UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-17 SANDEEP PANWAR
अमरकंटक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
18-अमरकंटक की एक निराली सुबह
19-अमरकंटक का हजारों वर्ष प्राचीन मन्दिर समूह
20-अमरकंटक नर्मदा नदी का उदगम स्थल
21-अमरकंटक के मेले व स्नान घाट की सम्पूर्ण झलक
22- अमरकंटक के कपिल मुनि जल प्रपात के दर्शन व स्नान के बाद एक प्रशंसक से मुलाकात
23- अमरकंटक (पेन्ड्रारोड़) से भुवनेशवर ट्रेन यात्रा में चोर ने मेरा बैग खंगाल ड़ाला।
धुआँधार से भेड़ाघाट आते समय ऑटो वाले ने जिस चौराहे पर
उतारा था वहाँ से धुआँधार की दूरी लगभग 7 किमी
रह जाती है जबलपुर वहाँ से सीधे हाथ 17 किमी
दूर है। उल्टे हाथ वाला मार्ग पीपरिया/पंचमढ़ी के लिये चला जाता है। अब बचा चौथा
मार्ग यह छोटा सा ग्रामीण मार्ग जरुर है लेकिन पक्की काली सड़क सीधे भेड़ाघाट
स्टेशन के लिये चली जाती है। मेरे साथ ऑटो में दो लोग और भी थे जो भेड़ाघाट स्टेशन
पर जाना चाहते थे लेकिन उन्हे भूख लगी थी इसलिये वे वही तिराहे/चौराहे पर कुछ खाने
के लिये रुक गये। मैंने अकेले ही स्टेशन की ओर चलना शुरु कर दिया। यह तो पहले ही
पता लग चुका था कि यहाँ से भेड़ाघाट का स्टेशन लगभग दो किमी दूरी पर है अत: मैं
अपनी धुन में पैदल चलता चला गया। पैदल चलते हुए मुझे एक साईकिल पर सामान बेचने
वाला एक बन्दा दिखायी दिया। उसके पास खाने के लिये मीठे व मूँगफ़ली को मिलाकर
बनायी गयी कुछ स्वादिष्ट वस्तु थी। 10 रु की
मीठी सामग्री लेकर मैं आगे बढ़ चला।
लगभग 20 मिनट
की पैदल यात्रा के बाद भेड़ाघाट स्टेशन की इमारत दिखायी दी। स्टेशन के बाहर कुछ
मकान बने हुए है जिस कारण स्टेशन छुपा हुआ है व एकदम नजदीक आने के बाद ही दिखायी
देता है। पहली नजर में देखने से स्टेशन ऐसा लगता है कि जैसे इस स्टेशन पर कोई आता
ही नहीं होगा। मैंने दूर से स्टेशन देखने से सोचा था कि यहाँ कोई ट्रेन आदि रुकती
भी है कि नहीं या ऐसे ही फ़ालतू में यहाँ स्टेशन बनाया गया है। धीरे-धीरे चलते हुए
मैंने स्टेशन की इमारत में प्रवेश किया। स्टेशन में प्रवेश करते ही ट्रेन की समय
सारिणी वाला बोर्ड़ दिखायी दिया। उस बोर्ड़ का एक फ़ोटो नीचे दिया गया है। उस
बोर्ड़ अनुसार यहाँ सिर्फ़ आठ ट्रेन ही यहाँ रुकती है चार-चार ट्रेन दोनों दिशाओं
से आती है।
मैंने मोबाइल की घड़ी में समय देखा, अभी दोपहर के 2
बजने वाले थे बोर्ड़ अनुसार जबलपुर जाने वाली ट्रेन का समय
दोपहर बाद 2:53 मिनट
पर दर्शा रहा था। इस तरह ट्रेन आने में अभी एक घन्टे से ज्यादा का समय था। टिकट
खिडकी अभी बन्द थी इसलिये स्टेशन के अन्दर जाकर एक खुली जगह पेड़ की छाँव में बैठ
गया। मुझसे पहले वहाँ पर सिर्फ़ तीन लोग और बैठे हुए थे बाकि पूरा स्टेशन एकदम
सुनसान पड़ा हुआ था। धीरे-धीरे समय बीतता रहा ट्रेन का समय होने वाला था इसलिये
टिकट लेने के लिये टिकट खिड़की पर पहुँच गया। लेकिन टिकट खिड़की अभी भी बन्द ही थी।
ट्रेन आने में मुश्किल से 10-12 मिनट
का समय ही बचा था। टिकट खिड़की के बाहर 8-9 बन्दों
की छोटी सी लाईन भी लग चुकी थी। अभी तक स्टेशन परिसर में कुल मिलाकर 30-40 लोग दिखायी देने लगे थे। टिकट की इसी लाईन में
अपुन भी खड़े हो गये।
टिकट खिड़की के अन्दर कुछ हलचल दिखायी दी, जो लाईन अभी तक शांत खड़ी थी उसमें अचानक भूचाल
आता दिखायी दिया। लोगों ने टिकट लेने के लिये अपनी जेब में हाथ ड़ालकर पैसे
निकालने आरम्भ कर दिये। लेकिन तभी टिकट खिड़की के अन्दर वाले बन्दे बताया कि ट्रेन
एक घन्टा देरी से चल रही है इसलिये अभी टिकट नहीं दिये जायेंगे जैसे ही रेल की आने
की सूचना मिलेगी, टिकट
दे दिये जायेंगे। क्या करते? फ़िर
से जाकर अपनी जगह बैठ गये। लोगों को समय पास करने के लिये कुछ तो चाहिए होता है।
इसलिये लोगों ने समय बिताने के लिये आपसी वार्तालाप करना शुरु कर दिया। इस
वार्तालाप में मध्यप्रदेश के ग्वालियर से एक छोटे-मोटे नेता भी शामिल हो गये।
जब ग्वालियर के उन नेता को मेरे बारे में पता लगा कि यह
बन्दा लगभग 22 वर्ष
से घूमने में लगा हुआ है और कई लाख किमी की यात्रा कर चुका है तो उन्होंने मुझसे
भारत में कई जगह की जानकारी ली। आखिर में उन्होंने कहा कि आप जब भी ग्वालियर आओ तो
पहले बता कर आये ताकि आपको ग्वालियर घूमने की इच्छा में मैं आपका साथ दूँगा।
उन्होंने अपना नाम पता मोबाइल नम्बर सब लिख कर दिया था। घर पर किसी पन्नी के अन्दर
उनका पता सुरक्षित रखा होगा। अगर दुबारा ग्वालियर जाना हुआ तो उनसे फ़िर मुलाकात
होगी। धीरे-धीरे फ़िर से एक घन्टे का समय बीत गया। अबकी बार टिकट खिड़की की जगह
माइक से किसी ने घोषणा की थी कि जबलपुर जाने वाली ट्रेन अपने निर्धारित समय से 01:45 मिनट की देरी से पहुँचने की उम्मीद है। जिन
सवारियों को जल्दी थी उनके कान खड़े हो गये। हमें कोई जल्दी नहीं थी मेरी अगली
ट्रेन जबलपुर से रात को 09:15 मिनट
पर थी। इसलिये हमारे कान खड़े नहीं हो पाये।
यहाँ ट्रेन का इन्तजार करते समय समय बिताना बहुत अच्छा लग
रहा था इसके कई कारण थे पहला मुख्य कारण इस स्टेशन पर भीड़भाड़ का सीमित संख्या
में होना, दूसरा
स्टेशन एकदम खेतों के बीच होना जिससे वहाँ ठन्ड़ी ताजी हवा आ रही थी। तीसरा मजेदार
कारण रहा वहाँ से गुजरने वाली ट्रेने रही। मैं वहाँ लगभग दो घन्टे रहा था इस अवधि
में दोनों दिशा से आने-जाने वाली बीसियों ट्रेन वहाँ से गुजरती गयी। चूंकि यह
स्टेशन अपने आप में बहुत ही छोटा सा स्टॆशन है इसलिये लम्बी दूरी की ट्रेन यहाँ
रुकती ही नहीं है इसलिये यहाँ से बिना रुके तेजी से गुजरती हुई ट्रेन व मालगाड़ी
देखना बहुत अच्छा लगता है। दो घन्टे वहाँ कैसे बीते पता ही नहीं लगा। आखिरकार अपनी
लोकल पैसेंजर गाड़ी के आने की घोषणा हुई तो टिकट की लाईन में लग कर अपना टिकट ले
लिया गया।
जैसे ही अपनी ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर पहुँची तो एक खाली सा
डिब्बा देखकर उसमॆं सवार हो गया। भेड़ाघाट से आगे बढते हुए ट्रेन जबलपुर की ओर
चलती रही, आगे
चलकर मदन-महल नामक स्टेशन भी आया था जहाँ से मैंने भेड़ाघाट जाने के लिये ऑटो की
सवारी आरम्भ की थी। मदन-महल से अगला स्टेशन जबलपुर का ही है। इसलिये जैसे ही ट्रेन
जबलपुर पहुँची तो अन्य सवारियों की तरह मैं भी ट्रेन से बाहर चला आया। शाम का समय हो चुका था मेरी ट्रेन
जाने में अभी भी दो घन्टे बचे हुए थे। इस समय का सदुपयोग मैंने मोबाइल चार्ज करने
व भोजन करने के लिये उपयोग किया था। पहले डेढ घन्टे तो मोबाइल चार्ज करने में
लगाया उसके बाद स्टेशन से बाहर निकल कर उल्टे हाथ सड़क पर कुछ सौ मीटर जाने के बाद
अच्छा भोजनालय मिला वहाँ जाकर रात्रि भोजन किया गया था। भोजन करने के उपराँत फ़िर
से स्टेशन आ पहुँचा।
जबलपुर से बड़ी लाइन के अलावा एक छोटी मीटर गेज वाली रेलवे
लाईन भी चलती है मेरा उस लाइन पर जाने का कोई इरादा नहीं था। इसलिये मैं उसके
प्लेटफ़ार्म को देखकर ही वापिस आ गया। जिस समय मैं वहाँ था छोटी लाइन की कोई ट्रेन
वहाँ नहीं खड़ी थी। अगर छोटी ट्रेन वहाँ खड़ी होती तो उसका भी एक-आध फ़ोटो जरुर
लगा होता। अपनी ट्रेन अमरकंटक एक्सप्रेस सही समय पर चल रही थी ठीक समय 09:20 पर ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर पहुँच गयी। ट्रेन में
सवार होते ही अपनी सीट तलाशी और वहाँ जाते ही लम्बे पैर फ़ैला दिये। रात भर सोते
हुए जाना जरुर था लेकिन सुबह बेहद सवेरे यही कोई 2:55
मिनट पर अपुन को इस ट्रेन से उतरना भी था। रात को सोने से
ज्यादा चिंता सुबह उठने की थी कि पता चला कि जब आँख खुले तो हम अपने गन्तव्य से 100-125 किमी आगे पहुँच चुके है?
सुबह साढ़े तीन बजे का अलार्म लगाया था जो सही समय पर बज भी
गया था लेकिन उस अलार्म से पहले ही जैविक घड़ी ने मुझे जगा दिया था। ट्रेन अपने
समय से 20-25 मिनट
देरी से चल रही थी। इसलिये जब ट्रेन पैन्ड़्रा रोड़ स्टेशन पर पहुँची तो आधा घन्टा
देरी से चल रही थी। पैन्ड़ा रोड़ उतरने के लिये मैं ट्रेन के दरवाजे पर ही खड़ा था
कि तभी एक बन्दा बोला कि अनूपपुर कितनी देर में आयेगा? मैं उसकी बात सुनकर चौंका और बोला कि अनूपपुर
तो आधा घन्टा पहले ही निकल चुका है। अब उसकी हालत देखने लायक थी। उस बेचारे पर
क्या बीत रही होगी कि उसे वापिस भी जाना होगा। वह बन्दा भी मेरे साथ ही पैन्ड़ा
रोड़ पर ही उतर गया था। सुबह के 03:35 बजने
वाले थे स्टॆशन के बाहर काफ़ी चहल-पहल थी।
स्टेशन से बाहर आते ही एक बन्दा अमरकंटक की आवाजे लगाता हुआ
मिल गया। जबकि मैं सोच रहा था कि अमरकंटक जाने के लिये कहाँ से वाहन मिलेगा? इस चक्कर में रिक्शा आदि पकड़ने के लिये भटकना
पडेगा। लेकिन यहाँ तो बिन माँगे मुराद पूरी होने वाली बात हो गयी थी। स्टेशन से
बाहर निकलते ही कुछ दुकाने बनी हुई है इनके सामने ही एक बस खड़ी हुई थी वह बस
अमरकंटक होते हुए कही ओर आगे जा रही थी। उस बस में सीट खाली दिखायी दे रही थी
इसलिये मैं झट से एक सीट पर जाकर बैठ गया। लगभग 10-15
मिनट बाद वह बस वहाँ से अपनी यात्रा पर रवाना हो गयी।
स्टॆशन के बाहर चाय वाले अपनी चाय बेचने में लगे हुए थे। बस पेन्ड़्रा स्टेशन से
बाहर निकलने के बाद रेलवे फ़ाटक को पार करती हुई अमरकंटक की ओर बढ़ती चली गयी।
(अमरकंटक यात्रा अभी जारी है।)
जबलपुर यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
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18-अमरकंटक की एक निराली सुबह
19-अमरकंटक का हजारों वर्ष प्राचीन मन्दिर समूह
20-अमरकंटक नर्मदा नदी का उदगम स्थल
21-अमरकंटक के मेले व स्नान घाट की सम्पूर्ण झलक
22- अमरकंटक के कपिल मुनि जल प्रपात के दर्शन व स्नान के बाद एक प्रशंसक से मुलाकात
23- अमरकंटक (पेन्ड्रारोड़) से भुवनेशवर ट्रेन यात्रा में चोर ने मेरा बैग खंगाल ड़ाला।
3 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर तस्वीरें हैं।
बहुत ही सुन्दर चित्र
सुन्दर व शान्त भेड़ाघाट का रेलवे स्टेशन व चिञ भी सुन्दर आए है।
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