ROOPKUND-TUNGNATH 07 SANDEEP PANWAR
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
अंधेरा होते-होते
हम वाण पहुँच चुके थे। मनु भाई का पोर्टर कम गाईड़ कुवर सिंह काफ़ी पहले ही आगे भेज
दिया गया था। उसे सामान बचा हुआ सामान वापिस करने के लिये कह दिया था। जैसे ही हम
पोस्ट मास्टर गोपाल बिष्ट जी के यहाँ पहुँचे तो देखा कि कुवर सिंह सारे सामान सहित
वही जमा हुआ है। मनु भाई गोपाल जी के यहाँ एक रात रुककर रुपकुन्ड़ के लिये गये थे।
गोपाल जी यहाँ के ड़ाकिया Postman भी है। इसके साथ
वह एक दुकान स्वयं चलाते है जो वाण स्टेशन के कच्चे सड़क मार्ग के एकदम आखिरी में
ही आती है। मनु भाई ने तो अपनी बाइक भी इन्ही की दुकान में पार्क की हुई थी।
इन्होंने हमसे 50 रुपये प्रति बन्दे ठहरने
के व 50
रुपये प्रति थाली भोजन के
लिये थे। कमरे पर आते ही गोपाल जी को हाथ मुँह धोने के लिये थोड़ा सा गर्म पानी
करने के लिये व एक घन्टे में भोजन बनाने के लिये भी लगे हाथ कह दिया था।
कुछ देर बाद हाथ
मुँह धोने के लिये गर्म पानी आ गया। हाथ मुँह धोकर आसपास टहलने के लिये कमरे से
जैसे ही कमरे से बाहर निकले तो जोरदार ठन्ड़ी हवाओं ने हमारा स्वागत किया। मुश्किल
से 10-20 सेकिंन्ड़ में ही हमारी कपकपी छूटने लगी। तुरन्त
कमरे के अन्दर घुसना पड़ा। बैग से गर्म चददर निकाल कर शरीर को ठन्ड़ से बचाना पड़ा।
कमरे पर आते समय हम वाण के देवी मन्दिर से होकर आये थे। वहाँ पर गाँव की
पुरुष-महिलाएँ सामूहिक भोजन बनाने में जुटी हुई थी। मन्दिर के अन्दर कुछ लोग जमा
थे। हमें कुवर सिंह ने पहले ही रात को माता मन्दिर में जागरण के लिये न्यौता दिया
हुआ था। पूरी रात जागना तो हमारे लिये सम्भव नहीं था, लेकिन फ़िर भी 2-3 घन्टे हमने वहाँ उस उत्सव में शामिल होने का
इरादा बना लिया था। कुछ लोग मन्दिर में बैठकर चिट्ठियाँ जैसा कुछ लिख रहे थे। इसके
बारे में बताया गया कि यह आसपास के लोगों के लिये निमन्त्रण पत्र तैयार किये जा
रहे है।
गोपाल जी ने
हमारे लिये घन्टे भर में भोजन तैयार करवा दिया था। भोजन करने के लिये हमें कमरे से
नीचे जाना पड़ा उस ठन्ड़ में भोजन करने के लिये नीचे जाना बहुत आफ़त वाला काम बन गया
था। गर्मागर्म स्वादिष्ट खाना खाकर मन खुश हो गया। गर्मा-गर्म खाना खाने से ठन्ड़ का
प्रकोप भी कुछ कम लगने लगा। कुवर सिंह को रात में 11/12 बजे उठाने की बोलकर हम रजाई तान सो गये। लगता था कि थकावट से थके शरीर को रजाई
की गर्मी मिलते ही जोरदार नीन्द आ गयी थी, कुवर सिंह हमें जगाने के ठीक रात के
बारह बजे आ पहुँचा। एक बार तो हमने मना कर दिया कि ना भाई जा, हमें नहीं देखना
जागरण-वागरण। लेकिन कुवर सिंह के बार-बार कहने पर हमें उठकर मन्दिर जाना ही पड़ा।
जैसे ही मन्दिर पहुँचे तो देखा कि वहाँ तो पूरे मेले जैसा माहौल बना हुआ है। लगभग 200-250 से ज्यादा दर्शक वहाँ जागरण में शामिल होने के
लिये जुटे हुए थे। हमने भी घन्टा भर
जागरण का अनुभव किया। रात में ठन्ड़ अत्यधिक होने के कारण हम ज्यादा देर जागरण में
नहीं रुक पाये। सुबह पूरे वाण गाँव का कई किमी का चक्कर लगाना था। जागरण बीच में
छोड़कर अपने कमरे में आकर फ़िर से सो गये।
रुपकुन्ड़ यात्रा
तो कल ही समाप्त हो गयी थी आज सुबह से लेकर दोपहर तक वाण गाँव भ्रमण का कार्यक्रम
कल वेदनी से उतरते समय ही बना लिया गया था। सुबह आराम से सोकर उठे। आज वाण के बाद
सिर्फ़ कर्णप्रयाग तक ही जाने का इरादा बनाया गया था। सुबह उठकर सबसे पहले दैनिक
नित्यक्रम से निपट कर वाण गाँव के लाटू देवता के मन्दिर देखने चल दिये। बताते है
कि लाटू देवता नन्दा देवी के बहुत बड़े भक्त थे लेकिन कुछ अड़चनों के कारण उन्हे
ज्यादा मान सम्मान नहीं मिल सका। बाद में नन्दा देवी ने लाटू को देवता की मान्यता
देते हुए कहा कि लाटू देवता के दर्शन किये बिना नन्दा देवी राजजात यात्रा अधूरी
रहेगी। यह हमें बाद में पता लगा कि कुवर सिंह का बड़ा भाई ही लाटू देवता का पुजारी
है।
लाटू देवता के मन्दिर
के ठीक सामने गढ़वाल मंड़ल विकास निगम का गेस्ट हाऊस है। गेस्ट हाऊस देखने के लिये
आये तो वहाँ इजराईल के दो घुमक्कड़ निवासी धूप में बैठे धूप सिकाई का लुत्फ़ उठा रहे
थे। मैंने अपनी कामचलाऊ इंगलिश और मनु ने अपनी फ़ास्ट अंग्रेजी का प्रयोग कर इजराइल
जोड़े से काफ़ी देर तक बातचीत की थी जिसमें पता लगा कि इजराइल जोड़े में महिला इससे
पहले भी 4 बार भारत आ चुकी है, जबकि उसका पति सिर्फ़ दो
बार ही भारत घूमने आया था। यहाँ से हम वापिस अपने कमरे की लौट चले। हम कमरे तक
पहुँचे भी नहीं थे कि कुवर सिंह हमें अपने घर, खेत व गाँव के भ्रमण पर ले जाने के
लिये आता हुआ मिल गया। आज सुबह का नाश्ता कुवर सिंह के घर पर ही खाने की योजना रात
में ही बना ली गयी थी। जिसके बारे मॆं कुवर ने अपने घर फ़ोन कर सूचित कर दिया था।
वाण स्टॆशन से
कुवर सिंह का घर कम से कम 2 किमी की खड़ी चढ़ाई
पर दिखायी दे रहा था। रुपकुन्ड़ की यात्रा करने पर पैरों में हल्का-हल्का अकड़ाहट
महसूस हो रहा था। इसलिये हम धीमी गति से कुवर सिंह के घर चल दिये। कुवर सिंह हमें
अपने खेतों से घूमाता हुआ घर तक लेकर जाने वाला था। जब हम उसके खेतों में पहुँचे
तो देखा कि वहाँ उसकी माता जी, उसका छोटा भाई (यह वही था जो परसो मुझे वेदनी की ओर
सामान ले जाता हुआ मिला था।) उसकी पत्नी खेत पर कार्य कर रहे थे। वे खेत से आलू
खोदकर निकाल रहे थे। जहाँ से आलू निकाल रहे थे वहाँ गेहूं की रोपाई भी लगे हाथ
किये जा रहे थे। खेत देखकर हम उसके घर की ओर चढ़ने लगे। उसका घर ऊँचाई पर बना हुआ
है जिस कारण लगातार जोरदार चढ़ाई मिल रही थी। आखिरकार कुवर सिंह का घर आ ही गया।
उसके घर से पीछे मुड़कर देखा तो विश्वास ही नहीं हुआ कि हम कितना ऊपर पहुँच गये है?
कुवर के घर पर
उसके पिताजी, उसकी भाभी और उसका छोटा सा भतीजा हमें मिले थे। उसकी भाभी ने हमारे
पहुँचने के साथ ही ताजी लस्सी हमें पीने के लिये दी। उसके बाद वह खाना बनाने में जुट
गयी। हम लगभग आधा घन्टा बाहर धूप में बैठकर धूप का लाभ उठाते रहे। जब खाना बनकर
तैयार हो गया तो हमें आँगन छोड़कर कमरे के अन्दर जाना पड़ा। पहाड़ में मैंने अब तक
सैकड़ों बार भोजन किया है लेकिन किसी के घर के अन्दर चूल्हे के पास ताजा-ताजा भोजन
पहली बार किया जा रहा था। आलू की सब्जी के साथ गाड़ी लस्सी व देशी घी से लथपथ
रोटियाँ खाने के लिये हमारी थालियाँ में मौजूद थी। हम दोनों ने पेट भर भोजन किया था। खाना बेहद ही
स्वादिष्ट बना हुआ था। पेट तो भर गया था लेकिन मन नहीं भरा था। ठीक 11 बजे हम वहाँ से चलने लगे। अब हमें लगातार उतराई
पर उतरते जाना था।
वापसी में हम
मस्ती काटते हुए उतरते जा रहे थे पर से जो कुछ हमें दिखायी देता हम उसके पास
पहुँचकर उसे देख आते, फ़िर आगे बढ़ते थे। मार्ग से थोड़ा हटकर एक मन्दिर कुछ ऊँचाई पर
दिख रहा था। एक बार सोचा छोड़ो मन्दिर को, आगे चलो बाइक उठाओ और भाग लो, फ़िर ख्याल
आया कि चलो थोड़ी सी ही तो दूर है इसे क्यों छोड़ा? इस मन्दिर को देख कर फ़िर से अपनी
पगड़न्ड़ी पकड़ चलने लगे। पगड़न्ड़ी पर चलते समय जल की धारा के ऊपर एक कमरा बना हुआ दिख
रहा था कुवर सिंह ने बताया कि यह पन चक्की है। मैंने पन चक्की बहुत देखी तो है
लेकिन अब तक किसी का फ़ोटो नहीं लिया था इसलिये पन चक्की का फ़ोटो लेने के लिये नदी
किनारे उतर गये। पनचक्की में उस समय आटा पिसाई चालू थी। आटा पिसता हुआ देखने के
बाद हम नीचे अपने कमरे तक पहुँच गये। यहाँ से कुवर सिंह को उसका लेन-देन देकर विदा किया। अब वाण
छोड़ने का समय आ गया था। चलो बाइक पर सवार होकर आगे कुछ अन्य स्थल देखने बढ़ चले। (क्रमश:)
रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
3 टिप्पणियां:
कुवर सिंह के घर जाकर बहुत अच्छा किया। उन लोगों को भी बहुत अच्छा लगा होगा।
आलस ठीक नहीं, फ़ोटुओं पे कैप्शन तो लगा दिए करो।
बहुत अच्छा लिखा है।
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