ROOPKUND-TUNGNATH 06 SANDEEP PANWAR
वेदनी बुग्याल के
ऊपर-ऊपर बनी पगड़न्ड़ी से होते हुए हम अली बुग्याल की ओर बढ़ते रहे। वेदनी और अली आपस
में लगभग जुड़े हुए से दिखाये देते है। जब यहाँ बर्फ़ का साम्राज्य चारों ओर होता है तब
दोनों में अलगाव रेखा का निर्धारण करना कठिन काम है। एक मोड़ पर जाकर अली बुग्याल
का 2 किमी लम्बा मार्ग दिखायी देने लगता है। तेजी
से समतल पगड़न्ड़ी पर बढ़ते हम अली बुग्याल के नजदीक पहुँचते जा रहे थे। आखिरकार कुछ
देर में हम अली बुग्याल पहुँच ही गये। जिस मौसम में हम गये थे उस समय हरी घास सूख
कर सुनहरी रुप धारण कर चुकी थी। आसपास के नजारे देखकर वापिस लौट चले। बताते है कि
अली बुग्याल पर सर्दी में आकर स्केटिंग करने का अपना मजा है। यहां आने के कई मार्ग
है।
हम उसी मार्ग से
वापिस लौट चले जिस मार्ग से होकर यहाँ तक आये थे। बुग्याल अपने हरे-भरे मैदान के
लिये जाने जाते है। लेकिन हमें सूखे हुए बुग्याल का सामना करना पड़ा। वापसी में
हमें उस बिन्दु पर कई लोग बैठे मिले जहाँ से दोनों बुग्याल दिखाये देते है। हमने
वापसी में वाण गाँव की ओर जाना था इसलिये वेदनी को दूर से बाय-बाय करते हुए हम वाण
की ओर उतरने लगे। यहाँ से गैरोली पाताल होकर वाण से पहले वाली नील गंगा तक की
खतरनाक उतराई पर हमें उतरना था। वेदनी से चलते ही उतराई आरम्भ हो जाती है। यह
उतराई गैरोली पाताल नामक स्थल तक तो सहन करने लायक है लेकिन इसके बाद इस उतराई पर
पैरो के पंजे में दर्द होने लग जाता है। हमने पगड़न्ड़ी वाला मार्ग छोड़कर सीधे गहराई में उतरकर
अपना काफ़ी समय बचाया था।
अभी वाण गांव
काफ़ी दूर था। हम ऊँचाई पर थे इसलिये अंधेरे होने का ड़र सताने लगा था। हम अंधेरा
होने से पहले नील गंगा पर बने पुल को पार करना चाह रहे थे। इस नदी के पुल को पार
करने के बाद जंगली इलाके से बाहर निकलने की निशानी माना जाता है। धीरे-धीरे उतरते
हुए इस नदी के पुल तक भी पहुँच गये। पुल के पास जाकर कुछ देर विश्राम किया गया।
शार्टकट उतरने का लाभ यह हुआ कि हम अंधेरा होने से पहले वाण पहुँचने वाले थे। बीच
मार्ग में एक जगह मनु के गाइड़ कुवर सिंह ने हमें बताया कि यह जो पत्थर की टोंटी जैसा
स्थान बना हुआ है। बताते है कि इनमें से पहले दूध की धारा बहती थी। लेकिन किसी ने
इसके एक जोडीदार की चोरी कर ली, उसके बाद इस स्थल से दूध निकलना बन्द हो गया।
आगे चलते हुए
जंगल में कुवर सिंह ने हमें एक खास तरह की घास के बारे में बताया था कि यह घास
बहुत मंहगी दामों पर मिलती है। दवाई बनाने के काम के लिये इस घास का महत्व बढ़ जाता है। गाँव के कई लोग इसकी तलाश में जगलों में भटकते रहते
है। वाण/नील गंगा पार करने के बाद गड़रिया अपनी भेड़ बकरियाँ चराता हुआ मिला। यहाँ
एक मोटा पेड़ का तना कटा हुआ पड़ा था। अपुन को क्या चाहिए, कुछ ना कुछ खुराफ़ात का
मौका मिलना चाहिए तो बन्धुओं इस पेड़ के मोटे तने को देखते ही अपनी खुराफ़ाते शुरु
हो गयी। मनु बोला क्या करोगे जाट भाई ? मैंने कहा एक बार इसे मेरे सिर पर लाध दे
उसके बाद इसने जानी और मैंने जानी। पर वो सुसरा सिर पे टिकन कु तैयार कोनी हुआ।
जैसे जैसे वाण
गाँव नजदीक आता जा रहा था वैसे-वैसे हमारा शरीर थकावट मानने लगा था। ऐसा होता भी
जब मंजिल नजदीक होती है तो सारथी ढीले पड़ने शुरु हो जाते है। आखिरकार नील गंगा पार
करने के बाद आने वाली एक किमी की चढ़ाई चढ़ने के बाद तो केवल उतराई ही उतराई शेष रह
जाती है। हमें अब उतराई उतरने में भी आलस आने लगा था। सुबह से रेल बनी पड़ी थी। पैर
कह रहे थे कि बस रुक जा यही पे कही पे, लेकिन वाण भले ही आ गया था लेकिन अपनी नीली
परी अभी दिखायी नहीं दी थी। आखिरकार अपनी नीली परी भी दिखायी जो कल दोपहर बाद से
अकेली यहाँ सुनसान खड़ी थी। जहाँ बाइक खड़ी थी उसके सामने ही वो दुकान थी जहाँ से
मैंने बिस्कुट व मैगी के पैकेट लिये थे। मनु के गाईड़ कुवर सिंह ने हमें वापसी में
बताया था कि गाँव में नवरात्रों के अवसर पर मन्दिर में रात्रि जागरण होता है। क्या
आप भी उसे देखना चाहोगे? (क्रमश:)
रुपकुन्ड़ तुंगनाथ की इस यात्रा के सम्पूर्ण लेख के लिंक क्रमवार दिये गये है।
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
01. दिल्ली से हल्द्धानी होकर अल्मोड़ा तक की यात्रा का विवरण।
02. बैजनाथ व कोट भ्रामरी मन्दिर के दर्शन के बाद वाण रवाना।
03. वाण गाँव से गैरोली पाताल होकर वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
04. वेदनी बुग्याल से पत्थर नाचनी होकर कालू विनायक तक की यात्रा
05. कालू विनायक से रुपकुन्ड़ तक व वापसी वेदनी बुग्याल तक की यात्रा।
06. आली बुग्याल देखते हुए वाण गाँव तक की यात्रा का विवरण।
07. वाण गाँव की सम्पूर्ण (घर, खेत, खलियान आदि) सैर/भ्रमण।
08. वाण से आदि बद्री तक की यात्रा।
09. कर्णप्रयाग व नन्दप्रयाग देखते हुए, गोपेश्वर तक की ओर।
10. गोपेश्वर का जड़ी-बूटी वाला हर्बल गार्ड़न।
11. चोपता से तुंगनाथ मन्दिर के दर्शन
12. तुंगनाथ मन्दिर से ऊपर चन्द्रशिला तक
13. ऊखीमठ मन्दिर
14. रुद्रप्रयाग
15. लैंसड़ोन छावनी की सुन्दर झील
16. कोटद्धार का सिद्धबली हनुमान मन्दिर
3 टिप्पणियां:
साफ दिखता है कि पिघली बर्फ ने पहाड़ों को गंजा किया है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल १४ /५/१३ मंगलवारीय चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
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