SACH PASS, PANGI VALLEY-14 SANDEEP PANWAR
11- हिमाचल के टरु गाँव की पद यात्रा में जौंक का आतंक व एक बिछुड़े परिवार को मिलवाना
12- रोहान्ड़ा सपरिवार अवकाश बिताने लायक सुन्दरतम स्थल
13- कमरुनाग मन्दिर व झील की ट्रैकिंग
14- रोहान्ड़ा-सुन्दरनगर-अम्बाला-दिल्ली तक यात्रा।
अब रोहान्ड़ा का स्कूल सामने दिखायी दे रहा था। इससे पहले कि हम इस स्कूल तक
पहुँच पाते, स्कूल के कुछ बच्चे स्कूल के पास ही खेलने में लगे पड़े थे। कुछ बच्चे
कन्चे का खेल खेल रहे थे तो कुछ बच्चे पहाड़ की झाडियों में शहतूत जैसा छोटा सा
दिखने वाला फ़ल चुनकर खाने में लगे पड़े थे। हम भी उन बच्चों के साथ उस झाड़ी में उस
फ़ल को तोड़कर खाने में लग गये। कुछ फ़ल खाने के बाद हमने नीचे उतरना शुरु किया।
स्कूल के आगे से होते हुए अपने गेस्ट हाऊस जा पहुँचे। महेश धूप में बैठा अखबार पढ़
रहा था। हमने जाते ही बोला चलो बैग उठाओ, बाइक पर सवार हो जाओ। महेश बोला आपने 10 बजे चलने की बोला था अभी तो 09:15 मिनट ही हुए है। अच्छा किया ना आना-जाना कुल
मिलाकर 4 घन्टे
का समय ही तो लगाया है।
रावत अभी चलने के मूड़ में नहीं लग रहा था।
लेकिन हमारे तैयार होने पर उसे भी तैयार होना पड़ा। रोहान्ड़ा गेस्ट हाऊस संचालक अभी
धूप में बैठकर अखबार पढ़ने का मजा ले रहे थे। जब तक महेश तैयार होता। मैंने भी एक
सरसरी नजर अखबार पर ड़ाल ली। लेकिन अपने काम की कोई खबर नहीं मिल पायी तो मैंने
अखबार वही छोड़कर कमरे का किराया अदा किया। इसके बाद अपनी बाइक के पास जाकर उसकी
साफ़ सफ़ाई की गयी। नीली परी दिल्ली जाने के लिये एकदम तैयार खड़ी थी, जैसे ही महेश
अपना बैग लेकर कमरे से बाहर आया तो हमने गेस्ट हाऊस का मुख्य दरवाजा खोलने को कहा
ताकि हमारी बाइक वहाँ से बाहर निकल सके।
दरवाजा खुलते ही अपनी बाइक बाहर निकाली और कपड़े
की दुकान करने वाले शमशेर जी से मुलाकात की और उन्हे कहा कि हम दिल्ली जा रहे है।
उन्होंने कहा कि फ़िर आना, क्यों नही? अबकी बार बच्चों की भी साथ लेकर आना है यहाँ
मुझे बहुत अच्छा लगा है बच्चे भी यहाँ रहकर खुश रहेंगे। बाइक स्टार्ट करने की
आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि रोहान्ड़ा का गेस्ट हाऊस थोड़ा ऊँचाई पर बना हुआ है। ढ़लान
का लाभ लेते हुए हम सुन्दर नगर की ओर चल दिये। वैसे यहाँ से शिमला होकर भी दिल्ली
जाया जा सकता था लेकिन उस मार्ग में पहाड़ी रास्ता ज्यादा आने वाला था जबकि सुन्दर
नगर वाला मार्ग गाड़ी की गति के लिहाज से बेहतर है।
सुन्दरनगर की ओर जाते समय लगातार ढ़लान मिलती
रहती है जिससे बाइक स्टार्ट करने की जरुरत मुश्किल से एक दो जगह ही पड़ती है
क्योंकि सड़क बीच में दो तीन जगह लगभग आधा किमी दूरी तक समतल सी ही है। रोहान्ड़ा से
चलने के बाद चैल चौक जाने वाली सड़क सीधे हाथ दिखायी देती है यहाँ आते समय यह उल्टे
हाथ दिखायी दी थी। खैर दाएँ-बाये का चक्कर तो लगा ही रहता है थोड़ा और आगे जाने पर
हमें वही भोजनालय रुपी दुकान दिखायी दी जहाँ बाइक खड़ी करने के बाद हम टरु गाँव की
दुष्कर चढ़ाई-उतराई करने चले गये थे। आगे चलते रहने पर टरु गाँव भी नीचे खाई में
दिखाई देने लगा।
एक जगह रुककर हमने इस टरु गाँव के कई फ़ोटो
लिये। एक फ़ोटो बिना जूम किये लिया गया तो कई फ़ोटो जूम करके लिये गये थे। सड़क से इस
गाँव की सीधी हवाई दूरी देखी जाये तो एक किमी से अधिक ही रही होगी। जूम प्रयोग
करके लिया गया फ़ोटो लेते समय बहुत परेशानी आयी। इतनी दूरी होने से कैमरा जरा सा
बाल भर भी हिलता था तो घर तो छोड़ो गाँव भी कैमरे से गायब हो जाता था। कैमरा
स्टैन्ड़ बैग में रखा था लेकिन बाइक के शीशे के सहारे जुगाड़ करके यह फ़ोटो ले लिये
गये। यहाँ से आगे चलने पर जय देवी नामक जगह आती है। बिना रुके बिना बाइक स्टार्ट
किये हमारी बाइक सुन्दरनगर की ओर चलती जा रही थी।
जब हम सुन्दर नगर की ओर आ रहे थे तो उसी समय एक
मोड़ पर जहाँ एक बस निकलने लायक जगह थी नीचे से एक कार वाला ऊपर की ओर आ रहा था
लेकिन कार वाला इतना हरामी था कि हमें निकलने के लिये सड़क पर जगह नहीं छोड रहा था।
हमारी बाइक वैसे भी बेहद धीमी चल रही थी जैसे ही वो कार वाला हमारे पास आया तो
मैंने सड़क पर ही बाइक रोक दी। अब कार वाले को मजबूरन ब्रेक लगाने पड़े। मैंने आराम
से बाइक रोक ली, मैं सोच ही रहा था कि यह कार वाला कुछ ना कुछ जरुर बोलेगा।
थोड़ा इन्तजार करने के बाद कार वाला बोला बाइक
चलानी नहीं आती है तो क्यों चला रहे हो? मैं इसी इन्तजार में था। अच्छा, खुद गाड़ी
चलाने का नियम नहीं सीखा और हमें सिखाने चला है। पहले अपनी कार देख अभी भी गलत जगह
खड़ी हुई है। इसी से देख तुझे गाड़ी चलानी आती भी है कि नहीं, अपनी साईड़ दबा कर चल
यह पहाड़ है तेरा चन्ड़ीगढ़ नहीं है (उसकी कार का नम्बर चड़ीगढ़ का था), रही बात मेरी
जितनी तेरी उम्र नहीं हुई होगी उससे ज्यादा का मेरा पहाड़ में बाइक चलाने का अनुभव
है। (वैसे पहाड़ में मैंने सबसे पहले साईकिल चलायी थी पूरा देहरादून व उसके आसपास
के इलाके मैंने बाइक पर नहीं साईकिल पर देख ड़ाले थे। तब तक बाइक चलानी आती ही नहीं
थी।) अगर तुने ब्रेक नहीं लगाये होते तो तेरा मार-मार कर बन्दर बना देते। इतने में
पल्सर वाले भी हमारे पास आ पहुँचे। कहा-सुनी में हमारा पलड़ा भारी था कार वाले के
साथ एक महिला व एक पुरुष बैठे हुए थे उन्होंने बीच-बचाव किया, व कार चालक की गलती
बतायी। हम क्यों सुनते? हाँ मेरी गलती होती तो सुनना पड़ता! कार चालक जिस जोश में
कार से बाहर निकला था उसके साथ बैठी सवारियों ने उसकी गलती बताकर उसका जोश ठन्ड़ा
करा दिया। हमारे रावत जी हमारा साथ देने की जगह बीच बचाव करने उतर गये। सुन्दरनगर
से पहले और कोई खास घटना नहीं हुई।
सुन्दर नगर आने के कुछ पहले बाइक स्टार्ट करनी
पड़ी। बाइक एक किमी ही चली होगी कि एक बाइक की दुकान देखकर याद आया कि पल्सर बाइक
का इन्जन ऑय़ल भी बदलवाना है। पहुँच गये बाइक की दुकान पर तेल लेने, मतलब बदलवाने।
बाइक की दुकान पर कुछ अन्य बाइक वाले भी खड़े थे वे हमारे हुलिये व सामान को देखकर
सोच रहे होंने कि ये सिरफ़िरे कहाँ से आये है? तेल बलवाने के बाद हम वहाँ से आगे की
ओर चल दिये। यहाँ से थोड़ा सा आगे चलते ही मनाली-अम्बाला-दिल्ली हाईवे आ जाता है।
सुन्दरनगर तक तो हम पहाड़ी मार्ग होने के कारण
धीमी गति से बाइक चला रहे थे लेकिन सुन्दरनगर आते ही हमारी बाइक की गति 50 के आसपास पहुँचने लगी। वैसे सुन्दरनगर भी बल्कि
आगे बिलासपुर, व उससे आगे किरतपुर तक भी पहाड़ी मार्ग ही कहा जायेगा, लेकिन यह
मार्ग अन्य पहाड़ी सड़कों की तरह ज्यादा मोड़ वाला नहीं है इस मार्ग पर बहुत कम मोड़
ऐसे आते है जहाँ पर बाइक की गति कम करके 10-15 पर लानी पड़ती है। बिलास पुर से पहले सड़क पर चढ़ाई भी आती है
लेकिन उस पर चलते हुए बाइक तेजी से चलती रहती है।
एक जगह नदी का बड़ा पुल पार करके सीधे हाथ मुड़ना
होता है पल्सर वाले आगे चल रहे थे कोई सूचना पट ना होने के कारण वे उल्टे हाथ मुड़
गये थे। एक बन्दे से पता किया गया कि अम्बाला किधर आयेगा? उसके बाद पल्सर वालों को
आवाज लगायी, बिलासपुर पार करते-करते बारिश भी शुरु हो गयी थी एक बार सोचा था कि
चलो भीगते हुए चलेंगे लेकिन बारिश के साथ जोरदार आँधी भी अचानक से आने लगी तो एक
ढ़ाबे के पास खड़े हो गये। जब बारिश काफ़ी देर तक नहीं रुकी तो सोचा कि क्यों ना
बारिश रुकने तक बराबर में ढ़ाबे पर खाना खा लिया जाये। समय दिन के 1 बजने जा रहे थे। ढ़ाबे पर पहुँचकर खाना खाया
गया। यहाँ ट्रक वाले खाना खा रहे थे। कुल मिलाकर खाना बढिया बना था।
खाना खाने तक बारिश भी थोड़ी हल्की पड़ चुकी थी
इसलिये बारिश का पूरी तरह रुकने की प्रतीक्षा किये बिना हम आगे चल दिये। किरतपुर
तक हल्की-हल्की बून्दा-बाँदी मिलती रही लेकिन जितना हम भीगते थे हवा लगने से उतना
ही सूख भी जाते थे। यहाँ भी हमने काफ़ी मार्ग बाइक स्टार्ट किये बिना पार किया था।
पंजाब आने से पहले बाइक में एक पैट्रोल पम्प से 500 रुपये का तेल ड़लवाया गया। जिसके बाद हम जैसे ही मैदानी
इलाके में आये तो वहाँ की बेकार सड़क देखकर खोपड़ी खराब हो गयी लेकिन शुक्र रहा कि
कुछ किमी पार करने के बाद जैसे ही किरतपुर पार कर बड़ी नहर पार की और हाईवे के उस
भाग पर पहुँचे जहाँ की सड़क देखने में ऐसी लग रही थी जैसे सड़क नहीं हेमामालिनी के
गाल हो!
सड़क इतनी प्यारी बनी थी कि हमने वहाँ से एक बार
5 वा
गियर जो लगाया तो पूरे 100 बाद उस गियर को
हटाने की नौबत आयी थी। सड़क पर वाहन भी ज्यादा नहीं दिखायी दे रहे थे। यह मस्त
चकाचक सड़क दिल्ली तक बराबर बनी रहती है। बीच-बीच में अपवाद स्वरुप कुछ जगह खराब
आती भी है। रोपड़ से आगे एक तिराहा आता है जहाँ से सड़क में उल्टे हाथ एक हल्का सा
मोड़ है यदि ध्यान ना दिया जाये तो चडीगढ़ पहुँच जाते है। जबकि हम खरड़/खर्र मोड़ से
होकर अम्बाला जाना चाहते थे। मुझे पता था कि पल्सर वाले यहाँ यह नहीं देखेंगे कि
किधर जाना वे बस अपनी धुन में चड़ीगढ़ निकल जायेंगे। मैंने चौराहा पार कर मलिक को
कहा, जरा उन्हे भी देख ले नहीं तो महेश फ़िर से लेह वाली यात्रा की गलती दोहराने
वाला है। अगर मलिक ने कुछ सेकन्ड़ की देरी की होती तो वे चड़ीगढ़ के लिये निकल जाते।
उन्हे आवाज देकर खरड़ मोड़ वाले मार्ग से अम्बाला की ओर निकाला। यहाँ से चड़ीगढ़ बाइ
पास रह जाता है।
उस मोड़ से पहले एक जगह भयंकर जाम लगा हुआ था
अगर हम बाइक पर नहीं होते तो वहाँ से निकलने में कम से कम 2-3 घन्टे लगना मामूली बात थी। अम्बाला पहुँचकर समय
देखा शाम के 5 बजने
वाले थे। अम्बाला में रुके बिना दिल्ली की ओर बढ़ते रहे। शाहपुर पहुँचकर साथियों को
चाय की तलबी ने याद किया। इन्हे चाय पिलाकर फ़िर से दिल्ली पर हमला बोल दिया। वैसे
दिल्ली अभी दूर थी क्योंकि पानीपत पहुँचते-पहुँचते अंधेरा होने लगा था। हमारी बाइक
की गति अंधेरा होने पर घटकर 50 पर जाती है। दिल्ली तक यही गति बराबर बनी रही। पानीपत में
पल्सर वाले पता नहीं कहाँ गायब हुए कि सीधा दिल्ली में घुसते समय ही दिखायी दिये।
दिल्ली हो और ट्रैफ़िक जाम ना हो, यह कैसे हो
सकता है? मुकरबा चौक पहुँचने से पहले 5 किमी के जाम को पार करते हुए मुश्किल से आगे निकले। मुझे
ड़र था कि वजीराबाद के यमुना पुल पर भी जाम मिलेगा। लेकिन जाम मेरी उम्मीद से कही
ज्यादा निकला। जिसका नतीजा यह हुआ कि हमें वजीराबाद पुल को छोड़कर बस अड़ड़े वाले
यमुना पुल से यमुना पार करनी पड़ी। शास्त्री पार्क आकर सोचा कि सीलमपुर से जाऊँ या
खजूरी से। लेकिन याद आया कि सीलमपुर में मैट्रों निर्माण कार्य की वजह से पहले ही
बुरी हालत होगी, इसलिये खजूरी से जाने का इरादा कर लिया। इस मार्ग पर भी काफ़ी भीड़
थी लेकिन हम आसानी से निकलते हुए। खजूरी पहुँच गये। पल्सर वाले फ़िर गायब हो चुके
थे। इसके बाद भजनपुरा-गोकुलपुर लोनी मोड़ से अपने घर पहुँचने में कितनी देर लगती
है। मुश्किल से 2-3 मिनट
का समय।
अभी अपनी गली में घुसे ही थे कि एक हरियाणा
पुलिस वाला हमारी गली में घुस रहा था वह बोला कि क्या यहाँ कोई संदीप कुमार नाम का
बन्दा रहता है? क्यों क्या हुआ? एक संदीप तो मैं हूँ। लेकिन कुमार नहीं हूँ दूसरा
अगली गली में है वो हुड्डा है तीसरा उससे अगली गली में रहता है। उसकी पता नहीं है।
पहले यह बता कि रात को 10 बजे क्या आफ़त आ गयी कि पानीपत से यहाँ धक्के खा रहे हो?
उसके साथ दूसरी गली का संदीप हुड्डा साथ था। मैं उसकी हालत देखकर उसे घर ले गया।
उसे ठन्ड़ा पानी पिलाया। उसने बताया कि राजनगर कालोनी में संदीप नाम से कोई पानीपत
में किसी लड़की को फ़ोन पर तंग कर रहा है। भाई आराम से बोल मेरी घरवाली सुनेगी तो
यही सोचेगी कि कही फ़ोन करने वाला मैं तो नहीं। वैसे अपुन का रिकार्ड़ है कि आज तक
घरवाली के अलावा कोई नहीं छोड़ी, अरे छेड़ी लिखना था मात्रा गड़बड हो गयी। पुलिस वाले
को समझा बुझा (फ़ुस्स) कर भेज दिया कि यहाँ पर इस नाम का कई गलियों में कोई नहीं
रहता है। याद आया पुलिस वाले के जाने के बाद मैंने अपना बैग खोला और उसका सारा
सामान निकाल कर घरवाली के सामने रख दिया। शादीशुदा जीवन का सबसे बड़ा लाभ कि घर
जाते ही सब कुछ तैयार मिलेगा, ना खाने की चिंता ना पहनने की परेशानी। इस बात को
कुवारे या छड़े क्या जाने? अच्छा राम-राम यह यात्रा यही समाप्त होती है।
इस साच पास की बाइक यात्रा के सभी ले्खों के लिंक क्रमवार नीचे दिये जा रहे है।
12- रोहान्ड़ा सपरिवार अवकाश बिताने लायक सुन्दरतम स्थल
13- कमरुनाग मन्दिर व झील की ट्रैकिंग
14- रोहान्ड़ा-सुन्दरनगर-अम्बाला-दिल्ली तक यात्रा।
रोहान्ड़ा का स्कूल |
नीचे के दोनों फ़ोटो इसी जगह से जूम किये गये है। |
जूम करने के बाद |
यह भी जूम के बाद का है। |
7 टिप्पणियां:
panwarji sadkon ki tulna hema malini se kar k kahin phus na jao.. laaloo phus chuka hai ek baar.
kahin hema malini ne blog padh liya tho dharmendar, sunny aur bobby ko chod dengi apke peeche...
"वैसे अपुन का रिकार्ड़ है कि आज तक घरवाली के अलावा कोई
नहीं छोड़ी, अरे छेड़ी लिखना था मात्रा गड़बड हो गयी" भाई जी ये मात्रा मे नही डँडे मे गडबड है और सम्भाल कर लिखा करो जो ये डँडा फालतू लगाया है भाभी जी के हाथ मे ना आ जाये।
जय राम जी की
"वैसे अपुन का रिकार्ड़ है कि आज तक घरवाली के अलावा कोई
नहीं छोड़ी, अरे छेड़ी लिखना था मात्रा गड़बड हो गयी" भाई जी ये मात्रा मे नही डँडे मे गडबड है और सम्भाल कर लिखा करो जो ये डँडा फालतू लगाया है भाभी जी के हाथ मे ना आ जाये।
जय राम जी की
भाई ये पल्सर वाले भाईसाहब कुछ ज्यादा जल्दी में रहते हैं क्या... यदि सही दिशा में ही नहीं चल रहे, फिर तेज चलाने का क्या लाभ........
aapki y yatra bahut badhiya rahi sabhi prakar ka masala padhne k liya mila jo humne kafi enjoy keya. thnx
ऊँचे नीचे रास्तों के पहाड़ों पर निवासियों के सीधे साधे दिल।
अजय ने सही कहा सावधानी जरूरी हे ..............Yogendra Solanki
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