UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-28 SANDEEP PANWAR
आगे बढ़ने से पहले जरा पुरी के बारे में थोड़ा प्रवचन हो जाये। कुछ इतिहासकार बताते है कि इस मन्दिर के स्थान पर एक बौद्ध स्तूप हुआ करता था। जिसमें गौतम बुद्ध का एक दांत भी रखा था। वही दांत बाद में कैन्ड़ी श्रीलंका पहुँचा दिया गया। यह घटना लगभग दसवी सदी की मानी गयी है। पुरी में होने वाली सालाना रथ यात्रा जुलाई माह में श्रावण से ठीक पहले विक्रम संवत अनुसार आषाढ पक्ष की द्धितीया को होती है। इस रथ यात्रा को देखने के लिये लाखों लोग यहाँ एकत्र हो जाते है। इस मन्दिर में एक विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाला महाप्रसाद तैयार करने के लिये सैकडों रसोईया काम में लगाये जाते है। जून/ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को यहाँ स्नान यात्रा होती है। नव वर्ष की खुशी में भी एक चन्दन यात्रा निकाली जाती है। इस मन्दिर में गैर हिन्दू लोगों का प्रवेश करना मना है।
जगन्नाथ का अर्थ जगत का स्वामी होता है। इसलिये इस मन्दिर को जगन्नाथ धाम कहा जाता है। पुरी का अर्थ स्थान/निवास होता है। वैसे भारत में सात पुरी बतायी जाती है। जिसे सप्त पुरी कहा जाता है। जिनके नाम है अयोध्या, मथुरा, काशी, उज्जैन द्धारका, हरिद्धार व कांचीपुरम है। इनमें से सिर्फ़ कांचीपुरम ही मैंने नहीं देखा है। पुरी के मन्दिर में जो तीन मूर्तियाँ है उनमें मुख्य मूर्ति जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), बलभद्र व इनकी बहिन सुभद्रा की काष्ट की बनी हुई है। भारत के जो मुख्य चार धाम है वे सभी विष्णु को समर्पित है। जबकि 12 ज्योतिर्लिंग भोलेनाथ के लिये है। अपुन ने यह 4+12 धाम देख लिये है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मन्दिर है। इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवाने के पक्के भक्त थे। उज्जैन में सुदामा श्रीकृष्ण अध्यापन स्थली संदीपनी आश्रम में इन्ही महाप्रभु की सभी बैठकों की विवरण तालिका चित्रमय बतायी गयी है।
पुरी बस स्टैन्ड़ से उतर कर फ़िर से उसी दुकान पर आ गया जहाँ चिल्का जाते समय बड़े व मटर की सब्जी खायी थी। दोपहर होने जा रही थी इसलिये पहले यहाँ से पेट पूजा करनी उचित लगी, उसके बाद शाम तक कुछ मिले ना मिले उसकी फ़िक्र नहीं रहेगी। यहाँ से खा पी कर मन्दिर की ओर चल दिया। यहाँ से ही रथयात्रा वाला चौड़ा मार्ग शुरु हो जाता है। बस स्टैन्ड़ से मन्दिर तक ऑटो मिलते रहते है लेकिन मेरा मन पैदल चलने का था। ट्रेकिंग करना मेरा जुनून है इसलिये मैं अपनी दैनिक जिन्दगी में साईकिल का प्रयोग अधिकतर कार्यों के लिये करता हूईँ ताकि हमेशा फ़िट रहू। अब तो बेचारी मेरी नीली परी भी महीने में एक दो बार ही स्टार्ट होती है। पैदल चलता हुआ मन्दिर की ओर बढ़ता रहा। आधा घन्टा भी नहीं लगा होगा कि मैं मन्दिर के सामने पहुँच गया। वैसे मन्दिर काफ़ी दूर से ही दिखायी देने लग गया था।
आगे बढ़ने से पहले जरा पुरी के बारे में थोड़ा प्रवचन हो जाये। कुछ इतिहासकार बताते है कि इस मन्दिर के स्थान पर एक बौद्ध स्तूप हुआ करता था। जिसमें गौतम बुद्ध का एक दांत भी रखा था। वही दांत बाद में कैन्ड़ी श्रीलंका पहुँचा दिया गया। यह घटना लगभग दसवी सदी की मानी गयी है। पुरी में होने वाली सालाना रथ यात्रा जुलाई माह में श्रावण से ठीक पहले विक्रम संवत अनुसार आषाढ पक्ष की द्धितीया को होती है। इस रथ यात्रा को देखने के लिये लाखों लोग यहाँ एकत्र हो जाते है। इस मन्दिर में एक विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाला महाप्रसाद तैयार करने के लिये सैकडों रसोईया काम में लगाये जाते है। जून/ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को यहाँ स्नान यात्रा होती है। नव वर्ष की खुशी में भी एक चन्दन यात्रा निकाली जाती है। इस मन्दिर में गैर हिन्दू लोगों का प्रवेश करना मना है।
जगन्नाथ का अर्थ जगत का स्वामी होता है। इसलिये इस मन्दिर को जगन्नाथ धाम कहा जाता है। पुरी का अर्थ स्थान/निवास होता है। वैसे भारत में सात पुरी बतायी जाती है। जिसे सप्त पुरी कहा जाता है। जिनके नाम है अयोध्या, मथुरा, काशी, उज्जैन द्धारका, हरिद्धार व कांचीपुरम है। इनमें से सिर्फ़ कांचीपुरम ही मैंने नहीं देखा है। पुरी के मन्दिर में जो तीन मूर्तियाँ है उनमें मुख्य मूर्ति जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), बलभद्र व इनकी बहिन सुभद्रा की काष्ट की बनी हुई है। भारत के जो मुख्य चार धाम है वे सभी विष्णु को समर्पित है। जबकि 12 ज्योतिर्लिंग भोलेनाथ के लिये है। अपुन ने यह 4+12 धाम देख लिये है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मन्दिर है। इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवाने के पक्के भक्त थे। उज्जैन में सुदामा श्रीकृष्ण अध्यापन स्थली संदीपनी आश्रम में इन्ही महाप्रभु की सभी बैठकों की विवरण तालिका चित्रमय बतायी गयी है।
इतिहास गवाह है कि यह मन्दिर कर्मचन्द गाँधी के प्रवेश ना करने के कारण पवित्र बचा रह गया। इसकी यात्रा ना करने का कारण गाँधी ने जात पात बताया है खैर कारण जो भी रहा हो। अच्छा हुआ गाँधी यहाँ नहीं आया, अन्यथा इस मन्दिर की पवित्रता भी समाप्त हो जाती क्योंकि इसी यात्रा में गाँधी पुरी आया था उसकी पत्नी ने तो यहाँ दर्शन कर लिये इससे गाँधी बहुत नाराज हुआ। उसने कस्तूरबा को बहुत ड़ांट पिलायी थी कि वहाँ क्यों गयी? जातपात के कारण यह मन्दिर अपवित्र होने से बच गया। धार्मिक पुस्तकों में गड़ंग मारा गया है कि जो बन्दा यहाँ तीन-दिन तीन रात ठहर ले तो वो जन्म मरण के चक्कर से छुटकारा पा जाता है। यदि ऐसा हुआ होता तो दुनिया कब की निबट गयी होती। सबको मोक्ष मिल गया होता! गुंडिचा मन्दिर में रथ यात्रा के दौरान मूर्तियों को रखा जाता है। गुंडिचा मन्दिर जगन्नाथ मन्दिर से 2 किमी दूरी पर बस अडड़े के पास में ही है। रथ यात्रा यही तक आती है।
पुरी के मन्दिर का निर्माण 12 वी शताब्दी में राजा चोड़ागंगा ने कराया था। इसका शिखर 65 मीटर ऊँचा बताया जाता है लेकिन इतना ऊँचा लगता नहीं है। सड़क किनारे मन्दिर की कई मीटर ऊँची चारदीवारी के साथ लगी दुकानों पर सामान जमा कराने की सुविधा दी गयी है। मैंने अपना सामान चप्पल भी अपने बैग में घुसा दी थी क्योंकि यहाँ का नियम थोड़ा अलग है यहाँ सामान बन्दे के हिसाब से नहीं, सामान की संख्या के हिसाब से पैसे वसूल किये जाते है। पैसे मेरी जेब में ही थे जबकि मोबाइल अलग से जमा कराया था। यहाँ 10 रुपये प्रति बैग या मोबाइल के लिये जाते है। मन्दिर में जाने से पहले जोरदार तलाशी लेते है मोबाइल भी अन्दर नहीं ले जाने दिया जाता है। पन्ड़े लोगों की लूट का कोई सबूत किसी के हाथ नहीं आना चाहिए। मन्दिर में घुसने के बाद सबसे पहले भगवान की मूर्ति के दर्शन करने पहुँच गया। उस समय जोरदार भीड़ थी। भीड़ होने का कारण बताया कि भगवान का परिवार दोपहर का भोजन करने में वयस्त है इसलिये भोजन के बाद दर्शन किये जायेंगे। हद है मूर्तियाँ भी भोजन करने लगी।
मुझे पुजारियों के इसी ढ़ोंग पर गुस्सा आता है भला भगवान को भोजन करने के लिये कमरा बन्द करने की क्या आवश्यकता है? पुजारियों के चक्कर में मेरे 15-20 मिनट बर्बाद हो गये थे। मैंने वहाँ से बाहर आने की कोशिश भी की थी लेकिन उस पतली सी गली में इतनी भीड़ हो गयी थी कि मैंने अपने स्थान पर खड़े रहना ही ठीक समझा। जिस जगह मैं खड़ा था उसके बराबर में लोहे की बड़ी-बड़ी ग्रिल थी महिलाएँ भीड़ से बचने के लिये उधर आती जा रही थी। मैं महिलाओं से पूरी तरह घिर चुका था। महिलाओं की अत्यधिक भीड़ और उनके बीच मैं अकेला फ़ंस गया। यदि मैं कृष्ण जी होता तो बात कुछ और होती लेकिन वे भी गोपियाँ नहीं थी। श्रीकृष्ण जी अपने परिवार सहित भोजन में लगा दिये गये थे। लगता था कि कृष्ण जी भी सोचते होंगे कि आज देखते है जाट कैसे बिना दर्शन किये वापिस जाता है? वापसी का मार्ग बन्द होने से मैंने दर्शन किया अन्यथा मैंने वापसी निकलने की पूरी तैयारी कर ली थी।
जब दर्शन आरम्भ हुए तो मेरे चारों ओर खड़ी महिलाओं व पुरुष में पहले दर्शन करने के लिये मारामारी मच गयी। मैंने एक खम्बे की आड में अपने आप को सुरक्षित रखा जब भीड़ कम हो गयी तो मैंने भी 20-25 फ़ुट की दूरी से तीनों मूर्तियों के दर्शन किये। चलिये आज भारत के चारों धाम के दर्शन भी हो गये। 12 ज्योतिर्लिंग भी इसी यात्रा में उज्जैन यात्रा में पूरे हुए थे। दर्शन के बाद मैंने मन्दिर से बाहर आने में जरा दी भी देर नहीं लगायी जबकि वहाँ से लोग बाहर आने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। मन्दिर में घूमने लायक बहुत कुछ था जितना भाग देखने के लिये खुला था उतना देख लिया गया था। फ़ोटो लेने पर प्रतिबन्ध था इसलिये मन्दिर के बारे में इससे ज्यादा प्रवचन नहीं दिया जायेगा। मन्दिर से बाहर आकर सामान वाले के पास पहुँचा, अपना सामान लेने के बाद मैंने पुरी के समुद्र तट देखने का फ़ैसला कर लिया। (यात्रा अभी जारी है)
भुवनेश्वर-पुरी-चिल्का झील-कोणार्क की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
सामने जो नारियल का पेड़ दिख रहा था वही बस अड़ड़ा है। |
5 टिप्पणियां:
jai sri krishna sandeep bhai.4+12 ka aakda chune ke leya badhayi.
जगन्नाथ स्वामी, नयनपथगामी, भवतु मे।
bhaut achha
Sandeep je aap ne mandir key ander lagne wala Anand bazar sey maha parsad khred kar khaya ya nahi.
आपको मन्दिर के दर्शन करने या सरे धाम करने का कोई फल नहीं मिलेगा क्योंकि आपनेभगवन के नहीं मूर्तियों के दर्शन किये हैं
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