शनिवार, 4 जून 2016

Roop kund trek- Shilasamundra to Vaan रुपकुण्ड ट्रैक- शिला समुन्द्र से वाण गाँव तक

नन्दा देवी राजजात-रुपकुण्ड-मदमहेश्वर-अनुसूईया-रुद्रनाथ-04           लेखक SANDEEP PANWAR
इस यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है। जिस पर क्लिक करोगे वही लेख खुल जायेगा।
 भाग-01 दिल्ली से हरिद्वार होकर वाण तक, बाइक यात्रा।
भाग-02  वाण गाँव से वेदनी होकर भगुवा बासा तक ट्रेकिंग।
भाग-03  रुपकुण्ड के रहस्मयी नर कंकाल व होमकुन्ड की ओर।
भाग-04  शिला समुन्द्र से वाण तक वापस।
भाग-05  वाण गाँव से मध्यमहेश्वर प्रस्थान।
भाग-06  मध्यमहेश्वर दर्शन के लिये आना-जाना।
भाग-07  रांसी से मंडक तक बाइक यात्रा।
भाग-08  अनुसूईया देवी मन्दिर की ट्रेकिंग।
भाग-09  सबसे कठिन कहे जाने वाले रुद्रनाथ केदार की ट्रेकिंग।
भाग-10  रुद्रनाथ के सुन्दर कुदरती नजारों से वापसी।
भाग-11  धारी देवी मन्दिर व दिल्ली आगमन, यात्रा समाप्त।
शिला समुन्द्र से वापसी में मुझे जुरां गली (जुनार गली) तक ही चढाई चढनी थी जुनार गली के बाद तो वाण तक उतराई ही उतराई है। वो मार्ग देखा हुआ भी है। मैं रात को 10 बजे तक भी वाण पहुँच ही जाऊँगा। सुबह 9 बजे जुनार गली से यहाँ के लिये उतरा था वापसी में जुनार गली तक पहुँचने में 11:45 हो गये। ठीक 12:00 बजे रुपकुन्ड पहुँचा। अब यहाँ काफी लोग थे। मैं कही नहीं रुका। रुपकुन्ड चढने में मुझे समस्या नहीं आयी लेकिन यहाँ से उतरने में कई बार बैठकर उतरना पडा। दो तीन जगह फिसलने वाला मार्ग था जिस पर चढते समय बन्दा आसानी से चढ जाता है लेकिन उतराई में गिरकर चोट लगने का खतरा बन जाता है। 12:35 मिनट पर चिडिया नाग नमक जगह पहुँचा। चिडिया नाग से आगे मार्ग आसान हो जाता है। भगुवा बासा पहुँचकर समय देखा 01:29 मिनट हो गये थे। कलुवा विनायक 2 वजे तक पार हो गया। आज खोपडी खराब थी। भूख भी नहीं लगी थी। इसलिये कही रुककर क्या करना था। पातर नचौनी 3 बजे तक पहुँच गया। वेदनी पहुँचते-पहुँचते शाम के 04:30 बज गये। जिस दुकान पर कल चावल खाये थे। सोचा कि सुबह से खाली पेट हूँ कुछ बना होगा तो खा लूँ। दुकान वाला बोला पराँठे रखे है उसने पराँठे दिखाये वो शायद दोपहर के बने हुए थे। उन्हे देखकर भूख भी गायब हो गयी।


वेदनी से आगे चल दिया। करीब 5 बजे डौलियाधार पहुँचा। यहाँ कुछ लोग बैठे हुए थे। मैं भी कुछ देर के लिये यही बैठ गया। बिस्कुट के एक पैकेट को यहाँ खाली करने के बाद वाण की उतराई आरम्भ की। 05:24 मिनट पर गैरोली पाताल पहुँचा। नील गंगा का पुल पार करते-करते अंधेरा होने लगा। पुल पार करने के बाद एक किमी की चढाई आती है इसे चढने में रुपकुन्ड से लौटते यात्री की बची कुची सारी ताकत लग जाती है। अंधेरा होने के कारण टार्च जलानी पडी। एक किमी की चढाई के बाद वाण गाँव की आबादी दिख जाती है। यहाँ रणकाधार से वाण की सडक तक जाने में जो तीखी उतराई उतरनी पडती है उसे याद करने पर सारी यात्रा की कठिनाई फीकी पड जाती है। जैसे-जैसे मंजिल नजदीक आती रहती है। शरीर की हिम्मत भी जवाब देने लग जाती है। आखिरी का एक किमी बडी मुश्किल से पार किया। करीब 8 बजे वाण गाँव पहुँचा। आप सोच रहे होंगे कि मुझे सभी स्थानों  पर पहुँचने का सही समय कैसे याद है? मैंने लगभग हर जगह के फोटो लिये थे फोटो में दिनांक व समय रहता है। आप अपने सभी फोटो को देखिये उनके ऊपर माऊस क्लिक किये बिना निशान को ले जाओ। आपको दिखायी दे जायेगा कि आपने यह फोटो कब व किस समय लिया था?

अगले पूरे दिन वाण में विश्राम किया। नन्दा देवी राजजात यात्रा की डोली को वापिस वाण लेकर आना होता है जो आज यहाँ आयेगी। वाण गाँव के बहुत सारे लोग सुतोल गाँव सुबह ही चले गये थे। जो शाम होने तक वाण लौट आयेंगे। शाम को मन्दिर में कार्यक्रम है उसी को देखने के लिये मैं भी वाण रुक गया। वाण में दो बार आने के कारण कई निवासी मुझे जानने लगे। उनके साथ बैठकर समय बिताया। नन्दा देवी राजजात के कुछ यात्री तो दोपहर के दो बजे तक वाण आने भी शुरु हो गये थे। शाम को भन्डारे का आयोजन किया गया था जिसकी तैयारी के लिये गाँव की महिला व पुरुष लगे हुए थे। शाम को मन्दिर के भन्डारे का लाभ मैंने भी उठाया। पहली बार यहाँ के भण्डारे का लाभ लिया। दो साल पहली वाली यात्रा नवरात्रों के समय की थी। तब भी यहाँ भण्डारा हुआ था लेकिन उस समय मैं और मनु भन्डारे में नहीं आये थे। यहाँ भन्डारे में नैनीताल के करीब किसी आश्रम में रहने वाले एक महाराज मिले। जब उन्हे पता लगा कि मैं दिल्ली से बाइक पर आया हूँ और कल शिला समुद्र से वाण लौटा हूँ तो वे बातचीत करने के लिये मेरे पास आकर बैठ गये। उन्होंने घन्टा भर बात की। इस यात्रा के समय वाण के कई लोग मुझे जानने पहचाने लगे थे।

 मैं इस बार भी वाण के पोस्टमैन जी के यहाँ ही ठहरा हुआ था। इस बार उन्होंने कमरे का किराया 75 रु प्रति रात्रि के हिसाब से लिया। दिन में मैंने आधा किलो सेब भी उनकी दुकान से लिये थे जिसके पैसे उन्होंने नहीं लिये। बोले, सेब तो आपने यही खाये होंगे ना, अगर घर लेकर जाते तो पैसे लेता। मैंने कहा, “वाण में सेब उगाना शुरु कर देना चाहिए। यहाँ ठन्ड के दिनों के अच्छी खासी बर्फ़ भी गिरती है ऊँचाई भी सेब की फसल के अनुसार ठीक ही है। उन्होंने कहा अब तक किसी ने इस बारे में सोचा नहीं है। लेकिन इस साल पक्की सडक बनने से लोग सेब की खेती के बारे में जरुर सोचेंगे। अभी तक वाण सडक ने नहीं जुडा हुआ था इसलिये दुर्गम इलाके में आता था।

ऐसे दुर्गम इलाकों में पैदल ही बन्दा पहुँच जाये, यही बडी बात थी। अब तो गांव के लोग आलू की खेती भी खूब करते है मैंने शाम के समय देखा था कि एक मिनी ट्रक में आलू की बोरियाँ लाधी जा रही थी। अच्छा है सडक से जुडने पर गाँव के लोगों को अपना सामान सिर पर तो नहीं ढोना पडेगा। मैंने पहाडों में देखा है कुछ गाँव नदी के एकदम पार होने के कारण तार के सहारे बने झूलों से अपना सामान आसानी से सडक किनारे पहुँचा देते है। अगर गाडी से इस सडक तक उनका सामान लाना पडे तो कई घन्टे लग जाते है उससे पहले उन्हे घन्टों पैदल चलकर अपना सामान छोटी गाडियों तक पहुँचाना पडता है। पहाड का कठिन रहन रहन देखते हुए शहर में पलायन करने वाले लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है।


रात को भन्डारा का प्रसाद रुपी रोटी सब्जी खाने के बाद अपने कमरे में सोने चला गया। सोने से पहले कमरे के बाहर पिछली यात्रा के मनु के पोर्टर रहे कुवँर सिंह मिल गये। कुवँर ने यहाँ आने घुमक्कडों के काम की कई छोटी-मोटी चीजे बेचनी शुरु कर दी है। उनमें से मुझे सिर पर लगाने वाले लाइट पसन्द आ गयी। उसके दाम 200 रु बताये। उस समय मेरी जेब में पैसे नहीं थे इसलिये बोल दिया कि सुबह दे दूँगा। सुबह उठकर मदमहेश्वर के लिये निकलने का इरादा था। सुबह उठकर अपना सामान पैक किया। बाइक चलाने में लगाने वाले पैर के घुटने का पैड व हाथों की कोहनी सुरक्षा व दस्तानों के अलावा सब सामान रकसैक में वापिस गायब हो गया। बैग लेकर बाहर आया तो देखा कि कुवँर सिंह वाली दुकान अभी बन्द है। सोचा थोडी देर में खुल जायेगी लेकिन 15 मिनट बाद भी दुकान नहीं खुली तो उसका दरवाजा देखा। बाहर से ताला नहीं लगा था। दरवाजा पीटा तो एक बन्दा बाहर आया। उससे कुवँर सिंह के बारे में पता किया। उसने कहा वो तो पीछे कमरे में सो रहा है। लगता है ये सब देर रात तक मन्दिर कार्यक्रम में जागते रहे होंगे जिस कारण अब सुबह सभी सोये पडे होंगे। कुवँर सिंह नहीं उठा तो उस लडके को 200 रु देकर बताया कि शाम को सिर पर लगाने वाली एक लाइट ली थी ये उसी के पैसे है। पैसे देकर अपनी बाइक नीली परी के पास चलते है। तीन दिन हो गये। उसके दर्शन नहीं हुए। बेचारी नीली परी नीचे सडक किनारे सुनसान अकेली खडी होगी। (continue)




















5 टिप्‍पणियां:

Yogi Saraswat ने कहा…

भाई जी सच में प्रकृति और यात्रा का असली आनंद आप ही उठा रहे हो ! सर पर लगाने वाली टोर्च वोही वाली जो पहाड़ पर चढ़ने वाले और खदान वाले लगते हैं ? अच्छी चीज है !!

Sachin tyagi ने कहा…

बेहतरीन यादगार यात्रा।

Romesh Sharma ने कहा…

zabardast stemina hai
khali pet bhi chala liya

Sandeep Singh Marwah ने कहा…

bahut badiya Sandeep bhai, last time hum log ghoda-lotaani tak he jaa paye the. raste mai stove khraab hone se wapsi karni padi thi hame.

विकास गुप्ता ने कहा…

यादगार यात्रा रही ये आपकी। काफी नई चीजों की जानकारी भी प्राप्त हुई हमें।

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