शनिवार, 20 अप्रैल 2013

Gauri Kund to manimahesh lake and parvat पार्वती/गौरी कुन्ड़

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-14                                                                        SANDEEP PANWAR


गौरीकुन्ड़ मणिमहेश यात्रा में मणिमहेश झील व पर्वत से लगभग एक किमी पहले ही पगड़न्ड़ी के किनारे उल्टे हाथ आता है। इसलिये ऊपर जाते समय पहले ही गौरीकुन्ड़ की यह छोटी सी झील भी देख लेनी चाहिए। वैसे हमने यह झील जाते समय नहीं बल्कि वापसी आते समय देखी थी लेकिन हम तीन बन्दों के अलावा अन्य सभी ने यह झील जाते समय ही देख ली थी इसलिये आप सबको भी गौरीकुन्ड़ की यात्रा पहले ही करा देते है। यात्रा के दिनों में यहाँ पुरुषों का आना मना है इसलिये पहली बार वाली यात्रा में मैंने यह झील बाहर से ही देखी थी अबकी बार हमने इस झील को किनारे पर जाकर अच्छी तरह देखा था। मणिमहेश की तुलना में यह झील उसकी आधी तो छोड़ो चौथाई भी नहीं लगती है। हमने इस झील के सभी कोणों से फ़ोटो लेकर अपनी संतुष्टि की थी। हम तो यहाँ यात्रा आरम्भ होने से लगभग महीने भर से ज्यादा समय से पहले ही आ गये थे। इसलिये यहाँ किसी किस्म की रुकावट नहीं थी। यहाँ से आगे चलने के तुरन्त बाद एक चाय की दुकान दिखायी देती है। हम भी सीधे हाथ वाले मार्ग बन्दर घाटी वाले से काफ़ी जल्दी पहुँच गये थे। इस दुकान पर पहुँवने से पहले हल्की-हल्की बारिश की बूँदाबांदी आरम्भ हो गयी थी। हमें वहाँ कुछ पन्नी पड़ी हुई दिखायी दी हमने इन पन्नी को ओढ़कर बारिश से अपना बचाव किया था। ऊपर वाले का शुक्र/शनि जो भी हो सही रहा कि बारिश कहर बरपाने से पहले ही बन्द हो गयी थी।




ऊपर आने पर हमें अपना कोई साथी आगे-पीछे दिखायी नहीं दे रहा था। पहले तो मैंने एक ऊँचे टीले पर चढ़कर चारों ओर देखा उसके बाद गौरीकुन्ड़ के नजदीक एक छप्पर में कुछ चहल-पहल दिखायी दी। हमारा अंदाजा था कि हो ना हो अपने सभी धरन्धर इसी दुकान में ड़ेरा जमाकर बैठे मिल जायेंगे। हम इस दुकान की ओर जाने लगे। आगे जाकर बर्फ़ ने हमारा मार्ग अवरुद्ध कर दिया। जिस कारण हमें काफ़ी घूमकर आना पड़ा। दुकान की ओर आते समय हमें एक पुल भी पार करना पड़ा। पुल पार करते ही यह दुकान आ जाती है। जैसे ही हम दुकान के सामने पहुँचे तो हमें वहाँ पर गाड़ी वाले व विधान के अलावा अन्य सभी धुरन्धर बैठे हुए मिल गये। दोनों मार्ग धन्छो से अलग होकर नदी के दोनों किनारों पर चलते रहते है। लगभग 6-7 किमी के बाद गौरीकुंड़ के पुल से आगे जाने पर इन दोनों मार्गों का पुन: मिलन हो जाता है। अन्य सभी लोग हमसे पहले आये हुए थे। इसलिये जब तक हम वहाँ पहुँचे, वे गर्मा-गर्म चाय का स्वाद चख चुके थे। चूंकि मैंने आजतक चाय नहीं पी है तो फ़िर जाहिर सी बात है कि यहाँ भी नहीं पी होगी, लेकिन मनु व संतोष ने गर्मा-गर्म चाय पीकर अपनी थकान कम करने की सफ़ल कोशिश जरुर की थी।

चाय के कार्यक्रम से निपटकर हम वहाँ से आगे बढ़ने की सोच रहे थे लेकिन यहाँ हमारी चिंता बढ़ने लगी अभी दिन छिपने में घन्टे भर का समय जरुर था लेकिन हमें अब भी विधान व गाड़ी वाले तीनों बन्दों में से कोई भी दिखायी नहीं दे रहा था। हमने चाय वाले को यह कहकर कि हमारे तीन/चार साथी अभी पीछे आ रहे है इसलिये जैसे ही वो यहाँ गौरीकुंड़ तक पहुँचे तो उन्हे हमारे बारे में बता देना कि हम ऊपर झील पर रुकने के लिये यहाँ से 5 बजे चले गये थे। जहाँ हम बैठे हुए थे वहाँ से पीछे ज्यादा दूर तक का दिखायी भी नहीं देता था। हमारी मंजिल अभी एक किमी की दूरी पर बची हुई थी। अब चढ़ाई बहुत ज्यादा नहीं थी आखिर के 300 मीटर ही चढ़ाई वाले दिखायी दे रहे थे। संतोष के लिये यह एक किमी भी भारी पड़ने जा रहे थे। मैंने अन्य सभी को कह दिया कि आप लोग ऊपर जाकर मौज करे हम संतोष के साथ धीरे-धीरे आ रहे है। अन्य सभी लोग अपनी-अपनी चाल से आगे निकल गये। संतोष ने लगभग आधी किमी की दूरी तो ठीक ठाक पार कर ली, लेकिन उसके बाद जैसे ही चढ़ाई आनी शुरु हुई तो उसने फ़िर से लेटना शुरु कर दिया। यहाँ हम भी उसके इन्तजार में बैठ जाते थे।

संतोष की हालत कुछ ऐसी हो गयी थी कि हमें ड़र सा लगने लगा कि कही कुछ उक-चूक हो गयी तो लेकिन ऊपर वाले के अंधविश्वास के साथ हम पहाड़ पर चढ़ते जा रहे थे। आखिरी के 500 मीटर में संतोष लगभग 5-6 बार लेटा होगा, हमने उसे बैठने से बिल्कुल नहीं रोका क्योंकि संतोष खुद भी हिम्मत हारता नहीं दिख रहा था संतोष एक मिनट आराम कर फ़िर से आगे बढ़ने लग जाता था। मैं और मनु उसके आसपास खड़े होकर उसके चलने की प्रतीक्षा करने लग जाते थे। यात्रा के आखिरी चरण में चलते हुए मनु को एक अच्छा सा मोबाइल पड़ा हुआ मिला। हमने वह मोबाइल उठाकर जेब में रख लिया। यहाँ हमने अपने साथियों के अलावा कोई अन्य तो देखा ही नहीं था इसलिये हमें लग रहा था कि हो ना हो यह मोबाइल अपने ही किसी बन्दे का है। लेकिन जिसका मोबाइल है उसे मोबाइल लौटाने से पहले इस लापरवाही के लिये सुननी भी पड़ेगी। ऊपर जाकर मालूम हुआ कि वह मोबाइल मराठे वाली पार्टी में से एक का था

जब अंतिम मोड़ आ गया तो वहाँ हमारे साथी खुशी से चिल्लाने लगे थे। हमारे साथी हमसे पहले ही वहाँ पहुँच गये थे। ऊपर जाकर पहले तो एक दुकान वाले से रात को रुकने व खाने की बात की। यहाँ हमें वही सरदारजी भी मिल गये थे जो घोड़े पर सवार होकर यहाँ आये थे। बाद में घोड़े वाले सरदारजी से बात करने के लिये उनके पास बैठे रहे, बातों बातों में उन्होंने बताया कि वह 65 साल के है और लगातार 8 साल से यहाँ आ रहे है। इन सरदार जी ने 12 ज्योतिर्लिंग व 4 धाम की यात्रा मेरी तरह पूरी की हुई है। लेकिन मुझमें और सरदार जी में एक अन्तर है कि ये भगवान में विश्वास के लिये यात्रा करते है जबकि मैं सिर्फ़ अपने शौंक के लिये घूमता/भटकता रहता हूँ। यहाँ घोड़े मिलने के घोड़े के बारे में हमें मालूम ही ना था इसलिये हमने राजेश जी व संतोष के पहले ही घोड़े कर लिये होते तो उन्हें इतना कष्ट ना झेलना पड़ता। अपना सामान रखने के बाद हमें झील किनारे बैठे हुए कुछ ही मिनट हुए थे कि हमें जोरदार ठन्ड़ लगने लगी। हमने भागकर दुकान वाले के यहाँ से कम्बल उठा लिये। हम झील के किनारे पर ही बैठे रहे, कुछ देर में ही दुकान वाले ने हमारे लिये गर्मा-गर्म मैगी बना कर हमें वही झील की चारदीवारी पर ही दे दी। अगले लेख में आप देखना कि रात को माइनस तापमान में हमने कैसे रात बितायी? सुबह जमी हुई झील में हम कैसे नहाये? (क्रमश:)

हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

संदीप , जैसे रोज अखबार का इंतजार रहता है वैसे ही रोज आप की पोस्ट का भी, पहले हफ्तों या महीनो इंतजार करना पड़ता था। और हाँ मैं भी मणिमहेश की यात्रा कर चूका हु आपका वर्णन याद ताज़ा करा देता है.

Vidhan Chandra ने कहा…

maza aa raha hai padhate hue.....thoda ghatanaon ko goonthate hue rochak banaye to achcha hoga!!

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