शुक्रवार, 21 जून 2013

NANDED GURUDWARA नान्देड़ गुरुद्धारा श्री सचखन्ड़ नानक धाम

EAST COAST TO WEST COAST-19                                                                   SANDEEP PANWAR
नान्देड़ निवासी मदन वाघमारे (मैं उन्हे बाघमारे ही कहकर बुलाता हूँ) अपनी बाइक पर मुझे लेकर पहले अपने ठिकाने पर पहुँचे, यहाँ इनका कार्यस्थल उसी फ़्लाईओवर के किनारे है जो फ़्लाईओवर नान्देड़ बस अड़ड़े के ऊपर से होकर गुरुद्धारे की ओर जाता है। इनकी कार्यस्थली में जाते ही वहाँ की गर्मी से कुछ देर के लिये राहत मिली, क्योंकि उन्होंने वातानुकूलित यंत्र चलाया हुआ था। पानी पीने के उपराँत अपना बैग वही छोड़कर मैं एक बार मदन की बाइक पर सवार हो गया। बस अड़ड़े से सचखन्ड़ गुरुद्धारा मुश्किल से एक सवा किमी के बीच ही है इसलिये हमें वहाँ पहुँचने में तीन-चार मिनट ही लगें होंगे। गुरुद्धारे पहुँचने से पहले हम गुरु गोविन्द सिंह अस्पताल के बाहर से होकर गये थे। यहाँ अस्पताल के पास एक चौराहे से सीधे हाथ मुड़ते ही अस्पताल आया था। सड़कों पर गुरुद्धारे का मार्ग बताने के लिये मार्गदर्शक निशान बनाये गये है। सड़क पर लगाये गये दिशा सूचक बोर्ड़ से बाहर से आने वाली जनता को बहुत लाभ होता है बार-बार स्थानीय बन्दों से पता करने का झंझट ही नहीं रहता है।


जैसे ही गुरुद्धारे की बाहरी चारदीवारी दिखायी दी तो मदन बाबू ने बाइक एक किनारे खड़ी कर दी। बाइक के पास ही जूता घर बना हुआ था इसलिये हमने वही जूते-चप्पल जमा करा दिये। नंगे पैर गुरुद्धारे में प्रवेश किया। मैं कई साल पहले भी पत्नी के साथ यहाँ आ चुका हूँ वह वो साल था जब इस गुरुद्धारे को बने हुए 300 (तीन सौ) साल पूर्ण हुए थे। अन्दर से तो गुरुद्धारे में कोई खास अन्तर नहीं दिखायी दिया था। लेकिन जिस दरवाजे से हमने अन्दर प्रवेश किया था, उसमें अभी भी कुछ निर्माण कार्य प्रगति पर था। गुरुद्धारे में  भ्रमण करने से पहले हम सीधे गुरु ग्रन्थ साहिब दरबार हॉल में पहुँचे। यहाँ हमने धार्मिक पुस्तक श्री गुरु ग्रंथ साहिब को प्रणाम किया और फ़ोटो लेने के लिये जेब से मोबाइल निकाला ही था कि वहाँ बैठे एक सरदारजी ने टोका कि यहाँ फ़ोटो लेना मना है लो जी गुरुद्धारे भी मन्दिर की नकल पर कब से चलने लगे। वैसे मैंने अन्दर घुसते ही एक फ़ोटो ले लिया था।

गुरुद्धारे में सिखों की धार्मिक पुस्तक श्री गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरु का दर्जा प्राप्त है। बताते है कि सिखों के कुल दस गुरु हुए है उनमें से अंतिम गुरु ने अपने जीवन के अंतिम दिन यही बिताये थे। उन गुरु ने सचखन्ड़ जाने से पहले गुरु नानक जी के लिये गये ग्रन्थ को गुरु का दर्जा दिया था तब से अब तक तीन सौ वर्ष से भी अधिक का समय बीत जाने के बाद गुरु ग्रन्थ साहिब ही सिखों के लिये सबसे महत्वपूर्ण व अनमोल पुस्तक है। सिखों के पहले गुरु नानक जी के पिताजी का और मेरे पिताजी का एक ही नाम है। बहुत कम लोगों को पता है कि हिन्दुओं की मुगलों (मुस्लिम हमलावरों) से रक्षा करने के लिये हिन्दुओं के हर परिवार से एक लड़का सामान्यत: बड़ा लड़का धर्म के नाम पर रक्षा करने के लिये अर्पण कर दिया जाता था जिसे सरदार कहकर बुलाया जाता था। आजादी मिलने से बहुत पहले यह प्रथा समाप्त हो चुकी थी क्योंकि मुगलों के साम्राज्य को अंग्रेजों ने समाप्त कर दिया था। जिन लोगों को सरदार वाला जीवन जीने में आनन्द आ रहा था उन्होंने अपने मूल धर्म में ना लौटकर एक नया पंथ चलाया जो कालांतर में सिख धर्म कहलाया। सिख धर्म का अपना अलग इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है।

इसी तरह 1400 वर्ष पहले हिन्दुओं से ही टूट कर मुस्लिम धर्म का जन्म हुआ था। जहाँ सिख समाज का जन्म हिन्दुओं की रक्षार्थ हुआ था वही मुस्लिम विचारधारा का जन्म ही हिन्दुओं से बदलना लेने की भावना से ही हुआ था। मैंने अनगिनत पर्यटन पुस्तकों के अलावा श्रीकृष्ण लिखित गीता पुस्तक पढ़ी है, स्वामी दयानन्द सरस्वती रचित अमूल्य पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पढ़ी है जिसमें सभी धर्मों का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया गया है। रामायण व महाभारत ग्रन्थ भी पढ़े है। सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक पढ़ने के बाद मेरे मन में बाइबिल व कुरान पढ़ने की लालसा जाग उठी थी, जिस कारण मैंने बाइबिल व कुरान की प्रति तलाश की जो मुझे एकदम मुफ़्त में ही मिल गयी थी। बाइबिल व कुरान को पढने के बाद मेरा निष्कर्ष यही निकला था कि इस संसार का सबसे पुराना पंथ यदि कोई है तो वैदिक धर्म ही है इसके अलावा जितने भी तरह के धर्म/पंथ आदि बने/बनाये/पैदा किये गये है सभी के सभी वैदिक धर्म में आयी किसी ना किसी कमी की वजह से पैदा हुए है। जैसे बौद्ध धर्म का जन्म होना। जैन धर्म का जन्म होना। वैदिक धर्म में बौद्ध व जैन धर्म का मुकाबला करने के लिये मूर्ति पूजा का जन्म लेना। जब लोग मूर्ति पूजा के ठेकेदारों से भी कई कारणों से तंग आने लगे तो पहले बाइबिल पुस्तक का निर्माण (अवतरण बताया जाता है।) हुआ।

यहूदी व इसाई कबीले के दौर में मूर्ति पूजा से तंग आ चुके लोगों ने एक नया पंथ बनाया जो हिन्दुओं से एकदम विपरीत सिद्धांत पर चलता है जिसे हम मुस्लिम पंथ कहते है इसे बनाने वालों ने हर चीज हिन्दुओं से उल्टी चलायी, जैसे हिन्दुओं का मुख्य शब्द ओउम (ॐ) है तो मुल्लों ने अल्ला शब्द का नाम दिया। जब हिन्दूओं में पुजारियों ने जैन धर्म व बौद्ध धर्म का मुकाबला करने के लिये मूतियाँ व पुराण बनाये तो मुल्लों ने पुराण का जवाब कुरान बना(यह भी बाइबिल की तरह अवतरित बतायी जाती है।) कर दिया। जिसने भी कुरान व बाइबिल थोड़ी बहुत भी देखी होगी तो वह तुरन्त समझ जाता है कि दोनों पुस्तकों में अधिकतम मसाला एक जैसा ही है। मैंने दोनों पढ़ी है दोनों मेरे पास मेरे पुस्तक भन्ड़ार में रखी हुई भी है। इसलिये मैं इस बात को कह रहा हूँ। 

मैं ऊपर बतायी गयी सब पुस्तकों में से सिर्फ़ सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने की ही सलाह दूँगा, ऐसा नहीं है कि उस पुस्तक में सभी बात पैमाने पर खरी उतरती है ऐसी ही एक बात में स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते है कि लड़कियों का स्कूल लड़कों से कई कोस दूर होना चाहिए, हो सकता है कि स्वामी जी ने उस समय की परिस्थिति को ध्यान में रखकर ऐसा लिखा हो या लिखने/छपने की किसी चूक से ऐसा लिखा गया हो। आज के आधुनिक दौर में जहाँ धर्म की दीवार छोटी पड़ती जा रही है वहाँ पुरानी बाते भी पीछे छूटती जा रही है। हिन्दू सूर्य को नमस्कार करते है तो मुल्ले चाँद के दीदार को मान्यता देते है। हिन्दू गाय को पूजते है मुल्ले काट कर खा जाते है। हाँ हिन्दू में बाल्मिकी समाज सुअर को पालता व खाता है मुल्ले यहाँ पर चूक गये। मुल्ले सुअर को न खाते है ना पालते है। बताते है कि मुल्ले कुत्ते व सुअर से चिढते है लेकिन आज तक यह पता नहीं लगा कि मुल्ले किस सिद्धांत पर जी रहे है? कम से कम दस बाते ऐसी है जो मुल्लों को अन्य धर्मों से एकदम जुदा करती है।

चलिये धर्मों की भूलभूलैया से बाहर आते हुए फ़िर से सचखन्ड़ गुरुद्धारे का भ्रमण करते है। गुरुग्रन्थ साहिब के दर्शन कर बाहर आये ही थे कि बारिश शुरु हो गयी। मैंने बारिश आने की खुशी मनायी। जैसे ही गुरुद्धारे में मिलने वाला हलुवे का प्रसादा लेकर खाने लगे तो बारिश की गति भी बढ़ने लगी। अभी तक रिमझिम रुप धारण किये बून्दे जोरदार बारिश में बदलने लगी। लोगों के बैठने के लिये बिछाये गये कालीन व दरे खुले में भी बिछाये गये थे, बारिश में कालीन को भीगता देख एक बुजूर्ग उन दरों को खींच कर टीन के नीचे करने लगा। हम भी खाली खड़े थे तीन-चार कालीन हटाने में हमने भी उन बुजूर्ग की सहायता कर दी। दस मिनट बाद जाकर बारिश रुकी तो बाकि का गुरुद्धारा देखते हुए हम लंगर की ओर चल दिये। 

यहाँ लंगर में जाने का मकसद सिर्फ़ फ़ोटो लेने का था लेकिन जब लंगर हॉल में पहुँचे तो हमें लंगर में बैठने के लिये बोल दिया तो हमने कहा कि हम सिर्फ़ हॉल देखने आये है कि यहाँ की सुविधा स्वर्ण मन्दिर जैसी ही है या उससे कुछ अलग हटकर है। हम घन्टे भर से गुरुद्धारे में घूम रहे थे जब लंगर हॉल में लगी दीवार घड़ी पर नजर गयी अपने पैरो तले की धरती खिसकती हुई लगने लगी। बात ही ऐसी थी कि शाम को ठीक 5 बजे की ट्रेन से बोम्बे रवाना था दीवार घड़ी बता रही थी कि 5 बजने में मात्र 10 मिनट का समय बचा हुआ था। हमने लंगर हॉल के फ़ोटो लेकर तुरन्त वहाँ से बाहर के लिये चलना आरम्भ किया। बारिश के कारण फ़र्श फ़िसलना वाला हो गया था। जिससे सावधानी से चलते हुए दूसरे दरवाजे से बाहर आये। तेजी से चलते हुए बाइक के पास पहुँचे और जूते-चप्पल लेकर बाइक पर सवार होकर स्टेशन के लिये निकल भागे। स्टेशन पहुँचने से पहले मदन बाबू के शोरुम से अपना बैग भी लेना था समय देखा सिर्फ़ तीन मिनट बाकि थे मदन बाबू को सड़क पर छोड़कर मैं भागा-भागा गया और बैग उठा लाया।

अब स्टेशन की दूरी मात्र 500-600 मीटर ही बची थी लेकिन समय भी मुश्किल से एक मिनट का ही बचा हुआ था। मैं दुआ कर रहा था कि ऊपर वाले मदन की घड़ी दो-चार मिनट फ़ास्ट निकले तो मुझे ट्रेन मिल सकती है। सीधे मार्ग से स्टेशन पहुँचने में कम से कम तीन मिनट लग जाते इसलिये मदन बाबू ने बाइक गलियों में घुसा दी। मैं बाइक से कूदकर भागने के लिये तैयार बैठा था कि जैसे ही स्टेशन आये और मैं भागकर ट्रेन में घुस जाऊँ लेकिन मुझे नहीं पता था कि हमारे स्टेशन पहुँचने से पहले ही ट्रेन ने अपनी सीटी बजा दी थी। जब हम स्टेशन के करीब पहुँचे तो एक ट्रेन बोम्बे की ओर जाती हुई दिखायी दी। समय 5 बजकर दो मिनट हो चुके थे इसलिये यह तो पक्का था कि यह वही ट्रेन है जिसमें मुझे बोम्बे जाना है। अब समस्या यह थी कि ट्रेन पकड़ने के लिये प्लेटफ़ार्म पर जाना होगा जहाँ तक पहुँचने के लिये कम से कम 200 मीटर चलना होगा। मदन बाबू ने बाइक पार्सल वाले गोदाम में घुसा दी। बाइक रुकते ही मैं बाइक से कूदा मदन बाबू ने बाइक रुकने से पहले ही मुझे समझा दिया था कि पार्सल गोदाम में से सीधे निकलते जाना ठीक वहाँ पहुँच जाओगे जहाँ प्लेटफ़ार्म समाप्त होता है। 

पार्सल गोदाम के बीच से भागता हुआ मैं प्लेटफ़ार्म पर पहुँचा तो ट्रेन का इन्जन दौड़ता हुआ मेरे सामने आ चुका था। अब मेरे सामने दो समस्या थी कि पहले यह सुनिश्चित हो कि यह वही ट्रेन है जिससे मुझे जाना है कही मेरी ट्रेन लेट हो और मैं गलती से दूसरी ट्रेन में सवार हो जाऊँ। इन्जन के निकलते ही जो पहला डिब्बा आया उसपर लिखे नाम को देखकर यह तो पक्का हो गया कि इसी ट्रेन में मुझे सवार होना है लेकिन यह क्या अब ट्रेन की गति इतनी बढ़ चुकी थी कि उसमें सवार होना आसान नहीं लग रहा था। ट्रेन में चढू या रहने दू, कभी नहीं से देर भली वाली बात दिमाग में आयी तब तक वातानुकूलित वाले डिब्बे भी निकल चुके थे। अब क्या हो इसी उधेड़बुन में मेरा डिब्बा भी आता हुआ दिखायी दिया। जहाँ मैं खड़ा था मैंने वहाँ से ट्रेन की विपरीत दिशा में चलना आरम्भ किया था ताकि जोर लगाकर अपने डिब्बे के साथ भागा जा सके यदि मौका लगा तो ट्रेन के अन्दर नहीं तो प्लेटफ़ार्म पर तो वैसे भी कई घन्टे रहना ही है। अब जोश दिखाऊ या होश? आप बताईये क्या करना चाहिए? खतरा उठाकर ट्रेन पकड़ने दौडू या दो-चार घन्टे बाद दूसरी ट्रेन से बोम्बे रवाना हो जाऊँ। (क्रमश:)
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के आंध्रप्रदेश इलाके की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के बोम्बे शहर की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।





















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4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

वाहे गुरु का खालसा - वाहे गुरु कि फतह, आपने इस्लाम के बारे में बिलकुल थी लिखा हैं. रही बात सिक्ख, जैन और बोद्ध की, ये तो हिंदू धर्म के सुधारवादी रूप हैं. हम लोगो में ओउए इनमे रोटी बेटी के सम्बन्ध हैं. ये सभी सत्य सनातन धर्म के गुलदस्ते में खिले हुए फूल हैं...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।

Sunny Dhanoe ने कहा…

बारिश में गए सब जगह पानी ही पानी हो रहा है ...रात को लाइटिंग भी नहीं हुई होगी जो बहुत खुबसूरत होती है ..

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

बारिश में गए सब जगह पानी ही पानी हो रहा है ...रात को लाइटिंग भी नहीं हुई होगी जो बहुत खुबसूरत होती है ..

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