Hindi Travel Photography Blog, हिन्दी यात्रा वृतांत- घुमक्कडी किस्मत से मिलती है।
सोमवार, 30 सितंबर 2013
रविवार, 29 सितंबर 2013
शनिवार, 28 सितंबर 2013
शुक्रवार, 27 सितंबर 2013
गुरुवार, 26 सितंबर 2013
सोमवार, 23 सितंबर 2013
INDIA GATE इन्डिया गेट
TOURIST PLACE IN NEW DELHI-03 SANDEEP PANWAR
दोपहर से पहले लाल किला देखा, दोपहर बाद लोटस मन्दिर देखा। अब घर चलने की बारी थी लेकिन हमारे पास अभी भी दिन छिपने में कई घन्टे बाकि थे इसलिये सोचा कि जब घर से घूमने के लिये आये ही है तो लगे हाथ एक स्थान और देख लेते है। पहले सोचा कि कुतुब मीनार देखने चलते है लेकिन कुतुब मीनार जाने के लिये घर से और भी दूर जाना पड़ता, इसलिये कुतुब मीनार को अगले अवकाश के लिये बचा कर रख लिया। निकट भविष्य में छतरपुर मन्दिर के साथ कुतुब मीनार को भी देखा जायेगा। दोनों के मध्य मुश्किल से एक-दो किमी का फ़ासला है। चलिये अब घर की ओर चलते है बीच में इन्डिया गेट नामक जगह आयेगी वहाँ समय भी ज्यादा नहीं लगेगा। वहाँ बच्चों के खेलने के लिये एक Children Park भी है। लोटस मन्दिर से आनन्द विहार जाने वाली बस में सवार हो गये। यह बस ओखला निजामुददीन सराय काले खाँ होते हुए जाती है।
गुरुवार, 19 सितंबर 2013
Lotus Temple बहाई धर्म- कमल का मन्दिर
TOURIST PLACE IN NEW DELHI-02 SANDEEP PANWAR
दिल्ली की यात्रा में आज बहाई धर्म के पूजा स्थल कमल मन्दिर की ओर चलते है। लाल किला देखने के बाद कालकाजी मन्दिर की ओर जाने वाली वातानूकुलित बस की इन्तजार करते हुए कई मिनट बीत गये लेकिन लाल वाली AC bus नहीं आयी। बदरपुर वाले रुट पर जाने वाली कई लाल बस निकल चुकी थी। आखिरकार हम भी बदरपुर जाने वाला एक लाल रंग की बस में सवार हो गये। पूरे दिन टिकट लेने की आवश्यकता तो थी ही नहीं क्योंकि हमने सुबह ही 50 वाला बस पास बनवाया लिया था। DTC की बसों में कन्ड़क्टर अधिकतर तो टिकट लेने के लिये टोकते ही नहीं है यदि टोकते भी है तो पास कहने के बाद दुबारा कुछ नहीं कहते है। हमारी बस दिल्ली गेट, आई टी ओ(बाल भवन भी यही नजदीक ही है।) प्रगति मैदान, उच्च न्यायालय(सुप्रीम कोर्ट), पुराना किला, चिडियाघर, हुमायूँ का मकबरा, निजामुददीन होते हुए मथुरा रोड़ पर चलती रही।
बुधवार, 18 सितंबर 2013
Red fort दिल्ली का लाल किला /लाल कोट
TOURIST PLACE IN NEW DELHI-01 SANDEEP PANWAR
दिल्ली का लाल किला तो मैंने बहुत बार देखा हुआ है सपरिवार देखने का कार्यक्रम पहले भी एक बाद बन चुका था लेकिन उस दिन दशहरा होने के कारण लाल किले में जाने वालों की इतनी ज्यादा भीड़ थी कि टिकट की लाईन ही 200 मीटर लम्बी मिली। उस दिन लाल किला छोड़ दिया गया। अभी अगस्त में चिरमिरी छत्तीसगढ़ के रहने वाले अपने प्रशंसक कम दोस्त अमित शुक्ला जी दिल्ली भ्रमण पर आये हुए थे। उनसे अमरकंटक में पहले ही वायदा कर दिया गया था आप जब भी दिल्ली अपनी बड़ी बहिन के यहाँ आओगे तो एक दिन हम दोनों सपरिवार दिल्ली के किसी स्थल पर घूमने चलेंगे। इसी तय शुदा क्रम में जब अमित जी दिल्ली आये तो मैं अपने परिवार को बस में लेकर अमित की बड़ी बहिन के यहाँ पहुँच गया।
शनिवार, 14 सितंबर 2013
Puri to Delhi पुरी से दिल्ली तक
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-30 SANDEEP PANWAR
पुरी से दिल्ली की पुरुषोत्तम एक्सप्रेस ट्रेन रात के नौ बजे की थी इस तरह मेरे पास कई घन्टे खाली थे। सबसे पहले एक खाली प्लेटफ़ार्म देखकर उस पर मोबाइल चार्जिंग का ठिकाना तलाश किया। अब दो रात+एक दिन तक ट्रेन में ही रहना था इसलिये मोबाइल चार्ज करना बहुत जरुरी था। जहाँ मैं बैठा हुआ था उसके सामने ट्रेन से आया हुआ काफ़ी सारा सामान पड़ा हुआ था। घन्टे भर बाद उस सामान को उठाने वाले लड़के वहाँ पहुँच गये। रेलवे में अपना सामान भेजते समय लोग सोचते होंगे कि हमारा सामान सुरक्षित पहुँच जायेगा। मैंने यहाँ लोगों के सामान की दुर्दशा होते हुए देखी। सबसे पहले सामान ढ़ोने वालों ने कुछ पेटियाँ वहाँ से हटायी, ये लोग इतनी लापरवाही से सामान पटक रहे थे कि उनमें से दो पेटियाँ वही उधेड़ दी। उन पेटियों में मेडिकल चिकित्सक काम मॆं आने वाले इन्जेक्सन रखे थे। ऐसा ही वाक्या इन्होंने एक मन्दिर की घन्टा बजाने वाली मशीन के साथ किया। बीच में जब इन्हे खाली समय मिलता था तो मैंने एक बन्दे से कहा कि इतनी लापरवाही से लोगों का सामान क्यों पटकते हो? उसने टका सा जवाब दिया कि यह सामान भुवनेश्वर तक जाना है रेलवे वाले इसे हमें तंग करने के लिये पुरी उतरवाते है यहाँ से दुबारा दूसरी ट्रेन में भरकर भुवनेश्वर वाली गाड़ी में लादना पड़ता है। जब लोग सामान टूटने की शिकायत करेंगे तो उनका सामान यहाँ नहीं आयेगा।
शुक्रवार, 13 सितंबर 2013
Puri beautiful sea beach पुरी का खूबसूरत समुन्द्र तट
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-29 SANDEEP PANWAR
जगन्नाथ पुरी के मुख्य मन्दिर से पुरी का समुन्द्र तट जहाँ मैं पहुँचा था वह लगभग 3-4 किमी की दूरी पर है। मैंने एक रिक्शे वाले से बात की उसने 50 रुपये माँग लिये। एक ऑटो वाले को रोका उसने भी 50 रुपये कहे। पचास रुपये फ़्री में तो आते नहीं है मेरे पास समय की कोई कमी थी ही नही, इसलिये मैंने पैदल ही पुरी के समुन्द्र तट की ओर चलना आरम्भ किया। चिल्का से रिक्शा में आते समय जिस चौक पर मैं रिक्शा से उतरा था वह मुझे अच्छी तरह याद था। मैं सीधा उसी तरफ़ चल दिया। रथ यात्रा मार्ग काफ़ी चौड़ा है जिससे भीड़-भाड़ होने की गुंजाइस समाप्त हो जाती है। चौराहे तक आते हुए मैंने यहाँ के बाजार को अच्छी तरह देख ड़ाला था। एक जगह गन्ने का रस बेचा जा रहा था अपुन तो मीठे व आइसक्रीम के दीवाने जन्म से ही है अत: रस के दो गिलास ड़कारने के बाद आगे चलना शुरु किया। चौराहे तक पहुँचने तक सूर्य महाराज सिर पर विराजमान हो चुके थे। अब यहाँ से समुन्द्र तट की ओर जाने वाले कालेज नामक मार्ग पर चलना शुरु कर दिया।
गुरुवार, 12 सितंबर 2013
Jagannath temple and Rath Yatra road पुरी जगन्नाथ मन्दिर व रथ यात्रा मार्ग
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-28 SANDEEP PANWAR
पुरी बस स्टैन्ड़ से उतर कर फ़िर से उसी दुकान पर आ गया जहाँ चिल्का जाते समय बड़े व मटर की सब्जी खायी थी। दोपहर होने जा रही थी इसलिये पहले यहाँ से पेट पूजा करनी उचित लगी, उसके बाद शाम तक कुछ मिले ना मिले उसकी फ़िक्र नहीं रहेगी। यहाँ से खा पी कर मन्दिर की ओर चल दिया। यहाँ से ही रथयात्रा वाला चौड़ा मार्ग शुरु हो जाता है। बस स्टैन्ड़ से मन्दिर तक ऑटो मिलते रहते है लेकिन मेरा मन पैदल चलने का था। ट्रेकिंग करना मेरा जुनून है इसलिये मैं अपनी दैनिक जिन्दगी में साईकिल का प्रयोग अधिकतर कार्यों के लिये करता हूईँ ताकि हमेशा फ़िट रहू। अब तो बेचारी मेरी नीली परी भी महीने में एक दो बार ही स्टार्ट होती है। पैदल चलता हुआ मन्दिर की ओर बढ़ता रहा। आधा घन्टा भी नहीं लगा होगा कि मैं मन्दिर के सामने पहुँच गया। वैसे मन्दिर काफ़ी दूर से ही दिखायी देने लग गया था।
बुधवार, 11 सितंबर 2013
Konark Sun Temple (Sexy Temple) कोणार्क का सूर्य मन्दिर या सेक्स मन्दिर
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-27 SANDEEP PANWAR
भगवान सूर्य को समर्पित कोणार्क का सूर्य मन्दिर देखने की प्रबल इच्छा बीते कई सालों से थी लेकिन भारत में इतने ज्यादा दर्शनीय स्थल है कि लगता है कि इस जीवन में सभी देखने मुमकिन नहीं हो पायेंगे? पुरी से कोणार्क के लिये सीधी बस हर आधे घन्टे पर मिलती रहती है। यदि किसी को भुवनेश्वर से कोणार्क का सूर्य मन्दिर देखने जाना हो तो उसे पुरी जाने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि कोणार्क पुरी से लगभग 35 किमी हट कर बना हुआ है जब तक आप पुरी जाओगे तब तक कोणार्क पहुँच जाओगे, इस तरह पुरी से कोणार्क जाने वाला समय बच जाता है। मुझे चिल्का देखते हुए पुरी भी जाना था इसलिये मैं पहले चिल्का झील देखने गया उसके बाद पुरी लौटा था पुरी से बस पकड़ी और कोणार्क जा पहुँचा था। बसे कोणार्क मन्दिर से लगभग आधा किमी दूरी से होकर निकलती है। कोणार्क का बस स्टैन्ड़ तो मन्दिर से लगभग एक किमी दूरी पर बना हुआ है। जब मैं कोणार्क पहुँचा तो शाम के 5 बजने वाले थे। मन्दिर बन्द होने का समय शाम सूर्यास्त का था। लेकिन अंधेरा होने से कुछ दिखायी नहीं देने वाला था।
मंगलवार, 10 सितंबर 2013
CHILIKA LAKE चिल्का झील में एक टापू की यात्रा
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-26 SANDEEP PANWAR
बस से उतरने के बाद मैंने सामने दिखायी दे रही सड़क की ओर चलना शुरु कर दिया। यह सड़क 200-300 बाद चिल्का झील किनारे जाकर समाप्त हो जाती है जहाँ यह सड़क समाप्त होती है ठीक वही से चिल्का के अन्दर बने टापुओं तक तक आने-जाने के एकमात्र साधान बडी व छोटी मोटर बोट चलनी आरम्भ होती है। जिस समय मैं किनारे पर पहुँचा था ठीक उसी समय बड़ी नाव चिल्का के किसी टापू पर जाने के लिये तैयार खड़ी थी मेरे नाव में चढ़ते ही नाव का सायरन बज गया। नाव वालों ने नाव का लंगर उठा दिया और नाव चिल्का झील में स्थित किसी टापू की सैर कराने के लिये रवाना हो गयी। नाव में चढ़ने से पहले ही मुझे बस में पास बैठी सवारियों से काफ़ी जानकारी मिल चुकी थी। बड़ी नाव में किसी टापू तक जाने का भाड़ा मात्र 6 रुपये ही था। जबकि जिस टापू तक हम जा रहे थे उसकी दूरी ही कम से कम 8 किमी के आसपास तो रही होगी। बड़ी नाव शुरु में तो थोड़ी धीमे-धीमे चली लेकिन उसके बाद नाव ने तेजी से चलते हुए अपनी यात्रा जारी रखी।
वो दूर उस टापू पर जाना है? |
सोमवार, 9 सितंबर 2013
Bhubaneswar to Chilika Lake भुवनेश्वर से चिल्का झील
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-25 SANDEEP PANWAR
लिंगराज मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्धार के ठीक सामने वाली सड़क पर सीधा चलता चला गया। यह सड़क हाईवे वाली उस सड़क में मिलती है जो मुझे जगन्नाथपुरी चिल्का या कोणार्क तक लेकर चली जायेगी। 7-8 मिनट की पैदल यात्रा में मैं मुख्य सड़क पर पहुँच गया। मैं सड़क पर पहुँचा ही था लेकिन सड़क पार नहीं कर पाया कि पुरी की दिशा में जाती हुई एक बस आ गयी। जब तक मैं सड़क पार करता वह बस निकल गयी। यहाँ बस रुकने के लिये बस स्टैन्ड़ जैसा कुछ स्थायी ठिकाना तो बनाया हुआ नहीं था इसलिये सड़क किनारे खड़े होकर बस का इन्तजार करने लगा। लगभग 10-12 मिनट बाद दूसरी बस आ गयी। पहले वाली बस बड़ी बस थी जबकि यह वाली बस मिनी बस थी। ठीक वैसी जैसी दिल्ली में RTV बसे होती है जो मैट्रो तक सवारी लाने ले जाने में काम आती है। ऊडिया भाषा में बस के शीशे पर एक छोटा सा बोर्ड़ भी लगा था। लेकिन उसपर लिखा मेरी समझ से बाहर था मैंने तुक्के से से समझ लिया था कि दो अक्षर का नाम है तो पुरी ही होगा। अगर बड़ा नाम होता तो समस्या खड़ी हो जाती। फ़िर भी बस में घुसने से पहले मैंने संवाहक से पूछा था कि पुरी! उसने हाँ की तो मैं अन्दर जा घुसा।
पीछे मुड़कर लिया गया फ़ोटो। |
Know about Jat जाट कौन हैं ?
जाट कौन हैं? यह प्रश्न बहुत ही सरल लगता है लेकिन इसका उत्तर उतना ही कठिन है। लेकिन फिर भी मैं इसका उत्तर ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर इस संक्षेप लेख में देने का प्रयास कर रहा हूं। जाट का शाब्दिक अर्थ तथा भावार्थ एकजुट होना है अर्थात् बिखरी हुई शक्ति को इकट्ठा करना या किसी कार्य को एकजुट होकर करने वालों को ही जाट कहा जाता है। इसीलिए पाणिनि ऋषि ने लगभग 4000 वर्ष पूर्व अष्टाध्यायी मैं जट् झट् संघाते लिखा है। जाट बुद्धिजीवियों ने जाट को परिभाषित करने के लिए अंग्रेजी में इसको इस प्रकार संधिच्छेद किया है- J का अर्थ justice अर्थात् न्यायप्रिय, A का अर्थ Action अर्थात् कर्मशील, T का अर्थ Truthful अर्थात् सत्यवादी। इन तीनों गुणों के मिलने पर सम्पूर्ण जाट कहलाता है, लेकिन जाट कौन है? प्रश्न ज्यों का त्यों खड़ा है।
मैं जाट हूँ मुझे जाट होने पर गर्व है लेकिन मैं दूसरों का भी उतना ही सम्मान करता हूँ जितना वह मेरा?
शनिवार, 7 सितंबर 2013
Bhubaneswar- Lingaraj Temple भुवनेश्वर लिंगराज मन्दिर
UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-24 SANDEEP PANWAR
जब मैं भुवनेश्वर स्टेशन पर ट्रेन से उतरा तो दिन का उजाला चारों ओर फ़ैल चुका था। अपनी साइड़ यानि जिस दिशा में ट्रेन जा रही थी उसके उल्टे हाथ वाली दिशा में स्टेशन से बाहर निकलने का मार्ग दिखायी दिया। स्टेशन से बाहर निकल कर सबसे पहले कुछ दूरी पर स्थित मुख्य सड़क पर जा पहुँचा। यहाँ से लिंगराज मन्दिर कम से कम 4 किमी दूरी पर तो रहा होगा। सुबह का समय होने के कारण स्थानीय लोग-बाग टहलने में लगे हुए थे। मैंने आटो की प्रतीक्षा में वहाँ रुककर समय नष्ट करना ठीक नहीं समझा, इसलिये पैदल ही लिंगराज मन्दिर की ओर चलता रहा। कोई एक किमी आगे जाने के बाद एक ऑटो वाले मुझे देखकर पूछा ??/.,<. मतलब उसने उडिया भाषा में कुछ बोला था लेकिन मेरे पल्ले कुछ नी पड़ा तो मैंने कहा लिंग राज मन्दिर। उसने बैठने का इशारा किया तो मैंने कहा देख भाई मैं पहली बार यहाँ आया हूँ तुम किराया कितना लोगे यह पहले से ही बता दो कही वहाँ जाकर तुम 50 माँगों और मैं 10 रुपये देने लगूँ तो पंगा हो जायेगा। उसने कुछ सोचकर कहा 20 रुपये। तीन किमी के बीस रुपये एकदम ठीक भाड़ा बताया। चलो भाई लिंगराज मन्दिर दिखा दो।
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