ऑक्सीजन के सबकी हालत ऐसे ही खराब होती है, बस दृश्य और निखर आते हैं।
मजा आ गया साच पास के नजारे को देखकर
wah, kya baat, kya baat, kya baat. pictures to kamal ki h.
घुमक्कड़ी सत्य की खोज, कला के निर्माण, सद्भावनाओं के प्रसार के लिए महान दिग्विजय है! लगे रहो मित्र।
मैने ये TRIP MISS कर दी। सँदीप भाई जी आपने तो पूछा था चलने के लिए। परन्तु कुछ परिस्थिति की वजह से चलना सम्भव न था।
पिछले November को हम भी गए थे…
वैसे इच्छा पांगी जाने की थी लेकिन हो नही सका …
http://travellingslacker.com/2013/05/sach-pass-stairway-to-elysium/
साइकिल से जायेंगे। जब मोटरसाइकिल को भी नीचे उतरकर धक्के मारकर चढाया गया तो साइकिल इसके मुकाबले आसानी से चढ जायेगी।
Pehli baar padha hai aapka blog. Bahut acha laga aur sab kuch bahut ki detail mein likha hai. Photos bahut ache hain. Agli aisi kisi yatra mein muhe bhi le chalein please. :)
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