शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

Dancho to Bhairo Ghati धनछो से भैरो घाटी तक।

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-13                                                                        SANDEEP PANWAR

विधान दिल्ली वालों के साथ पीछे ही रह गया था। अकेला होने का मुझे यह लाभ हुआ कि मैं अपनी तेजी से चढ़ता चला गया। पुल से चलते ही पहली बार एक दुकान मिली थी लेकिन मुझे यहाँ कुछ खाने-पीने की इच्छा नहीं हो रही थी। मैंने दुकान की ओर देखते हुए अपना सफ़र जारी रखा। दुकान वाला ललचाई नजरों से मेरी तरफ़ देखता रहा। यहाँ दिन भर में मुश्किल से ही 10-12 बन्दे आ रहे होंगे जिस कारण इन 10-12 बन्दों में से एक बन्दा भी बिना कुछ खाये-पिये दुकान से आगे निकल जाये तो दुकान वालों पर क्या बीतती होगी? यह तो दुकान वाले के दिल से पता करना चाहिए। दुकान से आगे जाने पर अब लगातार हल्की चढ़ाई से सामना हो रहा था। मैंने धन्छों के पुल तक अपनी तेजी बराबर बनाये रखी। चूंकि मैं यहाँ पहले भी पधार चुका था इसलिये मुझे मालूम था कि यहाँ अब दुबारा से कठिन वाली चढ़ाई कहाँ जाकर आयेगी? अब एक किमी का धन्छो पार करने तक चढ़ाई की कोई समस्या नहीं थी। लेकिन जैसे ही धन्छो समाप्त होता है, वैसे ही चढ़ाई की नानी सामने दिखायी देने लगती है। यहाँ धन्छो से ऊपर जाने के लिये दो मार्ग हो जाते है। पहली बार मैं उल्टे हाथ वाले मार्ग से गया था। वापसी भी उसी मार्ग से आया था। इसलिये अबकी बार मेरा इरादा सीधे हाथ नदी का पुल पार कर, ऊपर जाने वाले मार्ग से यह चढ़ाई करने का था। 












यहाँ मैंने सीधे हाथ वाले मार्ग पर चलना शुरु कर दिया। इस मार्ग पर चलते ही नदी पर बना हुआ पुल पार करना होता है। मैंने पुल पार कर उस झरने की ओर सीधा चढ़ना शुरु कर दिया, जिस झरन के बारे में कहा जाता है कि यह वही झरना है जिसके नीचे भोलेनाथ भस्मासुर से अपनी जान बचाने के लिये भाग कर छुप गये थे। कहानी में मजेदार बात यह है कि वरदान मिलते ही भस्मासुर भोले नाथ के ही पीछे पड़ गया कि बेटे चल पहले तेरे सिर पर हाथ रख कर देखू कि तेरा दिया हुआ वरदान असर करता है या नहीं। भोलेनाथ कहानी अनुसार यहाँ झरने के नीचे छुप गये थे। मैं कई साल पहले यहाँ आया था तो झरने का स्वरुप कुछ और था अब इतने साल बाद आया हूँ तो इसका कायाकल्प हो चुका है। अब यह झरने जैसा लगता ही नहीं है। चूंकि यहाँ पहाड़ बेहद ही खड़ा है इसलिये नदी दे दनादन नीचे गहराई में गिरती जाती है। उसी चढ़ाई को पार करने में नानी याद आने लगती है। यह पहली चढ़ाई चढ़ने के बाद मुझे मनु व संतोष तिड़के जैसे ऊपर काफ़ी दूर दिखायी देने लगे। मैंने अंदाजा लगाया कि वे मुझसे अभी एक किमी के आसपास आगे चल रहे है। थोड़ी सी भूख भी लग रही थी इसलिये पहले भूख का इन्तजाम कियाबैग से एक बिस्कुट का पैकेट निकाल कर खाने के लिये एक बड़े पत्थर पर बैठ गया






मैंने आराम से बैठकर बिस्कुट का पैकेट खाया, उसके बाद मैने एक बार फ़िर ड़राने वाली भयंकर चढ़ाई पर चढ़ना आरम्भ कर दिया। यहाँ मैं अकेला था विपिन उल्टे हाथ वाले मार्ग पर चला गया था। मुझे सीधे हाथ वाले मार्ग पर ही जाना था। सीधे हाथ वाले मार्ग पर झरने के पास ही दो दुकाने मिली थी उसके बाद इस मार्ग पर आखिरी तक कोई दुकान नहीं मिली थी। सबसे आखिर झील पर जाकर ही दुकान मिली थी। जब मैं दुकान के आगे से निकल रहा था तो दुकान वाले आवाज दी थी कि आगे कोई दुकान नहीं है कुछ खाना-पीना है तो यही खा पी लेना। मैं तो अभी-अभी पेट-पूजा करके चला था इसलिये मैं बिना रुके चलता रहा। मेरा इरादा तेज चलकर आगे चलने वाले साथियों तक पहुँचने का था।








मैं सोच रहा था कि मुझसे आगे जाने पर, इस मार्ग पर मनु व संतोष मिल जायेंगे, दोनों आगे चल रहे हैं। मैं उन्हे एक घन्टे में पकड़ लूँगा। लेकिन लगता था जैसे वे भी मेरी तरह बिस्कुट खाकर चले थे दो घन्टे बाद जाकर वे मेरी पकड़ में आये थे। उनसे मिलने से पहले इस मार्ग में सुनसान पगड़न्ड़ी पर चलते समय मन में कई बार ऐसे विचार आते थे क्या रखा जीवन में, छोड़ों दुनिया दारी, और आ बसो कुदरत की गोद में। लेकिन कुदरत की गोद में सिर्फ़ 10-15 दिन ही अच्छी लगती है उसके बाद यही कुदरत काटने को दौड़ती हुई लगने लगती है। जब मैं मनु व संतोष के पास पहुँचा तो वे मुझे आते हुए देखकर कुछ देर बैठ गये। थोड़ी देर मैं भी उनके साथ बैठा रहा। उसके बाद हम धीरे-धीरे वहाँ से चलते रहे। यहाँ भैरों घाटी तक पहुँचते-पहुँचते संतोष की हालत ड़ावाड़ोल होने लगी थी। हमारी मंजिल अभी दो किमी दूर थी इसलिये अब मुझे इनका ज्यादा ड़र नहीं था। संतोष याद नहीं कितनी बार जमीन पर लेटा होगा? लेकिन वो भी हिम्मत वाला था थोड़ी देर बार खड़ा होकर आगे चल देता था।















मनु को देखकर लग रहा था कि यह भी पहाड़ की चढ़ाई में हिम्मत हारने वाला बन्दा नहीं है। हमने संतोष की चलने की गति से अपनी यात्रा जारी रखी। संतोष को पहाड़ों की अत्यधिक ऊँचाई पर होने वाली बीमारी हाई माऊँटेन सिकनेस ने अपनी पकड़ में ले लिया था। यही बीमारी नीरज को भी है। संतोष को हमने कहा थोड़ी-थोड़ी दूर चलता रह, और मौका लगते ही विश्राम करता रहो। आगे चलकर हमें बर्फ़ ने भी तंग किया था। मार्ग के ऊपर बर्फ़बारी के कारण मार्ग का पता ही नहीं चल रहा था। इसलिये हम बर्फ़ के ऊपर घूमकर आये थे। हमें पहाड के ऊपर से विपिन खाई के दूसरी ओर हमारे समान्तर चलता हुई दिखायी दे रहा था। हमने कई जोरदार आवाज लगाई उसमें से पता नहीं उसे कौन सी सुनायी दी थी लेकिन जब उसने पलट कर हमारी लिये हवा में हाथ हिलाया तो हमें पता लगा कि विपिन तक आवाज पहुँच गयी है। हमें विपिन वाले पहाड़ पर उससे बहुत आगे तीन-चार बन्दे और जाते हुए दिखायी दे रहे थे उनमें से एक विधान का दोस्त था। जो इस यात्रा में राजधानी वाली गति से सबसे पहले ऊपर चढ़ आया था। अगर मैं इस यात्रा का सबसे बड़ा धुरन्धर विधान के दोस्त को कहू तो मेरी बात को हमारी टोली में कोई नकार नहीं सकता है। हमने इस मार्ग में आने वाले बहुत सारे फ़ूलों के पौधे के फ़ोटो लिये थे यह फ़ूल ऊपर झील तक लगातार मिलते जा रहे थे। भैरों घाटी पार करने के बाद हमारी जान में जान आयी। भैरों घाटी के बाद अगला एक किमी का सफ़र लगभग मैदान में ही बीतना था। (क्रमश:)



हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पहाड़ पर सड़कें ऐसी लगती हैं जैसे किसी बच्चे ने पेन से घिचपिच कर दी हो।

संजय तिवारी ने कहा…

जाट देवता की जय हो,
भाई आपका नाम जिसने भी रखा सही रखा है। आप की यात्राएं हमें घर बैठे दुनिया की कठिनतम यात्राएं करा देती है। भोले शंकर की कृपा आप पर ऐसे ही बनी रहे।

जय मणिमहेश।

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