ROOPKUND-TUNGNATH 07 SANDEEP PANWAR
रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
मनु ने अपनी बाइक वाण गाँव के पोस्टमैन की
दुकान से बाहर निकाल ली। मेरी बाइक कुछ 200 मीटर आगे वाण
गाँव की आखिरी दुकान के सामने लावारिस हालत में खड़ी थी। यहाँ हमारे साथ एक पंगा हो
गया कि मेरी बाइक तो बाहर सड़क पर ही खड़ी थी। लेकिन मैंने अपना कपाल सुरक्षा कवच
जिस दुकान में रखा था व अब बन्द थी। आसपास पता किया लेकिन दुकान वाले का कही
अता-पता नहीं चल पा रहा था कि दोपहर में कहाँ गायब हो गया है? उसकी कोई सूचना ना
मिलती देख उसका इन्तजार करने के अलावा और कोई इलाज सम्भव नहीं था। पोस्ट मैन की
दुकान के ठीक सामने एक टेलर की दुकान है उन्होंने हमारी परेशानी देखते हुए कहा कि
मेरे पास उस दुकान वाले के भाई का मोबाइल नम्बर है। यहाँ हमारे मोबाइल भी काम नहीं
कर रहे थे।
आखिरकार उन टेलर ने ही अपने मोबाइल से दुकान
वाले के भाई को फ़ोन कर यह ज्ञात कर लिया कि वह दो किमी नीचे वाण गाँव की ओर गया
है। वाण भी कई किमी में फ़ैला हुआ गाँव था। मनु अपनी बाइक लेकर नीचे चला गया। आधे
घन्टे तक जब मनु लौट कर नहीं आया तो मैंने भी बिना हेलमेट लिये ही वाण छोड़ने का
फ़ैसला कर लिया। मुझे बिना हेलमेट बाइक चलाने की बिल्कुल भी आदत नहीं है। नया
हेलमेट खरीदने की सोची थी लेकिन यहाँ नया हेलमेट ऋषिकेश मार्ग पर कम से कम श्रीनगर
जाकर या हल्द्धानी मार्ग पर अल्मोड़ा जाकर ही मिल सकता है। इससे यह तय था कि कई दिन
बिना खोपड़ी के सुरक्षा किये राम भरोसे बाइक चलानी पड़ेगी। बाइक मात्र दो पहिये का
वाहन है जरा सी चूक बहुत भारी पड़ सकती है। लेकिन बड़े वाहन में कौन सा ऊपर वाले ने
लिखित गारन्टी दी हुई है कि उसमें आपको खरोंच भी नही आयेगी। सब समय का फ़ेर है।
मैंने वाण छोड़ते समय पोस्टमैन जी को कहा था कि
जब दुकान खुले तो आप हेल्मेट ले लेना। अगले साल मुझे बर्फ़बारी से पहले फ़िर आना है
ताकि रुपकुन्ड़ Roopkund के नर/नारी
कंकाल/नरमुन्ड़ देखने के साथ-साथ होमकुन्ड़ Homkund होते हुए कुवारी पास पार करके जोशीमठ की ट्रेकिंग की जा सके। मैं अभी एक किमी
ही नीचे की ओर गया था कि मनु अपनी बाइक पर वापिस आता हुआ मिल गया। मुझे देखते ही
मनु बोला चलो वापिस। मनु के साथ एक अन्य लड़का बैठा था जो अपने हाथ में एक बड़ी सी
हथोड़ी लिये हुए था। मैंने सोचा कि दुकान वाले ने इस लड़के को चाबी देकर मनु के साथ
भेजा है। दुकान वाले के बारे में मनु ने बताया कि दुकान वाला देवाल के लिये निकल
गया था। उससे फ़ोन पर बात की है उसने अपने भाई को मेरे साथ भेजा है।
जब हम पुन: बाण पहुँचे तो टेलर ने सोचा कि ये
शायद दुकान की चाबी लेकर आये है। लेकिन मनु के साथ आये लड़के ने बाइक से उतरते ही
दुकान के ताले को दो-तीन हथौड़ी जमकर लगायी। चोट पड़ते ही ताला टूट कर अलग हो गया।
दुकान खुलते ही सामने रखा हेल्मेट दिखायी दिया। हेल्मेट दुकान से बाहर निकाल लिया।
मनु अपने साथ एक नया ताला 50 रुपये में नीचे
से खरीद कर लाया था। नया ताला दुकान पर लगाकर फ़िर से बाइक पर सवार होकर नीचे की ओर
चल दिये। इस ताला तोड़ वाली घटना में मुश्किल से 3-4 मिनट का ही समय
लगा होगा। चलिये ताला तोड़ने पर दो लाभ हो गये। पहला और सबसे बड़ा लाभ कि मुझे बिना
खोपड़ी की चिंता किये बाइक चलाने में मजा आयेगा। दूसरा आर्थिक लाभ कि 50 रुपये के ताले के बदले में 500 रुपये से ज्यादा का हेलमेट वापिस मिल गया। वाण
नीचे पहुँचकर दुकान वाले का भाई बाइक से उतर गया। धीरे-धीरे चलते हुए हम लोहाजंग
की ओर चल दिये।
लोहाजंग पहुँचते ही मनु बोला संदीप भाई यहाँ पर
आते समय मैंने देवी का एक मन्दिर देखा था अबकी बार उसे देखते हुए चलेंगे। ठीक है
भाई, लेकिन आगे मैं रहूँगा क्योंकि जिस मन्दिर की तुम बात कर रहे हो वह लोहाजंग के
ठीक बीच में है। जैसे ही लोहाजंग Lohajung का मन्दिर आया हमारी बाइके उस ओर मुड गयी। बाइक
नीचे सड़क पर खड़ी करके कुछ सीढियाँ चढ़कर मन्दिर में पहुँच गये। मन्दिर पहुँचकर
मूर्तियाँ आदि का जिक्र करने का तो कोई लाभ नहीं है हाँ यहाँ पर जो दान-पात्र रखा
हुआ था वो गजब था ऐसा अनोखा दानपात्र मैंने पहलीबार देखा था। बिजली के पुराने
ट्रांसफ़ार्मर को दान पेटी का रुप दिया गया था। इस मन्दिर को देखकर आगे बढ़ते रहे।
लोहाजंग से चलते ही लगातार 20-22 किमी की ठीक-ठाक ढलान मिल रही थी जिस पर बाइक
बन्द करके आराम से उतरते रहे। यहाँ देवाल से आगे सड़क की हालत बहुत बुरी अवस्था में
है जिस पर बाइक और साईकिल लगभग एक गति से चल सकती है। बड़ी गाडियों में इस मार्ग पर
यात्रा करने का सीधा अर्थ यही है कि जिसे अपनी शरीर की ऐसी-तैसी करानी हो वो इस
मार्ग पर बड़ी गाड़ी में यात्रा कर ले। इस साल सन 2013 के सितम्बर माह
के शुरुआत में नन्दादेवी राजजात की यात्रा होनी है जो हर 12 साल बाद आती है। कुम्भ भी बारह साल बाद ही होता
है लेकिन कुम्भ चार स्थलों पर हरिद्धार, प्रयाग (इलाहाबाद) नाशिक व उज्जैन में
होता है। वैसे तो नन्दा देवी यात्रा की 12 साल वाली यात्रा
बीते साल 2012 में ही होनी चाहिए थी
लेकिन हिन्दू पंचाँग में कुछ उल्टफ़ेर के चलते यह इस साल के लिये आगे बढ़ा दी गयी
थी।
देवाल कस्बे तक दिल्ली से सीधी बस सेवा उपलब्ध
है जो आनन्दविहार बस अडड़े से मिलती है। इसी प्रकार आनन्द विहार से ही केदारनाथ
मार्ग पर गुप्तकाशी के लिये बस मिलती है, बद्रीनाथ मार्ग पर चमोली जिले में
गोपेश्वर तक के लिये सीधी बस सेवा निरन्तर चालू रहती है। गंगौत्री यमुनौत्री मार्ग
पर उत्तरकाशी तक के लिये सीधी बस सेवा मिलती है। देवाल के पास जाते समय हमने सड़क
किनारे नदी के तट पर एक सुन्दर सी जगह देखी थी। वापसी में यहाँ कुछ देर रुकने का
विचार बना लिया गया था। जैसे ही यह जगह आयी तो मैंने बाइक रोककर मनु को देखा तो
मनु तो मेरे कहने से पहले ही इस जगह के लिये अपनी बाइक समेत उतरता हुआ दिखायी
दिया। एक पुल से होकर हम नदी किनारे बने हुए मार्ग से होते हुए तट पर जाकर बैठ
गये। बाइक का यही तो मजा है जब जैसे जहाँ मन करे, वहाँ मोड़ लो। बस वाले तो मन मसोस
कर रह जाने के अलावा कुछ और कर भी नहीं सकते है।
इस सुन्दर स्थल से आगे जाने का मन तो नही कर
रहा था लेकिन घुमक्कड़ एक जगह ठहर गया तो निवासी बन जाता है। हम अपनी बाइक पर सवार
होकर कर्णप्रयाग के लिये चल दिये। जैसे ही कर्णप्रयाग से ग्वालदम वाली सड़क आयी तो
खटारा कबाड़ा मार्ग से पीछे छूटने की बहुत खुशी हुई। यहाँ से हमने अपनी बाइक की गति
बढ़ा दी। कर्णप्रयाग से कोई 20 किमी पहले उल्टे
हाथ पर एक मोड़ से रानीखेत के लिये एक मार्ग कटता है। इस मार्ग पर इस मोड़ से कोई 12-13 किमी आगे जाने पर भविष्य बद्री के मन्दिर देखने
के चल दिये। समय का हिसाब किताब लगाया गया। भविष्य बद्री में दर्शन करते समय ही
हल्का-हल्का अंधेरा होने जा रहा था। मन्दिर देखकर आगे चलते ही बाइक की लाईट जलाकर
कर्णप्रयाग तक की दूरी तय करनी पड़ी। अंधेरे में सुरक्षित बाइक चलाने के लिये बाइक
की गति कम कर दी ताकि किसी विपदा आने की सम्भावना समाप्त हो जाये। कर्णप्रयाग से
काफ़ी पहले से ही रात्रि विश्राम के लिये कमरे देखने शुरु कर दिये। (क्रमश: )
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
2 टिप्पणियां:
कल कल बहता निर्मल पानी।
wah jat devta
एक टिप्पणी भेजें