ROOPKUND-TUNGNATH 03 SANDEEP PANWAR
वाण गाँव की आखिरी दुकान वाले से अपनी आगामी दो दिन की ट्रेकिंग के लिये जरुरी खाने लायक 5-6 बिस्कुट के पैकेट ले लिये। अपना हैलमेट लोक करने की जगह उस दुकान में ही रखवा दिया। जहाँ से अपने खाने के लिये सामान लिया था। वापसी में बाइक तो यहाँ से लेनी ही थी इसलिए हैलमेट बाइक पर बाँधने से क्या लाभ? अभी दिन छिपने में तीन घन्टे बाकि थे। जिसमें मैं आसानी से 10 किमी की चढ़ाई चढ़ सकता था। मैंने दुकानवाले से पता किया कि यहाँ से अगला ठिकाना कितने किमी बाद है? दुकानवाले ने बताया कि यदि आपके पास स्लीपिंग बैग हो तो यहाँ से आगे गैरोली पाताल नामक जगह पर रात रुकने का प्रबंध हो सकता है लेकिन अपने सामान के बिना वहाँ रुकने की सम्भावना ना के बराबर ही है। यदि आप आज किसी भी तरह वेदनी तक पहुँच जाओ तो वहाँ अकेले बन्दे के लिये रहने की कोई समस्या नहीं आयेगी।
मनु फ़ोन पर हुई बातचीत अनुसार आज की रात वेदनी बुग्याल में ही रुकने वाला था। मनु को मैंने अपने लिये एक स्लीपिंग बैग के लिये भी शायद बोला था या नहीं यह ठीक से याद नही है। जब अपना दोस्त आज वेदनी में था तो फ़िर कही और रुकने की कोशिश ही क्यों की जाये। कल दिन में रुपकुन्ड़ देख कर वापसी कर देंगे। दुकान वाले ने जब यह बताया कि एक घन्टे पहले ही 3-4 लोग घोड़े पर अपना सामान ऊपर की ओर लेकर गये है। यदि आपको जंगल में अकेले होने की चिंता हो रही हो तो आगे जाकर उनके साथ चलते रहना। मैंने बिस्कुट के पैकेट बैग में ड़ाले, हैलमेट तो पहले ही दुकान में रखवा दिया था। अपना बैग उठाकर दुकान वाले के बताये मार्ग पर ऊपर चलना आरम्भ कर दिया। लगभग एक किमी तक वाण गाँव के खेत व घरों के बीच से कच्ची/पक्की सी पगड़ंड़ी ऊपर चढ़ती रही।
जहाँ गाँव की आबादी समाप्त होती है वहाँ यह चढ़ाई भी समाप्त हो जाती है। इस चढ़ाई पर आने के बाद सामने वाले पहाड के ऊपर एक बुग्याल दिखायी देने लगता है। यह अली बुग्याल (औली नहीं) है। अली व औली के नाम के चक्कर में कई बार लोग अटक जाते है। दोनों को एक ही बुग्याल मान बैठते है। जबकि औली बुग्याल जोशीमठ से ऊपर है। वहाँ पहुँचने के लिये जोशीमठ से रोपवे की सुविधा भी दी हुई है। वाण वासियों ने हमें बताया था कि औली बुग्याल वाली रोपवे, वाण वाले अली बुग्याल के लिये मंजूर हुई थी। लेकिन नाम व राजनीतिक पैतरेबाजी के चलते रोपवे वहाँ लगवा दी गयी थी। खैर वाण गाँव वाले प्रशासन से माँग कर रहे है कि अली में भी ट्रोली लगवायी जाये।
मैंने अली बुग्याल की पहली झलक देखते ही तय कर लिया था कि यह कोई सा भी बुग्याल हो इसे देखकर जरुर आना है। रणकाधार नामक जगह से आगे बढ़ते ही ढ़लान आरम्भ हो जाती है। यहां से आगे के 2-3 किमी तक लगातार ढ़लान बनी रहती है। यह ढ़लान नील गंगा नामक नदी के पुल पर जाकर ही समाप्त होती है। नदी के पुल की ओर उतरते समय मुझे ऊपर चढ़ते घोड़े व लोगों की आवाज सुनायी दी। इससे मुझे सही मार्ग पर आने की तसल्ली हुई। नदी का पुल पार करते ही पहाड़ की असली चढ़ाई से आमना-सामना हो गया। मुझे पहाड़ की चढ़ाई पर हमेशा रोमांच महसूस होता आया है। यहाँ मैंने ऊपर कुछ शार्टकट तलाश कर उनका लाभ उठाया था।
नील गंगा से गैरोली पाताल नामक स्थल तक दे-दनादन जोरदार खड़ी चढ़ाई लगातार बनी रहती है। मैं इस चढ़ाई पर घनघोर जंगलों के बीच से अकेला चढ़ता जा रहा था। गैरोली पाताल से आधा किमी पहले घोड़े पर सामान लाधकर जाने वाला वो ग्रुप मिल गया जिसके बारे में दुकानवाले ने कहा था कि एक घन्टे पहले ही एक ग्रुप ऊपर घोड़े पर गया है। मुझे अंधेरे में अकेले चलने की समस्या आने वाली थी लेकिन आगे वाली इस पार्टी के मिलने से वह शंका भी समाप्त हो गयी। गैरोली पाताल GAIROLI PATAL पहुँचने के बाद हम कुछ देर बैठे रहे। यहाँ पहुँचते-पहुँचते हल्का-हल्का अंधेरा छाने लगा था। जब कुछ देर रुककर आगे बढ़ने लगे तो अंधेरे ने अपना साम्राज्य पूरी तरह फ़ैला दिया था। पहाड़ पर जंगल के घनघोर अंधेरे में अकेले यात्रा करने में ड़र लगना स्वाभाविक है, सब से बड़ा ड़र ससुरे भालू का रहता है, जो अंधेरा होते ही निकल पड़ता है।
अब वेदनी जाने के लिये मात्र घन्टे भर की ट्रेकिंग बाकि रह गयी थी। मनु को मिलने के बाद कुछ देर जमकर जश्न मनाया जाना था। गैरोली पाताल से मेरे साथ चल रही टोली के दो धुरन्धर हिम्मत हारने लगे। अभी 3 किमी की चढ़ाई बाकि थी। लेकिन हिम्मत हारते नवयुवकों को पीछॆ अंधेरे में भी छोड़ा नहीं जा सकता था। घोड़े वाला लड़का उसी युवक का भाई निकला जिसे पोर्टर के रुप में लेकर मनु वेदनी/रुपकुन्ड़ तक गया था। स्थानीय बाशिन्दे तो पहाड की चढ़ाई के इतने अभयस्त हुए रहते है उन्हे कोई परॆशानी नहीं आती है। घोड़े वाले ने काफ़ी देर चलने के बाद बताया कि अब चढ़ाई मुश्किल से एक किमी भी नहीं बची है "एक किमी से भी कम" सुनकर थक चुके जवानों को भी जोश आ गया। थोड़ी देर में ही हम इस चढ़ाई को पार कर चुके थे। हमारे लिये भले ही अंधेरा था लेकिन वेदनी सामने झलक रहा था। (क्रमश)
रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
7 टिप्पणियां:
पहाड़ बुलाते हैं..
एक से एक खूबसूरत वादियाँ,
जाट भाई राम राम, एक से बढ़कर एक सुन्दर चित्र, खूबसूरत पहाड़ और घाटिया जवाब नहीं..ऐसे ही घुमाते रहो. वन्देमातरम...
हालांकि मैने कहा तो था वही पर आगे कुछ और हुआ पर हां जितनी जल्दी आपने की उसे देखकर तो मै चौंक ही गया था क्योंकि मुझे इस समय तो उपर चढाई करने की उम्मीद नही थी
jat jee i am sanjeev bhardwaj last few years i am on bed my legs not work but aftter acssedent i am a pessger of road himachal una to leh ,kaza,recongpeo,manali,kinoor,simla,i go akser jaata tha in a year nine month i am in UTTRANCHAL AND upper himachal A REQUEST YOU POST ME YOUR EVERY TOOR
thanks for compliment because this is my village
Wonderful write up
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