UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-2 SANDEEP PANWAR
अमरकंटक के उस चौराहे पर जाकर
रुका जहाँ से सीधे हाथ बस अड़ड़ा पहुँच जाते है पीठ पीछे अमरकंटक से तो मैं आया ही
था। उल्टे हाथ वाला मार्ग छत्तीसगढ़ व यही मार्ग आगे सीधे चलकर कपिल मुनी धारा
जलप्रपात के लिये चला जाता है। चलिये स्नान करने की बहुत जल्दी हो रही है पहले
कपिल धारा चलते है जो लगभग 40 मीटर की ऊँचाई से गिरता हुआ जल प्रपात है।
कपिल धारा इस चौराहे से मुश्किल से 7-8 किमी दूरी पर ही है।
यहाँ तक पहुँचाने के लिये ऑटो जैसी गाडियाँ आसानी से मिलती रहती है आप इन्हे अपनी
इच्छा अनुसार प्रति सवारी या फ़िर पूरी गाड़ी किराये पर तय करके ले जा सकते हो।
मैंने जल प्रपात तक का किराया पूछा तो बताया कि 10 रुपये
लगेंगे। मैंने कहा कि कितनी सवारी भरने के बाद चलोगे? उसने कहा कि कम से कम दस
सवारियाँ लेकर जाऊँगा, लेकिन जब काफ़ी देर 7 सवारी से ज्यादा
ना हुई तो वह इतनी सवारी लेकर ही आगे चल दिया।
अमरकंटक के उस चौराहे से एक-दो
किमी आगे जाते ही छत्तीसगढ़ में जाने वाला मार्ग उल्टे हाथ की ओर ढ़लान में चला गया
जबकि हम सीधे नाक की दिशा में चलते गये। 10-12 मिनट तक हमारी गाड़ी नुमा ऑटो जंगलों
में से होकर आगे चलता गया। आगे जाने पर एक जगह बड़ी सी पार्किंग आने पर उसने अपनी
गाड़ी किनारे पर रोक कर कहा लो जी यहाँ से आगे गाड़ी नहीं जाने देते है अब आगे की
यात्रा पैदल तय करनी होगी। मैंने उसका किराया चुकाने के बाद अपना बैग अपने कंधे पर
लाधा और आगे चल दिया। यहाँ कुछ फ़ुटफ़ाथिये दुकानदार चने व नमकीन मिलाकर बेच रहे थे।
लेकिन मैंने वापिसी के समय खाने के इरादे के साथ आगे चलता रहा। लगभग एक किमी की पद
यात्रा करने के बाद कपिल धारा का बोर्ड़ दिखायी दे गया।
यहाँ तक पहुँचने के दौरान
मेरा बुखार भी कुछ तेजी पकड़ने लगा था लेकिन अब नहाने के लिय मन उतावला हो चला था।
जैसे ही मैं कपिल धारा जल प्रपात के मुहाने पर पहुँचा तो आगे खाई को देखकर मेरे
आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी। मैंने अब तक इतनी गहरी खाईयाँ देखी है कि अब मुझे खाईयों
से ड़र नहीं लगता है लेकिन किसी नई जगह को देखकर आश्चर्य चकित होना लाजमी बात है।
मैंने ऊपर से कई फ़ोटो लेने के बाद नीचे जाने का मार्ग देखना शुरु किया। कुछ नवयुवक
जिनकी उम्र यही कोई 15-16 साल के आसपास रही होगी, उन्हे मैंने जलप्रपात के उल्टे हाथ वाली तीखी चढ़ाई
पर चढ़कर ऊपर आते हुए देखा। एक बार सोचा कि चलो यहाँ से नीचे जाया जाये लेकिन तभी
मुझे सामने पुल पार वाली तरफ़ कुछ लोग आते दिखायी दिये। मैं समझ गया कि पगड़न्ड़ी
वाला मार्ग उधर से ही है।
यहाँ पर कुछ आगन्तुक विश्राम
करने के लिये पेड की छाँव में बैठे हुए थे। कुछ पल रुकने के बाद मैंने वह पुल पार
किया यहाँ पुल पार करते समय मैंने नर्मदा में देखा तो थोड़ा अजीब लगा क्योंकि
नर्मदा कुन्ड़ से आगे का पानी तो रोका हुआ था फ़िर यहाँ पर कई ट्यूबवेल जितना पानी
कहाँ से आ रहा था। हो सकता है कि पहाड़ में किसी अन्य श्रोत का पानी यहाँ आ रहा
होगा। एक स्थानीय बन्दे ने मुझे बताया था कि जैसे जैसे आगे बढ़ते जायेंगे पानी की
मात्रा बढ़ती जायेगी। सबसे पहले जल प्रपात देखने के लिये नीचे घाटी में उतरना था
ऊपर ऊँचाई से कुछ खास दिख नहीं रहा था। इसलिये घाटी की ओर जाती हुई पगड़न्ड़ी पर
नीचे उतरना आरम्भ किया।
कुछ दूर तक समतल भूमि पर चलना
पड़ा, उसके बाद तेजी से नीचे ढ़लान पर उतरते चले गये। मेरे से आगे व पीछे काफ़ी लोग और
भी थे नीचे से ऊपर आते लोग साँस फ़ूलने के कारण बीच में खड़े होकर सुस्ता रहे थे।
धीरे-धीरे हम भी झरने के नजदीक जा पहुँचे। जिस जगह से झरने की पहली और सम्पूर्ण
झलक दिखती है वहाँ पर कुछ देर तक खड़े होकर झरने को निहारता रहा। स्थानीय औरते झरने
के नीचे खड़े होकर नहा रही थी नहाते हुए अपनी भाषा में कोई गीत भी गा रही थी। मैंने
वह गीत और झरने की रिकार्डिंग भी की थी लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से अपलोड़ नहीं हो
पायी है। सामने झरने था शरीर पर बुखार भले ही अपने चरम पर पहुँच चुका था लेकिन वह
मुझे स्नान करने से नहीं रोक पाया। जैसे ही औरते स्नान करके वहाँ से हटी तो मैंने झट से अपना बैग नीचे रखा और कुछ पल में
ही झरने के नीचे आती जोरदार बून्दों के नीचे जा घुसा।
झरने के नीचे घुसने से पहले
मैं सोच रहा था कि स्थानीय लोग जल्दी-जल्दी नहाकर हट क्यों रहे है? ज्यादा देर तक नहा क्यों नहीं रहे है? लेकिन जब मैं
स्वयं झरने के नीचे घुसा तो पाया कि इतनी ऊँचाई से गिरने के कारण पानी की बून्दों
से शरीर पर चोट लग रही है जिससे ज्यादा देर तक झरने के नीचे खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा
है। नहाते समय बुखार का कुछ ध्यान ही नहीं रहा था कि बुखार है या नहीं। मुश्किल से 5-7 मिनट में ही नहाने के अरमान ठन्ड़े हो गये। मैं सीधा झरने की धार या कहो धार की फ़ुहार के नीचे स्नान कर रहा था जबकि कुछ लोग धार से बचकर नीचे पानी के बहाव में बैठ कर स्नान के साथ धूप सेकने का मजा उठा रहे थे। नहाने के बाद मैंने अपना बैग उठाया और धूप में जाकर बैठ गया। कुछ देर धूप में बैठने के बाद मैंने अपने कपड़े धारण किये और वहाँ से प्रस्थान कर दिया।
झरने के ऊपर आने के बाद देखा कि वही सामने उल्टे हाथ पर कपिल मुनी जी आश्रम भी बना हुआ है। चलो अच्छा हुआ लगे हाथ इन मुनीवर का आश्रम भी देख लिया जाय। कपिल मुनी के आश्रम में पहुँचकर देखा कि यहाँ पर मुनीवर की बड़ी सी मूर्ति बनाई गयी है जिसको देखकर आने-जाने वाले लोग राम-राम कर रहे थे। मैंने कुछ पल इन गुरु के आश्रम में बिताये और वहाँ से वापसी की यात्रा आरम्भ कर दी। वापसी में पार्किंग तक तो आसानी से आ गया था पार्किंग के पास आकर मैंने चने वाले से चने बनवाकर खाये कुछ तो भूख ऊपर से स्वाद चने खाने में इतना स्वाद आया कि मैं दो प्लेट खा गया। इसके बाद अमरकंटक जाने के लिये गाड़ी तलाशनी आरम्भ हो गयी। काफ़ी देर तक कोई गाड़ी नहीं मिली तो सोचा कि चलो 6-7 किमी की ही तो बात है पैदल चलता हूँ।
मैं पैदल चलने की सोच ही रहा था कि तभी एक गाड़ी वाले ने अमरकंटक की आवाज लगायी और मैं सबसे पहले उस गाड़ी में जा बैठा। मेरे बैठते ही उस गाड़ी में बैठने वालों की लाईन लग गयी। अपनी क्षमता से अधिक सवारियाँ लेकर गाड़ी अमरकंटक के लिये चल पड़ी। मैंने अमरकंटक पहुँचकर मिलने वाले दोस्त को फ़ोन मिलाना चाहा। उनसे बात किये 4 घन्टे हो चुके थे। उनका मोबाइल कवरेज से बाहर बता रहा था। मैंने एक घन्टा उनका इन्तजार करना ठीक समझा उसके बाद भी वे नहीं आते है तो बिना मिले पैन्ड़्रारोड़ स्टेशन पहुँच जाऊँगा। स्नान करने के बाद बुखार थोड़ा शाँत है। इसका कोई भरोसा नहीं कि कब अपना तापमान बढ़ाने लग जाये? आधा घन्टा बाद बुखार फ़िर असर दिखाने लगा था।
झरने के ऊपर आने के बाद देखा कि वही सामने उल्टे हाथ पर कपिल मुनी जी आश्रम भी बना हुआ है। चलो अच्छा हुआ लगे हाथ इन मुनीवर का आश्रम भी देख लिया जाय। कपिल मुनी के आश्रम में पहुँचकर देखा कि यहाँ पर मुनीवर की बड़ी सी मूर्ति बनाई गयी है जिसको देखकर आने-जाने वाले लोग राम-राम कर रहे थे। मैंने कुछ पल इन गुरु के आश्रम में बिताये और वहाँ से वापसी की यात्रा आरम्भ कर दी। वापसी में पार्किंग तक तो आसानी से आ गया था पार्किंग के पास आकर मैंने चने वाले से चने बनवाकर खाये कुछ तो भूख ऊपर से स्वाद चने खाने में इतना स्वाद आया कि मैं दो प्लेट खा गया। इसके बाद अमरकंटक जाने के लिये गाड़ी तलाशनी आरम्भ हो गयी। काफ़ी देर तक कोई गाड़ी नहीं मिली तो सोचा कि चलो 6-7 किमी की ही तो बात है पैदल चलता हूँ।
मैं पैदल चलने की सोच ही रहा था कि तभी एक गाड़ी वाले ने अमरकंटक की आवाज लगायी और मैं सबसे पहले उस गाड़ी में जा बैठा। मेरे बैठते ही उस गाड़ी में बैठने वालों की लाईन लग गयी। अपनी क्षमता से अधिक सवारियाँ लेकर गाड़ी अमरकंटक के लिये चल पड़ी। मैंने अमरकंटक पहुँचकर मिलने वाले दोस्त को फ़ोन मिलाना चाहा। उनसे बात किये 4 घन्टे हो चुके थे। उनका मोबाइल कवरेज से बाहर बता रहा था। मैंने एक घन्टा उनका इन्तजार करना ठीक समझा उसके बाद भी वे नहीं आते है तो बिना मिले पैन्ड़्रारोड़ स्टेशन पहुँच जाऊँगा। स्नान करने के बाद बुखार थोड़ा शाँत है। इसका कोई भरोसा नहीं कि कब अपना तापमान बढ़ाने लग जाये? आधा घन्टा बाद बुखार फ़िर असर दिखाने लगा था।
मैं लगभग घन्टा भर उन दोनों की प्रतीक्षा में चौराहे पर लगे बोर्ड़ के सहारे बैठा रहा लेकिन वे नहीं आये। आखिरकार मैंने वहाँ से उठकर बस स्टैन्ड़ की तरह चलने का फ़ैसला कर लिया। वैसे तो पेन्ड़्रारोड़ जाने वाली बसे उस चौराहे से ही जा रही थी लेकिन मैंने बसों की भीड़ के कारण जीप से पेन्ड़्रा जाने का निर्णय कर लिया था। बस स्टैन्ड़ पर पहुँचने के बाद जल्द ही एक जीप मुझे मिल गयी जो बस से मात्र 10 रुपये ज्यादा लेकर पेन्ड़्रारोड़ की सवारियाँ ले जा रही थी। उस दिन वापसी जाने वाले लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी जिससे बस वाले भी आम भाड़े से 5 रुपये ज्यादा वसूल कर रहे थे। इस 5 रुपये के चक्कर में कई लोग बस वालों से उलझते हुए देखे गये थे। जीप चलने से पहले मैंने आखिरी बार अमित शुक्ला को फ़ोन लगाना चाहा लेकिन उनका मोबाइल अभी भी कवरेज से बाहर बता रहा था।
जीप वाला पूरी सवारियाँ लेकर ही जाने को तैयार था उससे मुझे कोई दिक्कत भी नहीं थी क्योंकि मेरी ट्रेन कल सुबह 8:30 मिनट की पेन्ड़्रारोड़ से थी मुझे रात भर पेन्ड़्रा में ही ठहरना था। लगभग 10 मिनट बाद जीप की लगभग सभी सीट सवारियों से भर गयी थी जीप वाला हमें लेकर चल भी दिया था लेकिन तभी एक सवारी कुछ दूर जाने के बाद उतर गयी जिससे जीप वाला वापिस जीप लेकर बस अड़्ड़े पहुँच गया। हमारे हिसाब से जीप पूरी तरह भर चुकी थी लेकिन जीप वाला कह रहा था कि अभी 2 सवारियाँ कम है। अब बस स्थानक पर खड़े हुए 5-6 मिनट बीत चुके थे कि दो सवारियाँ आकर जीप में बैठी ही थी कि तभी मेरा मोबाइल बज उठा। मोबाइल उठाकर देखा तो अमित शुक्ला जी का फ़ोन है।
अब इतना इन्तजार व बुखार के कारण मन कर रहा था कि फ़ोन सुनू ही नहीं, लेकिन सोचा कि चलो एक बार यह तो जान ही लू कि वे अभी दोपहर के दो बजे कहाँ तक पहुँचे है? मैंने हैल्लों आदि कुछ नहीं कहा, सीधा जवाब दाग दिया कि कहाँ तक पहुँचे? अमित ने कहा कि वे दोनों अभी नर्मदा उदगम स्थल वाले मन्दिर पर पहुँचे है। अब क्या किया जाये? जीप से उतरा जाये या चुपचाप बैठा रहा जाये, या फ़िर यहाँ रुक कर अमित को ढेर सारी खरी-खोटी सुनायी जाये। मैं इसी उधेड़बुन में था कि जीप वाला जीप लेकर चल दिया। उधर मोबाइल पर अमित मुझसे पूछ रहा था कि आप कहाँ हो? आखिरकार मैंने उसे बोल दिया कि मैं बस स्टैन्ड़ से जीप में बैठकर पेन्ड़्रारोड़ के लिये निकल रहा हूँ। क्या आपको लगता है कि अब भी हमारी मुलाकात हो पायेगी? (अमरकंटक यात्रा अभी जारी है।)
जीप वाला पूरी सवारियाँ लेकर ही जाने को तैयार था उससे मुझे कोई दिक्कत भी नहीं थी क्योंकि मेरी ट्रेन कल सुबह 8:30 मिनट की पेन्ड़्रारोड़ से थी मुझे रात भर पेन्ड़्रा में ही ठहरना था। लगभग 10 मिनट बाद जीप की लगभग सभी सीट सवारियों से भर गयी थी जीप वाला हमें लेकर चल भी दिया था लेकिन तभी एक सवारी कुछ दूर जाने के बाद उतर गयी जिससे जीप वाला वापिस जीप लेकर बस अड़्ड़े पहुँच गया। हमारे हिसाब से जीप पूरी तरह भर चुकी थी लेकिन जीप वाला कह रहा था कि अभी 2 सवारियाँ कम है। अब बस स्थानक पर खड़े हुए 5-6 मिनट बीत चुके थे कि दो सवारियाँ आकर जीप में बैठी ही थी कि तभी मेरा मोबाइल बज उठा। मोबाइल उठाकर देखा तो अमित शुक्ला जी का फ़ोन है।
अब इतना इन्तजार व बुखार के कारण मन कर रहा था कि फ़ोन सुनू ही नहीं, लेकिन सोचा कि चलो एक बार यह तो जान ही लू कि वे अभी दोपहर के दो बजे कहाँ तक पहुँचे है? मैंने हैल्लों आदि कुछ नहीं कहा, सीधा जवाब दाग दिया कि कहाँ तक पहुँचे? अमित ने कहा कि वे दोनों अभी नर्मदा उदगम स्थल वाले मन्दिर पर पहुँचे है। अब क्या किया जाये? जीप से उतरा जाये या चुपचाप बैठा रहा जाये, या फ़िर यहाँ रुक कर अमित को ढेर सारी खरी-खोटी सुनायी जाये। मैं इसी उधेड़बुन में था कि जीप वाला जीप लेकर चल दिया। उधर मोबाइल पर अमित मुझसे पूछ रहा था कि आप कहाँ हो? आखिरकार मैंने उसे बोल दिया कि मैं बस स्टैन्ड़ से जीप में बैठकर पेन्ड़्रारोड़ के लिये निकल रहा हूँ। क्या आपको लगता है कि अब भी हमारी मुलाकात हो पायेगी? (अमरकंटक यात्रा अभी जारी है।)
जबलपुर यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
अमरकंटक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
18-अमरकंटक की एक निराली सुबह
19-अमरकंटक का हजारों वर्ष प्राचीन मन्दिर समूह
20-अमरकंटक नर्मदा नदी का उदगम स्थल
21-अमरकंटक के मेले व स्नान घाट की सम्पूर्ण झलक
22- अमरकंटक के कपिल मुनि जल प्रपात के दर्शन व स्नान के बाद एक प्रशंसक से मुलाकात
23- अमरकंटक (पेन्ड्रारोड़) से भुवनेशवर ट्रेन यात्रा में चोर ने मेरा बैग खंगाल ड़ाला।
भुवनेश्वर-पुरी-चिल्का झील-कोणार्क की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
29- जगन्नाथ पुरी का खूबसूरत समुन्द्र तट जिसे देख गोवा याद आ गया।
30- जगन्नाथ पुरी से दिल्ली तक की यात्रा के साथ इस यात्रा का अन्त।
30- जगन्नाथ पुरी से दिल्ली तक की यात्रा के साथ इस यात्रा का अन्त।
ऊपर से नीचे झरने में पानी गिरने वाली जगह |
झरने की पहली झलक |
चलो झरने की ओर उतर चले |
झरने की ओर जाते हुए मन्दिर का शिवलिंग |
झरने की सामने से झलक |
नीचे झरने में स्नान करते लोग |
झरने की पूरी लम्बाई |
झरने के पीछे से |
बाय बाय |
कपिल मुनी |
अमरकंटक चौराहे का फ़ोटो |
अमरकंटक से पेन्ड़्रारोड़ के बीच एक मन्दिर निर्माण कार्य चालू था। |
7 टिप्पणियां:
वाह, छोटी पर धारदार धार।
भाई जगह तो बहुत सुन्दर है।ओर छोटी सी जल धारा इतनी ऊचाई से गिरेगी तो शरीर को चोट तो लगेगी ही।फोटो भी अच्छे आए है।बुखार मे पैरासीटामोल की गोली तो खा लेनी थी आपको।
Bhai Ji,,,, Ab to mil hi lo Amit Sukla seeee......
Bhai Ji,,,, Ab to mil hi lo Amit Sukla seeee......
बढिया यात्रा
बहुत ही सुंदर है झरना।
आखिरी फोटो मे आपने जो मंदिर बताया है, वो जैन मंदिर है और यहा भगवान महावीर की , विश्व मे सबसे बड़ी मूर्ति स्थापित की गई है।
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