ANDAMAN, PORTBLAIR YATRA-09 SANDEEP PANWAR
उत्तरी अंडमान के अंतिम छोर डिगलीपुर पहुँचकर सबसे पहले
कालीपुर तट पर कछुओं का प्रजनन स्थल वाला बीच देखा। इस लेख में आपको अंडमान
निकोबार द्वीप समूह की सबसे ऊँची चोटी सैडल पीक की ट्रेकिंग वाली यात्रा करायी
जायेगी। यदि आप अंडमान की इस यात्रा को शुरु से पढना चाहते हो तो यहाँ माऊस से चटका लगाये और पूरे यात्रा वृतांत का आनन्द
ले। यह यात्रा दिनांक 23-06-2014 को की गयी थी।
अंडमान निकोबार LAMIA BAY,
NATURE TRAIL TO SADDLE PEAK NATIONAL PARK, DIGLIPUR
हमारे होटल TURTLE RESORT, KALIPUR के सामने वाली सडक डिगलीपुर से शुरु होकर होटल
से 5 किमी आगे तक जाती है।
होटल डिगलीपुर से 25 किमी आगे आता है। जहाँ यह
सडक समाप्त होती है। वहाँ से आगे अंडमान की सबसे ऊँची चोटी सैडल पीक तक पहुँचने के
लिये 8 किमी की ट्रैंकिंग करनी
पडती है। आज हम सैडल पीक की ट्रैकिंग करने जा रहे है। अपना सामान तो हमने होटल में
छोड रखा है। हमें आज की रात भी इसी होटल में ही रुकना है।
अंडमान में रात को लम्बी दूरी की बस नहीं चलती
है। यदि रात को बस चलती तो हम आज की रात होटल में ठहरना बिल्कुल भी पसन्द नहीं
करते। जारवा जनजाति के लोगों के कारण रात्रि में हाईवे पर वाहन नहीं चलते है।
इसलिये लम्बी दूरी की बसे रात में नहीं चलती है। रात में डिगलीपुर से पोर्टब्लेयर
तक समुन्द्री जहाज अवश्य चलते है लेकिन समुन्द्री जहाज के साथ एक समस्या है कि यह
मौसम खराब होने पर नहीं चलाये जाते है। हम तो बरसात के दिनों में जून में यहाँ आये
थे। इसलिये उनका चलना भी बहुत मुश्किल लग रहा है। आज सैडल पीक की ट्रैकिंग शुरु
करने से पहले पोर्टब्लेयर वापसी के टिकट बुक करने आवश्यक है। आज रात को समुन्द्री
मार्ग का या कल सुबह वाली बस का टिकट एक दिन पहले बुक करने आवश्यक है। दिन के दिन सीट
मिलने की सम्भावना यहाँ अंडमान में बहुत कम रह जाती है। अंडमान में आरक्षण कराये
बिना किसी भी प्रकार के यातायत में लम्बी यात्रा सम्भव ही नहीं है।
इसलिये टिकट बुक करने के लिये सुबह-सुबह पहली
लोकल बस में बैठकर सीधे डिगलीपुर पहुँचे। यहाँ पर डिगलीपुर से पोर्टब्लेयर जाने
वाले समुन्द्री जहाज के टिकट बुक करने के लिये लाइन में लगने वाले हम सबसे पहले
बन्दे थे। टिकट काऊंटर अभी दो घंटे बाद खुलेगा लेकिन तब तक लाइन इतनी लम्बी हो
जायेगी कि आखिरी में आने वालों को आज रात को जाने वाले जहाज में टिकट नहीं मिल
पायेगी। दो घंटे लाइन में खडे रहना पडा। टिकट काऊँटर खुला तो पता चला कि मौसम खराब
होने के कारण आने वाले दो दिन तक कोई समुन्द्री जहाज न तो पोर्टब्लेयर जायेगा, न
ही आयेगा। समुन्द्री जहाज से यात्रा करने का सपना टूटने के बाद हम बस के टिकट बुक
करने पहुँचे तो पता लगा कि बस में सिर्फ़ एक ही सीट खाली है। मारे गये, अब क्या
होगा। जोर का धक्का धीरे से लगा। कोई कमजोर दिल वाला होता तो उसे हार्ट अटैक हो
सकता था। यहाँ से 350 किमी दूर पोर्ट ब्लेयर
तक कैसे जायेंगे? पोर्ट ब्लेयर जाने का कोई और साधन कैसे मिलेगा? अब बस के चक्कर
में एक दिन फालतू में और रुकना पडेगा।
काफी सोच विचार के बाद तय हुआ कि हमारे पास एक ही
विकल्प बचा है कि लम्बी दूरी की बसों से यात्रा न कर, छोटे-छोटे लोकल रुट की बसों
से यात्रा करे। इसमें समय तो ज्यादा लगेगा। लेकिन किसी तरह पोर्टब्लेयर तो पहुँच
ही जायेंगे ना। तभी किसी ने बताया कि प्राइवेट बस वालों की सीधी बस भी पोर्ट ब्लेयर
के लिये बुक होती है। वहाँ पता करो, शायद कोई सीट खाली हो। हम तुरन्त उस दुकानदार
के पास पहुँचे। जो निजी बस के टिकट बुक कर रहा था। उसे कल के तीन टिकट पोर्ट
ब्लेयर के लिये बुक करने को बोला तो उसने कहा कि सिर्फ़ वातानुकूलित बस में ही 5 सीट खाली है वो भी सबसे
पीछे वाली। अब पता नहीं, वह पीछे वाली सीट पहले बुक करने के चक्कर में झूठ बोला या
सच। मैंने पीछे वाली सीट ही बुक करवा दी। हमारे पीछे भी तीन लोग खडे थे। ज्यादा
पूछताछ के चक्कर में यह सीट भी हाथ से निकल जाने की नौबत आ सकती थी।
डिगलीपुर से पोर्ट ब्लेयर तक AC BUS का टिकट बुक होने के बाद कम से कम कल पूरे दिन
की बस यात्रा की टैंशन से तो मुक्ति मिली। टिकट बुक हो गये। अब सीधे चलते है सैडल
पीक। सैडल पीक डिगलीपुर से भी दिखायी देता है। डिगलीपुर से कालीपुर आते समय सीधे
हाथ दिखने वाली सबसे ऊँचा पहाड सैडल पीक ही है। डिगलीपुर से सैडल पीक आने के लिये हमारी
बस हमारे होटल कालीपुर कछुवा रिजोर्ट के आगे से निकलती हुई 5 किमी आगे LAMIA BAY लामिया बे जा पहुँची। यहाँ से आगे नेशनल पार्क
शुरु हो जाता है बस इससे आगे नहीं जाती है। बस यही से मुडकर वापिस डिगलीपुर की ओर
लौट गयी। हम कच्ची पगडंडी पर नेशनल पार्क की ओर बढ चले। अभी थोडा ही चले थे कि
उल्टे हाथ एक चैक पोस्ट दिखाई दिया। यहाँ से वन विभाग सैडल पीक जाने की लिखित
अनुमति प्रदान करता है। मनु ने पता किया कि आज कितने लोग सैडल पीक की ट्रैकिंग
करने ऊपर के लिये गये है। पता लगा कि आज आपसे पहले सिर्फ़ दो बन्दे ऊपर गये है।
राजेश जी ने चलने से पहले ही स्पष्ट बोल दिया था कि मैं सिर्फ एक-दो किमी तक ही
जाऊँगा। राजेश जी एक किमी से ही वापिस लौट आये।
राजेश जी के लौटने के बाद मैं और मनु आगे बढते
रहे। लगभग दो-तीन किमी तक का मार्ग समुन्द्र के लगभग समांतर ही चलता रहता है। जंगल
काफी घनघोर है लेकिन समुन्द्र तट के नजदीक होने से घनघोरता का अहसास नहीं होता है।
जंगल में एक किमी अन्दर जाने के बाद एक गाँव दिखाई दिया जिसमें 8-10 घर ही दिखाई दिये। गाँव के कुछ किसान अपने
खेतों में काम कर रहे थे। हम दोनों उस गाँव के किनारे से होकर आगे बढते गये।
अंडमान की मुख्य भाषा हिन्दी है जिस कारण वहाँ कोई समस्या नहीं आती है एक बार भी
भाषा के कारण ऐसा नहीं लगा कि हम दिल्ली से इतने दूर आये हुए है। जंगल में कुछ देर
पहले सरकार द्वारा बनाये हुए पक्के मकान देखे थे। उन्हे देखकर लग रहा था कि जैसे
वन विभाग वहाँ कुछ आवास बनाने की तैयारी कर रहा हो।
बस से उतरने के बाद से लेकर पहाड की चढाई आने
तक लगभग तीन किमी की समतल भूमि पर जंगल से होकर निकलते रहे। जंगल पार करने के
दौरान हमने तीन बार साफ जल की छोटी-छोटी धारा (नदी) पार करनी पडी। तीनों धारा
स्वच्छ जल की थी। मीठे पानी की धारा देखकर अच्छा लगा। दो धारा तो इतनी छोटी थी कि
उन्हे पार करने के लिये कुछ पत्थर रखे हुए थे जिनसे होकर हमने भी उन्हे पार कर
लिया। एक जल धारा ज्यादा बडी थी उसे पार करने के लिये हमें अपने जूते निकालने पडे।
नदी पार कर, फिर से अपने जूते पहन लिये। आगे जंगल का मार्ग है जूते बिना चलना
मुश्किल हो सकता था। चप्पल हम होटल में ही छोड आये थे।
लामिया बे से सैडल पीक की दूरी 8 किमी ही है। यह पूरी यात्रा इतनी शानदार है कि
समय का पता ही नहीं लगता कि कब समय बीत जाता है। इस पद यात्रा में जहाँ से पहाड की
चढाई आरम्भ होती है वहाँ दो झोपडी बनी है झोपडी का नाम THAMBUNALLAH, HUT है।
झोपडी को देखकर लगता है यहाँ कोई निवास तो नहीं करता है। वन विभाग ने अपने लिये इस
झोपडी का निर्माण करवाया होगा। कुछ देर झोपडी के पास बैठ कर विश्राम किया। थोडी
देर बाद आगे बढने लगे। जैसे-जैसे आगे बढते जा रहे थे जंगल घनघोर होता जा रहा था।
इस पूरे ट्रैक में कही भी भटकने का खतरा नहीं है। जहाँ भी मार्ग में थोडा भी बदलाव
लगने लगता है वही पर वन विभाग ने अपने बोर्ड लगाये हुए है।
ऊपर चढते समय एक बात मैने विशेष तौर पर नोट की
थी। यहाँ जंगल में पेड की टहनियाँ काटकर ऊपर चढने वाली तीखी चढाई वाली जगहों पर
जमीन में लगाई हुई है। इन लकडियों को लगाने से ऊपर चढते समय फिसलने का डर नहीं
होता है। सैडल पीक पहाड की चोटी समुन्द्र तल से 732 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अभी हम चोटी से एक किमी दूर ही पहुँचे थे कि तेज हवा के साथ
जोरदार बारिश आरम्भ हो गयी। आसमान में बादल तो छाये हुए थे लेकिन उन्हे देखकर ऐसा
नहीं लग रहा था कि वे अभी बरस पडेंगे। अंडमान में जून माह मानसून का सीजन होता है।
हम बारिश की तैयारी पहले से ही कर के आये थे। हम दोनों ने अपने-अपने पोंछू निकाल
कर ओढ लिये। बारिश होती रही लेकिन हम बिना रुके आगे बढते रहे। कुछ देर में बारिश
भी रुक गयी। तब तक हम भी इस पर्वत की चोटी पर पहुँच चुके थे।
सबसे ऊपर आकर चारों ओर नजर घुमायी तो खोपडी
खराब हो गयी। बादलों के कारण कुछ भी नहीं दिख रहा था। एक वाच टावर पर कुछ देर खडे
होकर बादलों के साफ होने की प्रतीक्षा की गयी। थोडी देर के बाद बादलों ने रहम
दिखाया तो समुन्द्र की एक झलक कैमरे में कैद हो गयी। बारिश एक बार फिर आ गयी। अभी
तक पोंछू बैग में वापिस नहीं डाला था। उसे दुबारा ओढना पडा। यहाँ सैडल पीक पर एक
वाच टावर पर PANDANUS SEA VIEW POINT लिखा हुआ था। (Saddle peak highest
peak of Andaman islands Andaman and Nicobar islands) इस चोटी पर थोडा और आगे
घूमने गये। आगे जाने पर एक और वाच टावर मिला जिस पर Mehndi tikky लिखा हुआ था।
बारिश के बाद वापसी की उतराई में फिसलने का
खतरा हो गया। वन विभाग ने पेड काटकर जो जुगाड किया था उसने हमारी बहुत मदद की। उतराई
में जंगली केन की बेल को रेलिंग की तरह सहारा देने के लिये लगाया गया था। यह जुगाड उतराई में बहुत मददगार साबित हुआ। हम एक बार भी
नहीं फिसले। वापसी में बारिश थोडी देर बाद रुक गयी थी। पोंछू वापिस बैग में घुस
चुका था। पीने के लिये पानी की बोतल लाये थे। खाने के लिये बिस्कुट का पैकेट साथ
था। जहाँ चढाई समाप्त होती है वहाँ पहुँचकर बिस्कुट से लंच किया गया। लंच कर आगे
बढे तो समुन्द्र तट दिखने लगा। इस बार जंगल से होकर नहीं निकले। समुन्द्र किनारे
होते हुए इस जंगल से बाहर निकल आये। इस जंगल की एक खास बता बताना तो भूल ही गया कि
जंगल में समुन्द्र के छोटे-छोटे जीव पैदल मार्ग में बहुतायत में दिखाई दिये थे।
पहले तो समझ ही नहीं आया कि यह सब हलचल क्या है? फिर रुककर ध्यान से देखा तो सब
माजरा समझ आ गया कि ये समुन्द्री जीव है जो यहाँ तक चले आये है। जो हमें देखकर
अपनी जान बचाने के लिये इधर-उधर भाग रहे थे।
अभी मैं केदारकांठा (kedarkantha peak trek) पर्वत चोटी की बर्फीली
ट्रैकिंग करके आया हूँ। वहाँ हम बर्फ़ पर कई बार फिसलने से बचे। Trek to Har ki Doon भी इसी रुट पर है जो
मैंने सन 2011 के नवम्वर माह में किया
था। एक दो साल में मैं रुपिन पास पार करके छितकुल जाने के इरादे में हूँ। अरे,
अरे, कहाँ अंडमान की सबसे ऊँची चोटी और कहाँ हर की दून व केदार कांठा। दोनों की
आपस में तुलना हो ही नहीं सकती। जहाँ केदारकांठा ट्रैक ठंड में हिमालय का सबसे
बेहतर ट्रैक है (Kedarkantha trek-
the best winter trek in the Himalayas) जहाँ बर्फ ही बर्फ़ मिली थी। वही सैडल पीक
अंडमान का बेस्ट ट्रैक (saddle
peak trek-the best trek andaman and nicobar islands)है जिसमें हमने घनघोर जंगल में बहुत कुछ देखने को मिला।
नेशनल पार्क से बाहर आये तो देखा कि वहाँ कोई
बस नहीं है। राजेश जी वहाँ दिखाई नहीं दिये वह होटल जा चुके है। एक घंटे के अंतराल
में बस आती है थोडी देर बाद बस आ गयी। तब तक हम दोनों वहाँ के लोकल बन्दों से
बातचीत करते रहे। होटल केवल 5 किमी दूर है जल्द ही हम होटल पहुँच गये। अभी
अंधेरा होने में काफी समय है हम तीनों एक बार फिर कालीपुर बीच घूमने निकल गये। बीच
घूम-घाम कर वापिस होटल आ गये। कल सुबह डिगलीपुर से अलविदा ली जायेगी। (क्रमश:) (Continue)
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टिकट दर यहाँ है। |
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वन विभाग टिकट व कंट्रोल कक्ष |
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जंगल से बाहर आता एक ग्रामीण |
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पगडंडी से समुन्द्र ज्यादा दूर नहीं |
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एक पेड को लपेटे हुए लताये |
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गाँव व खेत से दिखती सैडल पीक |
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समुन्द्री जीव बीच पगडंडी पर |
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घनघोर जंगल |
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मीठे जल की धारा का खारे समुन्द्र से मिलन |
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जल धारा पार |
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यहाँ से चढाई आरम्भ |
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रेलिंग लकडी वाली |
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वाच टावर की छत |
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दूसरा वाच टावर |
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एक कैमरा वाली सैल्फी हो जाये, |
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लकडी से फिसलने से बचे, अब सुरंग में घुसना तो पडेगा ना |
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सैडल पीक से दिखता समुन्द्र तट |
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केन वाली रेलिंग के पास खडा मनु |
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खूबसूरत बीच |
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अन्नानाश नहीं है। देख कर जीभ ललचा गयी ना। |
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4 टिप्पणियां:
Bhaut acchi jankari mili apke post se ... Lajawab vivran
केदारकांठा का लालच दे दिया😊
मुझे पता नहीं था कि इतना बड़ा होगा अंदमान
आपने काफी बढ़िया जानकारी दी धन्यवाद्
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