SACH PASS, PANGI VALLEY-09 SANDEEP PANWAR
उदयपुर में हम लोग रात के 8 बजे पहुँच गये थे इसलिये यहाँ रुकते ही सबसे पहले बाइक की
दुकान की तलाश की गयी। यहाँ पर बाइक की स्पेशल दुकान तो नहीं मिल पायी। ल्रेकिन
एक-दो दुकान ऐसी थी जो बाइक ठीक कर सकते थे। लेकिन किलाड़ से उदयपुर तक की
महा-बेकारी कच्ची-पथरीली सड़क में हमारे ट्रक ने पल्सर बाइक का हैंडिल तोड़ दिया था।
यहाँ की दुकान में बाइक की ऐसेसरीज नहीं मिलती थी। इसलिये हमने मनाली जाना ही
बेहतर माना। जब यहाँ बाइक की कोई दुकान ही नही तो यहाँ उतरकर क्यों समय खराब किया
जाये? अगर सुबह यहाँ दुकान खुलने का इन्तजार भी किया जाता तो वह कैलोंग से बाइक के
हैंडिल लेने जाता। वहाँ से आने-जाने व मरम्मत कराने में कल का पूरा दिन लगना निश्चित था। इस
कारण भी हमने मनाली जाना ही बेहतर समझा। कम से कम कल का दिन तो बच जाता। रात को सोने में वैसे भी देर हो ही गयी थी उसपर लफ़ड़ा यह कि सुबह
जल्दी निकलना भी था।
रात की घटना तो कल के लेख में बतायी ही जा चुकी
है कि ट्रक ड़ाइवरों ने क्या गुल खिलाया था? अब सुबह की घटना के बारे में बात करते
है। रावत जी ने सुबह 03:30 बजे ही उठा दिया था। उठते
ही बोले चलो कही ट्रक ड़ाइवर हमें सोते हुए ना छोड़ जाये। हम उठकर ट्रक के पास आये।
उस समय उदयपुर में एकदम गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। ट्रक वालों को उठाने गये तो वे
बोले कि दूसरे ट्रक वालों को भी उठा दो, सभी साथ ही जायेंगे। दूसरे ट्रक वाले के
पास गये तो वे बोले पहले वाले को उठा दो। इनकी चालाकी देख, हमने दो ग्रुप बनाये दो
बन्दे एक ट्रक के पास खड़े हो गये बाकि दो दूसरे ट्रक के पास खड़े हो गये। दोनों
ट्रकों के चालक से एक ही बात कही कि दूसरे ट्रक वाले तो कब के उठ गये है तुम्हारा
इन्तजार कर रहे है। उदयपुर से चलते-चलते सुबह के 5 बज गये
थे। आसमान में हल्का-हल्का उजाला हो चला था।
यह तो पहले ही बता चुका हूँ कि उदयपुर में
घुसते ही काली पक्की सड़क के दर्शन हो गये थे जो हमारे लिये बहुत दुर्लभ बात हो गयी
थी। उदयपुर से कैलांग 40 किमी के ऊपर है। उदयपुर पार
करने के कुछ किमी बाद ही एक तिराहे से सीधे हाथ वाली सड़क त्रिलोकीनाथ मन्दिर के
लिये जाती हुई दिखायी दी थी। यहाँ लगे बोर्ड़ से मालूम हुआ कि त्रिलोकीनाथ मन्दिर
यहाँ से 6 किमी दूरी पर है। इस मन्दिर तक जाने के लिये
हिमाचल परिवहन की बस चलती है जो मनाली से होकर यहाँ पहुँचती है। इच्छा तो थी
त्रिलोकी नाथ देखने की, लेकिन बाइक ट्रक में लदी पड़ी थी। मैं अपनी बाइक उतार भी
लेता लेकिन दूसरी बाइक उतारकर मुसीबत बढ़ाने के सिवा कुछ नहीं मिलता।
इससे थोड़ा आ आगे चलते ही एक नदी का पुल पार
करना पड़ा। यहाँ पर पुल पार करते ही बेहद ही तीखा मोड़ था उस मोड़ पर कच्ची व गीली
मिट्टी थी जहाँ पर हमारा ट्रक ऊपर चढ़ने की जगह स्लिप करने लग गया। यहाँ ट्रक को
थोड़ा पीछे करके ऊपर लाने के सिवाय कोई उपाय नहीं था लेकिन पीछे गहरी खाई थी अगर
थोड़ी सी भी चूक हो जाती या ट्रक फ़िसलने लगता तो हमें जान बचाने के लिये ट्रक से
कूदने के अलावा और कोई इलाज नहीं दिखता। लेकिन कहते है जहाँ चाह वहाँ राह होती है।
कई कोशिश करने के बाद हमारा ट्रक उस तीखी चढ़ाई व मोड़ व गीली मिट्टी पर सकुशल चढ़ने
में कामयाब हो गया था।
टान्ड़ी पुल आने से काफ़ी पहले लेह की ओर जाने
वाली सड़क दिखायी देने लगती है। उदयपुर वाली सड़क ऊपर चलती है जबकि लेह वाली सड़क
भागा नदी के साथ-साथ चलती है। मैंने लेह वाली बाइक यात्रा में इसके साथ यात्रा की
हुई है। आगे चलकर वह बिन्दु भी आ जाता है जहाँ पर उदयपुर-लेह-मनाली के तीनों मार्ग
एक जगह संगम बिन्दु बनाते है। यहाँ पर बोर्ड़ भी लगा हुआ है जिससे मार्ग भटकने की
सम्भावना नहीं रहती है। यहाँ से थोड़ा आगे जाने पर टान्ड़ी पुल आ जाता है। टान्ड़ी
पुल से भागा नदी पार कर दूसरे किनारे पहुँच जाते है। इस पुल के लेह वाले किनारे पर
एक बड़ा बोर्ड़ लगा हुआ है जहाँ पर आगे के मुख्य स्थलों की दूरियाँ लिखी हुई है। इस
पुल के व बोर्ड के फ़ोटो ले लिये गये थे।
टान्ड़ी पार करने के बाद टान्ड़ी का प्रसिद्ध पैट्रोल
पम्प आता है जहाँ से लेह जाते समय अगला पैट्रोल पम्प पूरे 350 किमी बाद आता है। इस जगह से आगे जाने वाली शायद ही कोई गाड़ी
ऐसी होती होगी जो लेह जा रही हो और यहाँ से तेल लेकर नहीं जा रही हो। लेह से पहले
कारु में ही पैट्रोल पम्प उपलब्ध है। आजकल हो सकता है कि उपशी में पैट्रोल पम्प
चालू हो गया हो। इस पैट्रोल पम्प को पार करने के बाद चन्द्र और भागा नदियों का
संगम दिखायी देता है। ये दोनों नदियाँ यहाँ मिलने के बाद आगे जाकर चन्द्रभागा के नाम से पुकारी जाती है।
इसी नदी को जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने पर चेनाब कहकर पुकारा जाता है। वहाँ इसके
ऊपर दुनिया का सबसे ऊँचा रेलवे पुल बनाया गया है।
अब भागा नदी का किनारा छोड़कर चन्द्रा नदी के
साथ-साथ ट्रक यात्रा आरम्भ हो गयी थी। इस नदी के किनारे पर आते ही मार्ग पहले की
अपेक्षाकृत सीधा हो चला था। यहाँ ट्रक को जैसे ही भगाने का मौका लगता था ट्रक जोर
से भागता था। यहाँ एक जगह हमारे ट्रक चालक ने बताया कि अभी इसी साल रोहतांग खुलने
के कुछ दिन बाद (5-6 दिन) की ही बात है। कि हम
किलाड़ से वापिस मन्ड़ी आ रहे थे। हमारे साथ का एक ट्रक यहाँ नदी के पुल से नीचे गिर
गया था। उस ट्रक में सिर्फ़ ट्रक चालक ही था उसके क्लीनर को 3-4 किमी पहले ही ट्रक चालक ने दूसरे ट्रक में यह कहकर भेजा था कि पीछे वाले
ट्रक वालों को कह देना कि कोकसर में खाना खाकर आगे चलेंगे।
रात का समय था पता नहीं कैसे? वह बदनसीब ट्रक
उस पुल से नीचे नाले में गिर गया। ट्रक नाले में गिर तो गया था लेकिन ट्रक उसके
पानी में नहीं गिरा था ट्रक उसके पानी के ठीक ऊपर अटका पड़ा है। फ़ोटो देखिये। हमारे
ट्रक वाले ने बताया कि जब आगे वाले मोड़ पर हमें आगे चल रहा ट्रक दिखायी नहीं दिया
तो हम परेशान हो गये कि अभी दो मोड़ पहले तक तो हमारे आगे-आगे चल रहा था अब अचानक
कहाँ गायब हो गया? वहाँ सड़क किनारे छुपने की जगह भी नहीं थी। हमने आगे मनाली की ओर से आने वाले ट्रक से पूछा भी था कि अगले एक किमी तक कोई
ट्रक मिला क्या? लेकिन उन्होंने जब कहा कि कोकसर तक कोई ट्रक नहीं मिला तो हम
परेशान हो गये कि दो किमी के टुकड़े में ऐसा क्या हो गया कि पूरा ट्रक गायब हो गया।
हमारे ट्रक चालक ने बताया कि हमने अपना ट्रक
वापिस मोड़ा और सड़क किनारे ध्यान से टायर के निशान देखते हुए आये कि कही ब्रेक फ़ेल
होने के कारण ट्रक सड़क किनारे तो नहीं कूद गया है। जब हम लोग इस पुल को पार कर रहे
थे तो सीधे हाथ ट्रक के पहियों के ब्रेक के निशान दिखायी दिये। हम ट्रक से उतर कर
देखने लगे तो नीचे नाले में हमारे साथ वाला ट्रक गिरा पड़ा था। ट्रक
तो नदी में गिरा मिल गया लेकिन हमारा साथी कहाँ है? रात को 11 बजे के करीब हमने नीचे रस्से बाँध कर ट्रक में उसे तलाश भी किया था लेकिन
वह नहीं मिल सका। अब हमने दिन निकलने का इन्तजार किया। सुबह उसकी लाश नाले से आगे
चन्द्रा नदी के किनारे पर अटकी हुई मिली थी। उस अभागे को तीन दिन बाद क्रिया-कर्म
नसीब हो पाया था।
जहाँ यह ट्रक नाले में गिरा पड़ा था उससे थोड़ा
आगे जाने पर एक ऐसा नाला आता है जिसमें हमेशा पानी नहीं बहता है इसका नाम पागल
नाला बताया जाता है इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें कब लबालब पानी आ जाये, पता
नहीं लगता है। इसको पार करते समय वाहन चालक ऊपर देखकर चलते है यदि इसमें
हल्का-हल्का भी पानी आ रहा है तो बेहद ही सावधानी से निकलना पड़ता है कि कही ऊपर से
पानी का रेला ना आ जाये। अगर मौसम साफ़ है तो इस पागल नाले से ड़रने की बिल्कुल भी
आवश्यकता नहीं है।
यहाँ से आगे जाने पर रोहतांग टनल/सुरंग का
मुहाना दिखायी देने लगता है। काम बड़े जोरों पर किया जा रहा है। जिससे यह उम्मीद की
जानी चाहिए कि अगले दो वर्षों में हम लोग लेह लद्धाख इसी सुरंग से होकर जाया
करेगे। रोहतांग सुरंग की कुल लम्बाई 8.8 किमी बोर्ड में बतायी गयी है। यह सुरंग मनाली में सोलंग नाला/घाटी वाले
मार्ग पर निकलती है इसकी दोनों सिरों से एक साथ खुदाई की जा रही है। बताया गया कि इसका 80
% कार्य पूरा हो चुका है।
कोकसर पहुँचकर पुल पार करने से पहले ही पंचर
वाली कई दुकाने बनी हुई है यहाँ एक दुकान पर रुककर हमारे ट्रक चालक ने पंचर लगवाया
था। पंचर लगाने वाले ने एक नया तरह का जैक हमारे ट्रक में लगाया था। जब पंचर लगाने
के बाद टायर बदल गया और टायर कस दिया तो जैक हटाने की बारी आयी लेकिन उस जैक में
पता नहीं क्या हुआ कि वह फ़्री हो गया। उस पर खड़ा ट्रक नीचे आने को तैयार नहीं हुआ।
आखिरकार उस जैक से ट्रक उतारने के लिये दूसरा जैक लगाया गया तब कही यह जैक हट सका।
पंचर लगवाने के बाद हमारा ट्रक फ़िर से आगे बढ़ चला था। कोकसर के पुल के बारे में
बताया जाता है कि रोहतांग में अक्टूबर में बर्फ़बारी होते ही इस लोहे के पुल को हटा
लेते है ताकि वाहन आगे जा ना जा सके।
रोहताग की चढ़ाई सही मायने में कोकसर के पुल से
ही शुरु हो जाती है। इस पुल को पार करते ही थोड़ा सा आगे चले थे कि चैक पोस्ट पर
वाहनों का नम्बर नोट करके ही आगे जाने दिया गया। यहाँ से आगे चलते ही एक जगह बहुत
सारा कीचड़ सड़क पर फ़ैला हुआ मिला। इस कीचड़ को देखकर कई कार वाले उसमें घुसने की
हिम्मत नहीं दिखा पा रहे थे उन्हे ड़र था कि कार उसमें फ़ँस जायेगी। बाइक वाले उस
कीचड़ से धड़ाधड़ निकलते जा रहे थे। रोहतांग की चढ़ाई पर साँप की तरह बलखाती सड़क पर यात्रा
करने में बहुत आनन्द आता है। मैंने रोहताँग 3 बार
पार किया हुआ है।
आगे चलकर काजा वाला मार्ग मनाली वाले मार्ग से
अलग हो जाता है। यहाँ से मनाली जाते समय उल्टे हाथ वाला मार्ग कुंजुम दर्रा (चन्द्रताल
वाला) काजा, टाबो, रिकांगपियो, किन्नौर, रामपुर होकर शिमला चला जाता है उस मार्ग
की हालत बहुत ही खराब बतायी गयी है। यहाँ इस मोड़ से काजा की दूरी 137 किमी है। जबकि चन्द्रताल/कुंजुम की दूरी मात्र 50 किमी ही है। अगर बाइक सही होती तो चन्द्रताल देखकर आने का विचार बना लेते।
हमने ट्रक में बैठे रहना ही उचित समझा। बाहर का मौसम बून्दा बाँदी वाला हो रहा था।
रोहतांग दर्रे के टॉप पर पहुँचते-पहुँचते बारिश शुरु हो चुकी थी। रोहताँग से आगे
की यात्रा अगले लेखे में। अहा बाइक ठीक हुई! (यात्रा अभी जारी है।)
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नीचे दिखायी दे रही सड़क लेह जा रही है। |
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सामने मनाली , उल्टे हाथ लेह जा सकते है। |
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टान्ड़ी पुल |
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बारिश होने लगी है। |
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पुल के नीचे अटका ट्रक |
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पागल नाला इसे ही कहते है। |
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रोहतांग सुरंग का उत्तर मुख |
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कोकसर पुल |
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जामा वाले मोड़ का बोर्ड़ |
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रोहतांग चढ़ते समय नीचे की साँप सी बलखाती सडक |
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बारिश जिन्दाबाद |
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नीचे बस आ रही है। |
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काजा की ओर जाती सड़क व चन्द्रा नदी |
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बस अब आया रोहतांग |
13 टिप्पणियां:
अब तो कुछ कहने के लिए शब्द ही नही रहे हैं...बस बहुत ही सुंदर...
पहाड़ों के दुर्गम रास्ते..
Bhai Ji, bahut sunder jagaha hai...
sandeep ji yah yatra to kuch jyada hi kathrnak hoti jaa rahi hai.
Chalate Chalate kat jayege raste .........
शानदार फोटो, मारे गए ट्रक ड्राइवर के लिए संवेदना । ऐसी जगहो मे हर पल मौत से सामना होता है।
8 vi post ka link galat ho gaya hai
वास्तव मैं आप आप हो डिअर आप की बराबरी कोई नहीं कर सकता है
आप महान हो और और आपकी यात्रा अद्भुत है काश आप जैसी किस्मत हमारी भी होती तो हम भी प्रकृति का भरपूर आनंद उठातें आप को हमारी तरफ से कोटि कोटि प्रणाम
एक बोर्ड पर पुताई क्यों कर दी? इस पर शायद लिखा था- वेलकम टू लाहौल स्पीति।
durgam rashto ke sher ho aap..
Eid Mubarak..... ईद मुबारक...عید مبارک....
आपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल किया गया है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} (25-08-2013) को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Lalit Chahar
Sach apne bahut sahsi yatra aur isko yahan share kiya. Agar chamba dalhozi rohtang ke sondrya per bhi kuch prakaah dalte to bahut acha tha. Apne sirf marg ki katha likhi he. Agar in jaghon ka bhi vibran shamil kar dein to yeh yatra vrtant bahut prbhavi ho jayega. Dhanyawad
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