दोस्तों आज आपको रतलाम, उज्जैन, इन्दौर, महू, पातालपानी, कालाकुन्ड
होकर अकोला, Ratlam, MHOW, Patalpani, Kalakund,
Akola Railway Trek तक जाने वाली मीटर गेज वाली रेल यात्रा के बारे
में बताया जायेगा। मैंने इस पूरे ट्रेक पर सिर्फ़ दो बार ही यात्रा की है, लेकिन इन्दौर से पातालपानी होते हुए कालाकुन्ड़
तक कई बार यात्रा कर चुका हूँ इस रुट में पातालपानी से कालाकुन्ड स्टेशनों के बीच
की ही यात्रा सबसे यादगार यात्रा रहती है इस कारण मैं मौका लगने पर इन दो स्टॆशन
के बीच की यात्रा अवश्य कर लेता हूँ अभी आखिरी यात्रा मैंने जून 2012 में की थी। जब मैं सिर्फ़ इन्ही दो स्टॆशन के
बीच यात्रा कर वापिस चला आया था। आप सोच रहे होंगे कि इन्ही दो स्टेशन की बीच
यात्रा करने की कोई खास वजह तो होगी ही, चलिये
बताता हूँ
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अपनी गाड़ी का फ़ोटो |
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सुरंग में घुसने की तैयारी |
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पातालपानी स्टॆशन |
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यह पातालपानी से चलते ही लिया गया है। |
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यह कुछ आगे जाने पर |
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सुरंग से बाहर निकलते हुए |
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सीधे हाथ गहरी खाई है। |
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सूखे पेड़ |
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एक और सुरंग आई है। |
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पीछे देखो काफ़ी लम्बी रेल है। |
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एक सुरंग और आई |
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छूक-छुक |
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कालाकुन्ड स्टॆशन |
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यह झरना बहुत बदनाम है। |
इन्दौर
से चलकर पातालपानी पहुँचने तक ट्रेन में कोई अन्तर नहीं आता है लेकिन जैसे ही
ट्रेन पातालपानी से आगे बढ़ती है तो सीधे हाथ की ओर गहरी खाई दिखायी देने लगती है।
ट्रेन में सवार ज्यादातर सवारियाँ ताकझाँक करने के लिये खिड़की पर पहुँच जाती है।
मैंने जब भी दिन में इस रुट पर सफ़र किया है मैं हमेशा इन दो स्टेशन के मध्य दरवाजे पर पहुँच जाता रहा
हूँ। जिन लोगों ने इस रुट पर यात्रा की है वो जानते है कि पातालपानी से चलते
ही रेलवे लाईन तीखे ढ़लान में बदल जाती है। तीखे ढ़लान पर गाड़ी की गति सीमित control रखने
के लिये गाड़ी को बेहद ही धीमी रफ़तार में चलाया जाता है बीच-बीच में कई बार ट्रेन
को रोकना भी पड़ता है। ट्रेन को रोककर ही दुबारा आगे बढ़ाया जाता है। वापसी में यह उतराई चढ़ाई में बदल जाती है जिस कारण ट्रेन में एक इन्जन से काम नहीं चल पाता है चढ़ाई पर दो इन्जन लगाकर रेल की नैया पार लगायी जाती है। इस छॊटी सी
दूरी में कई सुरंगे भी आती है। दोनों स्थानक के बीच आबादी के नाम पर मुश्किल से ही
कोई दिखाई देता है। बीच बीच में कई ऊँचाई वाले पुल भी आते है जिनपर रेल धड़धड़ाते
हुए निकल जाती है। अगला स्टॆशन कालाकुन्ड़ आते ही मैं तो यहाँ उतर कर पहले तो वापसी
जाने वाली रेल के टिकट खरीद लाता हूँ क्योंकि वापसी की रेल पता नहीं कब आ धमके? टिकट लेने के बाद मैं इस स्टेशन पर मिलने वाले मलाई पेड़ा जरुर खरीदता
हूँ। यहाँ पर दूध मलाई से बनाया गया स्वादिष्ट पेड़ा मिलता है। जिसे यहाँ के गाँव
के लोग अप्नी भैसों के दूध से तैयार करते है। अगर आपका कभी इस रुट से जाना हो तो यहाँ के पेड़े जरुर खाये। इस छॊटी लाईन के रुट पर भले ही सारी ट्रेन पैसेंजर चलती हो लेकिन इनमें
आप आरक्षण करा सकते हो। दिन में आरक्षण नहीं भी कराओगे तो चलेगा, लेकिन
रात में तो आरक्षण कराना लाजमी हो जाता है। मैंने इस रुट पर सिर्फ़ दो बार ही
आरक्षण कराया है क्योंकि दोनों बार घरवाली साथ थी। वापसी में मैं सीधा इन्दौर
पहुँचा था वहाँ से दो घन्टे बाद दिल्ली के लिये इन्टरसिटी में जाने की सीट रिजर्व
करा ली गयी थी।
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पातालपानी के पास एक घर |
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MHOW का मतलब कितने पाठक जानते है? |
इस यात्रा के सारे फ़ोटो मोबाईल के दो मैगापिक्सल के कैमरे की देन है।
7 टिप्पणियां:
पातळ पानी जाने का तो कई बार मौका मिला पर ट्रेन से नहीं कार से गई हूँ ..यह हादसों का शहर है यानी जब हम बच्चे थे तो हमें पातालपानी जाने ही नहीं दिया जाता था ..इंदौर शहर में रहने के कारण भी कभी मैने पातालपानी नहीं देखा था ..अब जब शादी हो गई तब पातळ पानी जाने के कई अवसर आये ..फिर भी हम बारिशो में वहां जाने का लुत्फ़ नहीं उठा सकते है ..क्योकि पहले यह किवदन्ती फैली हुई थी की जो भी वहाँ जाते है वो लौट कर नहीं आते ...शायद वहां के चिकने पत्थर या अचानक आया पहाड़ का रुक हुआ पानी इसका कारण हो सकता है .. ऊपर से बहता झरना काफी नीचे गिरता है ..शायद इसीलिए यहाँ का नाम पातळपानी रखा गया है ...यहाँ एक मंदिर भी है .... पिछले साल का खोफ्नाक मंजर तो सब जानते है जब यहाँ पर एक पूरा परिवार बह गया था ....सारे टी वी चेनल पर दिखाया गया था !
भाई, MHOW तो चालकता की Unit है|
सुन्दर...बहुत बहुत बधाई...
badhiya yatra vivran....
badhiya yatra vivran....
सुन्दर यात्रा विवरण ,अब की बार मौका लगा , तो कार्यक्रम जरूर बनायेंगे,इंदौर से कई बार गुजरा पर इस जानकारी के आभाव में वंचित रहा,एक बार तो वहां दो दिन रुकना भी हुआ था.
vha agr rulna chahe to kya hotel vgrah h vha
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