EAST COAST TO WEST COAST-13 SANDEEP PANWAR
श्रीशैल से हैदराबाद जाने वाली बस आधा घन्टा पहले ही गयी थी दूसरी बस के बारे में पता लगा
कि सामने वाली बस कुछ समय बाद हैदराबाद के लिये प्रस्थान करेगी। बस परिचालक से हैदराबाद
के टिकट के बारे में व सीट के बारे में पता कर, सबसे आखिरी वाली
सीट पर जाकर अपना डेरा जमा दिया। यहाँ की बसों में सबसे पहली/आगे वाली सीटों पर बैठने
की मनाही है जिस कारण अपुन को सबसे आखिर की सीट पर जाकर बैठने में ही
अच्छा लगा। बस में बैठने के लिये सबसे आगे या सबसे आखिर की सीट
ही अपनी पसन्द आती है। श्रीशैल से चलते ही बस उसी कस्बे से होकर आयी व गयी जहाँ
गलती से मैं श्रीशैल समझ कर उतर गया था। यहाँ से आगे बढ़ने के कुछ किमी बाद हमारी बस
यहाँ के बाँध के किनारे से होकर चलती रही। बाँध के कई फ़ोटो लेने का मन था लेकिन सत्यानाश
हो बस के सफ़र का, जो बाँध के फ़ोटो नहीं ले पाया। बस बाँध वाली
नदी के किनारे पर कुछ आगे जाने के बाद एक पुल के जरिये नदी को पार करती है उसके बाद
फ़िर से बाँध की ओर दूसरे किनारे पर लौटने लगती है। यहाँ बाँध
के ठीक ऊपर आने के बाद बस बाँध को पीछे छोड़ मैदान की ओर मुड़ जाती
है।
अब हमारी बस हैदराबाद की ओर तेज गति से बढती जा रही थी बीच में कई छोटे-मोटे नगर आये-और पीछे छूटते
चले गये। बस सवारी की अदला-बदली कर आगे बढ़ती रही। हमारी बस दोपहर में लगभग एक बजे चली
थी। बस परिचालक ने बताया था कि हैदराबाद पहुँचते-पहुँचते शाम के सात बज जायेंगे। लगातार
छ घन्टे की बस यात्रा में बहुत कुछ देखने को मिल रहा था। यात्रा के मध्य
में एक स्थान पर बस चालक ने आधा घन्टा के लिये बस रोकी तो
मैंने थम्स अप की दो लीटर की चिल्ड़ बोतल ले ली। फ़रवरी माह में वहाँ की गर्मी से मेरा
बुरा हाल हो रहा था। मैंने बस चलने से पहले ही आधी से ज्यादा बोतल खाली कर दी। इसके
बाद लगातार ड़कार आने के कारण मेरी आँखों से भी आंसू निकल आये। लेकिन शुक्र रहा कि गर्मी
से घन्टा भर के लिये राहत मिल चुकी थी। सफ़र में छोटी-मोटी घटनाएँ होती रही लेकिन हैदराबाद
पहुँचने तक कोई बड़ी घटना नहीं हुई। रात को सवा सात बजे हमारी बस हैदराबाद पहुँच चुकी
थी हैदराबाद शहर इतना बड़ा निकला कि बस शहर में ही पौन घन्टा चलती रही तब कही जाकर बस
अड़्डे तक पहुँची थी।
बस अडड़े पहुँचकर सबसे पहले मैंने
बस अड़्ड़े से बाहर निकलने का मार्ग देखा, बस अड्ड़े से बाहर निकलते समय
एक आटो वाले ने मुझे टोका, मैंने रेलवे स्टेशन जाने के बारे में बात की तो उसने सौ रुपये किराया बोल दिया। जबकि मैंने बस में अपने साथ बैठी
सवारियों से पता लगा लिया था कि बस अड़्ड़े से स्टॆशन मुश्किल से तीन किमी भी नहीं है।
नारायण जी ने भी मुझे बताया था कि वहाँ बस स्थानक से रेलवे स्टेशन
पहुँचाने के आटो वाले को 50 रुपये से ज्यादा मत देना। जब मैं बस अड़ड़े के बाहर सड़क पर
आटो के इन्तजार में खड़ा था तो एक बुजुर्ग ने मुझे सलाह दी कि लोकल बस से मात्र 7/8
रुपये में ही स्टेशन पहुँच जाओगे। मैं बस से जाने के लिये बस स्टैन्ड़ पर खड़ा हो गया
तो एक आटो वाला मुझे मात्र 50 रुपये में ही स्टेशन छोड़ने पर मान गया तो मैंने बस से
जाने का इरादा त्याग दिया।
आटो वाला जैसे ही मुझे लेकर चला तो
वह एक बाजार के बीचे से होकर चलता रहा। उससे हैदराबाद के बारे
में कई बात पता चली। तभी उसकी बीबी का फ़ोन आया तो आटो वाले ने
मुझे अपना मोबाइल देकर बताया कि भाई जान आप मोबाइल पर मेरी बेगम से बात करके कहो कि
रफ़ीक भाई अपना मोबाइल मेरे पास भूल गये है वे गाड़ी लेकर काम पर गये है। बात करने के
बाद मैंने कहा, ऐसी क्यों कहलवाया? तो रफ़ीक बोला कि मेरी बीबी रात को काम नहीं करने
देती है फ़ोन कर-कर के मुझे घर बुलाती रहती है, मैंने कहा तुम्हारी
शादी को कितने दिन हुए हुए है। जवाब मिला दो महीने। फ़िर ठीक है रफ़ीक-
अभी कुछ महीने उसको रात भर तुम्हारी याद आयेगी। उसके बाद उस पर तुम्हारे अल्लाह
की मेहरबानी हो जायेगी और वो बच्चों की लाईन लगाने में ऐसी उलझेगी
कि फ़िर रात को तुम्हे तंग नहीं करेगी। जैसे ही रफ़ीक ने कहा कि लो जी स्टेशन आ गया तो
मुझे लगा कि आटो में मुश्किल दो किमी की यात्रा की होगी।
रफ़ीक को उसका
किराया देकर मैने अपना बैग उठाया और स्टेशन की ओर रुख करने से पहले खाना खाने के लिये
एक ढाबे में प्रवेश किया। होटल वाले से थाली के हिसाब से व रोटी के हिसाब से खाने के
दाम पता किये। उस समय वहाँ पराँठे बन रहे थे इसलिये मैंने भी थाली की जगह चार पराठे
खाकर अपनी रात भर की खुराक पूरी कर ली। मेरी ट्रेन चलने में अभी
डेढ घन्टा बाकि था इसलिये मैंने बाकि का समय वेटिंग हाल में बिताने के इरादे से स्टॆशन
परिसर में प्रवेश किया। यह वही शहर था जो मेरे आने के सप्ताह भर बाद बम धमाको से दहल
गया था। इस नगर की हैदराबाद की चार मीनार देखने की इच्छा थी जो इस यात्रा में पूर्ण
नहीं हो सकी। अत: यहाँ एक बार फ़िर जाया जायेगा। उस यात्रा में चारमीनार सहित कई स्थल देखे जायेंगे। जैसे ही मेरी
ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर लगायी गयी, मैंने वेटिंग रुम छोड़ दिया। वेटिंग
रुम में बैठने का लाभ मैंने अपना मोबाइल चार्ज करने में उठाया। अपनी ट्रेन ठीक समय
पर वहाँ से रवाना हो गयी।
हैदराबाद शहर के स्टेशन से निकलते ही मैंने खिड़की पर आकर, खड़े होकर रात में हैदराबाद देखते
हुए अपनी यात्रा जारी रखी। अपनी ट्रेन वैसे तो लोकल ट्रेन थी
लेकिन इसमें दो डिब्बे आरक्षित थे जिस कारण लम्बी यात्रा में रात के समय सोते हुए यात्रा
करने में आसानी थी। हैदराबाद समाप्त होने में लगभग आधा घन्टे से ऊपर बीत गया था। जब
तक नगर की रोशनी रेलवे लाईन के साथ चलती रही मैंने खिड़की नहीं छोड़ी। मेरी सीट भी खिड़की
के साथ ही थी इसलिये बैग गायब की चिंता नहीं थी कि कोई उड़ा ले
जायेगा। टीटी ने आकर मेरे मोबाइल से मेरा टिकट चैक किया जिसके बाद मैंने अपनी सीट पर
जाकर सोने की तैयारी की। रात में पता नहीं कब नींद आयी होगी। सुबह
दिन निकलने से पहले किसी स्टेशन की चहल-पहल के कारण मेरी नींद खुल गयी।
समय देखा तो सुबह के पाँच बजने वाले थे मेरी ट्रेन का परली वैजनाथ
स्टेशन पहुँचने का समय सुबह सात बजे का था। इसके बाद मुझे नीन्द नहीं आयी।
जब ट्रेन परली स्टेशन पहुँची तो
मैंने अपना बैग उठाया और स्टेशन परिसर से बाहर चला आया। सुबह का समय होने के कारण वहाँ
ज्यादा गहमागहमी नहीं थी। मैंने स्टेशन के बाहर निकल कर कुछ दूर तक पैदल चलने के बाद
एक बोर्ड़ के दर्शाये गये मार्ग पर मन्दिर की ओर चलता गया। जिस मार्ग पर मैं चलता जा
रहा था सुबह का समय होने के कारण वहाँ कोई दिखायी नहीं दे रहा था। एक सड़क से आबादी
के मध्य से होते हुए करीब एक किमी चलने के बाद एक चौराहा आया
जहाँ से मैं सीधे हाथ की ओर मुड़ गया, इस मार्ग पर भी लगभग एक
किमी चलना पड़ा होगा कि वहाँ से उल्टे हाथ पर मन्दिर का प्रवेश मार्ग जैसा बनाया गया
द्धार दिखायी दिया। अब इसके बाद मैंने किसी से नहीं पूछा कि आगे कहाँ जाना है? सीधे
चलते रहने पर परली बैजनाथ का ज्योतिर्लिंग वाला मन्दिर आ ही गया।
परली रेलवे स्टेशन के बराबर में ही यहाँ का बस अडड़ा बना हुआ है यहाँ से मन्दिर की कुल
दूरी 2.5 किमी के आसपास है। वैसे तो मन्दिर तक पहुँचाने के लिये आटो
मिलते रहते है लेकिन मैं अकेला होता हूँ तो पैदल चलना पसन्द करता हूँ। रात भर यात्रा
करने के बाद श्रीशैल की तरह यहाँ भी मन्दिर जाने से पहले दैनिक
क्रियाओं से निवृत होकर ही मन्दिर जाने की सोची, इसलिये पहले
स्नानघर की तलाश की जो कि मन्दिर से लगभग दो-तीन सौ मीटर आगे जाने पर मिल सका।
नहा धोकर मन्दिर दर्शन
करने के लिये वापिस उसी जगह आया जहाँ मन्दिर तक जाने के लिये सीढियाँ दिखायी दे रही
थी। परली मन्दिर में उस समय भीड़ नाममात्र ही थी जिस कारण मुझे दर्शन करने में ज्यादा
समय भी नहीं लगा था। मन्दिर में प्रवेश करने से पहले जूते-चप्पल व बैग गेट से बाहर
ही बने काऊँटर पर जमा कराने पड़े। यहाँ मोबाईल के बारे में कोई पाबन्दी दिखायी नहीं
दी थी जिस कारण मैंने सोचा था कि अन्दर जाकर दो चार फ़ोटो लेने का मौका हाथ आ जायेगा।
लेकिन मन्दिर में प्रवेश करते ही पता लगा कि वहाँ चप्पे-चप्पे पर पहरेदार तैनात किये
हुए थे जो जेब से मोबाइल निकालते ही बोल देते थे कि मोबाइल निकालना है तो बाहर जाईये,
मुझे बाहर तो जाना था लेकिन दो-तीन मिनट बाद। पूजा-पाठ के चक्कर में मैं कभी पड़ता नहीं
हूँ इसलिये फ़टाफ़ट परली बैजनाथ के दर्शन करने चल दिया तो एक पहरेदार बोला कि अपना मोबाइल
गेट के पास अन्दर लडडू वाले काऊटर पर लोकर में जमा करा कर आईये। मैंने लडड़ू वाले काऊँटर
पर अपना मोबाइल जमा कराया और लाकर की चाबी लेकर दो मिनट में ही दर्शन कर बाहर आने के
लिये चल दिया। मन्दिर में अन्दर घुसते ही गेट के पास स्थित लोकर से अपना मोबाइल वापिस
लिया। वापसी में यहाँ मिलने वाले विशेष प्रकार के
10 रु लडडू के हिसाब से दो लडडू लेकर उसका जाट देवता को भोग भी
लगाया गया। लडड़ू खाने में बड़े स्वादिष्ट लगे थे, इन्हे खाकर त्रिरुपति बालाजी के लडड़ू
का स्वाद याद आ गया। त्रिरुपति बालाजी की यात्रा भी मैंने दक्षिण भारत की यात्रा के
दौरान ही की थी।
मन्दिर दर्शन
के बाद आज शाम तक संतोष तिड़के के गाँव कुरुंदा जाना था जहाँ एक मराठी
गाँव में शादी का पहला अनुभव प्राप्त करना था। परली मन्दिर से सुबह 11 बजे तक
ही काम निपट चुका था मैं चाहता तो बस पकड़ कर जल्दी कुरुन्दा पहुँच सकता था, लेकिन मुझे
परली से रेलवे लाइन पर यात्रा करने की बहुत इच्छा थी। इसलिये मैंने परली से चलने वाली
दोपहर एक बजे की रेल से बसमत तक जाने का फ़ैसला किया। परली में मैंने एक नाई की दुकान
पर जाकर अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी सफ़ाचट करायी। चिकना होने के बाद, मैं स्टेशन
जाकर बैठ गया, लेकिन जब ट्रेन का समय हुआ तो उदघोषणा हुई कि ट्रेन
अभी एक घन्टा देरी से जायेगी। (क्रमश:)
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के आंध्रप्रदेश इलाके की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
04. विशाखापट्टनम का कब्रगाह, और भीम-बकासुर युद्ध स्थल।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के महाराष्ट्र यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के बोम्बे शहर की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
2 टिप्पणियां:
संदीप जी, बैजनाथ धाम कई है भारत में, पहला देवधर में, दुसरा पालमपुर के पास हिमाचल में, तीसरा यह महाराष्ट्र में. इनमे असली ज्योतिर्लिंगम कौन सा हैं....
Main jutirlig kaha hai sahi javab dai
एक टिप्पणी भेजें