आप बता सकते थे कि कार के अगले पहिये में क्या हुआ था? लेकिन कोई नहीं बता पाया इससे साबित हुआ कि लोग अंदाजा भी नहीं लगाना चाहते है। मैं आज आपको बता रहा हूँ कि कार के अगले पहिये में चालक वाली साइड में नहीं बल्कि दूसरी तरफ़ वाले पहिये में आवाज आ रही थी। जैसे ही मैंने कार रोक कर नीचे उतर कर पहिया देखने गया तो सबसे पहले मेरी नजर टायर पर नहीं गयी थी मैंने पहले तो टायर के पीछे लटकने वाली रबर को देखा कि कही यह तो टायर में रगड नहीं खा रही है। लेकिन वह टायर से काफ़ी दूरी पर थी। जैसे ही मेरी नजर टायर पर गयी तो एक बार को सिर चकरा गया क्योंकि टायर में पेंचर होने के कारण हवा बिल्कुल नहीं बची थी। कार में एक टायर स्पेयर में रहता है आगे जाने से पहले टायर बदलना जरुरी था। टायर निकालने के लिये डिक्की खोलनी पडी, वहाँ से सारा सामान जैसे पताशे का टोकरा कपडे का थैला, नारियल का थैला गाडी से बाहर निकालने पडे थे। यह सारा सामान निकालने के बाद जाकर टायर बाहर निकाला जा सका।
सबसे पहले गाडी का पेंचर वाला पहिया एक पत्थर पर चढाया गया, उसके बाद जैक आसानी से लग गया था, जैक लगाकर दोनों पहियों की अदला-बदली कर दी गयी। जब टायर बदल गये तो जैक भी हटा लिया गया। अब सारा सामान वापिस डिक्की में रखने के लिये मैं सारा सामान डिक्की के पास ले गया। जब सारा सामान कार के पीछे पहुँच गया तो डिक्की खोलने की कोशिश की, लेकिन पता लगा कि डिक्की तो बन्द हो गयी है। डिक्की की चाबी सही टायर निकालते समय स्पीकर पर रख दी थी जो कि डिक्की के साथ ही बन्द हो गयी। अब मैं बडा परेशान कि इस डिक्की को कैसे खोलू? परिवार के बाकि सदस्य आराम से नदी किनारे नजारे देखने में व्यस्त थे। इधर मैं चाबी निकालने की जुगत बैठाने में लगा था। मुझे चाबी निकालने का सिर्फ़ एक मार्ग दिखाई दे रहा था कि पीछे वाली सीट के पीछे जो स्पीकर लगे हुए है उन्हें किसी तरह वहाँ से निकाला जाये, लेकिन उन्हें हटाने में सबसे बडी मुश्किल यह थी कि स्पीकर के पेंच भी डिक्की में नीचे की ओर ही थे। अब स्पीकर वाली शीट तोडने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। मैंने शीट हटाने के लिये जैसे ही जोर का झटका दिया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह स्पीकर वाली शीट मेरी उम्मीद से बहुत ही कम ताकत लगाने से बिना किसी नुकसान के खुल गयी थी। जबकि मैंने ताकत कुछ ज्यादा लगा दी थी जिस कारण मेरा संतुलन भी बिगड गया था। संतुलन बिगडने से मेरा सिर व हाथ जोर से कार की छत से टकरा गया था। मेरा सिर कार की छत से टकराने से जो जोरदार आवाज उत्पन्न हुई, उसे सुनकर सभी कार के पास दौडे चले आये। सबने एक साथ पूछा क्या हुआ? मैं पहले कुछ नहीं बोला मैंने उन्हें स्पीकर वाली सीट दिखायी, उसके बाद चाबी वाली बात बतायी। शीट हटने के बाद डिक्की में झांक कर देखा तो एक तरफ़ चाबी रखी हुई थी। एक हाथ उसमें घुसा कर चाबी उठायी। जिसके बाद डिक्की खोलकर बाहर रखा हुआ सारा सामान डिक्की में पुन: रख दिया गया।
अपना पारिवारिक काफ़िला एक बार फ़िर से आगे की यात्रा पर पहाड की ओर चढता रहा। लगभग दस किमी बाद एक पेंचर वाले की दुकान दिखायी दी, सबसे पहले पेंचर वाला पहिया ठीक कराया गया। स्पेयर वाला पहिया ठीक कराना बहुत जरुरी था। बाइक तो पेंचर होने की स्थिति में तीस-चालीस किमी तक उसी पर बैठकर आसानी से ले जायी जा सकती है। मैं कई बार बाइक बीस-बीस किमी के ज्यादा पेंचर होने पर चला चुका हूँ पेंचर होने पर बाइक के टाय़र का कुछ नहीं बिगडता है। यह अलग बात है यदि मार्ग की हालत खराब है तो रिम में नुकसान होने की संभावना बढ जाती है। अत: यह ध्यान रहे कि पेंचर होने पर सावधानी से बाइक चलायी जाये। पहिया ठीक होने के बाद हम अपनी मंजिल की ओर बढते रहे। इस मार्ग में चम्बा तक का मार्ग लगातार चढाई वाला बना रहता है, वैसे कुछ खास देखने योग्य स्थान बीच में मुश्किल से ही एक-आध आता है। चम्बा पहुँचने के बाद हमारा मार्ग उल्टे हाथ मसूरी जाने वाला मार्ग हो गया था। चम्बा से मसूरी तक लगभग ५० किमी का मार्ग पहाड के लगभग शीर्ष पर ही चलता रहता है, जहाँ से हिमालय के बर्फ़ से आच्छादित पर्वत श्रृंखला के दिलकश मनभावन लुभावने दृश्य आँखों के सामने आते रहते है कि बार-बार गाडी रोककर उन्हें देखने गाडी से बाहर निकल आते थे। चम्बा से कददू खाल आते-आते हम लगभग दस बाद नजारे देखने के लिये जरुर रुके होंगे। फ़ोटो तो कई लिये थे लेकिन सब में हमारे ही फ़ोटो है अत: उन्हें लगाना ठीक नहीं लग रहा है।
जैसे ही सुरकण्डा देवी मन्दिर जाने वाला पैदल मार्ग दिखाई दिया तो तुरन्त कार एक भोजन वाली दुकान के पास लगाकर हम ऊपर मन्दिर के लिये चढ चले। वैसे तो सडक से मन्दिर तक मुश्किल से डेढ किमी का ही मार्ग है लेकिन यह डेढ किमी वाला अच्छे-अच्छों की नानी याद दिला देता है। यहाँ इस खतरनाक सी लगने वाली चढाई के लिये घोडों की व्यवस्था भी उपलब्ध है मैंने माताजी से कहा कि मम्मी आप घोडे पर बैठ जाओ, लेकिन मेरी माताजी ने कहा नहीं मैं भी पैदल ही जाऊँगी। हम सब आराम-आराम से चढते-बैठते-उठते आखिरकार मन्दिर के प्रवेश द्धार तक जा पहुँचे। वहाँ जाकर चारों ओर का नजारा कुछ ऐसे दिखाई दे रहा था जैसे कि हम हवा में उड रहे हो। ठीक कुछ-कुछ वैसा हाल था जैसा हाल हवाई जहाज से उडते समय पहाड दिखाई देते है। माताजी को इस चढाई चढने से सिर में चक्कर आने के साथ-साथ हल्का-हल्का दर्द भी होने लगा था। ऐसा आमतौर पर मैदान में रहने वाले लोगों के साथ हो जाता है जब शारीरिक व मानसिक रुप से अक्षम कमजोर या बुजुर्ग लोग ऊँचे पहाड पर चढते है तो उन्हें इस तरह की परेशानी से झूझना पड ही जाता है। हमने मन्दिर में दर्शन किया, वही मन्दिर के बाहर एक कोने मे नारियल फ़ोडने के लिये एक हथौडा रखा रहता है, हमने उस हथौडे से अपने साथ लाया नारियल फ़ोड कर प्रसाद रुप में बाँट कर खाया। हम मन्दिर प्रांगन में लगभग घन्टाभर रुके हुए थे। इसके बाद हम सब नीचे सडक पर उसी जगह आ पहुँचे जहाँ हमारी कार खडी थी
इस मन्दिर की चढाई व उतराई करने से सबको भूख लग गयी थी। भोजन बनाने वाले से कह दिया था कि चार बन्दों का भोजन बना दे। माताजी की तबीयत वैसे तो ठीक थी लेकिन उन्हें लग रहा था कि उन्हें लग रहा था कि उन्हें उल्टी हो कर रहेगी। माताजी ने थोडा पानी पी लिया था। पानी पीने के बाद माताजी को उल्टी हो गयी। उल्टी होने के बाद माताजी का मिजाज एकदम ठीक हो गया था। माताजी ने हाथ मुँह धोकर हमारे साथ खाने का इन्तजार करना शुरु किया। थोडी देर बाद चने की स्वादिष्ट दाल के साथ तवे की बढिया सी रोटी मिलने से खाने का स्वाद कई गुणा बढ गया था। सबने पेटभर खाया था, खाना इतना बढिया बना था, कि मन किसी का नहीं भर सका था। खाना खाकर समय देखा तो शाम के चार बजने वाले थे। अब हमें मसूरी होते हुए, रात को देहरादून जाकर रुकना था। सुकरण्डा देवी मन्दिर से चलने के सात-आठ किमी बाद धनौल्टी आता है, यह आज भी सुन्दर स्थल है। मसूरी में जहाँ मकान व होटल की मारामारी मची हुई है। उसके उल्ट धनौल्टी में अभी भी सीमित संख्या में होटल व घर बन पाये है। जहाँ भी देखने लायक स्थान आता हमारी कार वही रुक जाती थी। बार-बार रुकने का फ़ायदा भी बहुत था हमने बहुत कुछ देखा था। मसूरी पहुँचते-पहुँचते अंधेरा छाने लगा लगा था। जब हम मसूरी में घुसे तो वहाँ वाहनों की भीड देख हमारा मन और आगे जाने को नहीं हुआ। मैंने अपनी कार वापिस देहरादून की ओर मोड दी थी। वैसे तो पूरा दिन ही सारा मार्ग बेहतरीन बना हुआ मिला था लेकिन मसूरी से देहरादून तक का मार्ग तो कुछ ऐसा लग रहा था जैसे हम सडक पर नहीं चल रहेहै बल्कि पानी पर तैर रहे है। पूरा मार्ग डबल बना हुआ है पूरी सडक में बीच में रात में चमकने वाले निशान लगाये गये है जिससे वाहन चालकों को हमेशा याद रहता है कि उसकी लेन कहाँ तक है।
जैसे ही शिव मन्दिर आया तो मैंने तुरन्त कार आइसक्रीम वाली दुकान के पास रोक दी थी। सबसे पता किया कि कौन आइसक्रीन खाना चाहेगा। किसी ने भी आइसक्रीम खाने से मना नहीं किया। पहले सबने वहाँ बैठकर एक-एक आइसक्रीम चट कर दी थी उसके बाद मैंने मौसी के घर ले जाने के लिये एक-एक किलो पैंकिग वाले दो डिब्बे पैक करा लिये थे। जिसके बाद हम वहाँ से चलकर मौसी के घर जाकर रुके। मैंने सबसे पहले आइसक्रीम के दोनों डिब्बे फ़्रिज मॆं रखवा दिये, उसके बाद बाकि सबके साथ बाते करने में मशगूल हो गया था। यहाँ रात में सोने से पहले एक बार फ़िर जमकर आइसक्रीम खाई गयी।
रात रुकने के बाद सुबह मामाजी के घर गये जो वहाँ से चार किमी दूर है। वहाँ से दिन के ग्यारह बजे हम माता शाकुम्बरी मन्दिर की ओर रवाना हो गये। माता के दर्शन कर हम एक अन्य रिश्तेदार के यहाँ मिलते हुए, शाम तक ससुराल जा पहुँचे। जहाँ रात बितायी थी। अगले दिन वहाँ से दिल्ली के लिये रवाना हो गये थे। तो दोस्तों यह थी हमारी चार दिनों की कार की शानदार यात्रा। मैंने इससे पहले भी सन १९९९ में एक बार अपनी मारुति वैन से दिल्ली से शाकुम्बरी माता के दर्शन करते हुए, देहरादून मामा के रात ठहरते हुए अगले दिन सहस्रधारा देखते हुए, हरिद्धार होते हुए दिल्ली की यात्रा भी की थी। दोनों यात्रा में एक अन्तर था यह यात्रा मैने स्वयं कार चलाकर की थी जबकि वैन वाली यात्रा में हमने एक कार चालक साथ लिया हुआ था।
यह यात्रा यही समाप्त होती है, अगली यात्रा में पहाड, समुन्द्र या रेगिस्तान की किसी यात्रा पर आपको ले चलूँगा। बताईये कहाँ जाना चाहेंगे, पहाड की बाइक यात्रा, गुजरात या राजस्थान की ट्रेन यात्रा, अभी कोई सी भी यात्रा नहीं लिखी है। जिसके बारे में कहोगे वही लिख दी जायेगी।
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7 टिप्पणियां:
यात्रा का रोचक वृत्तान्त..
सुन्दर यात्रा वृतान्त यदि लेख के अन्त मे जाने वालो के लिये थोडा गाईड करे तो और बेहतर होगा और हमको फायदा
यूनिक ब्लॉग---------जीमेल की नई सेवा
देवस्थली हिमाचल की प्राकृतिक सुन्दरता अतुलनीय
हमे भी तीन बार जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है
दो बार तो सपरिवार घूमने और तीसरी बार पुत्र को
आई आई टी मंडी में दाखिला दिलाने ......यात्रा वृत्तांत
जोरदार ....जय जोहार
हमारी फ़रमाईश - अब की बार रेगिस्तान यात्रा पढ़वाई जाये।
राजस्थान कैसा रहेगा...
बर्फ बहुत दिखा दी अब रेत की बारी है
वैसे आपकी इच्छा सर्वोपरि है...
जाट देवता जी आप नेपाल घुमनेकी योजना बनाईये , हम भी शामिल हो जायेंगे .बाईक ले जा सकते है ...
रोचक वृत्तान्त खूबसूरती से दर्शाया है आपने.....जाट देवता जी
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