मंगलवार, 27 नवंबर 2012

सैम/सम सैंड ड्यूंस sam sand dunes रेत के टीले


हम जैसलमेर में प्रिंस होटल पहुँच गये। वहाँ जाकर हमने सम/सैम रेत के टीले देखने के लिये एक कार किराये पर लेने की बात करने लगे। बातों ही बातों में होटल मालिक को यह पता लग गया कि यह दोनों बन्दे होटल व्यवसाय से जुडे हुए है। एक होटल कम्पनी में काम करता है दूसरा होटल का प्रचार नेट पर अपने लेख से जरिये करता है। आज के लेख में आपको सम के रेत के टीले दिखाये जायेंगे। लगे हाथ ऊँट की सवारी भी करायी जायेगी।





हम प्रिंस होटल से एक कार किराये पर लेकर सम के रेत के टीले देखने के लिये निकल पडे। इस कार का किराया बारह सौ रुपये ले लिया गया था। सम जाने के लिये प्रिंस चौक से एक सीधा मार्ग वीराने को चीरता हुआ आगे बढता है। शहर तो मुश्किल से दो चार मिनट बाद ही समाप्त हो जाता है। लेकिन शहर समाप्त हो जाने के बाद ही रेगिस्तान की असली यात्रा शुरु होती है। जैसे-जैसे हमारी कार आगे जाती रहती है ठीक वैसे ही रेगिस्तान के एक अलग तरह के दीदार होने आरम्भ हो जाते है।



अपने कमल भाई को मार्ग में एक जगह बीयर का बोर्ड देखकर बीयर पीने की तलब जाग उठी, कार चालक को जब तक बोलते तब तक वह स्थान पीछे छूट चुका था। लेकिन कार चालक को कहा गया कि कार वापिस उसी जगह ले चलो जहां बीयर वाला बोर्ड लगा था। कार चालक क्या करता उसे कार वापिस लानी पडी। लेकिन यहाँ आकर कमल भाई को निराशा हाथ लगी क्योंकि वहाँ बीयर का सिर्फ़ बोर्ड ही था बीयर वहाँ कई महीनों से उपलब्ध नहीं थी। कमल भाई के अरमान अधूरे रह गये। इस बात पर मुझे बडा मजा आया। 



सम के रेत के टील देखने हेतू जैसलमेर के पश्चिम में 40 किमी दूर जाने के बाद इन रेत के टीले के दर्शन हो पाते है। कहते है कि कोई जैसलमेर आये और इन रेत के टीलों को देखे बिना चला जाये ऐसा मुश्किल ही दिखाई देता है। इन टीलों की यात्रा किये बिना यहाँ की यात्रा अधूरी लगती है। जहाँ यह टीले है वह इलाका थार मरुस्थल के विशाल रेतीले टीलों का क्षेत्र हैं। 'सम' में जैसलमेर से 45 किमी दूर सम की तरह ही 'सुहड़ी' गाँव के निकट भी स्थित ऐसे ही विशाल रेत के टीले पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। लेकिन हम वहाँ नहीं जा पाये थे। अगली बार इधर जाना हुआ तो इस गाँव में भी जरुर जायेंगे।



यहाँ का सूर्यास्त दर्शन बहुत मनभावन लुभावना बताया गया था लेकिन हमारे पास इतना समय नहीं था कि शाम तक वहाँ रुककर सूर्यास्त देख पाते। 'ऊँट सफारी' पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। इसके लिये ज्यादा समय भी नहीं लगता है अत: ऊँट सफ़ारी/सवारी का आनन्द हम दोनों ने उठा लिया था। रेत के टीले ही असली राजस्थान की याद दिलाते है। कार से उतर कर हम चारों और का नजारा देख ही रहे थे कि वहाँ एक ऊँट वाला दिखाई दिया। वैसे आपको बता दूँ कि यहाँ कई ऊँट वाले मिलते है लेकिन वे तभी मिलते है जब यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या कुछ ज्यादा दिख रही हो, नहीं तो जैसलमेर से आने वाले गाडी वाले आपको बता देंगे कि सम में ऊँट वाला मिलेगा कि नहीं। प्रिंस होटल वालों ने हमॆं बताया था कि ऊँट वाला दोपहर से पहले ही या शाम के समय ही मिलता है इसलिये अगर कोई यहाँ आना चाहता है दिन में दोपहर के समय यहाँ आने से परहेज करे।




हम दोनों ऊँट पर सवार होकर चल दिये सौ-दौ मीटर चलते ही “जाट देवता का सफ़र” अब “रेत का सफ़र” बनकर शुरु हो गया था। मैं पहली बार ऊँट पर बैठा था जब ऊँट चलता है तो ऊपर बैठने वाला काफ़ी हिलता डुलता रहता है जिस कारण बहुत सावधानी से पकड कर बैठना होता है। लगभग तीन चार सौ मीटर जाने के बाद रेत के टीलों की चढाई आ गयी थी हमारा ऊँट उस चढाई पर आसानी से चढता गया। जब हम रेत के सबसे ऊँचे टीले पर पहुँच गये तो हम ऊँट से नीचे उतर गये। यहाँ यह बात बतानी सही रहेगी कि ऊँट पर बैठते व उतरते समय ऊँट वाला ऊँट को बैठा लेता था जिससे यात्री को कोई दिक्कत ना हो।




रेत के टीलों पर थोडी देर मस्ती काटने के बाद वहाँ फ़ोटो लेने की बारी थी। कई फ़ोटो लिये गये थे उनमें से कुछ यहाँ दिखाये गये है। अरे हाँ इन टीलों के एकदम ऊपर शीर्ष पर आक्खे का हरा-भरा झुंड दिखाई दिया था मुझे यह देख कर अजीब लगा कि यहाँ रेत के टीले के ऊपर एकदम सूखी जमीन पर यह झुंड कैसे हरा-भरा खडा है? मैंने उस झुंड के दो फ़ोटो यहाँ लगाये है एक में मैं स्वयं उसमें खडा हुआ हूँ। हम रेत में लोट-पोट भी हो गये थे लेकिन रेत हमारे कपडे में नहीं घुस रहा था। रेत में थोडी सी गर्मी जरुर थी लेकिन हमारी सहन करने लायक थी।




रेत पर मस्ती काटने के बाद हम फ़िर से ऊँट पर लद गये थे। अबकी बार सवार कहना ठीक नहीं होगा। चढाई चढते समय जहाँ ऊँट पर बैठने में मजा आ रहा था उसके उल्ट उतराई में मजा सजा बन गया था। अबकी बार हमॆं ऊँट की पीठ पर बंधी सीट को जोर से पकडना पड रहा था। वैसे अगर हम दोनों में से कोई ऊँट से नीचे टपक भी जाता तो चोट-वोट तो लगनी नहीं थी। लगे हाथ थोडा सा रोमांच भी हो जाता। 





ऊँट से ऊतर कर हम सामने सडक पार जहाँ हमारी कार खडी थी उस ओर चले गये। उस समय हमारा कार चालक वहाँ दिखाई नहीं दिया था। हो सकता है कि वह कहीं दाये-बाये चला गया हो। हम दोनों सामने दिखायी दे रहे एक टैंट कालोनी में घुस गये। यह टैंट कालोनी यहाँ आने वाले पर्यटकों के रात को ठहरने के लिये लगायी जाती है। मई-जून-जुलाई हो सकता है अगस्त के महीने में भी यह कालोनी यहाँ ना रहती हो क्योंकि इन तीन चार महीनों की भयंकर गर्मी में इस रेगिस्तान की ओर कौन आता होगा? 




इस टैंट कालोनी में सभी प्रकार की आधुनिक सुख-सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। यहाँ रात को ठहरने के बढिया प्रबंध के साथ रात को मनोरंजन करने का मस्त कार्यक्रम भी चलाया जाता है। जिसमें असली ठेठ राजस्थानी नृत्य कालबेलिया आदि भी दिखाया जाता है। शौचालय स्नान आदि की सुविधा इन्हीं टैंट के अन्दर ही दे दी गयी है। इन्हें देखकर हम बाहर आये तो कार चालक हमारी प्रतीक्षा करता हुआ कार के पास ही खडा हुआ मिला। 






हम फ़िर से कार में सवार हो गये थे। यहाँ आते समय मार्ग में एक जगह एक किले जैसा कुछ दिखाई दे रहा था। वहाँ एक बडा सा बोर्ड भी लगा हुआ था जिस पर लिखा हुआ था सूर्यगढ़ पैलेसवैसे राजस्थान में जहां देखो वहाँ गढ़ ही गढ़ बने हुए है। ज्यादा किले भी गढ ही  कहे जाते है। .......
तो दोस्तों अगले लेख में आपको इसी गढ़ की सैर करायी जायेगी।



9 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर चित्रमयी प्रस्तुति!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मरुथल में मंगल..

प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA ने कहा…

संदीप जी रेगिस्तान में नखलिस्तान बहुत खूबसूरत, रेट के टीलो पर आपके और नारद जी के चित्र अति सुन्दर....वन्देमातरम, जय श्री राम...

विनोद सैनी ने कहा…

यह ही तो हमारा राजस्‍थान है अलवर मे भी आपका स्‍वगत है जहा सरीस्‍का अभयारण्‍य है

फेसबुक थीम को बदले

Ritesh Gupta ने कहा…

संदीप भाई.... बहुत अच्छा लगा सेम/सेंड के रेट के टीले और ऊंट सवारी का वर्णन पढ़कर और फोटो देखकर....| ऊंट वाले ने कितने रूपये लिए थे....और उस टैंट कोलोनी में एक टैंट में रुकने का कितना किराया होता हैं......
धन्यवाद...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यहाँ बीस साल पहले गए थे. अब तो काफी विकास हो गया लगता है.
सुन्दर तस्वीरें.

kavita verma ने कहा…

hamne sam ke registan me chandni thandi rat me door tak tafri ki thi..door door tak faile ret ke maidan aur us par faili chandni..aur neerav shanti..us jagah ke to kya kahne...yade taza kar di aapne..

Prakash ने कहा…

संदीप भाई...
मजा आ गया...
वैसे फोटो के डेट सही हैं.. रात के २१:५२ को भी क्या इतना ही उजाला रहता है?

Vishal Rathod ने कहा…

बहुत सुन्दर संदीप भाई . यहाँ एक रात रूकना चाहिए और राजस्थान संस्कृति का आनंद लेना चाहिए . अपनी ट्रिप बनाते वक्त इस बात का ध्यान रखूंगा.

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