chandresh kumar said...
बहुत अच्छा आगाज़ है तो अंजाम तो बहुत ही धांसू होगा. आपके लिए बस यही कहना है की हम किस किस की नजर को देखें हम तो सबकी नजर में रहते है.क्या करे दोस्त हमने तो किस्मत ही ऐसी पाई है कि हमेशा सफ़र में ही रहते हैं. आगे भी ऐसे ही जरी रखें आपकी आँखों से नीले गगन, प्रकृति का यौवन फूलों कि नाजुक कलियाँ देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है.
जवाब------जब तक इस शरीर में जान है ये घूमना लगा ही रहेगा।
ब्लॉ.ललित शर्मा said...
एकाध कोई उल्टा बोल्या के नही। :)
जवाब------लठ चार-चार हाथ में हो फ़िर किसकी मजाल की कोई उल्टा बोल दे।
नीरज जाट said...
मैं पहले दिन ही दिल्ली से नारकण्डा पहुंच गया और आप बाइक होते हुए भी पिंजौर ही पहुंच सके हैं। सालों लगेंगे आपको अभी मेरी बराबरी करने में। हा हा हामुझे भी बाइक चलानी सीखने दो, फिर देखना भरपूर टक्कर मिलेगी आपको और आपके जोडीदार को। लाइसेंस तो बन गया है। खाना और सोना मेरी कमजोरी नहीं बल्कि मेरी ताकत है। जरा एक बार इस यात्रा में से खुद को हटाकर देखो, कौन भारी पडा? आप को मैं अपना फिटनेस गुरू मानना चाहता हूं। अब मेट्रो में भी एस्केलेटर की जगह सीढियों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। बढिया शुरूआत। और हां, लिंक डालना भी सीखो। जहां पहली बार मेरा नाम लिखा है, वहां ब्लॉग का लिंक लगाया करो।
जवाब------सीख लो बाइक चलानी भी, ये अच्छा किया एस्केलेटर की जगह सीढियों का इस्तेमाल, इस दुनिया में सब गुरु है कोई अपने को कम नहीं मानता है।
निर्मला कपिला said...
तस्वीर चंदाल चौकडी से शुरू हुये मगर अगली हर तस्वीर मे से एक चंडाल गायब होता रहा। सुन्दर यात्रा वृतांट। शुभकामनायें।
जवाब------क्या करते फ़ोटो खींचने के लिये कोई मिलता ही नहीं था।
प्रवीण पाण्डेय said...
उत्तरी सड़को पर धौंकती फटफटिया उतरी।
जवाब------हमारे गाँव में बाइक को फ़िटफ़िटी भी कहते है।
Vidhan Chandra said...
श्रीखंड की यात्रा कठिन है, जो आप लोगों ने सफलता पूर्वक पूरी की!! सहस के धनी आप जैसे लोग चंडाल चौकड़ी न होकर "स्वर्णिम चतुर्भुज" है!!
जवाब------चारों बेहद ही हिम्मत वाले हैं, घूमने के मामले में किस्मत वाले भी।
veerubhai said...
संदीप जाट भाई बहुत सुन्दर प्रस्तुति .नीरज भाई के ब्लॉग पर भी यह वृत्तांत पढ़ा .आपका अंदाज़-ए-बयाँ आपका अपना शानदार नज़रिया प्रस्तुत करता है .
जवाब------शानदार नज़रिया कहो या कि जो देखा जो महसूस किया वो मान लो।
Bhushan said...
बढ़िया यात्रा वृत्तांत. बिण मांग्या सुझाव सै- बाद में इसे संपादित करके पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित कर दें.
जवाब------सोच तो रहा हूँ लेकिन ऐसी तो कई पुस्तक हो जायेगी।
डॉ टी एस दराल said...
भाई ये लट्ठ लेकर यात्रा तो जाट ही कर सकते हैं। बहुत दिलचस्प ।
जवाब------नहीं जी लठ लेकर कोई भी यात्रा कर सकता है बस हिम्मत होनी चाहिए।