रविवार, 12 जून 2016

Rudranath kedar Trek रुद्रनाथ केदार ट्रैक

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-09           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
रुद्रनाथ भगवान भोले नाथ के पंच केदार में सबसे कठिन केदार माने जाते है। मैंने भी इसके बारे में बहुत सुना था यहाँ तक पहुँचना बहुत कठिन है। रात को सगर गाँव के सोनू गेस्ट हाऊस में ठहरा था। इस बार रुपकुन्ड यात्रा के बाद यहाँ आया हूँ। दो साल पहले मैं और मनु रुपकुन्ड यात्रा के बाद यहाँ रुद्रनाथ की यात्रा करने के लिये आये थे लेकिन दो दिन पहले रुद्रनाथ के कपाट बन्द हो गये थे तो हम दोनों वापिस लौट गये थे। रुद्रनाथ के बाद मेरा कल्पेश्वर केदार व काठमांडू का मुख्य केदार बचता है। कुछ लोग काठमांडू वाले मन्दिर को पंच केदार में नहीं मानते है जबकि देखा जाये तो असली केदार तो वही है जहाँ भोलेनाथ का चेहरा धरा से बाहर निकलना था। सोनू गेस्ट हाऊस के मालिक अवकाश प्राप्त फौजी है। उन्होंने सेना से रिटायरमेंट के बाद यह रेस्ट हाऊस बनाया था। यहाँ भी उन्होंने मुझसे मात्र 100 रु किराया लिया। व 50 रु खाने के लिये। मैंने कहा, सीजन कैसा जा रहा है उन्होंने बताया कि इस सीजन में किसी-किसी दिन तो एक भी यात्री रुद्रनाथ के लिये नहीं जाता है। केदारनाथ हादसे के बाद अभी तक यात्री पहाड पर आने में हिचक रहे है। कोई नहीं, भारत के लोग किसी घटना को ज्यादा दिनों तक याद नहीं रखते है जल्द ही लोग यहाँ जुटने लगेंगे। सुबह उजाला होने की आहट मिलते ही मैंने रुद्रनाथ की कठिन कही जाने वाली पद यात्रा की शुरुआत कर दी।


सगर में सोनू गेस्ट हाऊस से कुछ मीटर पहले या कहो कि ठीक पहले ऊपर रुद्रनाथ जाने के लिये सीढियाँ बनी हुई है। यहाँ एक गेट भी बना हुआ है जिस पर लिखा हुआ भी है कि रुद्रनाथ की यात्रा के लिये आपका स्वागत है।  सगर गाँव से होता हुआ मार्ग गाँव के ऊपर पहुँच जाता है। मैं शुरुआत में एक जगह चूक गया। मुझे ऊपर पानी की टंकी से सीधे हाथ की ओर मुडना था लेकिन मैं नाक की सीध में चलता गया। आगे चलकर यह पगडंडी खेतों में प्रवेश कर गयी। मैं समझता रहा कि रेस्ट हाऊस वालों ने खेतों से एक शार्ट बताया था यह वही होगा। शार्ट कट वाला मार्ग खेतों से होता हुआ, सामने दिखायी दे रहे घने जंगल में प्रवेश कर गया। जंगल में घुसने से पहले मुझे सीधे हाथ ऊपर एक टूटे हुए घर जैसा कुछ दिखायी दिया था। उसे मैंने यह समझकर छोड दिया कि किसी ने खेतों में कभी घर बनाया होगा।

घने जंगल में आधा किमी चलने के बाद वह पगडंडी समाप्त हो गयी जिस पर मैं चला जा रहा था। अभी तक मैं इसे सही मान कर चला जा रहा था। जब घने जंगल में कोई मार्ग न दिखा तो अपनी गलती समझ आ गयी। मैंने अंदाजा लगाया कि मैं खेतों से कम से कम आधा किमी अन्दर आ गया हूँ इसका अर्थ है कि अब मैं जंगली जानवरों के बीच पहुँच गया हूँ। अगर यहाँ भालू या अन्य कोई खतरनाक जानवर हुआ तो आफत भी आ सकती है। यह सोचते ही मेरे शरीर के रोंगटे खडे हो गये। मैंने यह विचार मन में आते ही सबसे पहले पैने-पैने से दो पत्थर हाथों में उठा लिये। मैं घने जंगल में किसी अचानक होने वाले किसी भी सम्भावित हमले से चौकन्ना हो गया। जिस पगडन्डी से होकर मैं यहाँ तक आया था उसी से होकर तेजी से बाहर निकलना शुरु किया। अभी वापसी में उस जंगल का आधा भाग ही पार हुआ था कि नीचे ढलान में कोई जानवार मुझे देख कर झाडी में तेजी से घुसा। मैं चारों ओर देखते हुए तेजी से निकल रहा था। वो जानवर कौन था मुझे कुछ समझ नहीं आया लेकिन उस घटना ने मेरी हालत खराब कर दी।

जो पत्थर मेरे हाथ में थे मैंने उन्हे तेजी से आपस में टकराना शुरु कर दिया। पत्थर के टकराने की आवाज सुनकर कोई जानवर मार्ग में या आसपास होगा तो भाग जायेगा। जिस पगडंडी पर मैं अभी कुछ देर पहले निकला था वहाँ अब एक जगह काफी मिटटी खुदी हुई मिली। जबकि जाते समय यह मिट्टी खुदी हुई नहीं थी। यहाँ दस मिनट में यह काम किसी जंगली सुअर या भालू का हो सकता था। घने जंगल में दोनों ही खतरनाक होते है खासकर तब जब कोई इंसान उन्हे अकेला मिल जाये। मैंने पत्थरों का टकराना जारी रखा और चारों और चौकन्नी निगाहों से देखना भी नहीं छोडा। जैसे ही घने जंगल से बाहर खेतों में पहुँचा तो जान में जान आयी। यह समझ आ गया था कि मुझे नीचे की बजाय ऊपर की ओर जाना है जो टूटा हुआ मकान मुझे खेतों से दिखायी दिया था। वह अवश्य सही पगडंडी पर ही बना होगा। सीधे ऊपर खडी चढाई चढते रहने पर सही पगडंडी मिल गयी। सामने ही वो टूटा हुआ मकान था। अब सही मार्ग मिलने के बाद कोई चिंता नहीं थी। अब तक मैं खेतों के मेंढ से होता हुआ आया था। रात को ओस पडी होगी जिससे जूते व घुटने तक पाजामा पूरी तरह गीला हो चुका था।

सही पगडंडी की चौडाई 5 फुट से कम नहीं थी। यहाँ हल्की-हल्की चढाई भी थी जो ज्यादा महसूस नहीं हो रही थी। पीछे कोई आता दिखायी नहीं दे रहा था। मैंने तेजी से ऊपर चक्रघिरनी की ओर चलना जारी रखा। घने जंगल वाली बात याद आते ही रोंगटे खडे हो रहे थे। घना जंगल इस पगडंडी पर भी आयेगा लेकिन यह आम रास्ता है इस पर उस तरह की भयानक स्थिति दिखायी नहीं देगी। उस जंगल में तो चलने की जगह भी न मिली थी। करीब आधे किमी बाद दो लडके आगे जाते हुए दिखायी दिये। मैं तो सोच रहा था कि पूरी यात्रा अकेले न करनी पड जाये। लेकिन चलो अजनबी सही, कोई सहयात्री तो मिला। मदमहेश्वर व अनुसूईया में भी कोई न मिला था। दोनों बन्दे गोपेश्वर के थे। कुछ दूर उनके साथ-साथ चलने पर बातचीत में पता लग गया। उन दोनों बन्दों के जानकार रुद्रनाथ मन्दिर के मुख्य पुजारी है। चक्रघिरणी की चढाई शुरु होने से ठीक पहले एक पुरानी दुकान जैसा ठिकाना उजडा हुआ दिखाय़ी दिया। वे दोनों वहाँ कुछ देर रुक गये। दो-तीन किमी से हम तीनों साथ आ रहे थे तो मैं भी उनके साथ रुक गया। पानी की बोतल मैंने उन दोनों के मिलने से थोडी देर पहले भर ही ली थी। इस घने जंगल में पीने के पानी की अभी तक कोई कमी दिखायी न दी।

कुछ देर बाद रुद्रनाथ की चक्र घिरणी की कठिन चढाई पर धीरे-धीरे चलते रहे। यह चढाई काफी तीखी ढलान में है जिस पर उतरना व चढना दोनों आसान नहीं है। अब तक मैंने अखबारों के यात्रा लेख में या नेट के लेख में इस चढायी के बारे में बहुत पढा था आज पहली बार इससे पाला पढा था। यह चढाई अच्छी खासी थी लेकिन किन्नर कैलाश की चढाई के मुकाबले यह आधी भी कठिन नहीं निकली। चक्र घिरनी नाम जिसने भी रखा है एकदम सही रखा है यहाँ दो-तीन घन्टे से हम तीनों कृष्ण के सुदर्शन चक्र की घूम घूमकर ऊपर चढने में लगे हुए है और यह चक्रा देने वाली चढाई समाप्त ही नहीं हो रही है। हम तीनों का हाल ऐसा हो चुका था कि कोई कुछ बोलता नहीं था। यदि आगे चलने वाला कही भी बैठ गया तो पीछे वाले दोनों उसके साथ बैठ जाते थे। बैठने के बाद जब चलने की बारी आती तो हर बार यही सुनने को मिलता कि बस 5 मिनट में यह चढाई समाप्त हो जायेगी। 5-5 मिनट करके पूरी चक्र गिराने वाली चढायी के चक्कर समाप्त होने में लगे रहे।

हम तीनों में से एक बन्दा यहाँ पहले भी आ चुका है उसने बताया कि एक बडा सा पत्थर आयेगा तो समझ लेना कि अब कठिन चढायी खत्म हो गयी है। आधे घन्टे बाद वो बडा पत्थर आया। उस बडे पत्थर पर कुछ देर बैठकर विश्राम किया। वे दोनों लडके अपने साथ एक बडा खीरा लाये थे जिसका वजन एक किलो से कम नहीं होगा। बडे पत्थर पर बैठकर आधे खीरे को ठिकाने लगा दिया गया। खीरे को वे दोनों लडके लाये थे लेकिन उसमें से एक हिस्सा मुझे भी मिला। यहाँ से आधा किमी आगे जाने पर हल्की चढायी पर आते ही एक दुकान आ गयी। हम यहाँ नहीं रुके। यहाँ से मार्ग सामने वाले पहाड के नीचे से समान्तर चलता हुआ आगे चलता है। आधा किमी बाद पगडन्डी खुले मैदान में जाकर निकलती है खुले मैदान वाली जगह को ल्वीटी बुग्याल के नाम से पुकारा जाता है। ल्वीटी बुग्याल में रहने व खाने का एक ठिकाना है। हम तीनों उसके यहाँ एक घन्टा रुके। इस दौरान उसने हमारे लिये मैगी बना दी। करीब 12 बजे हमने आगे की राह पकडी।

ल्वीटी बुग्याल से आगे का मार्ग खुले में है जंगल के बडे पेड समाप्त हो जाते है। इक्का दुक्का पेड ही कही-कही नजर आ रहे थे। गोपेश्वर वाले लडके मुझे बोले कि आप तो दिल्ली वाले हो लेकिन पहाड में हम पहाडियों से कडा मुकाबला कर रहे हो। तैयारी करके आओ तो कोई भी कही भी मुकाबला कर सकता है। बिन तैयारी के तो दिल्ली की सडकों पर चलना मुश्किल है। एक बजे पनार बुग्याल पहुँचे। ल्वीटी के बाद पगडंडी कही-कही से टूटी हुई दिखायी दे रही थी। पनार पहुँचकर वो दोनों चाय पीने के लिये दुकान में चले गये। जबकि मैं वहाँ से चारों ओर के नजारे देखने की कोशिश करने लगा। बादलों के कारण सामने घाटी का साफ नजारा दिखायी न दिया। उन दोनों के चाय पीते ही हम आगे चल दिये। पनार के बाद आगे का मार्ग काफी सरल बताया जाता है।

पनार के बाद अगले दो-तीन किमी कच्चा व साधारण मार्ग है। जिस पर चलते हुए ज्यादा परेशानी नहीं आयी। आगे जाकर एक जगह पहाड के इस पार से उस पार निकल आते है इसे पितृ धार बोलते है। यहाँ कुछ देर रुके। इस द्वार से आगे का मार्ग ठीक श्रीखण्ड महादेव के मार्ग जैसा दिखायी दे रहा था। कभी ऊपर तो कभी नीचे होते हुए पहाड की धार के बराबर से होते हुए चलते रहे। कई पहाड पार किये। यह जगह पंचगंगा के नाम से पुकारी जाती है। पनार के बाद यह इलाका कई तरह के घास व फूलों का घर निकला। पनार के बाद करीब तीन घन्टे चलने के बाद रुद्रनाथ केदार के एक किमी दूर से दर्शन हुए। पनार से रुद्रनाथ के बीच रहने व खाने के लिये बीच में एक ठिकाना भी मिला था जहाँ उन दोनों ने चाय पी थी। मैंने दूध के लिये बोला था। रुद्रनाथ से करीब आधा किमी पहले भी एक रहने व खाने का ठिकाना है जहाँ मैंने पता किया तो बताया कि 250 रु में एक बन्दे का रहने खाने का शुल्क लिया जाता है। इसी ठिकाने के बराबर में ही पानी का श्रोत भी है। मन्दिर वालों को भी पानी लेने के लिये यहीं आना पडता है।


दोनों लडके मन्दिर के मुख्य पुजारी के जानकार थे शायद उनके परिवार से थे वे वहाँ 5 किलो चीनी व चाय की पत्ती लेकर गये थे। पुजारी जी पुराने फोटोग्राफर थे। मेरे गले में कैमरा देखते ही बोले “अहा मेरी पसन्द का कैमरा! “ मैंने पुजारी जी से पूछा कि पुजारी जी रात में रहने का ठिकाना वो पानी के पास ही है या मन्दिर के पास भी कोई है। मेरे साथ आये दोनों बन्दों ने पुजारी को मेरे बारे में बता दिया था कि यह बन्दा अभी रुपकुन्ड, मदमहेश्वर व अनुसूईया होकर यहाँ रुद्रनाथ जी के दर्शन करने आया है। मेरे रहने के स्थान पूछते ही पुजारी जी बोले, मेरी पसन्द का कैमरा लेकर यहाँ भोलेनाथ के घर आये तो तो रहने के ठिकाने की चिंता न करो। तुम मेरे भाईय़ों के साथ यात्रा करके आये हो तुम इनके साथ ही मन्दिर में रुकोगे व मेरे कक्ष में भोजन करोगे। पंच केदारों में सबसे कठिन केदार रुद्रनाथ के पुजारी जी के कक्ष में उनके साथ भोजन वो भी उनकी तरफ से निमंत्रण मिलने के बाद, भला कौन मूर्ख मना कर सकता था। मैं भी मना कैसे करता। मेरा सामान बाहर ही रखा था। फोटो मैंने यहाँ आते ही लेने शुरु कर दिये थे। पुजारी जी से तो बाद में मिले थे। (continue)





















8 टिप्‍पणियां:

MAHESH SEMWAL ने कहा…

aap ne haal mei ki yatra ki yaad taza kar di

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-06-2016) को "वक्त आगे निकल गया" (चर्चा अंक-2372) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Unknown ने कहा…

जब आप यात्रा करते हो हज़ारोंं लोगों की दुआऐं आप के साथ होती हैं फिर भी लापरवाही सही नही है।

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Sachin tyagi ने कहा…

घना जंगल, जंगली जानवरों से भरा, फिर एक जानवर का सामने से निकलना, मिट्टी का खुंदा पाना। वाकई एक खौफ पैदा करने वाला है मन में।
बाद मे अनजान साथी मिले, मन्दिर मे शरण भी।बहुत कुछ था इस पोस्ट में। अच्छा लगा...

रमता जोगी ने कहा…

शानदार...मजा आ गया

अनिल दीक्षित ने कहा…

राम राम जाटदेवता

Anoop Annu Bisht ने कहा…

बहुत अच्छा लगा भाई जी

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