शनिवार, 13 जुलाई 2013

Bombay to Delhi by Indian Railway बोम्बे से दिल्ली तक ट्रेन यात्रा

EAST COAST TO WEST COAST 36                                                                   SANDEEP PANWAR
विशाल के साथ दो दिन से यात्रा कर रहा था इससे पहले भी एक बार कई दिनों की यात्रा में हम साथ घूम चुके है। विशाल की आदत लगभग अधिकतर मिलती-जुलती सी है सबसे बड़ी आदत यह है कि विशाल भी हर हालत में अपने आप को ढाल लेता है। यात्रा में खर्चे तो दोस्ती पक्की लेकिन अपने-अपने वाला नियम रहता ही है इसका अपुन की तरह विसाल भी पूरा पालन करता पाया गया। विशाल के पास पहले भी एक-दो घुमक्कड़ दोस्त बोम्बे घूमने के लिये आ चुके है। शायद कोई ऐसी बात उनके बीच हुई थी कि जिसे बताने से विशाल बचता रहा। पहले तो मैं कोशिश की कि शायद बता दे लेकिन जब कई बार टटोलने पर भी वह बात को टाल गया तो मैंने भी बात आयी-गयी कर दी।




विशाल का घर बोम्बे में गोरेगाँव पश्चिम में है मेरी ट्रेन बोरीवली से लगभग 09:50 पर जाने वाली थी, वैसे मेरी ट्रेन गोरेगाँव स्टेशन से ही होकर जाती है लेकिन वहाँ वह रुकती नहीं है जिस कारण मुझे गोरेगाँव से दो स्टेशन आगे जाकर इस रेल को पकड़ना पड़ा। विशाल का रुपयों व फ़ोटो के लेन-देन का हिसाब चुकता पहले की कर दिया गया था। शाम का खाना विशाल के घर पर ही लगभग 8 बजे ही खा लिया गया था। सभी सामान पहले ही पैक कर दिया गया था। जब घड़ी ने रात के 8:30 बजाये तो मैंने विशाल से व उसकी प्यारी सी नन्ही परी आर्या से अलविदा ली। चलते समय विशाल बोला अबकी बार सपरिवार आना, कोशिश करुँगा। कहकर मैं वहाँ से चल दिया।

मैंने सोचा था कि विशाल को एक किमी दूर रेलवे स्टेशन तक क्यों तंग करु लेकिन विशाल नाम के साथ दिल का भी विशाल है, इसलिये मुझे स्टॆशन तक छोड़ने के लिये एक किमी तक साथ चला आया। कई बार स्टेशन से विशाल के घर तक आना-जाना हुआ जिससे उनकी घर का मार्ग ध्यान था। पैदल चलते समय मैं आगे-आगे विशाल पीछे-पीछे चल रहा था। कुछ देर में ही हम स्टॆशन पहुँच गये। मुझे केवल दो स्टेशन आगे वाले स्टेशन बोरीवली तक ही जाना था मैंने कहा कि मेरे पास बोम्बे सेन्ट्रल से दिल्ली तक टिकट है अब दो स्टेशन तक टिकट लेने की क्या आवश्यकता है? लेकिन विशाल ने कहा क्या पता कोई सिर फ़िरा टिकट चेकर ना माने वैसे भी पाँच रुपये की ही तो बात है, विशाल जाकर मशीन से एक टिकट ले आया।

जैसे ही ट्रेन आयी तो मैं उसके दरवाजे पर लटक गया। मेरे पास बैग था जिस कारण मैं ट्रेन की भीड़ में डिब्बे के अन्दर नहीं घुस सकता था। इसका इलाज यही था जैसे ही अगला स्टेशन आये ट्रेन रुकते ही उतर जाओ और ट्रेन चलते ही दुबारा डिब्बे में खड़े हो जाओ। अभी पहला स्टेशन भी नहीं आ पाया था कि मुझसे आगे खड़ी कई सवारियाँ बोल पड़ी कि उतरना है क्या? मैं ना कैसे कर सकता था। ना करने का सीधा मतलब था कि अन्दर खड़ी सवारियाँ मुझे ऐसे घूरती जैसे कसाई बकरे की गर्दन पर वार करने से पहले घूरता है और वार कर गर्दन धड़ से अलग कर देता है। मुझे अपने ऊपर हमला नहीं करवाना था। इसलिये मैंने तुरन्त कहा हाँ इसी स्टेशन पर ही उतरना है।

जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर रुकने को हुई तो अन्य सवारियों के साथ मैं भी दरवाजे का पाइप छोड़कर उतर गया। जब उतरने वाले उतर गये तो मैं पुन: डिब्बे के दरवाजे पर बीच वाले पाइप को पकड़ कर खड़ा हो गया। यहाँ मेरा बैग डिब्बे के अन्दर नहीं हो पा रहा था इसलिये मुझे बाहर देखकर यह ध्यान करना पड़ रहा था कि कही कोई पेड़ आदि डिब्बे के ज्यादा नजदीक तो नहीं है यदि कुछ चीज ज्यादा नजदीक होती तो मैं पल भर के लिये बैग को अन्दर कर लेता, लेकिन अगले स्टेशन तक मुझे कोई ऐसी चीज दिखायी नहीं दी जिससे मुझे या मेरे बैग को खतरा हो पाता।

जैसे ही अपने वाला स्टेशन बोरीवली आया तो मैंने ट्रेन से उतर कर पहले तो पूछताछ कक्ष में जाकर यह पता किया कि गोल्ड़न टेम्पल ट्रेन कितने नम्बर प्लेटफ़ार्म पर आती है उसके बाद मैं पैदल पुल का प्रयोग करता हुआ प्लेटफ़ार्म नम्बर 3 पर चला गया। प्लेटफ़ार्म पर पहुँचकर बैग से मोबाइल निकाला और समय देखा, अभी घड़ी 09:25 मिनट बता रही थी। अभी मेरी ट्रेन अपने आरम्भिक स्टेशन से ही नहीं चली थी। क्योंकि उसका वहाँ से चलने का समय ही 09:30 मिनट का था। एक बैठने लायक जगह देखकर मैं आराम से बैठ गया। धीरे-धीरे समय बीत गया। हमारी ट्रेन से पहले उसी प्लेटफ़ार्म पर एक तीव्र गति की मुम्बई लोकल चली गयी। कुछ देर बाद हमारी ट्रेन भी आ गयी।

जैसे ही ट्रेन रुकी तो मैंने अपनी सीट पर पहुँचकर अपना ड़ेरा जमा दिया। चूंकि मैं अधिकतर टिकट घर से ही बुक कर लेता हूँ इसलिये ज्यादातर सीट बराबर वाली जिसे वेटिंग वाली सीट कहते है कर लेता हूँ। बोरीवली से चलने के बाद ट्रेन बहुत देर तक नहीं रुकती है थोड़ी देर में टी.टी ने आकर मेरा टिकट दिखाने को कहा तो मैंने मोबाइल निकाल कर दिखा दिया। टीटी बोला इसके साथ आईड़ी भी दिखाना पड़ता है, मैंने कहा इस समय मेरे पास तीन आईड़ी है एक दिखाऊ या तीनों, तो टीटी बिना आईड़ी देखे ही आगे बढ़ गया। टीटी के जाते ही मैंने पैर फ़ैला कर सोने की तैयारी शुरु कर दी।

रात मजे में बीत गयी। ज्यादा ठन्ड़ नहीं थी लेकिन ठन्ड़ के कारण यह ड़र जरुर था कि गुजरात आधा बीत जाने के बाद ठन्ड़ अपना असर जरुर दिखायेगी। उसके लिये अपने पास एक गर्म चददर हमेशा रहती है। रात को गर्म चददर की जरुरत भी आन पड़ी, जिसको ओढकर अपना बचाव कर लिया गया। सुबह आँख खुली तो ट्रेन मध्यप्रदेश से होकर चल रही थी। इस रुट पर एक ऐसा स्टेशन आता है जहाँ पर मध्यप्रदेश व राजस्थान की सीमा स्टेशन के बीचोबीच बनती है। मैं कई बार इस स्टेशन से होकर गया हूँ इसलिये मुझे अच्छी तरह याद है कि वह बोर्ड़ कहा आता है। जैसे ही वह बोर्ड आया और ट्रेन रुकी तो मैंने अपना मोबाइल हाथ में लिया और उस बोर्ड़ के दोनों ओर के फ़ोटो ले आया।

दिन के समय ट्रेन के बाहर देखने से समय आसानी से बीत जाता है। इसलिये राजस्थान खिड़की से बाहर के नजारे देखते-देखते बीत गया। जब ट्रेन राजस्थान छोड़कर उत्तर प्रदेश में मथुरा में प्रवेश करती है तो लगता है कि बस दिल्ली आने ही वाली है। हमारी ट्रेन अपने चलने के समय से आधा घन्टा पहले आकर मथुरा स्टेशन में रुक गयी थी। लेकिन यहां से आगे बढ़ना बिना सिगलन के मुमकिन नहीं था जैसे ही ट्रेन के लिये हरी झन्ड़ी हुई तो हमारी ट्रेन एक बार फ़िर धुआधार गति से दिल्ली की ओर बढ़ने लगी। ट्रेन की गति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ट्रेन दिन भर किसी भी स्टेशन पर अपने समय से देरी से नहीं पहुँची थी। मेरे ऊपर वाली सीट पर एक फ़िल्मी लेखक बैठा हुआ था लेकिन वह इतना शक्की था कि मथुरा आने तक उसने किसी से कोई बात नहीं की। उसे फ़रीदाबाद रुकना लेकिन ट्रेन वहाँ नहीं रुकती है उसे भी निजामुदीन तक आना पड़ा।

जैसे ही दिल्ली में हरजत निजामुदीन स्टेशन पर हमारी ट्रेन पहुँची तो मैने अपना बैग उठाया और ट्रेन से बाहर निकल आया। डिब्बे से बाहर आते ही प्लेटफ़ार्म पर एक टीटी टिकट चैक करने के तैयार खड़ा मिला। जब उसने मुझे टिकट के लिये कहा तो मैंने कहा पहले मेरा मोबाइल दो-चार मिनट के लिये चार्ज पर लगवाओ तब टिकट दिखाऊँगा। नहीं तो चलो जहाँ लेकर चलना है। टीटी मुझे छोड़कर दूसरे के पीछे लग गया। स्टेशन से बाहर आने के बाद तो सब कुछ ऐसा ही लगता है कि जैसे हम आसपास के ही रहने वाले हो। कुछ देर बाद मुझे बाहरी मुदिक्रा वाली बस मिल गयी जिसने मुझे आनन्द विहार, सीमापुरी, नन्द नगरी, होते हुए लोनी गोलचक्कर वाले फ़्लाई के पास उतार दिया। जहाँ से अपना घर मुश्किल 15 मिनट की पैदल दूरी पर ही है। थोड़ी देर में ही घर पहुँचकर परिवार से जा मिला जिनसे एक सप्ताह से ज्यादा दिनों से दूर था। (यात्रा समाप्त हुई) (क्रमश:)
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के आंध्रप्रदेश इलाके की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
15. महाराष्ट्र के एक गाँव में शादी की तैयारियाँ।
16. महाराष्ट्र की ग्रामीण शादी का आँखों देखा वर्णन।
17. महाराष्ट्र के एक गाँव के खेत-खलिहान की यात्रा।
18. महाराष्ट्र के गाँव में संतरे के बाग की यात्रा।
19. नान्देड़ का श्रीसचखन्ड़ गुरुद्धारा
20. नान्देड़ से बोम्बे/नेरल तक की रेल यात्रा।
21. नेरल से माथेरान तक छोटी रेल (जिसे टॉय ट्रेन भी कहते है) की यात्रा।
22. माथेरान का खन्ड़ाला व एलेक्जेन्ड़र पॉइन्ट।
23. माथेरान की खतरनाक वन ट्री हिल पहाड़ी पर चढ़ने का रोमांच।
24. माथेरान का पिसरनाथ मन्दिर व सेरलेक झील।
25. माथेरान का इको पॉइन्ट व वापसी यात्रा।
26. माथेरान से बोम्बे वाया वसई रोड़ मुम्बई लोकल की भीड़भरी यात्रा।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के बोम्बे शहर की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
27. सिद्धी विनायक मन्दिर व हाजी अली की कब्र/दरगाह
28. महालक्ष्मी मन्दिर व धकलेश्वर मन्दिर, पाताली हनुमान।
29. मुम्बई का बाबुलनाथ मन्दिर
30. मुम्बई का सुन्दरतम हैंगिग गार्ड़न जिसे फ़िरोजशाह पार्क भी कहते है।
31. कमला नेहरु पार्क व बोम्बे की बस सेवा बेस्ट की सवारी
32. गिरगाँव चौपाटी, मरीन ड्राइव व नरीमन पॉइन्ट बीच
33. बोम्बे का महल जैसा रेलवे का छत्रपति शिवाजी टर्मिनल
34. बोम्बे का गेटवे ऑफ़ इन्डिया व ताज होटल।
35. मुम्बई लोकल ट्रेन की पूरी जानकारी सहित यात्रा।
36. बोम्बे से दिल्ली तक की यात्रा का वर्णन
























3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक स्टेशन को दो राज्यों ने बाँट रखा है, पता नहीं रेलवे वाले उसे किस राज्य में मानते होंगे।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बढिया यात्रा वर्णन

Sachin tyagi ने कहा…

sandeep ji ram-ram.ek lambi yatra ka khubsurat smapan hua aapki es yatra ka purnty luft uttaya.thnx...

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...