UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-01 SANDEEP PANWAR
आज के लेख से जिस रेल यात्रा की शुरुआत की जा रही है पहले इसी
के बारे में कुछ बाते हो जाये। जैसा कि आपको पता है कि मैं हर साल फ़ागुन महीने में
आने वाली महाशिवरात्रि में किसी एक ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाता हूँ। पूरे
भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिग
स्थित है लेकिन कई पर वाद-विवाद भी है कि नहीं यह नहीं, हमारे वाला असली
ज्योतिर्लिंग है। विवाद का भाग बनने वाले कई ज्योतिर्लिंग है जैसे महाराष्ट्र का
औंढ़ानाग नाथ=गुजरात का नागेश्वर, बिहार अब झारखन्ड़ का बाबा वैधनाथ धाम=हिमाचल का
बैजनाथ धाम=उतराखन्ड़ का बैजनाथ मन्दिर प्रमुख है। इन सभी मन्दिरों के पन्ड़े/पुजारी
अपनी कमाई बढ़ाने के चक्कर में अपने वाले मन्दिर को असली ज्योतिर्लिंग बताते रहे
है। जबकि भगवान तो हर जगह मौजूद है वो अलग बात है आजकल भगवान लम्बी तान के कहीं सो
रहा है। पिछले 800 साल
का इतिहास तो यही कहता है कि भगवान शायद कही नहीं है। यह दुनिया जिसकी लाठी उसकी
भैस के सिद्धांत पर चल रही है। अरे शुरुआत की थी रेल यात्रा के नाम पर लेकिन बीच
में भगवान का प्रवचन कहाँ से टाँग अड़ा कर बैठ गया?
सन 2013 की महाशिवरात्रि के अवसर पर उज्जैन के महाकाल के दर्शन का
कार्यक्रम कई महीने पहले ही बना लिया गया था। इससे पहली 2012 महाशिवरात्रि गुजरात के सोमनाथ में मनायी गयी
थी वही नरेन्द्र मोदी के पहली बार दर्शन भी हुए थे। उससे पहले 2011 वाली महाशिवरात्रि काशी/
बनारस/ वाराणसी/ में मनायी गयी थी। काशी वाली महाशिवरात्रि में तो हम तीन बन्दों
ने प्रयाग /इलाहाबाद के गंगा-यमुना संगम से जल लेकर पैदल काशी तक पैदल यात्रा की
थी। मुझे जितना आनन्द बाइक यात्राओं में आता है उससे ज्यादा खुशी पद यात्राओं में
होती है। यह मत समझना कि रेल व साईकिल मुझे पसन्द नहीं है।
रेल से लम्बी यात्राएँ तय करना अच्छा लगता है
यदि उसके जरिये कुछ स्थल भी देखे जाये तो। जैसा इस यात्रा में किया गया था। अब बची
साईकिल यह मेरे जीवन का सबसे अहम हिस्सा है। मैं प्रतिदिन साईकिल चलाता ही हूँ
इसके अलावा जब कभी लम्बी साईकिल चलाने का मौका मिलता है उसे छोड़ता भी नहीं हूँ। देहरादून
व उसके आसपास के इलाके तो मैंने 20-21 साल पहले साईकिल पर ही देख ड़ाले थे। अब तक साईकिल पर मेरी
सबसे लम्बी यात्रा अपने घर दिल्ली सीमा से शुरु कर शाकुम्बरी देवी मन्दिर तक
आने-जाने की रही है।
मन तो करता है एक बार कश्मीर से कन्याकुमारी तक
एक चक्कर साईकिल से लगा आऊँ लेकिन साईकिल से यह दूरी तय करने में कम से कम 25-30 दिन लगना स्वाभाविक है। बाइक पर यही कार्य
मात्र 5-6 दिन
में हो सकता है। अत: समय की कीमत देखते हुए अभी इसके बारे में ढ़ील दी जा रही है। फ़िर भी मैने सोचा है कि अब
से 12 साल
बाद जब मैं 50 साल
का हो जाऊँगा, यदि ऊपर वाली बड़ी आत्मा का साथ रहा तो तब साईकिल से लम्बी यात्राएँ
करने के बारे में सोचा जायेगा। अभी जवानी में बाइक यात्राएं पूरी कर लूँ, क्योंकि
बाइक चलाने में ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है। मेरा अगला निशाना बाइक से भारत
भ्रमण का पहले से ही है जिसकी तैयारी मैंने शुरु भी कर दी है। देखते है कि अगले
साल बाइक से सम्पूर्ण भारत हो पाता है या उसके एक साल बाद हो पायेगा।
इस यात्रा की बात बार-बार बीच में अधूरी रह जाती है। अब
पहले यह यात्रा बाद में कोई और बात। महाशिवरात्रि आने से दो महीने पहले ही मैंने
घर से ही उज्जैन के रेल टिकट बुक कर लिये थे। अपने कई यात्राओं के साथी रहे प्रेम
सिंह ने भी महाशिवरात्रि के अवसर पर जाने की इच्छा व्यक्त की तो मैंने कहा जा भाई
अपने टिकट बुक कर लो। मैं तो कर चुका हूँ। प्रेम सिंह के साथ उसके कार्यालय में
काम करने वाले कई अन्य दोस्त भी इस यात्रा पर जाना चाह रहे थे। लेकिन वे मुझसे दो
दिन पहले ही इन्दौर के लिये निकल गये। उन्हे ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर के
दर्शन करने थे। मैं उस मन्दिर में कई साल पहले ही श्रीमति जी के साथ जा चुका हूँ।
जिसका विवरण पहले ही बता चुका हूँ।
दिल्ली से चलने से पहले ही तय हुआ था कि ठीक है हम
ओमकारेश्वर देखते हुए उज्जैन पहुँचेंगे। मैंने कहा देख भाई, मैं दिल्ली से ऐसी
ट्रेन में आऊँगा जो यहाँ उज्जैन में सुबह 5 बजे उतार देती है इसका लाभ यह होगा कि मुझे कमरा लेने की जरुरत ही नहीं रहेगी।
उज्जैन में पूरा दिन घूमकर शाम को वहाँ से जबलपुर की ट्रेन में बैठ जाऊँगा। यदि
तुम्हे पहले ओमकारेश्वर जाना है तो वहाँ से तुम्हे पहले दिन शाम को उज्जैन आना
होगा, नहीं तो महाशिवरात्रि की भयंकर भीड़ में तुम घन्टों लाईन में लगे रहना, फ़िर
उज्जैन देखने की हसरत भूल जाना।
मैं महाशिवरात्रि से पहले वाले दिन शाम को 4 बजे वाली ट्रेन से निजामुददीन से उज्जैन जाने के लिये बैठ गया। मेरे साथी
मुझसे दो दिन पहले ही इन्दौर के लिये इन्टरसिटी से निकल चुके थे। उनको मैंने अच्छी
तरह समझा दिया था कि इन्टरसिटी से तुम लोग दोपहर 1 बजे तक इन्दौर पहुँच पाओगे। वहाँ से ओमकारॆश्वर पहुँचने में कम से कम दो से
तीन घन्टे का समय लगना मामूली बात होगी। ओमकारेश्वर में अगर रात को रुककर सुबह
दर्शन करोगे तो ज्यादा सही रहेगा। क्योंकि वहाँ देखने लायक बहुत कुछ है। अगले दिन
दोपहर बाद ओमकारेश्वर से चलकर शाम तक उज्जैन पहुँच जाना। मन्दिर के पास कमरा लेकर
रुक जाना। अगले दिन सुब सवेरे महाकाल के दर्शन करना। तब तक मैं भी पहुँच जाऊँगा।
उनकी रेल यात्रा कैसी रही यह तो वे ही बतायेंगे मैं अपनी
रेल यात्रा की बात बताता हूँ कि जिस ट्रेन 14318 देहरादून-उज्जैन से मुझे उज्जैन जाना था वह दिल्ली से चलने में ही आधा घन्टा
देरी से चल रही थी। आधा घन्टा बहुत बड़ी बात नहीं है कई बार लम्बी दूरी की रेल दो
घन्टे की देरी को भी आसानी से कवर कर लेती है। उज्जैन तक की यात्रा में रात का ही
सफ़र था इस कारण मैंने ऊपर वाली सीट बुक की हुई थी। रात भर ट्रेन कहाँ रुकी कहाँ
चली मुझे नहीं पता चला। लेकिन सुबह ठीक 4 बजे लगाया गया अलार्म बजने पर आँख खुली तो पता लगा कि उज्जैन अभी 100 किमी से ज्यादा दूरी पर है।
यह ट्रेन भी पता नहीं कहाँ-कहाँ से होकर आयी थी। जब मैंने
ऊपर वाली सीट से नीचे उतरकर बाहर देखा तो वहाँ का स्टेशन जाना-पहचाना नहीं लगा। यह
ट्रेन ग्वालियर तक जाने पहचाने मार्ग पर चलती है लेकिन उसके बाद शाहजापुर मक्सी
होकर उज्जैन पहुँचती है मैंने पहले कभी इस रुट पर यात्रा नहीं की थी। साथ बैठी
सवारियाँ कह रही थी कि मक्सी से उज्जैन पहुँचने में घन्टा भर लग जायेगा। दिन तो
मक्सी से भी पहले ही निकल आया था। कहाँ तो मैं सोच रहा था कि सुबह मुँह अंधेरे में
ही उज्जैन पहुँच जाऊँगा, उसके उल्ट अब देखो, मैं अभी तक मक्सी में ही अटका पड़ा था।
मक्सी से उज्जैन पहुँचने में ट्रेन ने सवा घन्टा लगा दिया। हमारी ट्रेन ठीक सवा
सात बजे उज्जैन पहुँची। मेरे साथ बैठी कई सवारियाँ उज्जैन में महाकाल के दर्शन
करने आयी थी। हमने स्टेशन से बाहर निकलते ही एक ऑटो किया और उसमें सवार होकर महाकाल
की ओर चल दिये।
स्टेशन से महाकाल मन्दिर दो किमी की दूरी पर ही है लेकिन
मन्दिर से आधा किमी पहले ही पुलिस वालों ने मन्दिर जाने वाली सड़क पर बैरियर ड़ाल कर
अवरोधक बना दिया था जिससे आगे सिर्फ़ पैदल यात्री ही जा रहे थे। हमने ऑटो वाले को
किराया देकर पैदल ही चलना शुरु किया। अपने साथी कल ही उज्जैन पहुँच गये थे। रात को
उनसे बात हुई थी उन्होंने कहा था कि हमने मन्दिर से ठीक पहले वाली गली में सीधे
हाथ वाली दिशा में एक छोटी सी गली में बने हाऊस में कमरा लिया हुआ है। (यात्रा अभी जारी है)
उज्जैन यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
05- हरसिद्धी शक्ति पीठ मन्दिर, राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी।
06- उज्जैन का चार धाम मन्दिर व बिजली से चलने वाली झाकियाँ।
07- राजा भृतहरि की गुफ़ा/तपस्या स्थली।
08- गढ़कालिका का प्राचीन मन्दिर
09- शराब/दारु पीने वाले काल भैरव का मन्दिर
10- श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम का गुरुकुल/स्कूल संदीपनी आश्रम।
11- उज्जैन की महान विभूति सुरेश चिपलूनकर जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान
06- उज्जैन का चार धाम मन्दिर व बिजली से चलने वाली झाकियाँ।
07- राजा भृतहरि की गुफ़ा/तपस्या स्थली।
08- गढ़कालिका का प्राचीन मन्दिर
09- शराब/दारु पीने वाले काल भैरव का मन्दिर
10- श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम का गुरुकुल/स्कूल संदीपनी आश्रम।
11- उज्जैन की महान विभूति सुरेश चिपलूनकर जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान
उज्जैन रेलवे स्टेशन |
2 टिप्पणियां:
जय महाकाल..
har har mahadev. jai mahakaal
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