जाट कौन हैं? यह प्रश्न बहुत ही सरल लगता है लेकिन इसका उत्तर उतना ही कठिन है। लेकिन फिर भी मैं इसका उत्तर ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर इस संक्षेप लेख में देने का प्रयास कर रहा हूं। जाट का शाब्दिक अर्थ तथा भावार्थ एकजुट होना है अर्थात् बिखरी हुई शक्ति को इकट्ठा करना या किसी कार्य को एकजुट होकर करने वालों को ही जाट कहा जाता है। इसीलिए पाणिनि ऋषि ने लगभग 4000 वर्ष पूर्व अष्टाध्यायी मैं जट् झट् संघाते लिखा है। जाट बुद्धिजीवियों ने जाट को परिभाषित करने के लिए अंग्रेजी में इसको इस प्रकार संधिच्छेद किया है- J का अर्थ justice अर्थात् न्यायप्रिय, A का अर्थ Action अर्थात् कर्मशील, T का अर्थ Truthful अर्थात् सत्यवादी। इन तीनों गुणों के मिलने पर सम्पूर्ण जाट कहलाता है, लेकिन जाट कौन है? प्रश्न ज्यों का त्यों खड़ा है।
मैं जाट हूँ मुझे जाट होने पर गर्व है लेकिन मैं दूसरों का भी उतना ही सम्मान करता हूँ जितना वह मेरा?
सबसे पहले हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि Yayat, Yat, Yet, Yeti, Yates, Yachi, Jat, Jatt, Jati, Jutes, Juton, Jaton, Jeth, Gat, Jatee, Gatak, Goth आदि इसी जाट शब्द के पर्यायवाची हैं जो केवल उच्चारण भेद के कारण हैं। यह सत्य है कि उच्चारण हर बीस कोस के बाद बदल जाता है। इसलिए पुरानी कहावत है- कोस कोस पर बदले पानी, बीस कोस पर वाणी। उदाहरण के लिए छोटे से हरियाणा राज्य में कहां शब्द को रोहतक क्षेत्र में कड़ै , अहीरवाल क्षेत्र में कठै, भिवानी क्षेत्र में कित तथा हिसार क्षेत्र में कड़ियां बोला जाता है। यही शब्द पंजाब में जाकर कित्थे और फिर जम्मू व हिमाचल प्रदेश में कुत्थे हो गया। इसी प्रकार ब्रज क्षेत्र में जाट को जाटन् तो पंजाब व डोगरी क्षेत्र में जट्ट या जट्टु हो गया। मध्य एशिया में जत्त-जती, इटली में गोथ, जर्मनी में गुट्टा तो चीनी भाषा में ‘याची’ हो गया। जिस प्रकार चीनी यात्री फाह्यान ने अपनी भारत यात्रा के वृत्तान्त में सिन्धु नदी को Sindhu न कहकर Shin-Tuh लिखा तो यमुना नदी को Poo-ha लिखा। ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि जाटों को पूरे संसार में अलग-अलग उच्चारण से बोलना स्वाभाविक है। इसका यहाँ में केवल एक ही प्रमाण दे रहा हूं-
सबसे पहले हमें यह स्पष्ट होना चाहिए कि Yayat, Yat, Yet, Yeti, Yates, Yachi, Jat, Jatt, Jati, Jutes, Juton, Jaton, Jeth, Gat, Jatee, Gatak, Goth आदि इसी जाट शब्द के पर्यायवाची हैं जो केवल उच्चारण भेद के कारण हैं। यह सत्य है कि उच्चारण हर बीस कोस के बाद बदल जाता है। इसलिए पुरानी कहावत है- कोस कोस पर बदले पानी, बीस कोस पर वाणी। उदाहरण के लिए छोटे से हरियाणा राज्य में कहां शब्द को रोहतक क्षेत्र में कड़ै , अहीरवाल क्षेत्र में कठै, भिवानी क्षेत्र में कित तथा हिसार क्षेत्र में कड़ियां बोला जाता है। यही शब्द पंजाब में जाकर कित्थे और फिर जम्मू व हिमाचल प्रदेश में कुत्थे हो गया। इसी प्रकार ब्रज क्षेत्र में जाट को जाटन् तो पंजाब व डोगरी क्षेत्र में जट्ट या जट्टु हो गया। मध्य एशिया में जत्त-जती, इटली में गोथ, जर्मनी में गुट्टा तो चीनी भाषा में ‘याची’ हो गया। जिस प्रकार चीनी यात्री फाह्यान ने अपनी भारत यात्रा के वृत्तान्त में सिन्धु नदी को Sindhu न कहकर Shin-Tuh लिखा तो यमुना नदी को Poo-ha लिखा। ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि जाटों को पूरे संसार में अलग-अलग उच्चारण से बोलना स्वाभाविक है। इसका यहाँ में केवल एक ही प्रमाण दे रहा हूं-
A
Russian historian, K.M. Safequadrat, delivered a speech in the international
congress at Moscow in Aug. 1964, which was published in Indian Newspaper. He
said, “I studied the histories of various sects before I visited India in 1957.
It was found that Jats live in an area extending from India to Central Asia and
Central Europe. They are known by different names in different countries and
they speak different languages but they are all one as regards their
origin.”
अर्थात् रूसी इतिहासकार के.एम. सेफकुदरात ने अगस्त 1964 में मास्को में एक भाषण दिया जो भारतीय समाचार पत्रों में भी छपा था और उसने कहा, “मैंने 1967 में भारत की यात्रा करने से पहले इतिहास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया और पाया कि जाट भारत से मध्य एशिया और मध्य यूरोप तक रहते हैं वे अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और वे भाषाएं भी अलग बोलते हैं। लेकिन उन सभी का निकास एक ही है।” इसलिए जाट कौम एक ग्लोबल नस्ल है। लेकिन जाट है कौन? यह अभी तक अनुत्तरित है ।
सारे संसार में मुख्य तौर पर जाट के दो ही रूप रहे हैं किसान और सैनिक। इन दोनों के कार्यों से जाट के चरित्र का निर्माण हुआ। किसान ईश्वर पर सबसे अधिक भरोसा करने वाला है और यह विडम्बना ही रही है कि ईश्वर की विपदाओं को सबसे अधिक इसी ने झेला है। लेकिन इन्सानी अत्याचार और अन्याय का प्रतिवादी है। सैनिक इन्सानी अत्याचार व हमलों का घोर प्रतिवादी लेकिन अनुशासनप्रिय के साथ-साथ विजय उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य रहा है। किसान और सैनिक दोनों ही के कार्य अकेले न होकर एकजुट होकर करने वाले रहे इसलिए एकजुटता से ही जट और जाट कहलाए। इसी कारण जाट का चरित्र Justice-Action-Truthful बना तथा इसी बल पर इस कौम ने प्राचीन समय में संसार की बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ी और लगभग दो तिहाई संसार पर राज किया। कुछ इतिहासकारों ने याट या यादु से भी जाट शब्द की उत्पत्ति बतलाई है। महर्षि यास्क के ग्रन्थ में ‘जटायते इति जाट्यम’ अर्थात् जटायें रखने वालों को जाट बतलाया गया है। लेकिन जाट का धर्म क्या है?
धारण करने को धर्म कहते हैं, जाट का धर्म ईश्वर की एकीय शक्ति को स्वीकार करता है, पाखंडों का विरोध करता है। चित्र (मूर्ति) की जगह चरित्र की पूजा करता है तथा इसी आधार के कारण जाट अपने पूर्वजों के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। जहां तक घोषित धर्मों की बात है तो इसके प्राचीन दस्तावेज चीनी यात्री फाह्यान के वृत्तान्त में जाटों के धर्म की पहली बार बात आई है जो लगभग 1600 वर्ष पहले भारत आया था। उसने सबसे पहले अफगानिस्तान होते हुए स्वात घाटी (जहां आजकल पाकिस्तान में युद्ध छिड़ा है) में प्रवेश किया। उसके बाद पेशावर से सीधा मथुरा आया, वहां से बौद्धों के शहर बनारस फिर पटना और गया पहुंच गया। वहां से सीधा श्रीलंका गया और फिर समुद्र के रास्ते वापिस चीन को लौट गया। अफगानिस्तान से लेकर बिहार में गया तक के पूरे क्षेत्र को अंग्रेज अनुवादक James Leqqe ने जाट-जुट्स बहुल क्षेत्र लिखा है। जहां सभी जगह बौद्ध धर्म का डंका बज रहा था तथा जगह-जगह बौद्ध विहार बने थे जहां हजारों हजार बौद्ध भिक्षु रहते थे। इस क्षेत्र में कहीं जीव हत्या नहीं होती थी। नशे का नाम तक नहीं था, घी-दूध का अधिक प्रयोग होता था। केवल चाण्डाल जाति के लोगों को मछली पकड़ने का अधिकार था। इन्हीं लोगों में से काफी को पुजारी बनाया जा रहा था। कहीं-कहीं वैष्णव पंथ
(Sect) था जिसके लिए कुछ ब्राह्मण पुजारी थे लेकिन उन्होंने कहीं भी हिन्दू धर्म या हिन्दू शब्द का इस्तेमाल नहीं किया न ही पुराण, रामायण, महाभारत, गीता आदि का उल्लेख किया लेकिन बौद्ध धर्म साहित्य का बार-बार वर्णन आता है। इससे स्पष्ट है कि उस समय तक भारत में हिन्दू धर्म के नाम का प्रचलन तथा ब्राह्मण साहित्य का लेखन नहीं हुआ था। लगभग समस्त जाट कौम बौद्ध धर्मी थी। तो फिर हिन्दू शब्द और यह धर्म कहां से आया?
भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में बोलने की भाषा में कहीं भी ‘ट’ शब्द का इस्तेमाल नहीं होता वे इसे ‘त’ बोलते हैं। ये लोग ‘ट्रेन’ (रेलगाड़ी) को ‘त्रेन’ बोलते हैं। बिहार के मैथिली क्षेत्र में ‘ड़’ की जगह ‘र’ का प्रयोग होता है तो दक्षिण के मालाबार क्षेत्र में ‘ज’ की जगह ‘श’ का प्रयोग होता है। इसी प्रकार सिन्धु नदी के पश्चिम में रहने वाले क्षेत्र के लोग ‘स’ की जगह ‘ह’ शब्द का प्रयोग करते थे, इसलिए वे लोग सिन्धु को हिन्दू बोलते थे। जब आठवीं व नौवीं सदी में सिन्धु पार के क्षेत्र में इस्लाम फैला तो सिन्धु के पूर्व में रहने वाले लोगों को हिन्दू कहा जाने लगा, जो बाद में पूरे भारत में हिन्दू के नाम से प्रचलित हो गया। क्योंकि अरबी भाषा में ‘स’ की जगह ‘ह’ शब्द का उच्चारण होता है। सप्ताह को हफ्ता कहते हैं। इससे पहले न कहीं हिन्दू शब्द था तथा न ही हिन्दू धर्म । यह शब्द उच्चारण भेद के कारण था जो अलग-अलग क्षेत्रों में जाट के साथ हो रहा है। इसलिए फाह्यान ने कहीं भी हिन्दू धर्म का नाम तक नहीं लिखा है। मुगलकाल तक हिन्दू धर्म पूर्णतया प्रचलन में नहीं था ये सभी अंग्रेज आने के बाद और उनके इतिहासकारों ने सन् 1790 के बाद इसे एक धर्म के नाम से प्रचारित किया। इस धर्म को सनातन धर्म (सबसे प्राचीन धर्म) कहना हास्यास्पद है।
जाटों ने अपने चारित्रिक गुण एकीय ईश्वर मत के अनुसार मध्य एशिया में बौद्ध धर्म के बाद जाटों ने इस्लाम धर्म को अपनाया जो सिन्धु तक फैला तथा यूरोप में 16वीं शताब्दी के बाद जाटों ने कैथोलिक ईसाई धर्म अपनाया तथा अठारहवीं सदी में भारत के जाटों ने पंजाब में सिख धर्म को अपनाया। 1875 में आर्यसमाज की स्थापना के बाद भारत के शेष जाटों ने उसी निराकार एकेश्वर मत के अनुसार वैदिक धर्म अपनाया क्योंकि जाट चरित्र में मूर्ति पूजा का कभी कोई स्थान नहीं रहा।
लेकिन आर्यसमाज इस धर्म को कानूनी जामा पहनाने में पूर्णतया असफल रहा और जाट कौम को मंझधार में छोड़ दिया जिस कारण वे वैदिक धर्म की बजाए पाखण्डवाद की तरफ लौटने लगा और अपने को हिन्दू कहने लगा। जबकि स्वयं स्वामी दयानन्द जी ने हिन्दू शब्द का विरोध किया था लेकिन उन्हीं के अनुयायियों ने स्वामी जी की अवहेलना की। इस प्रकार जाट आज मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, कुछ जैन तथा शेष बिखरे हुए आर्यसमाजी और ब्राह्मणवादी हिन्दू हो गए। इसलिए अंग्रेजी इतिहासकार जे.सी. मोर ने लिखा है- ‘जाट कौम हिन्दुओं की जाति नहीं यह एक नस्ल है।’ ऐसे अनेक उदाहरण हैं। जाटों के धर्म के बारे में विस्तार से जानना है तो पाठक लै० रामस्वरूप जून की पुस्तक, हिस्ट्री ऑफ दी जाट्स पढ़ें। लेकिन फिर जाटों की नस्ल क्या है?
अभी तक सभी इतिहासकार इस विषय पर भ्रमित रहे हैं कि भारत में आर्य बाहर से आए जबकि अभी हाल के शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि आर्य लोग भारत के मूल निवासी हैं। (World History ...... 1992 by Jim
Schaffer and Mark Kenoyer)
महाभारत युद्ध के काल में सरस्वती नदी अपने सूखने की प्रक्रिया में थी जिससे युद्ध से प्रताड़ित लोगों के लिए सिंचाई की जमीन भी कम होती गई जिस कारण भारत से आर्य लोग दलों के रूप में मध्य एशिया, यूरोप तथा पाताल (अमेरिका) तक चले गए जिसमें अधिक ईरान क्षेत्र में आबाद हुए। जब राजस्थान का क्षेत्र भी बंजर हो रहा था तो काफी लोग दक्षिण भारत के जंगलों में जाकर आबाद होने लगे और खेती करने लगे जिन्हें आज द्रविड़ कहा जाता है। इनमें जो शारीरिक रंग परिवर्तन हुआ है वह भूमध्यीय रेखा क्षेत्र में रहने के कारण हुआ है। भारत में केवल दो तीन ही नस्लें हैं आर्य, आरमिनियन तथा मंगोलियन। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में मंगोलियन नस्ल पाई जाती है । बाकी शेष भारत के आदिवासी भी आर्य नस्ल के हैं। अरोड़ा पंजाबी आदि आरमिनियन व्यापारी हैं जो आर्यन में मिश्रण हो गया । इनको आप इण्डो-यूरोपियन भी कह सकते हैं। लेकिन किन्हीं कारणों से आदिवासी लोग समय-समय पर आर्य मुख्यधारा से अलग होते रहे और जंगलों में शरण लेने के कारण इनमें भी शारीरिक, सामाजिक व धार्मिक परिवर्तन होते रहे। भारत के आर्यों का मुख्य प्रस्थान लगभग 4000 से 5000 साल पहले हुआ जिसमें मुख्य रूप से बाहर जाने वाले जाट और गूजर थे। उस समय तक राजपूत नाम नहीं था जो 7वीं सदी के बाद आया। इसके बाद द्रविड़ संस्कृति तथा अन्य बाद में विकसित हुई हैं। वर्तमान में द्रविड़ संस्कृति तथा इण्डो-यूरोपियन संस्कृति का उत्तरी भारतीय आर्य संस्कृति पर हमला है।
कुछ इतिहासकारों ने जाटों को सिथियन नस्ल का लिखा है जिसका कारण उन्होंने आर्यों का बाहर से आना लिखा है। ईरान में सिंधु डेल्टा क्षेत्र को प्राचीन में शिव+स्थान= शिवस्तान कहा जाता था और इसी को आज सिस्तान कहते हैं और यहां रहने वालों को ही सिथियन कहा गया। इन लोगों ने जाटों का निकास मध्य एशिया तथा ईरान माना है इसी कारण जाटों को सिथियन भी लिखा गया है। जबकि आधुनिक World History 1992 से यह प्रमाणित है कि सिथियन भी आर्यन हैं। सबसे पुख्ता प्रमाण जाटों की शारीरिक संरचना कह रही है कि वे आर्यों में से शुद्ध आर्य हैं क्योंकि इस कौम में आज तक कम से कम मिश्रण हुआ है। (सिथियन इतिहासकार अब्दुल गाजी ने अपने को तार गोत्र का जाट माना है।)
जो जाट अपने को हिन्दू कहने में गर्व महसूस कर रहे हैं उन्हें स्पष्ट होना चाहिए कि जाट कौम बौद्ध रही है जो ब्राह्मणवाद के निशाने पर रही और ब्राह्मणवादी विचारधारा को न मानने के कारण ब्राह्मणों ने अपने ग्रंथों- स्कन्द पुराण, भविष्य पुराण तथा पद्म पुराण आदि में जाटों को शूद्र लिखवाया और इन्हीं पोथों के आधार पर सन् 1932 में लाहौर हाईकोर्ट से जाटों को शूद्र घोषित करवाया। जबकि सच्चाई यह है कि जाट न तो शूद्र है और न हिन्दू है और न ही ब्राह्मणिक वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत है क्योंकि यह ग्लोबल नस्ल है। इसलिए यह किसी वर्ण में नहीं आता है, यह आर्यों की श्रेष्ठ नस्ल है। इसी कारण वर्तमान में जाट को हिन्दू कोड 1955 (हिन्दू मैरिज एक्ट) के तहत अधिक कष्ट झेलने पड़ रहे हैं। यदि जाट हिन्दू है तो फिर उसको अपने ही हिन्दू कानून से विरोध क्यों? हिन्दुत्व का वर्तमान में बड़ा प्रचार हो रहा है जबकि इसका अर्थ स्पष्ट तौर पर आधुनिक ब्राह्मणवाद ही है और कुछ नहीं। इसलिए जाट स्वयं को हिन्दू कहना, लिखना शर्मनाक है।
यह लेख नीचे दिये गये लिंक से लिया गया है। फ़ोटो फ़ेसबुक से लिये गये है।
22 टिप्पणियां:
संदीप जी आपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी हैं. पर इस प्रस्तुति में कई झोल भी हैं. अभी पीछे एक सर्वे आया था, जिसमे भारत, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, लंका, नेपाल, यानिकी पुराने आर्यावर्त के लोगो के डीएनए सरंचना का अध्ययन किया गया था. इसमें ९८% जातियों की संरचना सामान थी. आर्य, द्रविड़ की थ्योरी यंहा पर फेल हो जाती हैं. कतिपय इतिहासकारों ने जाट, और गुर्जर समुदाय को सेंट्रल एशिया से आये हुए साइथियन या फिर सफ़ेद हुन या फिर शक बताया हैं. यह इतिहास हैं की भारत से ही आर्य समुदाय पूरी दुनिया में फैला हैं. जो आर्य यंहा से बाहर गए वे फिर वापिस भी आये. जाट और गुर्जर भी उन्ही में से एक हैं. रही बात हिन्दू धर्म की, यह धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म हैं. इसीलिए इसे सनातन धर्म भी कहा जाता हैं. हम सभी आर्य हैं. बोद्ध, जैन, सिक्ख आदि इस गुलदस्ते के खुबसूरत फूल हैं. यह सभी पंथ हैं, धर्म नहीं हैं, धर्म तो केवल एक हैं, सत्य सनातन धर्म. और यह बात कहना की जाट बाकी हिन्दुओ से अलग हैं. यह बिलकुल गलत और झूठी थ्योरी हैं. आज के समय में सभी हिन्दुओ को आपस में जोड़ने की बात करनी चाहिए , ना की अलग करने की. ठीक है जाति एक कटु सत्य हैं. कभी ख़त्म नहीं होगी. पर आपस में रोटी बेटी का सम्बन्ध भी जोड़ना पड़ेगा. जाति अपने घर तक और घर से बाहर हम केवल हिन्दू या फिर हिन्दुस्तानी बनकर रहे.वन्देमातरम...
जाटलैंड ! इस लेख की क्या आवश्यकता आन पड़ी भाई !
बढ़िया
'जाट की यारी और नौकरी सरकारी', किस्मत वालों को मिलती है....मैंने भी ये कहीं पढ़ा था|
भाई वैदिक धर्म के मुकाबले, बौद्ध काफी बाद में हुए हैं.. जब बुद्ध अवतरित हुए थे उसके 20 साल बाद तो पतंजलि अपना महाभाष्य लिख चुके थे, जिसमे रामायण और महाभारत का स्पष्ट उल्लेख है.... मतलब की तब तक राम और कृष्ण लोकप्रिय हो चुके थे... अब या तो जाट उससे पहले नहीं हुए थे या फिर जाट वैदिक धर्मावलम्बी थे या फिर धर्मविहीन...
ये जो नयी कांग्रेस सरकार द्वारा चलाई गयी NCERT की किताबों की थ्योरी है, इसे किसी विदेशी विद्वान् के सामने मत कह देना, हंसी के पात्र बनोगे .... जो यह सिखाती है की भारत की शुरुआत बौद्ध धर्म से हुई थी... फिर ऋग्वेद जैसा ग्रन्थ लिखने वाले कौन थे जिनकी संस्कृत जैसी भाषा पर पकड़ थी???
आजकल एक विचारधारा चल निकली है हिन्दू धर्म को ब्राह्मणवादी बताने की... जाट एक नस्ल है तो ब्राह्मण भी एक नस्ल है... DNA analysis में जो शुद्धता सारस्वत ब्राह्मणों की पायी गयी है, उसके समकक्ष ही शुद्धता तमिल ब्राह्मणों में पायी गयी है, इसका मतलब ये हुआ की ये सभी ब्राह्मण एक ही नस्ल के हैं, इस तरह ही राजपूत हैं... लेकिन नस्ल और धर्म में बहुत फर्क है... और ये भी तय है की एक ही नस्ल कई धर्मों में फैली है और एक ही धर्म कई नस्लों में...
जाट बौद्ध थे, तो उनमे से कुछ तो बचे होंगे... ये हास्यास्पद तर्क की कल को बताया जाये की बनिए युद्धप्रिय जाति थी... कौन मानेगा... और वो बौद्ध जिन्होंने चुराकर पुराणों और वेदों की नक़ल करने की कोशिश की... जो धर्म ईश्वर की सत्ता में यकीन नहीं करता ... वो कैसे जातक कथाओं में अवतार वाद को प्रश्रय देने लगा.... क्यूँ हीनयान , महायान की अपेक्षा वज्रयान बनाकर टोन टोटके करने लगा... और क्यूँ पाली छोड़कर संस्कृत पे लौट आया...
देश को उतना नुक्सान मुस्लिम आक्रान्तों से नहीं हुआ जितना बौद्ध धर्म की अहिंसावादी नीति से हुआ जो अशोक ने अपनाई और नतीजा भी इस धर्म ने ही सबसे ज्यादा भुगता (बामियान...नालंदा.....)
रही बात जाटों की तो जाट हूणों और ब्राह्मणों की संतानें हैं और जो कालांतर में राजपूतों की तरह अस्तित्व में आये.... अब नाम से समानता बतायी जाए तो गूजर अपने आपको को जोर्जिया (gujjar - georgia) के मूल निवासी बताते हैं तो अग्रवालों में मंगल गोत्र के अग्रवाल मंगल ग्रह के निवासी हो जायेंगे ??
जाट वहीँ हैं जिन्होंने ब्राह्मणों का साथ देते हुए स्वतंत्रता के समय आंबेडकर की आरक्षण नीति का विरोध किया था... अपने को ऊंचा मानने के चलते भरतपुर में दलितों को घोड़ी पर नहीं चढ़ने देते थे.. जात लिखवाने के समय स्वयं को क्षत्रियों में लिखवाने के लिए केंद्र में संघर्ष किया था... और आरक्षण के समय मंडल आयोग के सामने पिछड़े बन गए थे.... बौद्ध थे तो जात पांत कहाँ से आ गयी.. और गोत्र व्यवस्था क्यूँ नहीं छोड़ी...
किसी भी जाति या नस्ल में अपने मूल धर्म के स्वभाव कभी नहीं जाते... परिवर्तित मुसलमान कौन से तुर्क या पठानों से शादी कर लेते हैं... हिन्दू थे .. इस बात का असर तो दिखाई दे ही जाता है...
एक बात समझ नहीं आई... जाटों का जाटलैंड होगा, सिखों का खालिस्तान... नागों का नागालैंड... बोडो का बोडोलैंड... तो हिन्दुस्तान किसका होगा...
और फिर जाटलैंड बनाने के बाद उसमे से सिहाग का हिस्सा अलग कर देना, पवार का अलग, डूडी, तंवर ,बेनिवालों का अलग, जैसा राजस्थान में है जहाँ इनके गोत्र पे बसे गाँव आपस में सीधे मुह बात तक नहीं करते....
रीतू शर्मा जी, हिन्दुस्तान तो मुगलीस्तान बनने जा रहा है........कश्मीर, केरल, पूर्वी राज्य, देखते जाईये, धीरे-धीरे हिन्दुओं का पत्ता साफ़?????????????
धन्यवाद्...इसी बात का दुःख है की हिन्दुस्तान में हिन्दू कब रहेंगे, जो मूल सिन्धु, कावेरी के निवासी थे.... अंग्रेजो ने हर किसी की उत्पत्ति बाहर से बतायी है, मानो हिन्दुस्तान पहले वीरान हो...
kuch baat hai ki hasti{existance} mitati nahi hamari ,, sadiyon raha hai dushman dore jahan hamara
जाट भगवान् शिव की जट्टा से बने थे । जब माता पार्वती ने सती का रूप लिया था । तब भगवान् शिव ने तांडव किया था और उनकी जटाओ से जाट पैदा हुए थे ।
गुप्ता जी, आपकी टिप्पणी में आरएसएस का राजनीतिक प्रचार झलक रहा है. जबसे भारत की पिछड़ी जातियों ने तथाकथित अपरकास्ट को विदेशी बताना शुरू करके मूलनिवासी का आन्दोलन छेड़ा है. तब से आरएसएस का समर्थन करने वाले (मुख्यतः ब्राह्मण-बनिए) आर्यों को भारत का मूलनिवासी बताने लगे हैं. तिलक ने किताब लिख कर आर्यों को बाहर से आया हुआ माना था. राहुल सांस्कृत्यायन ने 'वोल्गा से गंगा' किताब में आर्यों को विदेश से आया हुआ बताया है. अंग्रेजी राज में ब्राह्मण खुद को बाहर से आया हुआ बताकर अंग्रेजों से एकता कायम करने में लगे रहते थे. डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया में भी आर्यों के बाहर से आने का ज़िक्र है. भारत में आर्य नस्ल बाहर से आई है, जिसने सिन्धु घाटी सभ्यता को बर्बाद कर दिया था. वर्ण का अर्थ है रंग. हिंदू शब्द बहुत पुराना नहीं है, यह शब्द आपको वेदों में नहीं मिलेगा. हिंदू धर्म के सभी त्यौहार भारत के मूलनिवासियों पर की गई हिंसा को सेलीब्रेट करते हैं. मूलनिवासी महिला होलिका को मार कर होली मनाते हैं, तो मूलनिवासी राजा महिषासुर को घोखे से मार कर दुर्गा पूजा मनाई जाती है. सभी देवी-देवता हथियारों से लैस दिखते हैं. भारत बहुत सारी नस्लों, संस्कृतियों और धर्मों का समुच्य है. हमें विविधता में एकता की बात करनी चाहिए. आरएसएस का समर्थन करने वाले(सामाजिक आरक्षण का विरोध करने वाले) कितने अपर कास्ट लोग अपनी लड़कियों की शादियाँ चूहड़े-चमारों से करने के लिए तैयार हैं? रोटी-बेटी के संबंधों से जातिवाद दूर होगा, सामाजिक समरसता आएगी तथा हिंदू धर्म भी मजबूत होगा!
अहिंसावादी बौद्ध धर्म दुनियाँ के 20से अधिक देशों में फैला हुआ है. जाट न तो ब्राह्मणों की संतान है न ही उनका ब्राह्मणवाद से कुछ लेना देना है. जाट - ब्राह्मण, वैश्य तथा क्षत्रिय नहीं है. पुराने समय से ब्राहण उसे शूद्र के तौर पर ट्रीट करते रहे हैं, कभी उसे वर्ण संकर कहते हैं तो कभी कुछ और! चौधरी देवीलाल को राजस्थान के मन्दिर में जाने से यह कहकर रोक दिया गया था कि वे शूद्र हैं. मनुवादी लोग जाटों का इस्तेमाल अपनी अवैतनिक पैदल सेना के तौर पर करते रहे हैं. कभी उन्हें आर्य समाज के नाम पर हिंदू फोल्ड में बनाए रखने की कवायद की गई तो कभी उनका इस्तेमाल दलित और मुसलमान से लड़ने में किया गया. जाट संस्कृति ब्राह्मणवाद से भिन्न है. यह सही है कि ब्राह्मणवाद के प्रभाव और बहकावे में आकर कुछ जाट भी उंच-नीच करने लगे हैं. डॉ अम्बेडकर और सर छोटूराम दोनों ही ने कमेरी जातियों का स्तर उपर उठाने में अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. धर्म के नाम पर की जाने वाली राजनीति असल में अपरकास्ट को फायदा पंहुचाने की पालिटिक्स है. ब्राह्मणवाद का असर मुसलमान और सिक्ख धर्म पर भी पड़ा है, इसकी वजह से वहाँ भी जातिप्रथा शुरू हो गई. मनुवादियों ने सबका शोषण किया है. धीरे-धीरे वैश्य, क्षत्रिय भी ब्राह्मण मंडली से बाहर आकर ब्राह्मणवाद से सीमित संघर्ष करने लगा है. आम आदमी पार्टी इसका उदाहरण है.
अगर रामायण बौद्ध धर्म से पहले की हैं तो रामायण में बौद्ध धर्म का उल्लेख कैसें ???
माना बौद्ध धर्म अति प्राचीन नही हैं
पर तथाकतिथ रामायण का निर्माण बौद्ध धर्म के बाद ही हुआ हैं!!
और रामायण के साथ साथ ही मनुस्मर्ति का निर्माण हुआ ! और फिर हिदुंत्व( बामणवाद) इस दुनिया में फैला !!
जबकी सबसे पुराना और मानवता वादी धर्म जाटों का वैदिक रहा हैं
वेदों की रचना जाटों ने की थी ! लेक्न आज कल की पुस्तकों मे वेदो को फी हिदुंत्व के अननसार लिख दिया हैं
धर्म पर लड़ने से कोई फायदा नही हैं
जाट हो जाट बनके रहों 🙏🙏
me ek rajput jati ki ladki hu humaye yaha bhi mamaji ne love marriage ki he jat ladki se. magar hume to esa nahi laga vo shudra he ya hindu nahi he ha me manti hu unme bhasha ko lekar kuch kami me magar ye log mehnat karte he ye sach he or ke jese chalak nhi hote or log jante he ye agar jagruk ho gaye to ek power ki tarah kam kar sakte he isliye inko pariciate nahi karte bade dukh ki bat he agar ye jag gaye to baniya pandit gaya fir. ha aap logo ko bolne me or shiksha me progess ki jarurat bahut he me is bat ko jarur manti hu tarike me sudhar ki jarurat he agar ise nahi badla to log apko isi tarah badnam karenge so pls devlop to yourself or sabse jaruri bat ladkiyo ka devlopment bahut jaruri he unko chardiwari me rakhna band karo unko aprociate karo. bura mat manana
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जिनको लगता है कि बुद्ध धर्म असली और हिन्दू धर्म काल्पनिक है तो पहले गूगल पर यह सर्च कर की सबसे पुरानी किताब अभी दुनिया मे कोनसी है।
दूसरी बात जाटो को शुद्र बोलो क्षत्रिय बोलो या वैश्य बोलो जाट तो जाट ही रहेगा।
जय जाट जय हिंदुत्व।
किसीको कुछ पूछना हो तो नंबर ये रहे हूं 9461049828
मैडम, वसुंधरा राजे ने जाट से शादी कि, झाडू सिंह फोगाट ने बोद (भिवानी) गाँव कि राजपूत लड़की से शादी की, जींद के जाट राजा कि शादी सांवड (भिवानी) जसवंत सिंह पंवार (राजपूत) कि लड़की से शादी की, नाभा के महाराजा कि पत्नी राजपूत थी, उनको कभी भी इस प्रकार कि कोई शिकायत नहीं हुई?
Gupta ji ye bat aapko usdin bolni chahiye thi jisdin haryana main 35 bnam 1 ka nara lagaya gya tha
जाट एकता जिंदाबाद।।
जाट देवता
Rajputs even marry with chamars. Ravan rajputs,
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