किसी तरह उस दो किमी लम्बे जाम को पार कर हम रोहतांग के करीब पहुँच पाये थे। रोहतांग से कोई 7-8 किमी पहले से सड़क की हालत बहुत ज्यादा खराब हो गयी थी। यहाँ सड़क के नाम पर गढ़्ढ़े ज्यादा थे। सड़क भी कही-कही दिखायी दे जाती थी। चूंकि हम बाइक पर दो बन्दे थे और चढ़ाई भी जबरदस्त थी इस कारण बाइक को ऊपर चढ़ाई में खूब जोर लगाना पड़ रहा था। इस मार्ग अगले ही साल मैंने इसी साथी व इसी बाइक के साथ लेह तक की यात्रा की थी। वो यात्रा तो मैं बहुत पहले दो साल पहले ही लिख चुका हूँ वह यात्रा मेरे ब्लॉग की पहली सीरिज थी। हम रोहतांग तक पहुँचते उससे पहले ही बर्फ़ ने चारों ओर से सड़क को घेर लिया था। हम चलते रहे। हमारी मंजिल इस जगह की सबसे ऊपर की चोटी थी। जहाँ तक चढ़ाई थी हमें चलते जाना था। आखिरकार वो स्थान भी आ ही गया जहाँ से आगे ढ़लान दिखायी देने लगी थी। हमने अपनी बाइक सड़क के किनारे लगा दी थी। बाइक खड़ी करने के बाद हमने कुछ देर तक आसपास के बर्फ़ पर धमाल चौकड़ी की, उसके बाद हमने वहाँ पर फ़ोटो-फ़ाटू लिये थे। यहाँ पर उस समय यह रोहतांग दर्रा नाम का पत्थर/चबूतरा बनाया हुआ था। लेकिन जब मैं अगले साल यहाँ गया तो यह चबूतरा गायब मिला। पहली वाली यात्रा के समय यहाँ पर बर्फ़ भी बहुत ज्यादा मिली थी लेकिन दूसरी यात्रा में बर्फ़ बहुत ही कम मिली थी।
अब यह दीवार नुमा चबूतरा वहाँ नहीं है। |
हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
घड़ी में समय देखा तो शाम के चार बजने वाले थे। वहाँ का मौसम बहुत सुहावना था, इतना सुहावना कि सिर से टोपी उतारने का मन नहीं हो रहा था। नीचे वाले फ़ोटो में आप देख रहे है कि वहाँ पर पड़ रही ठन्ड़ से बचने के लिये गर्मागर्म चाय भी मिल रही थी। लेकिन चाय अपने किसी काम की नहीं है। मुझे वहाँ एक जगह कुछ धुआँ सा उठता हुआ दिखायी दिया था। मै मलिक के साथ वही पहुँच गया वहाँ जाकर देखा कि धुएँ वाली जगह पर एक भुटटे वाला बैठा था वह आग जलाकर भुटटे भून रहा था। हमने तीन घन्टे से कुछ नहीं खाया था इसलिये हमने एक-एक भुटटा ले लिया और रोहतांग वाली दीवार पर बैठकर वो भुटटा खाया गया। भुटटा खाकर हम वहाँ से वापिस मनाली की ओर लौट चले। आप सोच रहे होंगे कि रोहतांग पहुँच कर भी लेह की ओर नहीं गये। जब हम रोहतांग में घूम रहे थे तो तब तक हमारा इरादा वापिस आने का नहीं था लेकिन वहाँ पर हमें एक बुलेट बाइक पर दो बन्दे लेह की ओर से वापिस आते हुए मिले। हमने उनसे आगे के मार्ग की जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने बताया कि आप इस 135 cc की बाइक पर यहाँ तक तो आ गये हो, यहाँ तक आते-आते आपने बहुत मुश्किल से चढ़ाई की होगी। आगे जाने पर 150 किमी बाद एक और दर्रा आयेगा। जिसका नाम बारालाचा ला है वहाँ पर तुम्हारी बाइक अटक जायेगी। इस मार्ग में बाइक में कुछ हुआ तो बाइक ट्रक में लाधकर लानी पड़ेगी। आदि-आदि....... हमने इस बारे में विचार कर अपनी यात्रा का बिन्दु लेह की बजाय हिमाचल से होकर जम्मू की ओर कर दिया था। उस दिन एक बात अपने दिमाग से निकल गयी थी सच कहूँ तो उस समय मुझे यह पता ही नहीं था रोहतांग से थोड़े से आगे जाने पर एक मार्ग सीधे हाथ जाने पर लाहौल-स्पीति की ओर ले जा सकता है। अगर पता होता तो मैं लाहौल-स्पीति से काजा, रिकांगपियो होकर शिमला वाले रुट पर बाइक दौड़ा देता। इस रुट पर मैं आगामी जुलाई की दो तारीख को बाइक लेकर जा रहा हूँ। जिसमें किन्नौर कैलाश की ट्रेकिंग भी की जायेगी। अरे हाँ मैंने इसी बाइक व इसी साथी मलिक के साथ लेह यात्रा अगले साल सफ़लता से पूरी कर ली थी।
रोहतांग की बर्फ़ |
हम वहाँ से मनाली के लिये निकल लिये। जहाँ उपर जाते समय हमें तीन घन्टे से भी ज्यादा का समय लगा था वही वापसी में मनाली पहुँचने में मुश्किल से डेढ़ घन्टे का समय ही लगा था। जब हम मनाली पहुँचे तो अंधेरा नहीं हुआ था इसलिये मैंने बाइक कुल्लू की और दौड़ा दी। कुल्लू शहर तक पहुँचते-पहुँचते अंधेरा होने लगा था। यहाँ से आगे की यात्रा हमने अंधेरे में ही जारी रखी थी। बाइक की हैड़ लाईट में कुछ समस्या आ गयी थी जिससे वह कभी बन्द हो रही थी, कभी बुझ रही थी। बिना लाईट के जलाये पहाड़ का सफ़र खतरनाक हो सकता था इसलिये पहले हमने बाइक की लाईट चैक करने के लिए एक कपड़े के शोरुम के सामने जल रहे बल्ब की रोशनी के नीचे बाइक रोक दी। बल्ब की रोशनी में पेचकस आदि लगाने में आसानी हुई। थोड़ी देर की मसक्कत के बाद बाइक की लाईट जल उठी। हमने आज की रात भी उसी मन्दिर के कमरे में रुकने का इरादा कर लिया था जहाँ पर कल रात ठहरे थे। रात के ठीक 8 बजे, हम लोग हणोगी माता के मन्दिर पहुँच चुके थे। जब हमने मन्दिर में कमरा बुक कराते समय बताया कि आज हमने मणिकर्ण देखकर, मनाली देखते हुए, हम रोहतांग एक घन्टा रुककर मस्ती काटते हुए इस समय तक यहाँ पहुँच भी गये है। हमारी बात को सुनकर उन्हे विश्वास ही नहीं हो रहा था। रात का खाना हमने बीच में ही कही खा लिया था। इसलिये हम जल्दी ही सो गये।
सुबह उठकर हमारी योजना रिवाल्सर ताल/झील देखकर हिमाचल में देवियों के सारे मन्दिर देखते हुए जम्मू की और जाने की बन गयी थी। चलिये अगले लेख में आपको ज्वाला देवी, वैष्णों देवी व अन्य देवियों की यात्रा के बारे में बताया जायेगा।
हिमाचल की इस पहली लम्बी बाइक यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01 दिल्ली से कुल्लू मणिकर्ण गुरुद्धारा।
भाग-02 रोहतांग दर्रा व वापसी कुल्लू तक
भाग-03 रिवाल्सर झील, चिंतपूणी मन्दिर, ज्वाला जी मन्दिर, कांगड़ा मन्दिर।
भाग-04 चामुंण्ड़ा से धर्मशाला पठानकोठ होकर जम्मू तक।
भाग-05 जम्मू से वैष्णों देवी व दिल्ली तक की बाइक यात्रा का वर्णन।
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4 टिप्पणियां:
श्वेत धवल हिम के शिखरों पर...
आज की ब्लॉग बुलेटिन आज लिया गया था जलियाँवाला नरसंहार का बदला - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
jahan na pahuche ravi, wahan pahuche kavi.. ye to purani baat ho gayee...
ab to har jagah aap ko dekhte hain..:)
Interesting and nice photos
thanks
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