श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- हवाई यात्रा की तैयारी, हवाई अड़ड़े पर उड़ान रद्द होने की घोषणा।
02- राष्ट्रीय रेल संग्रहालय (चाणक्यपुरी)
SRINAGAR BY AIR YATRA-01
01- हवाई यात्रा की तैयारी, हवाई अड़ड़े पर उड़ान रद्द होने की घोषणा।
02- राष्ट्रीय रेल संग्रहालय (चाणक्यपुरी)
SRINAGAR BY AIR YATRA-01
सरकारी कर्मचारी होने का सबसे बड़ा लाभ तब पता
लगता है जब उन्हे लम्बे अवकाश के साथ-साथ प्रत्येक चार वर्ष के अन्तर पर पूरे भारत
में किसी एक जगह सपरिवार घुमक्कड़ी करने के लिये
आने-जाने का किराया मिलता है।
चार साल में सरकारी किराया मिलने वाली सुविधा लगभग सभी राज्यों में उपलब्ध है। कुछ
राज्य तो अपने कर्मचारियों को बिना यात्रा पर जाये नगद भुगतान कर देते है। सरकारी कर्मचारियों में अफ़सरों को हवाई
जहाज से जाने की सुविधा शुरु से ही मिलती है तो अन्य श्रेणी के कर्मचारी रेलवे के
दूसरी या तीसरी श्रेणी के वातानुकुलित डिब्बे में यात्रा करने के पात्र होते है।
सरकारी कर्मचारी होने का सबसे बड़ा लाभ तब पता
लगता है जब उन्हे लम्बे अवकाश के साथ-साथ प्रत्येक चार वर्ष के अन्तर पर पूरे भारत
में किसी एक जगह सपरिवार घुमक्कड़ी करने के लिये
आने-जाने का किराया मिलता है।
चार साल में सरकारी किराया मिलने वाली सुविधा लगभग सभी राज्यों में उपलब्ध है। कुछ
राज्य तो अपने कर्मचारियों को बिना यात्रा पर जाये नगद भुगतान कर देते है। सरकारी कर्मचारियों में अफ़सरों को हवाई
जहाज से जाने की सुविधा शुरु से ही मिलती है तो अन्य श्रेणी के कर्मचारी रेलवे के
दूसरी या तीसरी श्रेणी के वातानुकुलित डिब्बे में यात्रा करने के पात्र होते है।
बीते साल के साथ सरकारी यात्रा का जो ब्लॉक ईयर समाप्त हुआ है उसमें शुरु के 2 साल तक पूर्वी भारत में हवाई जहाज से आने-जाने की सुविधा
मिली थी। उस block year के अंतिम 2 वर्ष में जम्मू और
कश्मीर के किसी भी हवाई अड़ड़े तक आने-जाने की सुविधा मिली थी। चार साल में मिलने
वाली इस यात्रा के साथ-साथ प्रत्येक सरकारी कर्मी को दस दिन का वेतन भी (उसकी
इच्छा यदि हो तो) मिल सकता है। सरकारी कर्मचारी रिटायर होने तक हर ब्लॉक ईयर में यह सुविधा उठा सकता है।
यदि कोई बन्दा/बन्दी 18-20 साल की उम्र
में ही सेवा में आ गया हो तो ऐसा कर्मी 9-10 बार यात्रा भत्ता
ले सकता है, लेकिन 10 दिन के EL अवकाश का भुगतान उसे केवल 6 बार ही मिल सकता है। दस दिन का भुगतान भी कर्मचारी को
मुफ़्त में नहीं मिलता है इसके लिये उसे अपने अर्जित अवकाश में से 10 दिन कटवाने होते है। रिटायर होते समय 300 दिन से ज्यादा का भुगतान नहीं मिलता है। 10-10 दिन करके कर्मी रिटायर होने से पहले ही 300 दिन से अलग 60 दिन का पैसा खा सकता है। मैं इस यात्रा में
दूसरी बार यह 10 EL का भुगतान ले पाऊँगा।
अपनी आदत सरकारी यात्रा को अंतिम समय तक टालने
की होती है इसके दो कारण है। पहला कारण रुपये का है इसे आसानी से समझाता हूँ कि
मान लो कोई कर्मचारी आज सरकारी यात्रा पर जाता है तो उसे 10 दिन के वेतन का भुगतान आज के वेतन अनुसार
होगा। यदि आज से चार साल बाद यानि वर्तमान ब्लॉक ईयर 2014-2017 के अंतिम माह में
यह सरकारी यात्रा की जाये तो दस दिन के पैसों का भुगतान उस समय के वेतन अनुसार
होगा। अपुन ठहरे महाकंजूस? अत: मेरे जैसे तो
अंतिम छमाही में सरकारी यात्रा लेने की फ़िराक में रहते है। अब दूसरे कारण पर आते है। सरकारी कार्य और
आदेश कब परिवर्तन कर दे, इसका कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसलिये अंतिम समय में
शानदार मौके की इन्तजार करने में मजा आता है।
अब वर्तमान यात्रा पर चलते है। ब्लॉक ईयर 2010-2013 की सरकारी यात्रा, जिसे हम एल टी सी कहते है। शुरु के 2 वर्षों में पूर्वी भारत में हवाई जहाज से जाने की छूट के
बाद अंतिम 2 वर्षों में कश्मीर राज्य में हवाई यात्रा करने की
छूट मिल रही थी। मेरे जैसे सिरफ़िरे घुमक्कड़ यदि चार साल में मिलने वाली सरकारी
यात्रा के भरोसे बैठ जायेंगे तो फ़िर तो हो ली घुमक्कड़ी। अपना एक साल में कम से कम 9-10 यात्रा करने का लक्ष्य रहता है। यात्रा इससे
ज्यादा ही हो जाती है। अब बीते कुछ वर्षों से तो ऐसी हालत हो गयी है कि यदि मैं दो
महीने तक घर से बाहर घूमने ना जाऊँ तो जान पहचान वाले टोकने लगते है कि भाई क्या
हुआ?
बीते साल अक्टूबर माह के बाद कोई नई यात्रा
नहीं हो पायी थी। नवम्बर माह में एक दिन की एक छोटी सी यात्रा अवश्य हुई थी। उस
दिन हम गुफ़ा वाले बाबा मन्दिर के साथ पुरा महादेव मन्दिर को देखते हुए एक शादी में गये थे। उस यात्रा
का विवरण अभी नहीं बताया गया है। आजकल मिलने वाली सरकारी हवाई यात्रा में एक विशेष
पैकेज की सुविधा मिल रही है। इसमें जाने वाले बन्दे को हवाई किराये के साथ तीन दिन
श्रीनगर में रहना व गाड़ी में घूमना फ़्री में मिल रहा था। मैंने नेट पर श्रीनगर के
टिकट के दाम देखे तो वे बहुत कम निकले। जबकि पैकेज वाले टिकट के दाम एक बन्दे के
ही 18000 रु बताये गये थे। खैर दाम कितना भी हो उससे
अपुन को क्या करना? जब जेब से कुछ जाना नहीं था तो कितना भी टिकट हो ड़रना काहे का?
सरकारी यात्रा में 90% अग्रिम भुगतान भी मिलता है। जिन लोगों के पास
यात्रा पर खर्च करने के लिये जमा पूँजी नहीं होती है वे अपने कार्यालय से 90% अग्रिम भुगतान ले लेते है बाकि बचा 10% यात्रा करने के बाद टिकट प्रस्तुत करने पर मिलता
है। दो-दो बार की चिकचिक अपुन को पसन्द नहीं है। अत: मैंने पहले अपनी जेब से पैसे लगाकर ही टिकट बुक करना
उचित समझा। सन 2009 की सिरदर्दी याद है। दो-दो बार फ़ाइल चलाना आफ़त का काम लगता है। अपने कार्यालय
में कई ट्रेवल एजेन्ट आये थे उनमें से एक का नम्बर मेरे पास था।
इसलिये मैं उसके जरिये अपने चार हवाई टिकट बुक
करने को बोल दिया। एजेन्ट को 50000 हजार रुपये नगद दे
दिये गये। पैसे लेते समय एजेन्ट बोला था कि आपको 22 दिसम्बर के टिकट
मिल जायेंगे। सुना था कि ये एजेन्ट हवाई जहाजों की सीट ब्लॉक करके रखते है। अगले
दिन मैं अपने कार्यालय में सरकारी यात्रा यानि LTC की इजाजत लेने की
फ़ाइल चला दी। फ़ाइल चलाने के अगले दिन एजेन्ट के कहा कि आपके टिकट की तारीख बदलनी
पडेगी। अब क्या हुआ? आपके वापसी के टिकट नहीं मिल रहे है।
दूसरी तारीख के टिकट लेने के लिये पहले भेजी
गयी फ़ाइल वापिस आना जरुरी था। चार दिन बाद उपायुक्त कार्यालय से फ़ाइल वापिस आयी तो
उस पर एक आपत्ति लगी थी। अगली बार फ़ाइल चलाते समय उस आपत्ति का ध्यान भी रखना
पडेगा। मैंने पुन: एजेन्ट के पास जाकर अपने टिकट बुक कराये। अबकी बार साल के
अन्तिम दिन 31 DEC जाने की योजना बनायी गयी थी। वहाँ से वापसी 5 जनवरी को बनायी गयी। चार दिन वहाँ रहने के दौरान एक दिन
श्रीनगर शहर के स्थानीय स्थल, दूसरे दिन पहलगाम, तीसरे दिन गुलमर्ग जाने की योजना
थी अंतिम दिन कश्मीर रेलवे में भ्रमण करना तय किया गया।
सब कुछ तय हो चुका था। हवाई जहाज के टिकट बुक
थे। मैंने एजेन्ट से पैकेज के लिये मना कर दिया था। एजेन्ट केवल तीन दिन रुकने के
लिये बोल रहा था। तीन दिन में कश्मीर में या अन्य किसी पहाड़ी स्थल पर जाने का क्या
लाभ? हवाई जहाज के टिकट बुक होने के बाद मैंने नेट पर कई जगह के नम्बर लिये। उनसे
बात की। जहाँ एजेन्ट ने प्रति सीट 6000 में कश्मीर घूमाने
की बात कही थी। जिससे मुझे 24000 रु देने थे। मैंने
जिन लोगों से बात की थी वे सभी 17000 से 22000 के मध्य अपने पैकेज बता रहे थे। मैंने अपने
हिसाब से इससे भी सस्ता लेकिन अच्छा प्लान बनाने की सोच ली थी।
बोम्बे में रहने वाले विशाल भाई भी मेरे साथ
कश्मीर जाने के इच्छुक लगे। विशाल ने पहले सोचा कि मेरे साथ कार्यालय के साथी
यात्रा पर जा रहे है इसलिये उन्होंने कहा कि अपनी गाड़ी में मेरे लिये जगह बना
लेना। लेकिन जब मैंने विशाल से कहा कि मेरे साथ श्रीमति जी व दोनों नटखट बच्चे जा
रहे है तो विशाल बोला क्या संदीप भाई आपने पहले क्यों नहीं बताया कि आप सपरिवार
कश्मीर जा रहे है। विशाल भाई आपको पता नहीं है LTC यात्रा सपरिवार ही
की जाती है। वैसे करने को अकेले भी कर सकते है लेकिन जब परिवार ले जाने की सुविधा
है तो परिवार क्यों छोडा जाये?
विशाल सपरिवार कश्मीर जाने की योजना बनाने लगा
लेकिन विशाल भाई के साथ एक समस्या थी कि वह रेल में बोम्बे से जम्मू तक आने वाले
थे। जवाहर सुरंग में बर्फ़बारी के चलते वापसी में जम्मू से उनकी ट्रेन छूट सकती थी।
यह अच्छा रहा कि विशाल भाई ने यह यात्रा नहीं की अन्यथा जिस दिन मैंने वापसी की थी
उस दिन दोपहर बाद जवाहर सुरंग में जोरदार बर्फ़बारी हुई थी। विशाल भाई अपने परिवार
के साथ वहाँ अटक सकते थे। दूसरा कारण विशाल को समय कम होने से दोनों ओर से तत्काल
के टिकट बुक करने पड़ते। अगर तत्काल में सीट ना मिलती तो?
यात्रा पर जाने से दो दिन पहले ही अपना सप्ताह
भर का अवकाश शुरु हो चुका था चूंकि मैंने इस यात्रा के हिसाब से अपनी 9 EL अवकाश बचाये हुए थे। लेकिन अंतिम समय में
तारीख बदलने के कारण 7 EL अवकाश बेकार चले
गये। एक घुमक्कड़ होने के नाते सात अवकाश बेकार जाना बहुत खल रहा था। कार्यालय में
अपना ज्यादातर कार्य कम्प्यूटर पर ही होता है। इसलिये अपने सीनियर साथी को कह दिया
था यदि कुछ जरुरत पड़ी तो फ़ोन कर देना। मेरा लेपटॉप मेरे साथ ही रहेगा।
यात्रा की तैयारी एक दिन पहले ही निपटा दी गयी
थी। यदि मैं अकेला जाता हूँ तो केवल दो जोड़ी कपड़े ही साथ लेकर जाता हूँ। अपना
रकसैक बैग राकेश के पास से घर आ चुका था। अब तक मैंने सोचा था कि श्रीमति जी भी
दो-दो जोड़ी कपड़े लेकर जायेगी। कश्मीर में पड़ रही जोरदार बर्फ़ के कारण हुई ठन्ड़ ने
बच्चों के लिये मोटे गर्म कपड़े ले जाने पर विवश कर दिया। अब तक एक बैग में समाने
लायक सामान था। लेकिन शाम होते-होते सामान बैग से बाहर झांकने लगा तो दूसरे बैग को
भी साथ लेना पड़ा। अब दो बैग तैयार हो गये थे। बच्चों के लिये बिस्कुट के बीस पैकेट
भी ले लिये गये। बच्चों के साथ घरवाली भी बिस्कुट चट करने की शौकीन है।
सुबह घर से जल्दी निकलना था इसलिये एक ऑटो वाले
से पहले ही बात कर ली गयी। वैसे तो मैंने सुबह 11:10 वाली फ़्लाइट के
टिकट बुक किये थे ताकि सुबह जल्दी भागम-भाग ना मचानी पड़े। पहली बार हवाई यात्रा
करने जा रहा हूँ। इसलिये फ़्लाइट से तीन घन्टे पहले पहुँचना तय किया। ऑटो वाले को
सुबह 6 बजे आने को बोल दिया था। ऑटो वाला भी पक्का
निकला। ठीक 6 बजे घर के सामने हाजिर हो गया। ठन्ड़ में सभी
नहा-धोकर तैयार थे। श्रीनगर की कड़कड़ाती ठन्ड़ में नहाया जाये या नहीं क्या मालूम?
श्रीनगर पहुँचने में दोपहर के तीन बजने वाले थे इसलिये घर से कुछ खा-पीकर चलना
उचित समझा। जब तक हमने नाश्ता किया, ऑटो वाला हमारा इन्तजार करता रहा।
ठीक 06:25 पर हमने अपना
सामान ऑटो में रख दिया। लोनी मोड़, गोकुलपुरी, मौजपुर, सीलमपुर, शास्त्री पार्क, बस
अड़ड़ा, तीस हजारी, बर्फ़खाना, फ़िल्मीस्तान, ईदगाह संचार हाट, करोलबाग होते हुए
वीडियोकॉन टावर के पास वाली हनुमान मूर्ति के सामने जा निकले। सुबह का समय होने के
कारण दिल्ली की सड़कों पर भीड़ नदारद थी। इन सड़कों
पर मैं कई बार यात्रा कर चुका हूँ। ठन्ड़ी हवाओं से बचने के लिये गर्म चद्दर निकाल कर
ओढनी पड़ी।
यहाँ
हनुमान मूर्ति के सामने से करोलबाग-गुड़गाँव के बीच चलने वाली दिल्ली परिवहन निगम की बसे सुबह से ही मिलती है।
यदि मैट्रों में यहाँ तक आ जाये तो यहाँ से बस में बैठ आगे की यात्रा कर सकते है। करोलबाग
से बुद्धा गार्ड़न होते हुए धौला कुआँ पहुँचने में धुन्ध का सामना करना पड़ा। इस मार्ग
पर एयरपोर्ट मैट्रो के नीचे से होकर आगे चलते गये। धौला कुँआ चौराहा कई साल पहले लाल
बत्ती रहित बना दिया गया है। मेरे घर से यह चौराहा 26 किमी दूर
है यहाँ तक मैं 3 बार साईकिल पर ऐसे ही घूमने आ चुका हूँ।
धौला
कुआँ आते ही वाहनों की भीड़ दिखायी देने लगी। मैट्रो कुछ देर गायब रहने के बाद एक बार
फ़िर हमारे ऊपर आ गयी थी। आगे जाने पर कई फ़्लाईओवर मिलते है जिनके ऊपर से होकर आगे बढते
गये। आखिरी फ़्लाईओवर पर अन्तराष्ट्रीय हवाई अड़ड़े के टर्मिनल संख्या 3 पर जाने के लिये सीधे हाथ रहने के संकेत दिखायी
देने लगे। हमें टर्मिनल 3 पर ही जाना था। इस टर्मिनल 3
से एयर इन्डिया की विदेशी के साथ देशी उड़ाने भी उड़ती है जबकि अन्य एयरलाइन्स
पुराने टर्मिनल/पालम से ही उड़ती है।
हमारा
ऑटो वाला हवाई अड़ड़े के अन्दर जाने से पहले एक टोल बूथ पर एकदम सीधे हाथ आ गया। इधर
क्यों? सुनकर ऑटो वाले ने बताया कि सीधे हाथ रहने पर
टोल रहित निकल जाते है क्योंकि यहाँ पर अन्य टोल बूथों की तरह उल्टे हाथ फ़्री निकलने
वाला प्रबन्ध नहीं है। जिन लोगों को इस बात का पता नहीं होता वे अन्य दो लाईन में लग
जाते है जहाँ पर टोल कटवा कर जाना ही पड़ता है। इस टोल से केवल दुपहिया व तिपहिया वाहन
की बिना शुल्क के निकल सकते है।
टोल से
आगे जाते ही ऑटो वाले ने पहले से खड़ी नीले/जामुनी रंग की बस के सामने ऑटो रोक दिया। ऑटो वाले ने कहा कि यहाँ से आगे ऑटो
ले जाना मना है। अब आगे के दो किमी आपको इस नीली बस से जाना होगा। जिस बस में हम बैठने
वाले थे उसके बोर्ड़ पर लिखा था टर्मिनल 3 के लिये फ़्री सेवा।
ऑटो वाले को पहले से तय 400 रु देकर आगे बढे। वैसे मीटर से 36
किमी दूरी के लिये 250 रु किराया बना था। हम अपना
सामान लेकर बस की ओर चले ही थे कि बस का चालक बोला अन्दर बैठो, बस थोड़ी देर में जाने वाली है। हम बस में जाकर बैठ गये।
थोड़ी
देर में ही बस चल पड़ी। ऑटो वाले ने घन्टे भर में यहाँ तक पहुँचा दिया था। बस ने दो-तीन
मिनट में ही टर्मिनल 3 के सामने पहुँचा दिया। बस से सामान उतार कर हवाई अड़ड़े की इमारत में प्रवेश करने से पहले वहाँ मौजूद सुरक्षा कर्मी से यह पता किया कि बोर्डिंग पास कहाँ से मिलते है? बोर्डिंग
पास लेने के लिये स्वचालित सीढियों से होकर ऊपरी मंजिल पर जाना होता है ऊपरी मंजिल पर पहुँचकर स्वचालित सीढियाँ समाप्त हो जाती है। दोनों बच्चे स्वचालित सीढियाँ पर जमकर धमाल करने में लगे हुए थे।
स्वाचालित
सीढियाँ समाप्त होते ही सबसे ऊपर पहुँच चुके थे। यहां पहुँचने के लिये निजी कार वाले फ़्लाईओवर के जरिये अपनी कार सामने तक ला पा रहे थे। अपना सामान लेकर एक दरवाजे से अन्दर जाने लगे तो सुरक्षा कर्मी ने टिकट माँगा। उसे टिकट दिखाया तो उसने सबके पहचान पत्र माँगे। अपना व श्रीमति
का पहचान पत्र तो पहले से तैयार था लेकिन शुक्र रहा कि बच्चों का स्कूल का पहचान पत्र कल की तैयार कराया था। एक पडौसी कुछ दिन पहले ही सरकारी यात्रा पर कश्मीर घूमने गया था। उन्होंने मुझे कहा था कि बच्चों का पहचान पत्र भी साथ ले जाना।
सुरक्षा
कर्मी ने हमारे पहचान पत्र देखकर अन्दर जाने दिया। लगे हाथ उसने यह भी बता दिया कि E व G काऊँटर पर एयर इन्डिया के बोर्डिंग पास मिल जायेंगे। हम E काऊँटर पर पहुँचे। इस काऊँटर पर अपना ई टिकट
दिखाकर अपने बोर्डिंग पास बनवा लिये। बोर्डिंग पास के साथ-साथ
बडे दोनों बैग भी उनके हवाले कर दिये गये। जो स्वचालित मार्ग से आगे भेज दिये गये। मेरे बोर्डिंग पास पर दोनों बैग की चिट चिपका दी गयी।
जो इस बात का प्रमाण थी कि हमने दो बैग दिये है।
हम
बोर्डिंग पास मिलते ही चैक इन कराने पहुँच गये। चैक इन कराने के लिये हैन्ड़ बैग में भी एक टैग लगाना पड़ा। लैप टॉप, मोबाइल
व जैकेट
भी तलाशी के लिये निकालनी पड़ी। चैक इन के लिये हम चारों को अपना-अपना
बोर्डिंग पास साथ रखना पड़ा। चैक इन करा कर समय देखा तो दो घन्टे बचे थे। दो घन्टे बिताने के लिये लैपटॉप चालू कर लिया। जब एक घन्टा बाकि रहा तो वहाँ से अपने बोर्डिंग पर लिखे गेट की ओर चल दिये। गेट पर पहुँचने के बाद खाली सीट पर बैठ गये।
बच्चे
चैन से बैठने वाले कहाँ थे? बच्चे कैसे चैन से बैठते? जब
उनके माँ-बाप
पूरे शैतान रह चुके हो? रह
चुके नहीं, बल्कि
अभी भी है? हमारी
फ़्लाइट के लिये बोर्डिंग करने का समय 10:30 बजे का था। लेकिन जब हमें बताया गया कि आपकी फ़्लाईट श्रीनगर में बर्फ़बारी होने से एक बजे जायेगी तो एक बार मायूसी तो हुई। पहली बार हवाई जहाज में बैठने जा रहे थे। उत्सुकता कुछ घन्टे आगे सरक गयी थी। अब हमारे पास 2 घन्टे थे जिसका बच्चों ने स्वचालित सीढियों पर खेलकर जमकर लुत्फ़ उठाया।
जब
दोपहर का एक बजा तो हमें बताया गया कि श्रीनगर में अभी भी बर्फ़बारी हो रही है। आज श्रीनगर के लिये कोई फ़्लाइट नहीं जायेगी। अब क्या होगा? सभी
यात्रियों ने हंगामा कर दिया। एयर इन्डिया वाले सबको मैनेजर के पास लेकर चल दिये। हम नीचे जाने लगे तो हमारे बोर्डिंग पास पर कैंसिल का ठप्पा लगा दिया गया। मैनेजर दो-दो
फ़्लाइट के यात्रियों को झेल रहा था। एक साथ इतनी सवारियाँ देख कर वहाँ मौजूद कर्मचारियों के हाथ-पाँव
फ़ूल गये।
मैनेजर
ने स्पष्ट किया कि जो लोग ट्राजिट में है उन्हे एयर लाइन्स की तरफ़ से कमरा उपलब्ध कराया जायेगा। लेकिन जो लोग दिल्ली या आसपास के है उन्हे टैक्सी का किराया दिया जायेगा। अधिकतर लोगों ने अपने टिकट कैंसिल करा दिये। अपुन यात्रा कैंसिल कराने के इरादे से नहीं आये थे। मैंने मैनेजर से कहा, “ मुझे
श्रीनगर जाना है आज नहीं तो कल, कल
नहीं तो परसों” मैनेजर
बोला जिन यात्रियों को कल यात्रा करनी है वे अपने टिकट के नम्बर लिखवा दे। कल आने वाले यात्रियों को टैक्सी का किराया दे दिया जायेगा। (कल
की घटना तो आज से बुरी गुजरी क्योंकि कल भी हमारी फ़्लाइट तय समय नहीं उड़ पायी। अब दिन के तीन-चार
घन्टे बाकि है। चलो दिल्ली का कोई शानदार स्थल ही देख लिया जाये।)
5 टिप्पणियां:
वाह, चार वर्ष में ही सही लम्बी और व्यापक यात्रा की शुभकामनायें।
सन्दीप भाई राम राम, फ्लाईट कैन्सील बहुत बुरा हुआ,पर चलो कल तो अपना है
भाई यही घटना मेरे साथ पिछली जनवरी मे हुई एक तो पहली बार हवाईजहाज से जा रहा था काश्मीर,वो भी पांच घन्टे लेट हवाईजहाज मे बैठे बैठे ऊब गए,फिर मौसम साफ हुआ तब जाकर हम उडे अपनी मन्जिल की ओर.
जाट भाई आप की यात्रा लेख पढ़ कर अपनी यादें ताजा हो गई.
सन्दीप भाई राम राम, फ्लाईट कैन्सील बहुत बुरा हुआ,पर चलो कल तो अपना है
भाई यही घटना मेरे साथ पिछली जनवरी मे हुई एक तो पहली बार हवाईजहाज से जा रहा था काश्मीर,वो भी पांच घन्टे लेट हवाईजहाज मे बैठे बैठे ऊब गए,फिर मौसम साफ हुआ तब जाकर हम उडे अपनी मन्जिल की ओर.
जाट भाई आप की यात्रा लेख पढ़ कर अपनी यादें ताजा हो गई.
लम्बी यात्रा ...सन्दीप भाई
अब यह कोई संदीप कि बाईक तो थी नहीं कि धर्र्र्रर्र्र्र्र्र्र्र कि और चल दी --यही तो हवा में उड़ने वाला पुष्पक विमान था --तो संदीप, तुम भी इसके चक्कर में पड़ ही गए हा हा हा हा हा
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