बिजली महादेव-पाराशर झील-शिकारी देवी, यात्रा-03
लेखक -SANDEEP
PANWAR
इस यात्रा में आप हिमाचल के कुल्लू जिले स्थित बिजली महादेव व मंडी जिले में स्थित सुन्दर बुग्याल जिसे हम पाराशर झील की यात्रा कर चुके हो।
अब आपको मन्डी जिले की सबसे ऊँची चोटी शिकारी देवी
लेकर चल रहे है। इस यात्रा को आरम्भ से पढने के लिये यहाँ
क्लिक करना न भूले। इस लेख की यात्रा दिनांक 29-07-2016 से आरम्भ की गयी थी
Pandav Shila, Shikari Mata Devi,
Mandi District पांडव शिला, शिकारी
देवी
मस्ती की पाठशाला, मस्तानौं का झुन्ड करेगा, हुडदंग दबंग-दबंग |
गाडी तक पहुँचना आसान कार्य नहीं था। ढलान और ऊपर से औस पडी हो
तो फिसलने की शत-प्रतिशत गारंटी हो जाती है। हमारे से आगे कोई जा रहा था उसकी
गारंटी जवाब दे गयी। हम सावधान होकर दो सौ मीटर की ढलान उतर आये। गाडी में सवार
होकर शिकारी माता की ओर प्रस्थान कर दिया।
अभी एक किमी ही चले थे कि सीधे हाथ जबरदस्त नजारा देख, गाडी
रोक, फोटो शैशन में लग गये। दो मिनट के लिये उतरे थे। दस मिनट कब बीते, पता न लगा।
एक बार फिर गाडी में सवार हो आगे बढ चले। सभी मनमौजी बन्दे होते है तो ऐसा ही होता
है जहाँ कोई बढिया सा ठिकाना दिखा नहीं, वही गाडी से बाहर कूद पडते है।
हमारी आज की मंजिल शिकारी माता मन्दिर की पाराशर ऋषि झील से
दूरी कुल 140 किमी गुगल महाराज बता रहे थे। पाराशर झील से मन्डी की दूरी
लगभग 50 किमी
है। मन्डी से 80 किमी
दूरी पर शिकारी माता मन्दिर है। कुल्लू से एक अन्य मार्ग भी है जहाँ से यह दूरी 150
किमी है। दोनों ही मार्ग कंधा नामक मोड
पर जाकर मिल जाते है। शिकारी माता से पहले, जंझैली एक बडा कस्बा या गाँव है जहाँ
सब तरह की सुख-सुविधा उपल्ब्ध है। जंझैली से शिकारी माता मन्दिर 15
किमी दूर रह जाता है।
हमारी गाडी कुल्लू-कटौला-मन्डी मार्ग पर पहुँचने वाली है। यहाँ
कल शाम आते समय एक बिन पुल का नाला पार किया था। कल जो कार हमारे पीछे आ रही थी वो
यहाँ पहली बार हमें मिली थी। उसके चालक ने यहाँ के बहते पानी में घुसकर पानी की
गहराई की जाँच की थी। रात को बरसात के बाद यहाँ की स्थिति थोडी खराब लग रही है। अब
मैं मोबाइल लेकर आगे पैदल जा रहा हूँ। पहले पैदल घुसकर पानी में पत्थर या गडडे की
जाँच करुँगा। उसके बाद दूसरी तरफ जाकर गाडी को पानी पार करते हुए वीडियो भी
बनाऊँगा। मेरे घुटने से नीचे तक पानी था। गाडी आसानी से पार हो गयी।
अब हमारी गाडी उसी तिराहे पर आ गयी जहाँ से कल कुल्लू से आते
हुए उल्टे हाथ पाराशर की ओर मुडे थे। यदि हम मन्डी की ओर से आते तो कमांद होकर आना
पडता। तब इस तिराहे से सीधे हाथ उतरकर आगे बढना होता?। आगे चलकर कटौला नामक जगह
आती है। कटौला पार करते हुए कमांड होते हुए होकर मंडी की ओर बढते रहते है। कमांड
में बहुत बडी ITI बनायी गयी है। यदि यहाँ ITI का बोर्ड ना लगा होता तो हम यही समझ रहे
थे कि यहाँ कोई सैनिक छावनी बनायी जा रही है।
कमांद पार करने के बाद भयंकर चढायी आरम्भ हो जाती है। दो बस
हमारे से आगे जा रही है जो इस जबरदस्त चढाई में पीछे रह गयी। हम आगे निकल गये।
चढाय़ी ज्यादा लम्बी नहीं थी। ज्यादा से ज्यादा दो किमी की होगी। एक दर्रे नुमा जगह
पहुँच गये। अब हम दूसरी घाटी में प्रवेश कर गये है। ढलान आरम्भ हो गयी। दो-तीन
किमी चलने के बाद एक जगह पानी का श्रोत दिखाई दिया। सबको प्यास लग आयी। पहले पानी
पिया। बोतले भरी। तब तक दोनों सरकारी बस भी हमसे आगे निकल गयी। कुछ देर यहाँ चहल
कदमी करते रहे। मैं और एक साथी पैदल आगे निकल आये। गाडी ने हमें करीब एक किमी आगे
फिर से बैठा लिया। ढलान पर पहाडी सडक पर पैदल चलने में आनन्द आता है।
यह उतराई मन्डी जाकर समाप्त हो गयी। मन्डी में हमारी सडक
पठानकोट से आने वाली सडक में मिल गयी। पठानकोट मन्डी से करीब 200
किमी दूर है। हम मन्डी से करीब 5
किमी पहले है। मन्डी में ब्यास किनारे
एक मन्दिर दिखाई देता है। गाडी रोककर उसके फोटो लिये तो पता लगा कि लक्ष्मी नारायण
मन्दिर है। मन्डी को हिमाचल की काशी भी कहा जाता है। यहाँ मन्दिरों की भरमार है।
मन्डी शहर पार करते हुए आगे निकल आये। यहाँ से ब्यास नदी पर
बने नये व बडे पुल से व्यास नदी को पार किया। यह पुल आज दूसरी बार पार हुआ है एक
बार पहले भी यह पुल इसी दिशा से पार किया गया था। उस समय मैं और विपिन मणिमहेश
यात्रा से वापिस लौट रहे थे। तब हम बीड से सुन्दर नगर की बस में बैठे थे। सुन्दर
नगर से करसोग घाटी में महुनाग व अन्य मन्दिर देखकर वापिस लौटे थे।
सुबह के 10 का समय हो चला था।
साथियों की भारी माँग थी कि नाश्ता किये
बिना आगे नहीं जायेंगे। ठीक है भाई जैसी आप लोगों की इच्छा। मेरा क्या? मैं ठहरा
ऊँट के कूबड जैसे पेट वाला बन्दा। मुझे एक आध दिन खाना न मिले तो भी चलेगा। यदि
मिल गया तो खाने में शर्म बिल्कुल नहीं करता। पहले भरपेट खाऊँगा! तब किसी की बात
पर ध्यान देता हूँ। भोजन वाली बात पर मेरा भरपूर समर्थन उनके साथ है। चलो गाडी
किसी परिचित परांठे वाली दुकान पर रोकी जाये। राकेश भाई किसी परांठे वाली दुकान का
उल्लेख दो-तीन बार बढाई के साथ कर चुके थे।
ठीक है भाई उसी परांठे वाले के यहाँ रोकना। राकेश भाई इस
यात्रा में हमारे सारथी है। राकेश भाई ने वाहन परांठे वाले के यहाँ रोक दिया।
परांठे वाले को आलू व प्याज के मिक्स परांठे का आदेश देकर अखबार पढने लग गये। थोडी
देर में परांठे व दही हाजिर थे। सबने भरपेट खाये। यह पहले ही बोल दिया गया था कि
अब शिकारी देवी तक कोई भोजन के लिये नहीं कहेगा।
परांठों से फुल होकर पंडोह डैम की दिशा में बढ चले। आप सोच रहे
होंगे कि ये भाई क्या कर रहे है। दिल्ली से बिजली महादेव जाते समय भी पंडोह डैम से
होकर गये थे। अब फिर से वही पहुँच गये है? क्या करे भाईयों? दुनिया गोल है हम भी
उसी के साथ घूम रहे है। जैसे दिल्ली शहर के गोल चक्कर में कोई भूल-भलैया की तरह
घूम फिर कर वही वापिस आकर कहता है ना कि थोडी देर पहले तो यही से गया था। बस
कुछ-कुछ हाल हमारा भी उसी तरह हो गया है।
जाते समय की एक घटना बतानी याद नहीं रही थी। अब जब याद आ ही
गयी तो बताकर ही रहूँगा। मजेदार घटना हमारे साथ घटित हुई थी। बिजली महादेव जाते
समय कल सुबह हमारी गाडी के पिछले पहिये में पेंचर हो चुका था। उसके पीछे एक मजेदार
घटना घटी थी। एक AMBULANCE वाला सायरन बजाता हमारे पीछे लग गया।
सडक बढिया थी हमने सोचा कि ये खाली सडक पर क्यों सायरन बजा रहा है। हम भी तेज गति
से भागे जा रहे थे।
करीब एक किमी बाद उसने खाली सडक पर सायरन बन्द कर हार्न देना
शुरु कर हमें रुकने का इशारा किया। हमने सोचा कि लगता है कि हम किसी को ठोक आये
है! क्या हुआ? भाई जी! वो बोला आप तो ना रुक रहे हो ना सायरन पर ध्यान दे रहे हो?
आपकी गाडी का पिछला पहिया पेंचर है। टायर देखा तो उसमें हवा ही नहीं थी। अबे तेरी,
बढिया सडक में ये गडबडी हो जाती है। खटारा सडक होती तो फटाक से पता लग जाता।
दूसरा टायर बदलने के लिये गाडी किनारे लगा दी गयी। टायर बदलने
से पहले हवा भरकर देखने की विफल कोशिश भी हुई कि क्या पता हवा भरने से बात बन
जाये। टायर बदल कर आगे बढे। थोडी दूर पर पेंचर की दुकान मिल गयी। टायर वाला सोया
हुआ था उसे सोता हुआ उठाया। उसके भाई ने चाय की दुकान खोली हुई थी। चार चाय बनाने
को बोल कर टायर में पेंचर लगने की प्रतीक्षा होने लगी। उस रोतडू से टायर वाले
बन्दे की टायर खोलने वाली मशीन खराब थी। उसने भरपूर कोशिश कर ली लेकिन उससे टायर न
खुला। हमारा आधा घंटा जरुर खराब कर दिया। अपना पेंचर वाला टायर लेकर आगे बढ चले।
एक किमी बाद एक अन्य दुकान मिली। उससे पेंचर दिखाया। इसकी टायर
खोलने वाली मशीन ठीक थी उसने फटाफट टायर खोल दिया। उसने टयूब खराब बतायी। लगता है
पेंचर में बहुत दूर चल दिये है तभी टयूब खराब हुई है। बदल दे भाई। टयूब बदल कर आगे
बढे। ये तो थी कल वाली घटना। आज उस पेंचर वाली जगह, जहाँ टायर बदला था और टयूब
बदलवायी थी। ध्यान से देखते हुए आ रहे थे। पेंचर वाली जगह हमने कुछ खाली बोतले
गाडी से निकाल कर रखी थी जो अब तक वही पडी हुई थी।
पहाडों में कूडे डालने के लिये जगह-जगह कूडेदान होने चाहिए। हम
जैसे लापरवाह बोतलों को ऐसे ही सडक पर फैंकते हुए तो नहीं जायेंगे। लेख ज्यादा
लम्बा हो रहा था इसलिये अब यात्रा का समापन अगले लेख में होगा।
पंडोह डैम भी सामने दिख रहा है। अब मन्डी मनाली हाईवे को छोडने
की बारी आ गयी है। अब पहाड पर सीधे हाथ ऊपर की ओर चढाई वाली पतली सडक पर यात्रा
जारी रहेगी। जो हमें शिकारी माता लेकर जायेगी। (यात्रा जारी है।)
रात रात में सडक की स्थिति बदल गयी है। |
तिराहा, किधर जाना है? कुल्लू/मन्डी/पाराशर झील |
कुल्लू मन्डी वाली बस |
सीधे नहीं जाना |
चलो पहले ताजा पानी पी ले |
लक्ष्मी नारायण मन्दिर, मन्डी |
जोर लगा के हईशा |
हट जाओ, अब टकले की ताकत देखना ! |
देखा घूम गयी ना, हा हा हा |
3 टिप्पणियां:
वाह ऊंट की कूबड़ वाली बात बहुत अच्छी लगी आपकी। अपना भी हाल आपके जैसा ही है बिना कुछ खाए केवल पानी पर दो से तीन रह जाता हूं। अगर पहाड़ों की बात हुई तो फिर भी पूरा दिन तो रह ही सकता हूं बिना खाए। वो पत्थर वाली फोटा का जवाब नहीं बिल्कुल महाबलीपुरम वाले पत्थर की तरह अटका हुआ है। बहुत ही बढि़या भाई जी, अगली भाग की प्रतीक्षा में।
बहुत बढ़िया
बहुत सुंदर यात्रा... लेकिन कभी कभी नकली सायरन वालो की भी सुन लेनी चाहिए। उनसे रेस नही लगानी चाहिए। ☺
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