शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

Satopanth Lake trek & Swargarohini trek सतोपंथ ताल व स्वर्गरोहिणी पर्वत



स्वर्गरोहिणी पर्वत व सतोपंथ ताल यात्रा।
दोस्तों, अभी तक आपने पढा व देखा कि हम चक्रतीर्थ से आगे ग्लेशियरों के ऊपर से होकर सतोपंथ तक पहुँचे। सुबह के 10 बजे सतोपंथ पहुँचे। अच्छी खासी धूप खिली हुई थी। धूप का आनन्द लेने के लिये बैग एक तरफ रख घास में लुढक गये। खुले आसमान के नीचे यू निढाल होकर घास में लौटने का सुख, ऐसे ही नसीब नहीं हो जाता है। इसके लिये कठिन पद यात्रा करनी होती है। कई घंटे की थकान के बाद यू पैर फैलाकर आराम करने का सुख, करोडों की दौलत के ऐशों आराम भी नहीं दिला सकते। मैं और सुमित आधा घंटा ऐसे ही बैठे रहे। आज की यात्रा सिर्फ 2-3 किमी की ही रही। हम कल भी यहाँ आराम से पहुँच सकते थे। हमारे ग्रुप में एक-दो ढीले प्राणी भी थे। उन्हे भी साथ लेना होता था। इस यात्रा में अमित व सुमित ही ऐसे बन्दे थे जो मेरी तरह धमा-धम चलने वाले थे। बाकि सभी मस्तखोर थे। आगे बढने के नाम पर तेजी से सरकते ही नहीं थे। हम ठिकाने पर काफी पहले पहुँच जाते थे। कई भाई तो तीन-तीन घंटे लेट आते देखे गये। पता नहीं रास्ते में बैठ कर सो जाते थे या गपशप करने लग जाते थे। अपना पूरा ग्रुप लगभग ठीक था। बस एक दो छुटपुट घटनाये इस पूरी यात्रा में हुई। जिसका मुझे बहुत बुरा लगा। मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन साथी को बिन चेतावनी कोई बुरा कहे तो वह भी गलत लगता है। मान सम्मान सबका होता है। खैर, मैं अभी यहाँ, किसी का नाम उजागर नहीं कर रहा हूँ। हो सकता है लेख के अन्त में कुछ ईशारा आपको मिल जाये।

स्वर्गरोहिणी, स्वर्ग की सीढी, मरने का शौंक है तो चढ जाओ, भाई

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

Trek to Satopanth Lake सतोपंथ झील का ट्रैक



महाभारत काल के 5 पाँडवों अंतिम यात्रा की गवाह, स्वर्गरोहिणी पर्वत व पवित्र झील सतोपंथ की पद यात्रा।

दोस्तों, अभी तक आपने पढा कि सतोपंथ व स्वर्गरोहिणी के लिये हमारी यह यात्रा बन्द्रीनाथ, माणा, आनन्द वन, चमटोली बुग्याल, लक्ष्मी वन, सहस्रधारा होते हुए चक्रतीर्थ के ठीक सामने एक विशाल पहाडी धार तक पहुँच चुकी थी। अब चलते है उससे आगे। पोर्टर से पता लगा कि इसी धार को चढकर ही पार करना होगा तभी उस पार जाया जा सकता है। सामने वाली उस धार को दूर से देखकर वहाँ की ठंडी में ही पसीने आ रहे थे। कल सुबह उस पर चढेंगे तो पता लगेगा कि यह क्या हाल करती है? शाम को एक अन्य ग्रुप के दो-तीन पोर्टर आगे सतोपंथ की ओर जा रहे थे। मैं उन पोर्टर को उस धार पर चढने में लगने वाले समय को देखने लगा। उन पोर्टर ने हमारे टैंट से लेकर उस धार की चोटी तक जाने में 45 मिनट का समय लगाया। दूरी रही होगी, एक सवा किमी के आसपास। पोर्टर को सामान के साथ जितना समय लगा है। मैं मान रहा हूँ कि हमें अपने सामान के साथ उसके बराबर समय लग ही जायेगा। चलो, कल देखते है यह धार कितनों की नानी याद दिलायेगी। चक्र तीर्थ की धार तो कल सुबह देखी जायेगी। अभी तो दिन के तीन ही बजे है हल्की-हल्की बारिश भी शुरु हो। पहले इस बारिश से ही निपटते है। आज, जहाँ हम ठहरे हुए है, वहाँ बडे-बडे तिरछे पत्थर की कुदरती बनी हुई दो गुफा थी। एक गुफा में हमारे पोर्टर घुस गये। दूसरी गुफा पर जाट देवता व सुमित ने कब्जा जमा लिया। बीनू व कमल ने मेरी व सुमित की गुफा के सामने ही अपना टैंट लगा डाला। जिस गुफा में हम अपना ठिकाना बना रहे थे उसकी छत वैसे तो बहुत मोटे पत्थर की थी लेकिन उस मोटे पत्थर का गुफा के दरवाजे वाले किनारे वाला भाग भूरभूरा हो गया था। जिससे वह पकडते ही टूटने लग जाता था। 
ध्यान मग्न

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

Trek to Laxmi Van, Satopant Lake बद्रीनाथ से लक्ष्मी वन होकर चक्रतीर्थ तक



महाभारत काल के स्वर्गरोहिणी पर्वत व पवित्र झील सतोपंथ की पद यात्रा।
दोस्तों, बद्रीनाथ हो गया। चरण पादुका हो गया। माना गाँव हो गया। अब चलते है स्वर्ग की यात्रा पर। स्वर्ग के नाम से डरना नहीं। इस स्वर्ग में जीते जी जा सकते है मरने की भी टैंशन नहीं। जैसा की नाम से जाहिर है कि स्वर्ग जाना है तो यह तो पक्का है तो यात्रा आसान नहीं रहने वाली है। आज की रात रजाई में सोने का आनन्द तो ले ही लिया। अब लगातार 5 रात रजाई की जगह स्लिपिंग बैग में कैद रहना पडेगा। स्लिपिंग बैग के चक्कर में ढंग से नींद भी पूरी नहीं हो पाती। सुबह 7 बजे सभी को चलने के लिये रात में ही बोल दिया गया था। इसलिये सभी साथी लगभग 7 बजे तक तैयार होकर कमरे से बाहर आ गये। सारा सामान खाने-पीने व रहने-ठहरने का रात को ही लाकर कमरे में रख लिया गया था। 5 दिन की इस यात्रा के लिये कुल 11 साथी तैयार हुए थे। जिनके हिसाब से खाने-पीने का सामान कल ही खरीद लिया था। रात को दो साथी सतोपंथ-स्वर्गरोहिणी यात्रा पर जाने की ना कह ही चुके थे। रात को सामान लाने के बाद दिल्ली वाले सचिन व जम्मू वाले रमेश जी की तबीयत खराब हो गयी थी इसलिये इन दोनों ने तो आगे जाने से ही मना कर दिया। 

रमेश जी 52 वर्ष पार कर चुके है। वो आज दिन में चरण पादुका आने-जाने में ही मन से हिम्मत हार चुके थे। वैसे उन्हे कोई ज्यादा समस्या भी नहीं हुई थी। दूसरे साथी सचिन त्यागी को उनके घर से जरुरी काम का फोन आ गया (घर से फोन न आता तो क्या सचिन जी वापिस जाते?) तो उन्हे भी यह यात्रा शुरु होने से पहले ही छोडनी पडी। एक तरह से देखा जाये तो अच्छा ही रहा। कोई यात्रा बीच में अधूरी छोडने से बेहतर है कि उसे शुरु ही न किया जाये। सचिन तो पूरी तैयारी कर के आया भी था। चलो घुमक्कडी किस्मत से मिलती है यह मैं हमेशा से कहता रहा हूँ। यहाँ इन दोनों के साथ यह बात एक बार पुन: साबित भी हो गयी। कई यात्राओं में ऐसे साथी भी साथ गये जो यात्रा बीच में छोड कर वापिस लौट आये। श्रीखण्ड महादेव ट्रेकिंग वाली यात्रा में ऐसे ही एक साथी नितिन भी लापरवाही से चलने से घुटने में चोट लगवा बैठा था। उसे उस यात्रा में दो बार चोट लगी थी। पहली चोट तो झेल गया लेकिन दूसरी वाली चोट उसे बहुत भारी पड गयी थी। जिस कारण वह अपनी यात्रा सिर्फ 5-6 किमी से आगे नहीं कर पाया था। 

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

Mana Village -Last Village of India भारत का आखिरी गांव- माणा



भारत के अंतिम गाँव/ग्राम माणा में आये तो यह सब भी देखे।
दोस्तों, माणा गाँव इस रुट पर भारत का अंतिम गाँव कहलाता है। वैसे सांगला छितकुल वाले रुट पर छितकुल अंतिम गांव कहलाता है। इस प्रकार देखा जाये तो भारत की सीमा की ओर जाते सभी मार्गों पर कोई ना कोई तो गाँव होगा ही, उस तरह वे सभी उस रुट के अंतिम गाँव ही कहलायेंगे। बद्रीनाथ से माणा की दूरी केवल 3 किमी ही है। जीप वाले ने हमें 5-6 मिनट में माणा पहुँचा दिया। माना करीब 8 साल पहले सन 2007 देखा था। उस समय मैं अपनी बाइक नीली परी पर यहाँ आया था। तब के माणा और आज के माणा में काफी अन्तर दिखायी देता है। उस समय पार्किंग की आवश्यकता नहीं थी। आज यहाँ प्रतिदिन हजारों पर्यटक आते है जो बद्रीनाथ धाम से अधिकतर किराये के या अपने वाहन से ही आते है सैकडों वाहनों को खडा करने के लिये पार्किंग गाँव के बाहर ही बनायी हुई है। अगर हम बाइक से आते तो गाँव के काफी अन्दर तक चले आते। 

यहाँ माणा गाँव के अन्दर आकर देखा कि बद्रीनाथ की तरह यहाँ भी बहुत भीड है। अंतिम गाँव ही सही, लोग सडक बनने के बाद यहाँ आने तो लगे है। इससे गाँव वालों को काफी लाभ होगा। गाँव की औरते सडक किनारे बैठकर भेड व बकरी के बालों से बनी ऊन से टोपियाँ व स्वेटर आदि बनाने व बने हुओं को बेचने में व्यस्त थी। मैंने पिछली यात्रा में एक टोपी यहाँ से ली थी जो काफी गर्म रखती थी। थोडा और अन्दर जाने पर मार्ग दो टुकडों में बँट जाता है। यहाँ से नीचे की ओर जाने वाला मार्ग भीमपुल, सरस्वती नदी, वसुधारा की ओर जाता है तो ऊपर वाला मार्ग गणेश गुफा व व्यास गुफा की ओर ले जाता है।


सोमवार, 26 दिसंबर 2016

Trekking to the base of Neelkanth, Charan Paduka, Badrinath चरण पादुका व नीलकंठ पर्वत के आधार की ओर



बद्रीनाथ धाम में आये तो यह सब भी देखे।
इस यात्रा में अभी तक आपने पढा कि कैसे हम दिल्ली से एक रात व एक दिन में हरिद्वार से बद्रीनाथ तक बस से यात्रा करते हुए पहुँचे। सबसे पहले बद्री-विशाल मन्दिर के दर्शन करने पहुँचे। वहाँ से लौट कर कमरे पर वापिस आये तो देखा कि सभी साथी मन्दिर दर्शन से लौट कर आ चुके थे। सबसे मुलाकात की। यहाँ सिर्फ़ दो साथी अलग मिले तो दिल्ली से साथ नहीं आये थे। एक सुशील कैलाशी भाई जो पटियाला से आये थे और दूसरे रमेश शर्मा जो उधमपुर जम्मू से आये थे। हरिद्वार से सुशील व रमेश जी उसी बस में साथ आये थे जिस में अन्य सभी साथी सवार थे। मुझे और बीनू को अलग बस के चक्कर में इन दोनों से बद्रीनाथ पहुँचकर ही मिलना हो पाया। बीनू का कैमरा उसके बैग में ही रह गया था।
इस यात्रा में कुछ पुराने साथी थे जिनसे पहले भी मुलाकात हो चुकी है

1 कमल कुमार सिंह जिन्हे नारद भी कहते है। बनारस के रहने वाले है।
2 बीनू कुकरेती बरसूडी गाँव, उत्तराखण्ड के रहने वाले है।
3 अमित तिवारी को बनारसी बाबू कहना ज्यादा उचित है।
4 सचिन त्यागी मंडौली दिल्ली के रहने वाले है।

नये दोस्त, जो इस यात्रा में पहली बार मिले, इनसे पहली बार मुलाकात हुई।

1 योगी सारस्वत गाजियाबाद में रहते है।
2 संजीव त्यागी दिल्ली के कृष्णा नगर के निवासी है।
 3 विकास नारायण ग्वालियर के रहने वाले है।
4 सुमित नौटियाल श्रीनगर, उत्तराखन्ड के रहने वाले है।
5 सुशील कैलाशी पटियाला, पंजाब के रहने वाले है।  
6 रमेश शर्मा उधमपुर, जम्मू के रहने वाले है।

रविवार, 25 दिसंबर 2016

Badinath temple yatra बद्रीनाथ मन्दिर यात्रा की तैयारी कैसे करे।


    जय बद्री विशाल। बद्रीनाथ धाम के दर्शन मात्र करना ही अपने आप में सम्पूर्ण यात्रा है। यदि बद्रीनाथ के साथ-साथ, नीलकंठ पर्वत, चरण पादुका, माणा गाँव, नर नारायण पर्वत के दर्शन, वसुधारा जल प्रपात, भीम पुल, सरस्वती नदी, व्यास गुफा, गणेश गुफा जैसे आसानी से पहुँच में आने वाले स्थल तो कदापि नहीं छोडने चाहिए। हमने इस बार की यात्रा में महाभारत काल के पाँच पांडव भाई व उनकी पत्नी (युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के साथ इनकी एकमात्र पत्नी द्रौपदी) के स्वर्ग जाने वाले मार्ग का ही अनुसरण किया। इस यात्रा में हमने स्वर्गरोहिणी पर्वत के दर्शन व सतोपंथ झील में स्नान करना मुख्य है। यदि आप कभी भी बद्रीनाथ गये हो और उपरोक्त स्थलों को देखे बिना ही वापिस लौट आये हो तो यकीन मानिये कि आपने अपनी बद्रीनाथ यात्रा में बहुत कुछ छोड दिया है। कुछ भक्त/ यात्री केवल बद्रीनाथ मन्दिर के दर्शनों को ही महत्व देते है तो उनके लिये अन्य स्थलों के दर्शन करने का कोई महत्व ही नहीं रह जाता। मुझ जैसे कुछ घुमक्कड प्राणी भी होते है उनके लिये बद्रीनाथ धाम केवल रात्रि विश्राम व अन्य आवश्यक सामग्री एकत्र करने के लिये एक आधार मात्र ही होता है। हमारे ग्रुप की मंजिल (सतोपंथ व स्वर्गरोहिणी पर्वत) इससे (बद्रीनाथ धाम) बहुत आगे पैदल मार्ग पर तीन दिन की कठिन ट्रैकिंग करने के उपरांत ही आ पाती है। हमारी मंजिल जहाँ होती है वहाँ तक पहुँचने के लिये ढेरों जल प्रपात व घास के विशाल मैदानों, तीखी फिसलन वाली ढलानों, बहते नदी-नालों के साथ टूटे हुए पहाड के विशाल पत्थरों (बोल्डर) को पार करना पडता है। यदि आप ऐसी जगह जाने के लिये मचलते हो तो यह लेख आपके बहुत काम का है। इस यात्रा का लेखन कार्य कई लेख चरणों में पूरा किया गया है। 



मंगलवार, 14 जून 2016

Dhari Devi Temple धारी देवी मन्दिर

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-11          लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
नन्दा देवी, मदमहेश्वर, अनुसूईया, रुद्रनाथ,की सफल यात्रा के उपरांत आज दिल्ली घर वापसी करनी है। सगर, गोपेश्वर से दिल्ली की दूरी करीब 450 किमी है इतनी लम्बी यात्रा पर सुबह जल्दी निकलना सही रहता है। सगर गाँव के पास भालू का डर नहीं होता तो मैं सुबह 5 बजे ही निकल पडता। मंडल से सुबह 5 बजे एक सीधी बस है जो चमोली, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश होकर देहरादून तक जाती है। होटल मालिक ने सलाह दी थी कि सुबह सडक पर भालू या बाघ मिल सकता है इसलिये उजाला होने के बाद ही निकलना। यदि उजाला होने से पहले निकलना जरुरी हो तो देहरादून वाली बस के पीछे रहना, जब उजाला हो जाये तब भले ही आगे निकल जाना। मैं सुबह 05 बजे तैयार हो गया था। बाइक पर सामान बाँध दिया था। ठीक 05:30 पर देहरादून वाली बस आयी तो मैं उसके पीछे-पीछे अपनी नीली परी दौडा दी। बाइक फिसलने से हैंडिल तिरछा हो गया था उसे कल शाम ठीक कर लिया था। इसलिये अब हैंडिल की भी कोई दिक्कत नहीं थी। गोपेश्वर से पहले ही उजाला हो गया था। फिर भी गोपेश्वर तक मैं बस के पीछे ही चला। गोपेश्वर में बस सवारियाँ लेने रुकी तो मैं उससे आगे निकल गया। इसके बाद वो बस ऋषिकेश तक मुझसे आगे नहीं निकली।

सोमवार, 13 जून 2016

Return from Rudranath kedar Trek रुद्रनाथ केदार ट्रैक से वापसी

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-1         लेखक SANDEEP PANWAR

इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
हल्की–हल्की बारिश होने लगी तो मैंने बैग रखने के बारे में बोला। पुजारी जी ने अपने सेवक से एक कमरा खोलने को कहा। सेबक हमें लेकर एक कमरे के सामने पहुँचा। कमरे की बाहर से कुन्डी लगी हुई थी। सेवक ने कमरा खोलने के बाद कहा। आप अपना सामान रखकर थोडी देर में आ जाना। मैं और पुजारी जी शाम की पूजा की तैयारी करने वाले है। थोडी देर में शंख की आवाज सुनकर हम कमरे से बाहर निकले। कमरा ज्यादा बडा नहीं था। उसमें पूरी तरह खडा नहीं हुआ जा रहा था। जूते निकाल कर चप्पत पहन ली। कमरे से बाहर निकलते ही जबरस्त ठन्ड का अहसास हो गया। कुछ देर पहले तक सूरज निकला हुआ था तो पता नहीं लग पा रहा था सूरज गायब तो ठन्ड का प्रकोप शुरु। गर्म चददर निकाल कर ओढ ली।

रविवार, 12 जून 2016

Rudranath kedar Trek रुद्रनाथ केदार ट्रैक

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-09           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
रुद्रनाथ भगवान भोले नाथ के पंच केदार में सबसे कठिन केदार माने जाते है। मैंने भी इसके बारे में बहुत सुना था यहाँ तक पहुँचना बहुत कठिन है। रात को सगर गाँव के सोनू गेस्ट हाऊस में ठहरा था। इस बार रुपकुन्ड यात्रा के बाद यहाँ आया हूँ। दो साल पहले मैं और मनु रुपकुन्ड यात्रा के बाद यहाँ रुद्रनाथ की यात्रा करने के लिये आये थे लेकिन दो दिन पहले रुद्रनाथ के कपाट बन्द हो गये थे तो हम दोनों वापिस लौट गये थे। रुद्रनाथ के बाद मेरा कल्पेश्वर केदार व काठमांडू का मुख्य केदार बचता है। कुछ लोग काठमांडू वाले मन्दिर को पंच केदार में नहीं मानते है जबकि देखा जाये तो असली केदार तो वही है जहाँ भोलेनाथ का चेहरा धरा से बाहर निकलना था। सोनू गेस्ट हाऊस के मालिक अवकाश प्राप्त फौजी है। उन्होंने सेना से रिटायरमेंट के बाद यह रेस्ट हाऊस बनाया था। यहाँ भी उन्होंने मुझसे मात्र 100 रु किराया लिया। व 50 रु खाने के लिये। मैंने कहा, सीजन कैसा जा रहा है उन्होंने बताया कि इस सीजन में किसी-किसी दिन तो एक भी यात्री रुद्रनाथ के लिये नहीं जाता है। केदारनाथ हादसे के बाद अभी तक यात्री पहाड पर आने में हिचक रहे है। कोई नहीं, भारत के लोग किसी घटना को ज्यादा दिनों तक याद नहीं रखते है जल्द ही लोग यहाँ जुटने लगेंगे। सुबह उजाला होने की आहट मिलते ही मैंने रुद्रनाथ की कठिन कही जाने वाली पद यात्रा की शुरुआत कर दी।

शनिवार, 11 जून 2016

Anusuya Devi and Atri Muni Ashram अनुसूईया देवी, अत्रि मुनि मन्दिर

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-08           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
खैर रोमांचक जंगल सफारी भी समाप्त हुई। मंडल पहुँचने के बाद चाय की दुकन के आगे बाइक रोकी। उससे अनुसूईया देवी मन्दिर जाने वाले मार्ग के बारे में पूछा। चाय वाले ने (माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी नहीं समझ लेना) बताया कि यहाँ से थोडा सा पहले ऊपर की तरफ एक कच्चा मार्ग जाता हुआ दिखायी देगा। उस पर एक किमी तक बाइक चली जायेगी। एक किमी के बाद एक नदी आयेगी जहाँ से आगे की 5 किमी की यात्रा पैदल ही करनी होगी। 5 किमी में से चढाई वाले कितने किमी है। शुरु के आधे तो हल्के से ही है जबकि आखिरी का आधा भाग अच्छा खासा है। मैंने 10 किमी की ट्रेकिंग में आने जाने में 3-4 घन्टे का समय माना। बाइक का तो ताला लग जायेगा। लेकिन मेरा बैग व अन्य सामान कहाँ छोड कर जाऊँ? मैंने चाय वालो को एक गिलास दूध मीठा करने के लिये बोला। जब तक उसने दूध मीठा किया मैंने बाइक से सामान खोलकर उसकी दुकान में रख दिया। दुकान वाले ने बताया कि यदि रात को ऊपर रुकने का मन हो तो रुक जाना वहाँ रहने-खाने की कोई चिंता नहीं है सब इन्तजाम है। आपकी दुकान कब से कब तक खुलती है? उसने बताया कि अंधेरा होने पर मेरी दुकान बन्द होती है।

शुक्रवार, 10 जून 2016

Madhyamaheshwar kedar to Anusuiya Devi मध्यमहेश्वर केदार से अनुसूईया देवी

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-07           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
3 बजे नून चट्टी पहुँच गया। यहाँ कुछ देर रुक गया। दो परांठे बनवा कर खाये गये। साढे 5 बजे बनतोली पहुँचा। बनतोली में पवाँर रेस्ट हाऊस वालों के यहाँ मेरे कमरे के बराबर में ठहरे बंगाली परिवार वाले मिले। मुझे देखकर बोले अरे तुम वापिस भी आ गये। हाँ ज्यादा कठिन नहीं है। कठिन है हम तो 10 बजे से चलकर अभी आधा घन्टा पहले ही यहाँ आये है। हो सकता है परिवार के साथ, छोटे बच्चों के साथ अठिन हो लेकिन अकेले इन्सान के लिये यह कठिन नहीं है। आप अपने साथ एक पोर्टर लाये है उससे पूछो वह दिन भर में एक चक्कर आसानी से लगा सकता है। कुछ देर उनके पास बैठकर आराम मिला। अब आगे चढाई भी चढनी है अभी 6 किमी से ज्यादा यात्रा बाकि है देखते है अंधेरा कहाँ होता है। घने जंगल में सामने से आते हुए कई ग्रामीण मिले। वे सब यही बोल रहे थे तेजी से चलते रहो नहीं तो जंगल में अंधेरा हो जायेगा। अंधेरा 50 फुट वाली सीढियों पर हो गया था। इसलिये टार्ज निकालनी पडी। ठीक साढे 7 बजे रांसी पहुँच गया।

गुरुवार, 9 जून 2016

Madhyamaheshwar kedar trek मध्यमहेश्वर केदार ट्रैक

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-06           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
रांसी में जिस जगह मैंने रात बितायी थी। उनके घर के सामने ही बस खडी होती है यहाँ से बस रुद्रप्रयाग, हरिद्वार व ऋषिकेश के लिये चलती है। रांसी से मदमहेश्वर की दूरी करीब 16 किमी है रात में ही मैंने तय कर लिया था कि सुबह उजाला होने से पहले चल दूंगा। ताकि अंधेरा होने तक वापसी आने की उम्मीद बन सके। सुबह उजाला होने से पहले गोंडार के लिये चल दिया। रांसी से गोंडार तक, शुरु के एक किमी कच्ची सडक है। जिस पर जगह-जगह पत्थर पडे हुए थे कही जगह भूस्खलन के कारण मार्ग बन्द जैसा दिखता था लेकिन पैदल यात्री के लिये कोई समस्या नहीं थी। चौडी कच्ची सडक जहाँ समाप्त होती है वहाँ से कुछ आगे तक पहाड काटा हुआ है। करीब दो किमी बाद एक जगह से अचानक पगडन्डी गायब हो जाती है। यहाँ एक झोपडी बनी हुई है। अब पगडन्डी समानतर न होकर अचानक नीचे खाई में जाती हुई दिखायी दी। यहाँ सीढियाँ बनी हुई है जिस पर करीब 50 फुट नीचे उतरना पडा। सीढियों के समाप्त होते ही एक बार फिर समतल सी पगडन्डी आ गयी। सुबह जब से चला था तब से लगातार ढलान पर उतर रहा था। यह ढलान वापसी में रुलायेगी। सीढियों के समाप्त होते ही घनघोर जंगल भी शुरु हो जाता है। घनघोर जंगल में अकेले होने पर मन में डर सा बना रहता है कि कोई भालू-वालू ना टकरा जाये।

शनिवार, 4 जून 2016

Vaan to Madhyamaheshwar kedar trek वाण गाँव से मध्यमहेश्वर केदार यात्रा

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-05           लेखक SANDEEP PANWAR

इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
अपनी बाइक नीली परी के पास चलते है। तीन दिन हो गये। उसके दर्शन नहीं हुए। बेचारी नीली परी नीचे सडक किनारे सुनसान अकेली खडी होगी। बाइक जैसी छोडकर गया था ठीक वैसी ही खडी थी। पहाडों में वैसे भी छेडछाड की घटना कम ही होती है। कुछ खुराफाती बाइकों से पैट्रोल निकाल लेते है। इसलिये पहाड में ध्यान से देखोगे तो आपको पहाड की अधिकतर बाइकों में पैट्रोल टंकी के नीचे ताला मिलेगा। टंकी के नीचे जहाँ से तेल रिजर्व लगता है या बन्द किया जाता है उसी में ताले का प्रबन्ध किया जाता है। जिसके बाद चाबी से ही तेल बन्द या रिजर्व लग पाता है। बाइक से चाबी निकालोगे तो तेल बन्द हो जाता है। इसका लाभ यह होता है बाइक से तेल चोरी होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है। आज मेरा इरादा मदमहेश्वर के आधार स्थल रांसी से आगे के गाँव तक बाइक से पहुँचने का था। इसलिये अंदाजा लगाया कि सुबह 9 बजे भी वाण से चलूँगा तो आराम से अंधेरा होने से पहले रांसी पहुँच जाऊँगा।


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