ROOPKUND-TUNGNATH 05 SANDEEP PANWAR
रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
पत्थर नौचनी पहुँचकर
मेरी नजर सामने वाले पहाड़ पर गयी पूरा पहाड़ बर्फ़ से ढ़का हुआ था। जैसे जैसे मार्ग
आगे बढ़ता जा रहा था यह साफ़ होता जा रहा था कि मुझे इस पहाड़ के शीर्ष पर चढ़कर आगे
जाना है। मार्ग में रात की गिरी हुई ताजी बर्फ़ खतरनाक हालात पैदा कर रही थी। कुछ
जगह तो चलने लायक पगड़न्ड़ी भी नहीं बची हुई थी। जिस कारण बर्फ़ पर पैर धसा कर ऊपर
चढ़ना पड़ रहा था। अरे बाप रे, ओ ताऊ रे, अरी माँ री, जैसे शब्द यहाँ बच्चे लगने
लगे। खैर किसी तरह मैंने आज के दिन की सबसे बड़ी बाधा पार कर ही ली। ऊपर चढ़ते समय
पसीने आने का ड़र लगातार बना हुआ था। इसलिये मैंने शरीर पर हवा लगने के लिये अपनी विन्ड़ शीटर की चैन खोल दी
थी। अन्दर एक बनियान व कमीज मात्र पहनी हुई थी।
यहाँ जिस जगह मैं पहुँचा था उसे कालू विनायक/चटटी
कहा जाता है। एक छोटा सा मन्दिर जैसा स्थान यहाँ बनाया हुआ है। मैं अपने बैग को
अपने साथ लादा हुआ चल रहा था। यहाँ से रुपकुन्ड़ सामने दिख रहा था। दूरी यही कोई 7/8 किमी के आसपास का
अंदाजा लगाया। मैंने अपनी रफ़्तार
बढ़ाने के लिये बैग को वही कालू विनायक पर पत्थरों के बीच छिपा दिया। वैसे इस
दुर्गम जगह तो बैग खुले में भी पड़ा रहे तो भी कोई नहीं छेडेगा। यहाँ लोग खुद अपने
शरीर के वजन से परेशान रहते है किसी का सामान क्यों उठायेंगे। अब मैं तेज चलने के
लिये पंछी की तरह पूरा आजाद था। लेकिन तेज चाल के सामने दिख रही भयंकर बर्फ़ रोड़ा बनकर खड़ी
थी। इसलिये सम्भल कर तेजी से चलते हुए भागू वासा पहुँच गया। यहाँ तक पहुँचने में
किसी किस्म की कोई दिक्कत नहीं हुई।
यहाँ भी मनु महाराज नहीं मिले। अब मुझे मनु के बारे में लगने लगा था कि मनु रुपकुन्ड़ आया भी है या नहीं। मैं रुपकुन्ड़ की
ओर बढ़ता रहा। लेकिन चारों ओर की बर्फ़ में बेहद ही सावधानी से चलना पड़ा। राम-राम
जपते रुपकुन्ड़ ने नीचे तक पहुँच गया। यहाँ कुछ लोग आगे जाते दिखाई दे रहे थे। थोड़ा
और नजदीक जाने पर देखा कि अपना मनु भी इनमें है। मैंने मनु को आवाज लगायी। अब कुछ
देर बाद हम रुपकुन्ड़ झील के मुहाने पर खड़े थे। लेकिन यह क्या झील और झील के आसपास
पाये जाने वाले नर/नारी कंकाल नरमुन्ड़ तो दिखायी ही नहीं दे रहे थे। सारे के सारे
बर्फ़ में दबे पड़े थे। कुछ जगह बर्फ़ हटाकर देखने की असफ़ल कोशिश भी की गयी। लेकिन
जल्दी ही साफ़ हो गया कि बर्फ़ ज्यादा है जिससे कंकाल दिखने की सम्भावना मुश्किल है। बर्फ़बारी के बारे में मनु के साथ
आये पोर्टर ने बताया कि बर्फ़बारी कई दिन से लगातार हो रही है यात्रा एक दो दिन बाद
आने लायक नहीं रह जायेगी।
मैंने मनु को झील का फ़ोटो लेने को कहा तो मनु
बोला मेरे सारे सैल भागू वासा तक खत्म हो चुके है। तुमसे फ़ोन पर कल बात हुई थी। तुम्हे ड्यूरा सैल लाने को बोला था, अपने सैल दो। सैल तो दे दू भाई पर पहले यह बता कि मैंने तुझे वेदनी में रात को
रुकने को बोला तु वहाँ से दोपहर को ही ऊपर भाग आया। मैं सुबह यह सोचकर जल्दी चला
था कि आगे वाले ठिकाने पर पकड़ लूँगा तुम वहाँ से भी फ़रारी हो गये। चलो अच्छा रहा
इस चोर पुलिस वाली स्टाइल से हमने यात्रा तो जल्दी कर ली। सैल मेरे बैग में रखे है
जो कालू विनायक के पास पत्थरों में रखा है। बिना बैटरी के कैमरे को लेकर हमने वापसी यात्रा भी सावधानी से करनी
जारी रखी। कालू विनायक पहुँचकर मैंने बैग सैल निकालकर मनु को दिये। यहाँ से इस
यात्रा में यहाँ से मेरा फ़ोटो सैसन आरम्भ हुआ।
मैंने मनु को कालू विनायक से आगे भेज दिया था
मनु का पोर्टर मेरे साथ मेरे फ़ोटो लेने के लिये रह गया था। मनु के जाने के बाद
हमने कुछ देर आराम किया। आराम करते हुए मैंने मनु के पोर्टर से पूछा यह बता भाई कि
कालू विनायक से पत्थर नाचनी तक उतरने में कुछ शार्टकट है कि नहीं। जब उसने कहा हाँ
पूरा मार्ग शार्टकट से निकल जायेगा। मैंने कहा चल भाई मुझे वो शार्टकट दिखा। वो
मेरा 80 किलो का भारी भरकम शरीर देखकर बोला कि आपको
वहाँ परेशानी होगी। अरे भाई तु मुझे ड़रा रहा है या भड़का रहा है। वह बोला मैं आपको
सावधान कर रहा हूँ। अच्छा, चल अब दिखा अपना शार्टकट वाला मार्ग। हम दोनों ने जमकर
शार्टकट अपनाये, थोड़ी देर में हम मनु से आगे निकल गये। मनु से आगे निकल हम एक जगह
बैठ गये। मनु हमें अपने से आगे देखकर बोला जाट देवता उड़ना जानते हो क्या?
आगे की यात्रा में कुछ दूर तक हल्की हल्की चढ़ाई
थी उसके बाद ढ़लान ही ढ़लान आने वाली थी। पत्थर नाचनी वाली हट के पास आकर मनु ने कहा
कि रात को हम यहाँ रुके थे। अगर वहाँ फ़ोन काम कर रहे होते तो मैं रात को 10 बजे तक वहाँ पहुँच जाता। घोड़ा लौटनी से चलते ही
वेदनी बुग्याल दिखायी देना शुरु हो जाता है। सुबह से मैंने बिस्कुट का एक पैकेट ही
खाया था। पानी की जगह बर्फ़ खाकर काम चला लिया था। भूख के बारे में मनु को कहा तो
वो बोला लगी तो जोर की मुझे भी है। चल पोर्टर भाई सामान यही पटक दे, आज की मैगी
यही बनेगी। हमने अपना सामान वही घोड़ा लोटनी के पास पटक दिया और मैगी बनाने लगे। थोड़ी देर में मैगी
बनाकर खायी गयी। मैगी खाते-खाते अली बुग्याल देखने की योजना परवान चढ़ गयी थी।
पोर्टर को बोल दिया गया कि तुम सारा सामान (मेरा व मनु का बैग भी) लेकर वेदनी में
उस स्थान पर मिलना। जहाँ से अली जाने वाला मार्ग आकर मिलता है। हम पोर्टर को वही
छोड़कर अली बुग्याल की ओर तेज कदमों से बढ़ने लगे। (क्रमश:)
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
4 टिप्पणियां:
क्या बताऊँ मैं कहाँ यूँ ही चला जाता हूँ...
पर क्या बताऊँ बड़ा मज़ा आता है आपके साथ सफ़र कर के...
श्वेत और हरी चादरों से ढके पहाड़।
कमाल तो नीरज ही कर गया, रुपकुंड के नरमुंडों की फ़ोटो वही लेकर आया। खैर ये भी सफ़र अच्छा रहा।
हम तो नजारे देखकर रोमांच से ही बेहोश हो रहे हैं।
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