इस पृथ्वी पर अन्तिम दिन 29-04-1997
आज दिंनाक 29 अप्रैल को मेरे पिताजी की चौदहवी पुन्यतिथि है,
मेरे पिता भारतीय थलसेना में जाट रेजीमेंट में थे।
सेना में रहते हुए दो बार पाकिस्तान से युद्द में शामिल हुए।
जिसमें एक बार एक पाकिस्तानी गोली मेरे पिता की छाती के बीचोबीच से आर-पार हो गयी थी।
हमें दोनों तरफ का निशान दिखाया करते थे,
गोली लगने पर भी कोई खास फ़र्क नहीं पडा, लेकिन महीने भर अस्पताल में रहना पडा।
हुआ यूँ था,(पापा की जबानी) कि जब पाकिस्तान दूसरा युद्द हार गया,
तो सेना वापिस आने के लिये चटगाँव रेलवे स्टेशन पर गाडी के इन्तजार में थी,
कि तभी वहाँ छुपे हुए दो पाकिस्तानी सैनिकों ने फ़ायरिंग कर दी थी।
पापा के एक दोस्त को तो ग्यारह गोली लगी थी, वो तब भी बच गये।
लेकिन चार साथी किस्मत वाले नहीं थे, घटना स्थल पर ही शहीद हो गये थे।
पापा व टुकड़ी के अन्य फ़ौजियों ने कुल 45 पाकिस्तानी मार गिराये थे, इस घटना से पहले।
अपनी रेजीमेंट के टाप वेट लिफ़्टर भी रहे थे।
आज दिंनाक 29 अप्रैल को मेरे पिताजी की चौदहवी पुन्यतिथि है,
पापा आज जीवित होते तो साठ साल के आसपास के हो जाते।
मेरे पिता भारतीय थलसेना में जाट रेजीमेंट में थे।
सेना में रहते हुए दो बार पाकिस्तान से युद्द में शामिल हुए।
जिसमें एक बार एक पाकिस्तानी गोली मेरे पिता की छाती के बीचोबीच से आर-पार हो गयी थी।
हमें दोनों तरफ का निशान दिखाया करते थे,
गोली लगने पर भी कोई खास फ़र्क नहीं पडा, लेकिन महीने भर अस्पताल में रहना पडा।
हुआ यूँ था,(पापा की जबानी) कि जब पाकिस्तान दूसरा युद्द हार गया,
तो सेना वापिस आने के लिये चटगाँव रेलवे स्टेशन पर गाडी के इन्तजार में थी,
कि तभी वहाँ छुपे हुए दो पाकिस्तानी सैनिकों ने फ़ायरिंग कर दी थी।
पापा के एक दोस्त को तो ग्यारह गोली लगी थी, वो तब भी बच गये।
लेकिन चार साथी किस्मत वाले नहीं थे, घटना स्थल पर ही शहीद हो गये थे।
पापा व टुकड़ी के अन्य फ़ौजियों ने कुल 45 पाकिस्तानी मार गिराये थे, इस घटना से पहले।
अपनी रेजीमेंट के टाप वेट लिफ़्टर भी रहे थे।
अमरनाथ की किस्त चार या पांच को आएगी,