श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से श्रीनगर तक की हवाई यात्रा का वर्णन।02- श्रीनगर की ड़ल झील में हाऊस बोट में विश्राम किया गया।
03- श्रीनगर के पर्वत पर शंकराचार्य मन्दिर (तख्त ए सुलेमान)
04- श्रीनगर का चश्माशाही जल धारा बगीचा
05- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-निशात बाग
06- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-शालीमार बाग
07- श्रीनगर हजरतबल दरगाह (पैगम्बर मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित है।)
08- श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा राइड़ /सैर
09- अवन्तीपोरा स्थित अवन्ती स्वामी मन्दिर के अवशेष
10- मट्टन- मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर व ग्रीन टनल
11- पहलगाम की सुन्दर घाटी
12- कश्मीर घाटी में बर्फ़ीली वादियों में चलने वाली ट्रेन की यात्रा, (11 किमी लम्बी सुरंग)
13- श्रीनगर से दिल्ली हवाई यात्रा के साथ यह यात्रा समाप्त
SRINGAR FAMILY TOUR- 13
आज दिनांक 05-01-2014 को श्रीनगर यात्रा समाप्त हो रही थी। सुबह
जल्दी निकल कर खीर भवानी मन्दिर जाया जा सकता था। खीर भवानी मन्दिर मैंने अभी तक
देखा नहीं है। इस मन्दिर परिसर में पेड़ों का झुन्ड़ है वहाँ आसमान में देखने पर
भारत का नक्शा बना हुआ दिखायी देता है। बताते है कि यह नक्शा सालों से ऐसा ही है।
पेडों की टहनियाँ, इस नक्शे वाली जगह नहीं बढ पाती है। इस मन्दिर को देखने के लिये
श्रीनगर के तुल्लामुला में जाना पड़ता है। यह मन्दिर रंगने देवी का बताया जाता है।
इस मन्दिर में मई-जून महीने में आने वाले ज्येष्ठ अष्टमी को वार्षिक मेला लगता है।
कश्मीर में देखने
के लिये चटटी पदशाही गुरुदवारा भी अच्छी जगह है। सिक्खों के छठे गुरु कश्मीर आये
थे तो यही ठहरे थे। यह गुरुदवारा हरी पर्वत किले के नजदीक ही है। गुलमर्ग के लिये
दुबारा आना होगा। समुन्द्रतल से 2680 मीटर की ऊंचाई पर
स्थित गुलमर्ग के साथ खिलनमर्ग, सेवन स्प्रिंग और अलपत्थर भी जाया जायेगा। गुलमर्ग
में विश्व का सबसे ऊंचा गोल्फ़ कोर्स भी है। सर्दियों में यह स्थान हिमक्रीड़ा और
स्कीइंग के लिये जाना पहचाना नाम है। यहाँ गंडोला कार का लुत्फ़ लेने में अलग ही
रोमांच आता है।
समुन्द्रतल से 3000 मीटर ऊँचाई पर सोनमर्ग तो मैं घूम चुका हूँ
लेकिन बच्चों को भी एक बार घूमाया जायेगा। सोनमर्ग की सिंध घाटी यहाँ की सबसे बड़ी 60 मील लम्बी घाटी है। सोनमर्ग में थाजिवास
ग्लेशियर भी देखने लायक स्थान है। सोनमर्ग से आगे जोजिला दर्रे की चढाई देखकर मजा
आता है। कोकरनाग भी 2012 मीटर की ऊँचाई पर
मुगलों की बनवाई सुन्दर जगह है। यह जगह चश्मों अर्थात झरनों के लिये जानी जाती है।
कश्मीरी भाषा में नाग को चश्मा कहते है। ऐसी ही जगह वेरीनाग भी है। यहाँ 80 मीटर के दायरे में फ़ैले 8 कोण वाले ताल में चिनार के पेडों की लाइन से नजर हटाये
नहीं हटती है।
कश्मीर की इस
यात्रा में मैंने सिर्फ़ फ़ोन पर ही हाऊसबोट मालिक से बातचीत की थी। 4 दिन व 4 राते बीत गयी।
मैंने अभी तक एक पैसा हाऊसबोट मालिक को नहीं दिया था। सुबह आठ बजे मुददसर को कह
दिया कि हम सुबह 10 बजे यहाँ से हवाई
अडडे के लिये निकल जायेंगे। हाऊसबोट मालिक अपने घर पर रहता था। इसलिये उसे सुबह नौ
बजे हिसाब-किताब करने के लिये आने को कहा। मुददसर ने रात को भी पनीर की सब्जी बनाई
थी। सुबह के लिये आलू के पराँठे बनाने के लिये रात में ही कह दिया था।
बीती रात एक अन्य
परिवार भी हाऊसबोट में आया था। पिछली तीन रातों से हाऊसबोट में हम ही ठहरे हुए थे।
जो परिवार रात को 11:30 बजे आया था उसके
चक्कर में मुझे भी देर से नींद आ पायी थी। सुबह 8 बजे सोकर उठे थे।
आज दिल्ली जाना था। अब तो घर जाकर ही नहायेंगे। सुबह नौ बजे मुददसर ने गर्मा गर्म
पराँठे बना दिये। सबने जमकर पराँठे खाये। खा पीकर हाऊसबोट मालिक को कमरे में
बुलाया। 600+600 रु कार के हवाई
अडडे से लाने ले जाने के तथा दो दिन कार से घूमने के 3600 रु इसके अलावा 700 शिकारा राइड़ के। 1800 रु के हिसाब से चार रात का हिसाब रहने व खाने
का (7200 बना) कर दिया गया।
कुल राशि=7200+1200+3600+700=12700 रु का बिल हुआ। देखा जाये तो कश्मीर में इतना
कुछ पाने के लिये कोई ज्यादा बिल नहीं बना। इससे बड़ी बात कि अपनी जेब से एक पैसा
नहीं जाने वाला। सारा खर्चा वापिस मिल जायेगा। मुदद्सर को चलते समय मैंने अपने साथ
खाने के लिये ले जाये गयी गुड़ की ढहिया देकर कहा, लो यह रही तुम्हारी टिप। मुददसर
गुड़ की टिप पाकर ठगा सा रह गया। लेकिन जब सबने उसको 100-100 रु दिये तो उसका चेहरा खिल उठा। गरीब इन्सान
के लिये 100 रु बहुत होते है। 300 मिलने के बाद उस गरीब की खुशी देखी जा सकती
थी। अपना सभी सामान तैयार होते समय ही पैक कर लिया गया था।
जब हम वहाँ से चलने
लगे तो मैंने मुदद्सर से कहा, “क्या तुम यहाँ आने वाले का रिकार्ड़ नहीं लिखते।“
लिखते तो है सर जी। फ़िर हमारा रिकार्ड़ दिखाना कहाँ लिखा है? मुददसर चुप। अरे आप का
तो कुछ लिखा ही नहीं। अब लिख ले। बाद में कोई मेरा नाम लेकर तुम्हारे यहाँ आयेगा
तो उसे ज्यादा कीमत मत बताना। अरे हाँ, मैंने तो बुलबुल हाऊसबोट की बात की थी,
लेकिन यह रजिस्ट्रर तो फ़ीजी हाऊसबोट का है। जी यह फ़ीजी ही है, बुलबुल कहाँ है? उसमें अभी काम चल रहा है। यह नया व उससे
अच्छा है। मैंने लिखा पढी के बाद मुददसर को शिकारे बुलाने को कहा। कार को भी सड़क
पर पहुँचने को कहो।
शिकारे में बैठकर
हम अपने हाऊसबोट को अलविदा कह चले। सड़क पर पहुँचकर कार में सवार हो गये। कुछ ही
देर में झेलम नदी को पुल के जरिये पार करते हुए हवाई अडड़े पहुँच गये। श्रीनगर हवाई
परिसर में घुसते ही जबरदस्त चैकिंग से निकलना पड़ता है। कार से उतर कर अपना सामान
मशीनों से चैक कराना होता है। उसके बाद अपना सामान दुबारा कार में रख, आगे बढ सके।
हवाई अड़ड़े पहुँचकर कार चालक से कहा कि ये लो 100 रु अपनी छोटी
बच्ची को देना जो हवाई अड़ड़े से हमारे साथ गयी थी। अपना सामान लेकर हम हवाई अडडे
में प्रवेश करने के लिये चल दिये।
हवाई अड़ड़े में
घुसने से पहले हमारे पहचान पत्र देखकर ही अन्दर जाने दिया गया। अन्दर जाने के बाद
हमारे सामान को मशीनों से चैक किया। यहाँ सामान चैक करने के लिये हवाई कम्पनी के
हिसाब से मशीने लगायी गयी है। अन्दर जाने के बाद बोर्डिंग पास देने वाले के पास
गया तो उसने कहा कि आप की फ़्लाइट के लिये आधे घन्टे बाद बोर्डिंग पास जारी किये
जायेंगे। तब तक हम वहाँ पड़ी खाली कुर्सी पर बैठ गये। यहाँ पर हमें वह परिवार मिला
जो हमें चश्मेशाही व शंकराचार्य मन्दिर में मिला था। आधे घन्टे बाद, दुबारा
बोर्डिंग वाले के काऊँटर पर गया। काऊँटर क्लर्क को कहा कि हो सके तो दोनों बच्चों
को खिड़की वाली सीट दे देना। दोनों बच्चों को खिड़की वाली सीट मिल गयी। जब हमें
बोर्डिंग पास मिल गये तो मैं तो सोच रहा था कि यदि आज भी मौसम खराब होने से हमारी
फ़्लाइट कैंसिल हो जाये तो हमें एक दिन और ठहरने को मिल जायेगा वो भी फ़्री में।
समय बिताने के लिये
हम हवाई अडड़े की ऊपरी मंजिल पर पहुँच गये। वहाँ से हवाई पटटी दिखायी देती थी। कुछ
लोग फ़ोटो खींच रहे थे। मैंने तो सुना था कि श्रीनगर हवाई अडडे पर फ़ोटो लेना मना है
लेकिन लोगों को खुलेआम फ़ोटो लेते देख, मेरा माथा ठनका कि कुछ तो गड़बड़ है? मैंने
वहाँ मौजूद एक सैनिक से पूछा कि क्या यहाँ से फ़ोटो ले सकते है? उसने कहा। हाँ ले
लो। हवाई पटटी पर जाकर फ़ोटो नहीं लेना। ऊपरी मंजिल से मैंने कई फ़ोटो लिये। सामने एक
हवाई जहाज खड़ा था। जिसमें सामान लादा जा रहा था। जहाजों को देखते हुए हमारा समय
बीतता रहा।
एक घन्टे बाद एक
आदमी हमारी फ़्लाइट के बारे में बताने आया कि जो दिल्ली जाने वाली एअर इन्डिया
फ़्लाइट से जा रहा हो वह अपनी चैक इन करा ले। हम नीचे आने के बाद अपना चैक इन कराने
लगे। श्रीनगर हवाई अड़ड़े पर सिर्फ़ हैन्ड़ बैग ही साथ ले जाने की अनुमति होती है। बड़े
बैग बोर्डिंग पास लेते समय ही जमा करवा लिये थे। एक बार फ़िर हमारे पहचान पत्र
देखकर अन्दर आने दिया। सघन तलाशी के बाद हमें चैक इन कराया गया। लेपटॉप व कैमरे को
ऑन करा कर देखा गया। जिसका कैमरा या लेपटॉप आन नहीं होता होगा, उसके लिये तो
समस्या आ जाती होगी।
चैक इन करते समय एक
बन्दा सभी के टिकट देखकर बता रहा था कि आप बाहर जाकर अपना सामान चैक करा कर आओ।
मैं बाहर जाकर अपना सामान बता आया। बाहर अपना सामान बताते समय टिकट पर हरा निशान
लगाया जाता है। जिसका मतलब होता है कि इनके सामान में कोई दिक्कत नहीं है। यदि कोई
बन्दा अपने सामान में हरा निशान नहीं लगवायेगा तो उसका सामान हवाई जहाज में नहीं
रखा जायेगा। हमारे पास कुछ समय था जिसका उपयोग बैठकर किया गया। आखिरकार वह घड़ी आ
ही गयी जब हमें फ़्लाइट में जाने के लिये कहा गया।
हवाई अड़ड़े पर जहाज
में बैठने के लिये जाते समय एक-एक कर यात्रियों को निकाला गया। इसके बाद हवाई पटटी
पर भी हमारी तलाशी ली गयी। इतनी सुरक्षा देखकर अच्छा भी लगा। कश्मीर जैसी
संवेदनशील जगह पर अगर लापरवाही बरती गयी तो हवाई जहाज में घातक हथियार ले जाया
सकता है। श्रीनगर का हवाई अडड़ा दिल्ली की तरह बहुत बड़ा नहीं है। यहाँ पर सीढियों
के जरिये हम विमान में सवार हो गये। सीढियों पर चढने से पहले हमारे बोर्डिंग पास
से एक टुकड़ा अलग किया गया।
खिड़की की टिकट
बच्चों के लिये ली थी लेकिन उस पर मुझे बैठना था। आज जिस फ़्लाइट में सवार हुए थे।
वह चार दिन पहले वाले से नया विमान था। इसमें सभी सीटों पर छोटी सी स्क्रीन भी
लगायी गयी थी। जिस पर फ़िल्म व समाचार चल रहे थे। आवाज के लिये कानों में लगाने
वाली लीड़ भी रखी हुई थी। थोड़ी देर बाद जब सभी यात्री सवार हो गये तो एक उदघोषणा
हुई कि सभी यात्री अपने-अपने मोबाइल फ़ोन व इलैक्ट्रानिक यंत्र बन्द कर दे। मैंने
घर पर मम्मी को फ़ोन करने के बाद मोबाइल पहले ही बन्द कर दिया था। लेपटॉप पहले ही
बन्द था। बचा आखिरी हथियार कैमरा, वो कैसे बन्द हो सकता था? बिना कैमरे अपना
गुजारा नहीं होने वाला था। कैमरा बाहर निकाल लिया था। हवाई जहाज के अन्दर के फ़ोटो
लेने के बाद बाहर के फ़ोटो लेने शुरु कर दिये।
हवाई जहाज उड़ने से
पहले सुरक्षा के बारे में कुछ जरुरी बाते टीवी स्क्रीन के माध्यम से बतायी गयी। आखिरकार
हवाई जहाज उड़ान के लिये तैयार हुआ। पवित्र मेरे पास बैठा हुआ था। उसने अपनी बैल्ट
अपने आप बांधी थी। इस हवाई जहाज में मुझे सबसे बढिया चीज टीव स्क्रीन लगी। इस स्क्रीन पर गति,
दिल्ली से किमी में दूरी, जमीन से ऊँचाई के साथ बाहर का तापमान भी दिखाया जा रहा
था। जब हमारा हवाई चला तो मैंने इस स्क्रीन का पहला फ़ोटो लिया। उस समय इसमें गति 16 किमी, ऊँचाई 1600
मीटर व बाहर का तापमान 2 डिग्री सेलसियस व दिल्ली से ऊँचाई 643 किमी दिखायी गयी। जिसका अनुमानित समय 45 मिनट बताया
गया।
हवाई जहाज उड़ते समय, मुझे सबसे अच्छा पल वह लगता है जब जहाज
तेजी से चलकर जमीन से उड़ता है। ऊपर जाते समय नीचे के नजारे छोटे होते चले गये। जब
हमारा हवाई ऊपर आया और पीरपंजाल पहाडों के ऊपर पहुँचा तो मैंने इस स्क्रीन का
तीसरा फ़ोटो लिया। उस समय इसमें गति 720 किमी, ऊँचाई 7400 मीटर, बाहर का तापमान -39 डिग्री सेलसियस व दिल्ली से दूरी 557 किमी दिखायी
गयी। दिल्ली का अनुमानित समय 50 मिनट बताया गया।
जब जहाज स्थिर ऊँचाई पर उड़ने लगा तो सबके लिये चाय व
बिस्कुट लाये गये। जो चाय नहीं पीना चाहते थे उनहे काफ़ी दी गयी। आज केवल दो
बिस्कुट देकर काम चला दिया गया था। जब हमारा जहाज चन्ड़ीगढ के आसपास उड़ रहा था तो उस
समय इसमें गति 943 किमी, ऊँचाई 10100 मीटर व बाहर का तापमान -29 डिग्री सेलसियस व दिल्ली
से दूरी 237 किमी दिखायी गयी। जिसका अनुमानित समय 40 मिनट बताया गया। दूरी तो समझ आ रही थी लेकिन समय वाली बात कुछ
गड़बड़ लग रही थी।
जब हमारा जहाज दिल्ली की हवाई सीमा में घुसा तो उस समय
इसमें गति 546 किमी, ऊँचाई 2800 मीटर व बाहर का तापमान -2 डिग्री सेलसियस व दिल्ली
से दूरी 28 किमी दिखायी गयी। जिसका अनुमानित समय 8 मिनट बताया गया।
हवाई अड़ड़े पर पर हमारा जहाज आसानी से उतर गया। कोई खास झटका
नहीं लगा। जहाज से उतर कर उसी तरह वापिस आने लगे जैसे जहाज में बैठते समय जहाज में
घुसने लगे थे। अबकी बार हमें हवाई अड़डे से बाहर जाने वाले चिन्हों को देखते हुए
आना था। एक लम्बे से आटोमेटिक सीढी पर उतरकर अपना सामान लेने पहुँच गये। कुछ देर
में हमारा सामान हमारे सामने था। अपना सामान लेकर हवाई अडड़े से बाहर निकल आये।
हवाई अड़ड़े से बाहर आकर टैक्सी की जगह हवाई अडड़े से कश्मीरी
गेट बस अड़ड़े जाने वाली विशेष बस में बैठने की इच्छा थी। इस बस में किराया बीस
रुपये से शुरु होता है। हवाई अडड़े से कश्मीरी गेट तक का किराया 100 रु है। मैंने 100
रु के दो टिकट ले लिये। बच्चों का कोई किराया नहीं लगा। यह बस घरेलू हवाई अड़ड़े से
होकर भी निकलती है। जबकि हम अन्तराष्ट्रीय हवाई अड़ड़े उतरे थे। घरेलू हवाई अड़ड़े से
हमारी बस में एक बन्दा बंगलौर का बैठा था। वह बन्दा नेपाल से आया था और नई दिल्ली
उतर गया, वहाँ से ट्रेन पकड़ कर बंगलौर जाना था। मिन्टो रोड़ पर एक छक्का देखा। जिसे
देख मुझे भ्रम हुआ कि कही यह कोई औरत ना हो। वह एकदम औरत जैसा लग रहा था। हो सकता
है कि कोई औरत छक्का बनकर पैसा कमाने में लगी हो।
पवित्र को कश्मीर जाते समय पिज्जा खिलाने की बात कही थी।
श्रीनगर में हमें पिज्जा नईं मिल सका। कश्मीरी गेट बस अड़ड़े पर बस से उतरने के बाद
मैट्रो स्टेशन के नीचे बस अड़ड़े की तरफ़ बच्चों को पिज्जा खिलाया गया। हम चार थे दो
पिज्जा लिये गये। प्याज वाले पिज्जा लिये थे जिनकी दो की कीमत 104 रु थी। पिज्जा खाने के बाद 100 रु में ऑटो लिया। अंधेरा होने के बाद घर पहुँच गये। घर पहुँचते ही यह
यात्रा समाप्त हुई।
यह यात्रा यही
समाप्त होती है। (The end)
7 टिप्पणियां:
आम जन का व्यवसाय चलता रहे, उसे सियासत से क्या लेना देना। सुन्दर यात्रा, विस्तृत चित्रण।
एक सुन्दर यात्रा का सुन्दर स्मृतियों के साथ सुन्दर समापन। अगली यात्रा के इंतज़ार में..........
भाई राम राम, जितना सुन्दर आगाज उतना ही सुन्दर समापन भी हुआ इस कश्मीर यात्रा का,
वेलकम बैक...सुंदर सफरनामा...ये बरफ हवाई ट्रैक छोड़ के गिरती है क्या...
sandeep ji ram ram. july 2012 ko main kashmir gaya tha amarnath yatra par. tab maine kheer bhawani ke darshan bhi kiye the aur india ka map bhi dekha tha pedon par. mere pas uski photo bhi hai par vo yahan par post nahin ho rahi.
बहुत बढ़िया रही कश्मीर कि यात्रा ---और सस्ती भी
बहुत ही बढि़या यात्रा वर्णन वाकई क्या 18000/- रूपए में आप चारों की यह यात्रा हवाई टिकिटों सहित हो गई । यह राशि कश्मीर यात्रा पर चार जनों के हिसाब से बहुत सस्ती लग रही है।
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