शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

अमरकंटक से भुवनेश्वर जाते समय ट्रेन में चोर ने मेरा बैग खंगाल ड़ाला

UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-23          SANDEEP PANWAR 
अमित शुक्ला पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन चलती बाइक व जंगलों में कम से कम मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध होने के कारण सम्पर्क ना हो पाना एक मुख्य वजह बन गयी थी। वैसे जीप चल चुकी थी चूंकि अभी मेरी बात अमित से हो ही रही थी अचानक मन में सोचा कि यार जो दो बन्दे 150 से ज्यादा किमी दूर से बाइक पर चलकर मुझसे मिलने आये है मैं सिर्फ़ दो घन्टे देरी होने से उनसे मिले बिना आगे निकल जाऊँ। मेरे अपने दिल ने कहा नहीं, चाहे 10 मिनट ही सही, लेकिन मिले बिना जाना बहुत गलत बात रहेगी। अभी तक वह मेरा ब्लॉग ही तो पढ़ता है आज एक प्रशंसक से एक दोस्त बनाकर जाऊँगा। मैंने अमित को कहा कि मैं बस अड़ड़े पर उस किनारे खड़ा हूँ जहाँ से पेन्ड़्रारोड़ वाली सड़क निकलती है। मैं जीप में सबसे आगे वाली सीट पर ही बैठा था जीप वाले ने मेरी बात सुनी ही थी इसलिये मेरे यह कहते ही जीप रोक दी थी कि मेरा दोस्त भी आने वाला है अब तो उसके साथ ही जाऊँगा। अगर यह फ़ोन 5-10 मिनट बाद आता तो शायद यह मुलाकात सम्भव नहीं हो पाती क्योंकि तब तक जीप कम से कम 4-5 किमी आगे निकल गयी होती! फ़िर इतनी दूर से कौन वापिस आता?


जीप से उतरने के बाद पुन: बस अड़ड़े पहुँच गया। वहाँ एक पेड़ की छाँव में बैठकर अमित की बाइक की इन्तजार करने लगा। मैंने अभी तक अमित को देखा ही नहीं था जिससे यह पता नहीं लग पाया था कि दो-तीन बाइक सामने से निकल गयी लेकिन उनमें अमित कौन सा है। अमित ने मुझे फ़ोन किया कि मैं बस अड़्ड़े पहुँच गया हूँ आप कहाँ हो? मैं सामने ही खड़ा था उन्हे अपनी लोकेशन बतायी तो हमारी मुलाकात हो गयी। अमित देखने में एकदम दुबला-पतला था मैंने मजाक में कहा कि बाइक चलाते हुए उडने का खतरा होता होगा! अमित की श्रीमती जी साथ थी उनसे भी राम-राम हुई। काफ़ी फ़ेर तक हम खडे होकर बाते करते रहे। अमित ने बताया कि वह कई बार अमरकंटक आ चुका है आज सिर्फ़ आपसे मिलने ही आया हूँ। अमित से मिलकर अच्छा लगा। हमारा यह फ़ोटो अमित की श्रीमती ने ही लिया था। बीते माह अ
मित के परिवार के साथ दिल्ली का लाल किला भ्रमण किया गया है।

अमित को बाय-बाय किया। उनका कार्यक्रम कपिल धारा देखकर वापिस जाने का था जबकि मुझे पेन्ड्रा रोड जाकर रात्रि विश्राम करना था। अमित अपनी बाइक और वाइफ़ लेकर कपिल धारा की ओर चला गया जबकि मैंने फ़िर से जीप तलाशनी शुरु की लेकिन अबकी बार जीप दिखायी नहीं दे रही थी लगता था कि सारी जीप यहाँ से सवारियाँ लेकर जा चुकी है। थोड़ी देर में एक बस आ गयी मैं उसी बस में सवार होकर पेन्ड्रारोड़ की ओर रवाना गो गया। सुबह यहाँ आते समय घुप अंधेरा था जिससे नजारे दिखे ही नहीं थे जबकि अब बस में खिड़की वाली सीट मिलने से सुबह की कसर पूरी होने जा रही थी। जब बस मोड़ों पर मुड़ती थी तो मुझे हिमालय में की गयी बस यात्राएँ याद आती थी। 

जंगल में एक जगह हमारी बस एक मुख्य सड़क छोड़कर दूसरी जगह मुड़ गयी। लेकिन आधा किमी जाने के बाद बस वाले ने बस वापिस मोड़ ली। यह माजरा समझ नहीं आया। सिर्फ़ इतना समझ में आया था कि शायद सवारियाँ उठाने के लिये बस यहाँ तक आयी होगी। जंगल में आगे बढ़ते हुए हमारी बस एक ऐसे मन्दिर के पास से निकली जहाँ पर अभी निर्माण कार्य चल रहा था। जब यह मन्दिर बनकर तैयार हो जायेगा तो बहुत वैभवशाली दिखायी देगा। चलिये यह मन्दिर जब तैयार होगा देखा जायेगा। अभी तो हमारी बस रेलवे फ़ाटक पार करती हुई पेन्ड़्रारोड़ स्टेशन की ओर बढ़ रही है। लेकिन यह क्या सुबह वाली बस तो यहाँ इस सड़क से सीधी चली आयी थी लेकिन यह तो उल्टे साथ मुड़ गयी है। चलिये देखता हूँ कि यह बस आखिर कहाँ ले जाकर छोड़ेगी?

बस ने पेन्ड़्रारोड़ रेलवे स्टेशन के एक कोने में लाकर छोड़ दिया जबकि सुबह वाली बस रेलवे स्टेशन के ठीक सामने वाले मार्ग से मुझे लेकर गयी थी। मैंने संवाहक से पूछा क्यों भाई सुबह के समय तो बस वहाँ से चली थी जबकि अब तुमने यहाँ रोक दी है ऐसा क्यों? रात में बाजार बन्द रहता है इसलिये वहाँ बस खडी करने में दिक्कत नहीं आती है लेकिन दिन में वहाँ भीड़ होती है बस वहाँ जा ही नहीं पाती है। ठीक है भाई, मुझे तो स्टेशन जाना है यह सामने ही दिख रहा है। मैं सीधा स्टेशन पहुँचा। स्टेशन के ठीक सामने मकानों की पहली लाईन में मैंने सुबह के समय ही एक गेस्ट हाऊस वाला बोर्ड़ देखा था। मै सीधा वही पहुँचा।

गेस्ट हाऊस में घुसकर आवाज लगायी तो एक 14-15 साल का लड़का बाहर आया। मैंने उससे कहा रात भर रुकने के लिये पलंग या कमरा खाली मिलेगी? उसने पहले तो मुझे ऊपर से नीचे तक जम कर घूरा। उसके बाद बोला कमरा तो मिल जायेगा नहीं-नहीं, पलंग मिलेगा। कमरे सारे बुक हो चुके है। ठीक है पलंग ही बता दो किस पर सामान रखना है क्योंकि मुझे बुखार है और सामान रखने के बाद सोने का मन कर रहा है। उसने कहा आपके पास पहचान पत्र होगा। हाँ है यह लो। सुबह 8 बजे की रेल से जाऊँगा, तब दे देना रख लो। उसने मेरा वोटर आईड़ी कार्ड़ अपने पास रख लिया। मैंने दीवार के साथ लगते पलंग पर अपना सामान रख उसमें से अपनी गर्म चददर निकाल कर ओढ़ ली।

मैंने उससे किराये के बारे में भी पहले ही पूछ लिया था कमरे का किराया मात्र 250 रुपये व पलंग का किराया 75 रुपये बताया था। उसको 100 रुपये देकर ही मैं सोया था। अभी शाम के चार बजने जा रहे थे। लगभग दो घन्टा गर्म चददर ओढ़ने के बाद मैंने पाया कि अब बुखार उतर चुका है शाम हो चुकी थी। मैंने कहा, खाने के बारे में कहाँ जाना पड़ेगा? उसने कहा कि गली के कोने में ही खाने की दो तीन दुकान है उनमें से किसी में भी खा लेना। मैं रात को 8 बजे खाना खाने के लिये बाहर आया। किनारे वाली दुकान से एक थाली भोजन चट करने के बाद ही वापिस आया। भोजन करने के उपराँत भोजनालय के सामने ही एक महिला मीठे मुरमुरे वाले लड़ड़ू बेच रही थी। उसने 10 रुपये की थैली बनायी हुई थी एक ठैली लेकर उसे खाता हुआ, कुछ देर तक स्टेशन पर घूमता रहा। उसके बाद रात को करीब नौ बजे ही मैंने सोने का फ़ैसला कर सो गया।

सुबह वैसे भी अपुन की जल्दी उठने की आदत है अत: सुबह 6 बजे ही आँख खुल गयी अभी ट्रेन जाने में दो घन्टे से ज्यादा का समय था। आराम से उठा, नहाया धोया, तैयार होकर बैठ गया। जहाँ मैं ठहरा हुआ था वहाँ पर अखबार की ऐजैन्सी भी थी सुबह ही अखबार के ढेर आ गये थे। कई कम उम्र के लड़के उन अखबारों को बाँटने के पहुँच चुके थे। मैंने अपना मोबाइल रात में ही चार्ज कर लिया था जिससे ट्रेन में मोबाइल की बैट्री की चिंता नहीं थी। लगभग 8 बजे मैंने वह गेस्ट हाऊस छोड़ दिया। ट्रेन में खाने-पीने के लिये ज्यादातर तली हुई चीजे ही मिलती है इसलिये मैंने स्टॆशन के बाहर ही खा पीकर आगे की यात्रा करने का फ़ैसला किया। स्टेशन के बाहर वाली एक दुकान में नाश्ते के रुप में एक अजीब से चीज मिल रही थी। उसकी एक प्लेट लेकर खायी गयी। लेकिन उसका स्वाद ज्यादा पसन्द नहीं आया जिस कारण दो समौसे और लिये गये। उन्हे खाने के बाद स्टेशन की ओर चल दिया।

स्टेशन पहुँचकर पता लगा कि जिस ट्रेन से मुझे आगे की यात्रा करनी है वह 45 मिनट की देरी से चल रही है। स्टेशन से बाहर निकल आया। स्टेशन के बाहर एक चाय वाला चाय बेच रहा था। मैंने उससे कहा एक गिलास दूध मिलेगा, उसने कहा कि मेरे पास डिब्बे वाला तरल दूध है चलेगा भाई जरा मीठा और गर्म कर देना। एक गिलास गर्म दूध पीने के बाद पेट बोलने लगा बस कर महाराज इतना खा लिया सुबह-सुबह कि अब रात तक कुछ खाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। दूध पीने के बाद फ़िर से स्टेशन पर आकर बैठ गया। यहां एक परिवार के बच्चे स्टेशन पर कच्चे चने खा कर उसके छिलके वही फ़ैकते जा रहे थे। इस बात पर सफ़ाई वालों ने काफ़ी हंगामा खड़ा कर दिया था। वैसे वहां बकरियाँ भी घूम रही थी। उन्होंने भी प्लेटफ़ार्म शुद्ध किया होगा लेकिन उसके बारे में कोई चर्चा नहीं की गयी।

जैसे ही अपुन की पुरी जाने वाली ट्रेन आयी तो अपना डिब्बा/कोच देखकर उसमें जा घुसा। दिन तो आराम से खिड़की के बाहर देखकर कटता रहा। रात को अंधेरा होते-होते हमारी ट्रेन राउरकेला पहुंच चुकी थी। अंधेरा होने के बाद बाहर का कुछ दिखायी ही नहीं देता है इसलिये ट्रेन की खिड़की से बाहर झांकने से क्या लाभ? सुबह ही इतना खा लिया था कि पूरा दिन कुछ खाने की इच्छा ही नहीं हुई। शाम को राउरकेला में प्लेटफ़ार्म में एक बन्दा दही भल्ले जैसा कुछ बेच रहा था लेकिन उसमॆं नमक की मात्रा बहुत ज्यादा थी। दुबारा से कुछ दही ड़लवायी गयी तब जाकर नमक का असर कम हो पाया। सुबह के समय महानदी को पार करते हुए हमारी ट्रेन अपनी मंजिल की ओर चलती रही।

सुबह भुवनेश्वर से 30-40 किमी पहले ही आँख खुल गयी थी। इसलिये उठते ही सबसे पहले फ़्रेश होने चला गया। जाने से पहले मैंने अपना बैग अच्छी तरह पैक कर दिया था। मोबाइल और पैसे मैं बैग में नहीं छोड़कर जाता हूँ। जब मैं शौचालय से वापिस आया तो देखा कि एक बन्दे ने मेरा पूरा बैग खाली कर दिया। उसने मेरे बैग की  एक-एक वस्तु की तलाशी ले डाली थी। मैं अपने सामने वाली सीट वाले बन्दे को बोलकर भी गया था लेकिन उनकी आँख लग गयी थी। जिस बन्दे ने मेरा बैग खंगाल मारा था देखने में अच्चा खासा पढ़ा लिखा लग रहा था। मैंने उसे जमकर सुनायी, सिर्फ़ दो-चार लात घूसे मारने की कसर बाकि बची थी।

उसने अपना बैग खोल कर दिखा दिया कि ये देखो मैंने कुछ नहीं निकाला है। वैसे भी बैग में सिर्फ़ कपड़े ही बचे थे उन्हे निकालने वो नहीं आया था। नकद नारायण व मोबाइल मेरे पास जेब में ही थे। उस बन्दे की तलाशी लेने के बाद हमने उसे वहाँ से भगा दिया। उसके जाने के बाद याद आया कि अरे बैग में 20-25 रुपये की रेजगारी/चिल्लर/खरीद पड़ी हुई थी। बैग में सामान रखने के बाद उसे तलाशा लेकिन वह नहीं मिल सका। जल्द ही भुवनेश्वर स्टेशन भी आ गया था। वैसे मेरा टिकट पुरी तक का था लेकिन साथी सवारियों ने सलाह दी कि यहाँ का लिंगराज मन्दिर भी देखते चले जाओ। नहीं तो इस मन्दिर को मैं वापसी में देखने की सोच रहा था। ट्रेन के भुवनेश्वर रुकते ही मैं भी वही उतर गया। चलो पहले लिंगराज मन्दिर ही देख ड़ालते है उसके बाद चिल्का झील, कोणार्क सूर्य मन्दिर व जगन्नाथपुरी वाला मन्दिर देखने चलेंगे। (यह यात्रा अभी जारी है।)

जबलपुर यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।


अमरकंटक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।

18-अमरकंटक की एक निराली सुबह
19-अमरकंटक का हजारों वर्ष प्राचीन मन्दिर समूह
20-अमरकंटक नर्मदा नदी का उदगम स्थल
21-अमरकंटक के मेले व स्नान घाट की सम्पूर्ण झलक
22- अमरकंटक के कपिल मुनि जल प्रपात के दर्शन व स्नान के बाद एक प्रशंसक से मुलाकात
23- अमरकंटक (पेन्ड्रारोड़) से भुवनेशवर ट्रेन यात्रा में चोर ने मेरा बैग खंगाल ड़ाला।

भुवनेश्वर-पुरी-चिल्का झील-कोणार्क की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
























7 टिप्‍पणियां:

Sachin tyagi ने कहा…

भाई तला हुआ खाना बहुत खा रह् हो कभी समौसे कभी अजीब सी चीज ओर बल्ले पापडी ओर कह रहे हो की रेल मे तली चीज मिलती है वाह सन्दीप भाई।
बढिया यात्रा वणर्न व चित्र।अमित से मिले ये अच्छा किया।

Prakash ने कहा…

संदीप भाई,
इस रूट पर महानदी सिर्फ कटक के पास ही आती है....

SANDEEP PANWAR ने कहा…

प्रकाश भाई महानदी सुबह के समय ही आयी थी, शाम की जगह सुबह कर दिया गया है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आहा॥ शानदार॥

राजेश लोहानी ने कहा…

मजेदार भाई जी ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पहले पेण्ड्रारोड में लोग स्वास्थ्य लाभ करने आते थे, यहाँ का चावल भी बहुत प्रसिद्ध है। सारे स्टेशनों के चित्र अपने लगे, बिलासपुर और चक्रधरपुर मंडलों में कार्य कर चुके हैं।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 24 सितम्बर 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! .

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