SACH PASS-PANGI VALLEY-03 SANDEEP PANWAR
पेंचर वाला कुछ देर में ही नीचे चला आया, उसने अपनी दुकान खोली और सबसे पहले पहिये
की वालबोड़ी टाइट करने वाला पेचकस ले आया। वालबोड़ी टाइट करने के बाद उसने पिछले पहिये
में हवा भर दी। मैंने कहा एक बार पहिया खोलकर चैक कर लो क्या पता! पेंचर ही हो लेकिन
पेंचर वाला बोला, रात में अगले पहिये को खोलकर देखा था मुझे लगता है कि हवा भरकर पहिये
को कुछ देर तक छोड़ देते है यदि बारिश रुकने तक हवा कम हो गयी या निकल गयी तो फ़िर पहिये
को खोलकर देखना ही पडेगा। लेकिन 15—20 मिनट तक हवा जरा सी भी कम नहीं हुई तो यह पक्का
हो गया कि वालबोड़ी में ही कुछ ना कुछ गड़बड़ थी। तब तक बारिश भी लगभग रुक सी गयी थी,
महेश अपनी बाइक लेकर उसकी हवा चैक करवाने आ पहुँचा। दोनों बाइकों की हवा चैक कराने
के बाद हमने अपने बैग अपने कंधे पर लाद लिये और चम्बा व साच पास की ओर प्रस्थान कर
दिया।
चमेरा झील/लेक |
बनीखेत से चम्बा तक पहुँचने में घन्टा भर का समय ही लगा होगा। सुबह का समय व बारिश
होने के कारण सड़क पर कोई दिखायी नहीं दे रहा था। चम्बा से कई किमी (5-6) पहले ही उल्टे हाथ पर एक पुल दिखायी दिया। मुझे यह तो पता था कि साच
पास जाने के लिये हमें चम्बा से नदी पार करके उल्टे हाथ की ओर आना पडेगा, लेकिन मुझे
यह जानकारी नहीं थी कि यदि हमारे पास अपना वाहन तो क्या चम्बा जाये बिना भी उससे पहले
ही कोई पुल पार करके हम साच पास की ओर जा सकते है। जब हमने चम्बा से पहले यह पुल देखा
जिससे रावी नदी के पार जाया जा सकता था तो मैंने आगे चम्बा की ओर बढ़ने से पहले एक बार
किसी से यह पता करना उचित समझा कि हो ना हो यह पुल जरुर साच पास वाले मार्ग में मिलता
है।
हम पुल के पास बाइक रोककर खड़े हो गये। पुल के ऊपर से दो-तीन लोग पैदल आ रहे थे
पहले उनसे ही पता करना चाहा तो उन्होंने साच पास के बारे में ही अनभिज्ञता प्रकट कर
दी। इसके बाद हमने किसी पैदल बन्दे से साच पास के बारे में पता नहीं किया। कुछ मिनट
बीतने के बाद उस पुल के उस पार से एक जीप हमारी ओर आती दिखायी दी, जैसे ही जीप हमारे
सामने पहुँची तो मैंने जीप वाले को रुकने का ईशारा किया। जीप वाले ने वही जीप रोक दी,
उसके जीप रोकते ही हमने साच पास वाले मार्ग के बारे में जानकारी के लिये कहा।
उसने बताया कि आप इस पुल को पार कर सीधे निकल जाये। शाम तक आप सतरुन्ड़ी तक या किलाड़
तक भी पहुँच सकते है। यहाँ से 19-20 किमी आगे जाकर कोटी नाम की जगह आयेगी वहाँ आपको उल्टे
हाथ नकरोड़ के लिये जाना होगा। कोटी से नकरोड़ की दूरी 30-32 किमी है। कोटी से ही जम्मू के किश्तवार व डोडा इलाके
को जोड़ती हुई एक सड़क है लेकिन आतंवाद के कारण यह बन्द की हुई है। नकरोड़ से बैरागढ़ 40 किमी के करीब है। यहाँ हिमाचल सरकार का गेस्ट हाऊस
भी है यदि आप रात में रुकना चाहो तो मेरा मोबाइल नम्बर ले लो। मेरे पिताजी यहाँ के
एक्सन हुआ करते थे पिताजी इसी साल रिटायर हुए है लेकिन उनके नाम से ही कमरा मिलने में
कोई समस्या नहीं आयेगी। बैरागढ के बाद कालावन आता है यह इलाका एकदम निर्जन है यहाँ
इन्सान मुश्किल से ही दिखायी देता है।
जीप वाले से बहुमूल्य जानकारी मिलने के बाद हम कोटी की ओर बढ़ चले। इस पुल से दो-तीन
किमी आगे जाते ही एक तिराहा आया यहाँ से सीधे हाथ वाला मार्ग चम्बा जा रहा था उल्टे
हाथ जाने वाला मार्ग कोटी/ साच पास के लिये जा रहा था। हमारी बाइके कोटी की ओर दौड़ी
जा रही थी। समतल सड़क छोड़कर हमारी बाइके पहाड़ पर चढ़ने लगी, जैसे जैसे हम पहाड़ पर चढ़ने
लगे वैसे ही नीचे रावी नदी किनारे एक झील दिखायी देने लगी। यह झील चमेरा झील के नाम
से जानी जाती है चम्बा में रावी नदी का पानी रोककर बाँध बनाया गया है यहाँ इससे बिजली
बनायी जाती है। झील के ठीक ऊपर पहुँचकर आसपास के नजारे देखे। ऊपर से साफ़ दिखायी दे
रहा था कि झील किनारे बनी हुई सड़क पर पर्यटकों के मन बहलाने के लिये बहुत सारे प्रबन्ध
किये गये है।
झील के ऊपर से ही बाइक समेत फ़ोटो लिये गये। इसके बाद हमारी बाइके कोटी की ओर बढ़ने
लगी। जैसे-जैसे हम कोटी की ओर बढ़ते जा रहे थे वैसे ही पहाड़ की चढ़ाई भी बढ़ती ही जा रही
थी। बीच-बीच में कई गाँव आते गये, पीछे छूटते गये लेकिन हमारी यात्रा कोटी की ओर चलती
रही। कोटी से पहले एक दर्रे नुमा घाटी से होकर हम आगे बढ़ते गये। इस दर्रे नुमा घाटी
को पार करते ही सड़क पर ढ़लान आरम्भ हो जाता है। पहाड़ी मार्गों पर उतराई-चढ़ाई का सिलसिला
चलता ही रहता है, कभी उतराई लम्बी होती है तो कभी चढ़ाई लम्बी हो जाती है। कोटी तक मुश्किल
से 5-6 किमी की सड़क ही ढ़लान में दिखायी दी थी।
कोटी के तिराहे पर पहुँचकर देखा कि यहाँ से एक सड़क सीधे हाथ जा रही है जीप वाले
ने बताया था कि इसी सीधे हाथ वाले मार्ग पर जाना है उस समय यहाँ एक बस खड़ी हुई थी मैंने
बस चालक से पता किया उसने बताया कि साच पास के लिये यही सामने वाला सीधे हाथ वाला मार्ग
जा रहा है। वह बस बैरागढ़ तक जा रही थी। इस रुट पर बसे बैरागढ़ तक ही चलती है\ उससे आगे जाने के लिये मैक्स पिकअप जैसी जीप नुमा सवारियों
के भरोसे ही रहना पड़ता है। चलते-चलते हम नकरोड़ पहुँच गये। नकरोड़ पहुँचने से पहले ही
हमारे साथी बाइकर भूख से तिलमिला रहे थे। उनका इरादा तो पहले ही भोजन करने का था मैं
उन्हे थोड़ा सा आगे चलकर खायेंगे, कहता हुआ नकरोड़ तक ले आया था।
नकरोड़ में काफ़ी बड़ा बाजार है यहाँ जरुरत की हर वस्तु उपलब्ध है। हमारे रावत बन्धुओं
को बारिश से अपने बैग बचाने के लिये पन्नी वाले थैली की आवश्यकता महसूस हुई तो उन्होंने
पूरा बाजार छान मारा लेकिन उन्हे बैग बचाने के लिये इतनी बड़ी पन्नी नहीं मिली। असल
में हिमाचल में पन्नी के प्रयोग पर बैन है जिस कारण वहाँ बड़े-बड़े तिरपाल तो मिल रहे
थे लेकिन छोटी प्लास्टिक/पन्नी वाली थैलियाँ नहीं मिल रही थी। एक ढ़ाबे पर दही व पराठे
बनवाकर खाये गये। मैंने खाना खाते समय साथ ही यह भी बोल दिया था कि अब रात होने से
पहले किसी ने भोजन के लिये कहा तो रात के खाने का खर्च उसके पल्ले पड़ेगा।
सुबह के 11 बज रहे थे इसलिये हम शाम होने
से पहले किलाड़ जाने के प्रति निश्चित थे। नकरोड़ से निकलने के बाद सड़क किनारे सुन्दर-सुन्दर
नजारे देखकर बार-बार बाइक रोकनी पड़ रही थी। जहाँ भी बढ़िया सी लोकेशन दिखायी देती वही
बाइक रोक देते और फ़ोटो लेने लग जाते। इस तरह चलते-चलते हम लोग एक ऊँची जगह के घने जंगल
से होकर निकल रहे थे कि घनघोर वन देखकर एक बार फ़िर फ़ोटो सेशन करने को मन मचल पड़ा। यहाँ
पर चारों का फ़ोटो एक साथ लेने के लिये बैग से ट्रायपोड़ निकाला गया था। ट्रायपोड़ का
प्रयोग हमने लुधियाना के पास भी किया था जहाँ हम चारों का एक साथ फ़ोटो आया था। इस घने
वन में कैमरे को टाइमर पर लगाकर मैं भी भागकर तीनों के पास जा पहुँचा था।
जंगल के फ़ोटो लेने के बाद हम लोग वहाँ से बैरागढ़ की ओर बढ़ने लगे। बैरागढ़ से पहले
एक नदी का पुल आता है इस पुल को पार करने के बाद जिस जोरदार चढ़ाई का आरम्भ होता है
उस चढ़ाई का अन्त साचपास के टॉप पर पहुँचकर ही होता है। पुल पार करने के बाद हम दे दनादन
चढ़ते ही जा रहे थे। हम सड़क के मोड़ दर मोड़ पार कर ऊपर चढ़ते जाते लेकिन पुल था कि दिखायी
देना बन्द नहीं हो रहा था। यह पुल घन्टे भर की बाइक यात्रा के बाद भी दिखायी देता रहा।
कई जगह रुककर इस पुल के फ़ोटो लिये गये थे। बैरागढ़ में एक स्कूल दिखायी दिया। यहाँ एक
जगह बैठे हुए थे तो एक स्थानीय बन्दा हमारे लिये पुलम जैसा दिखने वाला फ़ल लेकर आया।
हमने उसके दिये फ़ल का स्वाद लिया और वहाँ से आगे बढ़ गये।
बैरागढ़ पार करने के बाद एक जगह दो पुलिस वाले गाडियों के पेपर चैक कर रहे थे। मैंने
इस बात का ध्यान ही नहीं दिया कि हो सकता है कि साच पास जाने वाले वाहनों का रिकार्ड़
भी रखा जाता हो। पुलिस वाला जब हमसे बोला कि कहाँ जा रहे हो? मैंने कहा कि आपके इलाके
में घूमने आये है। ना उसने हमें रुकने को कहा ना हमने वहाँ रुककर कुछ पूछना चाहा। चैक
पोस्ट वाली जगह से आगे जाते ही एक मन्दिर बना हुआ दिखायी दिया। यहाँ पर सड़क के दोनों
ओर आने वाले सैकडों किमी दूर के नगरों की दूरी भी लिखी हुई थी। इन दूरियों के फ़ोटो
लेने की चूक भला कैसे कर सकते थे? दूरी वाले बोर्ड़ के फ़ोटो लेकर हम आगे बढ़ते गये। आगे
जाते ही एक स्थानीय बाइक वाला बन्दा हमें मिला, वह बोला कहाँ जा रहे हो? मैंने कहा
साच पास देखने जा रहे है। कहाँ से आये हो? दिल्ली से! दिल्ली का नाम सुनकर ऐसा
चौका जैसे हमने उसकी इज्जत लूट्ने की बात कह दी हो। दिल्ली में किसी की इज्जत सही
सलामत नहीं है।
यहाँ बोर्ड़ से आगे की दुनिया एक अलग वीराने का आभास करा रही थी। जैसे-जैसे हम आगे
बढ़ते जा रहे थे पक्की सड़क समाप्त होकर कच्ची सड़क में बदल चुकी थी। अब तक तो बाइक ठीक-ठाक
गति से चलायी जा रही थी लेकिन अब कच्ची सड़क आने के बाद बाइक की गति घटकर 10-15 के आसपास रह गयी थी। सड़क किनारे लगे बोर्ड़ बता रहे
थे कि हम लोग कालावन नामक क्षेत्र से होकर निकल रहे है। यह कालावन नाम के अनुसार भी
एकदम सुनसान इलाका है यहाँ हमें मुश्किल से ही कोई पैदल यात्री/मजदूर दिखायी देता था। अभी तक बाइक पहले गियर में आसानी से चली आ रही थी
लेकिन बीच-बीच में ऐसी खड़ी चढ़ायी आने लगी कि मेरी बाइक दो सवारी को लेकर ऊपर चढ़ने से
मना करने लगी। साच पास तो अभी 15 किमी दूरी पर था यदि
यहाँ यह हाल है तो साच पास में क्या हाल होने वाला है? यह सोचकर मन में उथल-पुथल होने
लगी।
मैंने देखा कि मेरी बाइक जोर लगाने पर भी ज्यादा तेज नहीं चल पा रही है ध्यान गया
कि कही पहिये की हवा तो नहीं निकल रही है। एक बुग्याल जैसे
खुली जगह पर रुककर मैंने बाइक रोकी, बाइक के पिछले पहिये में हवा थोड़ी सी कम
दिखायी दे रही थी। इसलिये पम्प लेकर पिछले पहिये में हवा भर दी गयी। हवा भरने के
बाद पुन: साच पास के लिये चल दिये। कालावन समाप्त होते होते मार्ग में बर्फ़ के
बड़े-बड़े ढेर आने आरम्भ हो गये थे। बीच-बीच में पानी के
झरने भी हमें ड़राने के लिये आते रहते थे। पानी के झरने में सावधानी से बाइक निकाल
कर आगे बढ़ते जा रहे थे।
लेकिन अचानक आयी चढ़ाई पर पीछे बैठे मलिक को कई बार उतारना पड़ा। चढ़ाई समाप्त
होने पर मलिक का इन्तजार किया जाता, बाइक के पास पहुँचने तक मलिक का साँस फ़ूलकर
बुरा हाल हो चुका होता था। सामने ही सतरुन्ड़ी नामक जगह पर एक ढ़ाबा दिखायी दिया।
समय दिन के 2:30 मिनट हो रहे थे। विचार
होने लगा कि रात यही बितायी जाये या आगे चला जाये क्योंकि अगला ठिकाना साच पास
करने के बाद सतरुन्ड़ी से 30 किमी आगे गाहर दुनेई
नामक जगह पर मिलेगा। पहले साथियों ने चाय पीने की इच्छा व्यक्त की, चाय पीने के
बाद कोई फ़ैसला लिया जायेगा। (आगे की यात्रा अगले भाग में)
इस साच पास की बाइक यात्रा के सभी ले्खों के लिंक क्रमवार नीचे दिये जा रहे है।
12- रोहान्ड़ा सपरिवार अवकाश बिताने लायक सुन्दरतम स्थल
13- कमरुनाग मन्दिर व झील की ट्रैकिंग
14- रोहान्ड़ा-सुन्दरनगर-अम्बाला-दिल्ली तक यात्रा।
अपना पाँचवा साथी |
पुल |
जाटदेवता के नीचे पुल दिखायी दे रहा है। |
इस सड़क से पुल की ओर आये थे |
चम्बा की ओर की दूरियाँ |
साच पास, किलाड़, की ओर की दूरियाँ |
6 टिप्पणियां:
वहा सँदीप भाई जी सुबह सुबह यात्रा का वर्णन चलो नाश्ता और याँत्रा दोनो एक साथ हो जायेगी ।
लगे रहो...
हिमालय में छिपे, प्रकृति के सौन्दर्य पक्ष
Sandeep ji good going.
बेपनाह प्राकृतिक खूबसूरती ..........
मजा आ जाता है ऐसी जगहो पर बाईकिंग करके
Photos dekhkar man machal raha hai. Sachmuch hamara hindustaan bahut khubsoorat hai......
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