नन्दा देवी
राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-11 लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02 वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03 रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04 शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05 वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06 मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07 रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08 अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09 सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10 रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11 धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02 वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03 रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04 शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05 वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06 मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07 रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08 अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09 सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10 रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11 धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
नन्दा देवी, मदमहेश्वर, अनुसूईया, रुद्रनाथ,की
सफल यात्रा के उपरांत आज दिल्ली घर वापसी करनी है। सगर, गोपेश्वर से दिल्ली की
दूरी करीब 450 किमी है इतनी लम्बी
यात्रा पर सुबह जल्दी निकलना सही रहता है। सगर गाँव के पास भालू का डर नहीं होता
तो मैं सुबह 5 बजे ही निकल पडता। मंडल
से सुबह 5 बजे एक सीधी बस है जो
चमोली, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश होकर देहरादून तक जाती है।
होटल मालिक ने सलाह दी थी कि सुबह सडक पर भालू या बाघ मिल सकता है इसलिये उजाला
होने के बाद ही निकलना। यदि उजाला होने से पहले निकलना जरुरी हो तो देहरादून वाली
बस के पीछे रहना, जब उजाला हो जाये तब भले ही आगे निकल जाना। मैं सुबह 05 बजे तैयार हो गया था। बाइक पर सामान बाँध दिया
था। ठीक 05:30 पर देहरादून वाली बस आयी
तो मैं उसके पीछे-पीछे अपनी नीली परी दौडा दी। बाइक फिसलने से हैंडिल तिरछा हो गया
था उसे कल शाम ठीक कर लिया था। इसलिये अब हैंडिल की भी कोई दिक्कत नहीं थी।
गोपेश्वर से पहले ही उजाला हो गया था। फिर भी गोपेश्वर तक मैं बस के पीछे ही चला।
गोपेश्वर में बस सवारियाँ लेने रुकी तो मैं उससे आगे निकल गया। इसके बाद वो बस ऋषिकेश तक मुझसे आगे नहीं निकली।