श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से श्रीनगर तक की हवाई यात्रा का वर्णन।02- श्रीनगर की ड़ल झील में हाऊस बोट में विश्राम किया गया।
03- श्रीनगर के पर्वत पर शंकराचार्य मन्दिर (तख्त ए सुलेमान)
04- श्रीनगर का चश्माशाही जल धारा बगीचा
05- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-निशात बाग
06- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-शालीमार बाग
07- श्रीनगर हजरतबल दरगाह (पैगम्बर मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित है।)
08- श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा राइड़ /सैर
09- अवन्तीपोरा स्थित अवन्ती स्वामी मन्दिर के अवशेष
10- मट्टन- मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर व ग्रीन टनल
11- पहलगाम की सुन्दर घाटी
12- कश्मीर घाटी में बर्फ़ीली वादियों में चलने वाली ट्रेन की यात्रा, (11 किमी लम्बी सुरंग)
13- श्रीनगर से दिल्ली हवाई यात्रा के साथ यह यात्रा समाप्त
SRINGAR FAMILY TOUR- 01
दिल्ली से श्रीनगर जाना भी
एक समस्या बन गया। कल साल 2013 का आखिरी दिन था
सोचा था कि नया साल ड़ल झील में घूमकर बितायेंगे, लेकिन कहते है ना किस्मत में जो
लिखा होता है वही होता है। मुझे तो श्रीनगर जाना ही था इसलिये हवाई अड़ड़े पर आज के
लिये लिखवा कर ही कल घर आये थे। एयरलाईन्स वालों ने कहा था कि अपने कल के टिकट को
कस्टमरकेय़र पर फ़ोन कर पता कर लेना। सुबह घर से निकलने से पहले ही टिकट कन्फ़र्म हुआ
या नहीं, इस बात को पक्का करने के लिये जब कस्टमरकेयर पर फ़ोन लगाया तो उन्होंने
कहा कि आपको काऊँन्टर पर जाकर ही टिकट के बारे में पता लगेगा। अब ड़र सताने लगा कि
यदि हम आज भी हवाई अड़ड़े से घर वापिस आ गये तो मौहल्ले में मजाक का विषय बन जायेगा।
कि चले थे हवाई जहाज में घूमने।
जेब में कश्मीर घूमने के लिये 18,000 रुपये बचाये हुए थे। इसलिये यह पहले ही तय कर लिया था कि यदि आज भी हवाई जहाज नहीं जा पाया तो एक कार किराये पर लेकर राजस्थान भ्रमण पर निकल जाऊँगा। देखते है किस्मत में क्या लिखा है? जिस ऑटो में हम लोग कल हवाई अड़ड़े गये थे वह रात में ऑटो चलाता है इसलिये उसको सुबह 5 बजे फ़ोन लगाकर कहा कि सुबह 7 बजे से पहले आ जाना। उसने कहा, क्या आप लोग कल नहीं गये? ना, श्रीनगर में कल पूरे दिन बर्फ़ पड़ रही थी। छोड़ इन बातों को साथ जायेगा तो सारी बाते बता दूँगा। ऑटो वाला ठीक 06:30 पर घर के सामने आ गया।
अपने कल वाले बैग बिना खोले रखे थे। उन्हे ऑटो
में रख हवाई अड़ड़े चल दिये। आज भी ऑटो वाला उसी मार्ग से लेकर गया, जिससे कल गये
थे। जहाँ कल थोड़ी धुन्ध थी उसके विपरीत आज मौसम साफ़ था। आज भी ऑटो के किराये में
चार सौ रुपये खर्च हो गये। हवाई अड़्ड़े के बाहर उसी जगह उसी नीली बस में बैठकर हवाई
अड़ड़े चल दिये, जिसमें कल गये थे। बस अड़ड़े से हवाई अड़ड़े पहुँचने में मुश्किल से 5 मिनट ही लगते है। हवाई अड़ड़े पहुँचने के बाद आज किसी से कुछ
जानकारी लेने की आवश्यकता नहीं थी। हमें कल ही बता दिया गया था कि आपको कल सुबह
सबसे पहले वाले काऊँन्टर पर आकर एक स्लिप लेनी होगी।
बस से उतरते ही हम कल वाले ऑटोमैटिक सपाट मार्ग
से खड़े होकर बिना चलते हुए ऊपरी मंजिल पर पहुँच गये। ऊपर जाने के लिये सीढियों की
जगह सपाट मार्ग बनाया गया है। ऊपर जाते ही उल्टे हाथ, सबसे कोने वाले काऊन्टर में
पहुँच गया। यहाँ सबसे पहले टैक्सी के किराये को वापिस
लेना था। एक कर्मचारी को कल वाली काली-पीली टैक्सी की पर्ची दी तो उसने मेरे हाथ
से पर्ची लेकर उसका ड़बल पैमेन्ट दिला दिया। मैंने सिर्फ़ जाने की 700 रु की पर्ची ली थी आने के ऑटो 400 रु का मिला था। एयरलाइन्स वालों ने मुझे 1288 रु का भुगतान कर दिया। पर्ची में लगेज चार्ज
भी शामिल था, उसका किराया नहीं मिला।
मैं अपने पैसे लेकर दूसरी खिड़की पर पहुँचा। पहला
कार्य पॄर्ण हो चुक था। अब मुझे अपने कल के टिकट को आज की तारीख में बदलवाने के
लिये अपने बोर्डिंग पास दिखाये तो उस खिड़की की सुन्दर सी कर्मचारी ने मुझे आज की
तारीख के लिये स्लिप निकाल कर दे दी और कहा कि आप बोर्डिंग काऊंटर पर जाईये और आज
के बोर्डिंग पास ले लीजिए। समय देखा तो अभी सुबह के 08:30 बजे थे। काऊँन्टर से दिया गया पेपर लेकर
काऊन्टर संख्या E पर पहुँच गये।
कल वाले काऊन्टर से बोर्डिंग पास लेकर वही दोनों
बडे बैग भी जमा करा दिये। आज हमें जो बोर्डिंग पास दिये गये उसके अनुसार हमें गेट
संख्या 29 A पर पहुँचना था। बोर्डिंग पास लेकर चैक इन करने
लगे तो सबसे सीधे हाथ वाली खाली लाईन देखकर उसमें घुसा ही था कि वहाँ मौजूद
कर्मचारी बोला, सर यह लाईन केवल यहाँ कार्यरत कर्मचारियों के लिये है। दूसरी लाईन
में लगना पड़ा। कल घर से पानी की बोतल नहीं ली थी जिस कारण हवाई अड़ड़े से पानी की
बोतल मशीन से निकालनी पड़ी थी। आज घर से ही पानी की बोतल लेकर आये थे। पानी की बोतल
मैड़म के हैन्ड़ बैग में थी। चैकिंग वाली कर्मचारी ने मैड़म से उस बोतल से एक घून्ट
पानी पीने के लिये कहा। हवाई अड़ड़े पर कोई यात्री पानी की बोतल में तेजाब आदि ना ले
जाये इसलिये पानी पीने के लिये कहा जाता है। साथ ही सलाह भी दी कि इस बोतल को जहाज
में बैठने से पहले ही खाली कर लेना।
आज सीधे गेट नम्बर 29 A के सामने पहुँचे। बच्चों को ज्यादा देर तक
बिठाये रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था इसलिये बच्चे खेलने में लग गये। मैड़म
लेपटॉप पर फ़िल्म देखने की इच्छा जता रही थी इसलिये मैड़म को फ़िल्म चलाकर दे दी गयी।
अब शांति ही शांति थी। बच्चे चलने वाले पदमार्ग पर मजे उड़ा रहे थे जबकि मैड़म फ़िल्म
में खोयी थी। अपने जहाज के लिये बोर्डिंग करने का समय 10:30 मिनट का था लेकिन जब पौने ग्यारह बजे हमें बताया
गया कि श्रीनगर में मौसम खराब होने से जहाज 11:30 की जगह 12 बजे उड़ेगा। मुझे लगने लगा कि आज भी हमारी
यात्रा खटाई में पड़ने वाली है।
खैर एक घन्टा प्रतीक्षा करने के उपरांत हमारी
बारी चैक इन करने की आ ही गयी। ऐयर इन्डिया के जहाज में 180 सीट होती है इसलिये पहले सीट संख्या 15 से 30 तक की सवारियों को
आने के लिये कहा। मैंने टिकट देखा तो उस पर सीट संख्या 15 लिखी थी।
हवाई जहाज में देर से ही सही, आज तो घुस ही गये। जहाज में घुसने के लिये
सीधे चले गये। कोई सीढी-वीढी नहीं चढनी पड़ी। अन्दर जाते ही जहाज के फ़ोटो ले लिये, बाद
में क्या भरोसा कोई रोकने-टोकने लगे?
हवाई अड़डे से उड़ान होने से पहले फ़्लाइट
कर्मियों ने सभी यात्रियों को कुछ जरुरी बाते समझायी गयी। जो बाते उड़ान से पहले
बतायी गयी थी उसमें आपात स्थिती में आपातकालीन खिड़की के बारे में, सीट बैल्ट
बान्धने-खोलने के बारे में बताया गया। साथ ही यह भी बताया गया कि यदि आपको उड़ान के
दौरान साँस लेने में परेशानी हो तो आपकी सीट के ऊपर आक्सीजन मास्क भी लगा है उसे
खोल ले। इन सब बातों को बताने के बाद हमारा जहाज दिल्ली से श्रीनगर के लिये उड़
चला।
बच्चे कह रहे थे पापा जहाज में खाने को भी
मिलता है ना। जहाँ तक मुझे मालूम था कि इकोनामी टिकट पर भोजन की सुविधा नहीं मिलती
है। चाय-पानी भी पूछते है इसकी जानकारी नहीं थी लेकिन जब चाय/कापी के साथ ब्रेड़ भी
खाने को भी मिला तो मुझे आश्चर्य हुआ कि अरे ऐसा भी होता है। जम्मू से पहले सिर पर
दबाब महसूस हुआ। अपुन का 5 साल का लड़का सिर में
दवाब से काफ़ी परेशान हुआ। उसे आँखे बन्द कर बैठने को कहा। जब जहाज नीचे उतरने लगा
तो उसके सिर में आराम मिला।
पठानकोट के पास बर्फ़ के पहाड़ दिखने लगे थे। ऊपर
से पहाड़ छोटे-छोटे लग रहे थे। सड़क नहर जैसी लगती थी। बादल काफ़ी नीचे थे। लगता था
कि हम कम से कम 30,000 फ़ुट की ऊँचाई पर उड़
रहे होंगे। थोड़ी देर बाद जहाज के जम्मू हवाई अड़्ड़े पर उतरने की घोषणा हुई। जम्मू
उतरने से पहले सभी को अपनी पेटी बान्धने की चेतावनी दी गयी। पहली बार हवाई जहाज उतरने का रोमांच
देखना था अब तक सुना था कि उतरते समय जोर का झटका लगता है। जम्मू उतरते समय हल्का
सा झटका महसूस हुआ इससे ज्यादा तगड़े झटके तो दिल्ली की लोकल बसों में यात्रा
करते समय लग जाते है।
जम्मू हवाई अड़ड़े पर उतरते ही बताया गया कि बीस
मिनट बाद हमारा जहाज श्रीनगर के लिये उड़ान भरेगा। थोड़ी देर बाद हमारा जहाज जम्मू
से श्रीनगर के लिये उड़ चला। मुझे जहाज
में सबसे ज्यादा मजा तब आया, जब जहाज उड़ान भरने
के लिये एकदम तेज गति से भागता है। जहाज की अत्यधिक तेजी के कारण यात्री अपनी सीट से चिपककर रह
जाते है। जम्मू से उड़ते ही रावी नदी दिखायी देनी लगी है। हमारा जहाज
ऊपर चला जा रहा था तो जम्मू का स्टेडियम भी दिखा। मैंने जम्मू का स्टेडियम देखा है
जब मैं सन 2007 में अपनी बाइक लेकर पहली बार वैष्णों देवी गया
था तो इस स्टेडियम के मुहाने
तक मेरी बाइक चली गयी थी।
मणिका बेटी नाराज थी उसे दिल्ली से खिड़की की
सीट ना मिली थी। लेकिन जम्मू से आगे मणिका को खिड़की वाली सीट मिल गयी थी। जम्मू
में काफ़ी सवारियाँ उतर गयी थी कुछ यात्री नये भी आये थे लेकिन उतरने वाले यात्री
ज्यादा थे जिस कारण लगभग 25-30 सीट खाली दिखायी
दे रही थी। जम्मू से आगे जवाहर टनल वाले पहाड़ पर जहाज काफ़ी ऊँचे चला जाता है।
इस पहाड़ को पार करते समय हमारे जहाज ने जबरदस्त
हिचकौले खाये थे। हमारा जहाज खड़-खड़-गड़-गड़ जैसी आवाज कर रहा था। दिल में धुकड़-धुकड़
होनी लाजमी थी। हमें लग ही नहीं रहा था कि हम हवाई जहाज में है, लगता था कि जैसे हम लोनी मोड़ से शामली जाने वाली बस में
बैठे हो, उस सड़क में बहुत खड़ड़े है हमारा जहाज उन खड़ड़ो के बीच से निकल रहा हो। जहाज
को ड़रावनी आवाज करते देख, लगता था बेटा जाट का जहाज आज ही गिरेगा। अपनी पहली हवाई
यात्रा ही अन्तिम यात्रा साबित होगी।
शुक्र रहा कि कुछ मिनटो बाद सभी ड़रावनी आवाज
बन्द हो गयी। पहाड़ पार करते ही कश्मीर घाटी में बर्फ़ का समुन्द्र दिखाई देने लगा।
मेरी सीट खिड़की के पास ही थी। हवाई जहाज से नीचे घाटी का नजारा जहाँ तक दिखता था
वहाँ तक सफ़ेद समुन्द्र दिखायी देता है। हवाई अड़ड़े पर उतरने से पहले आसपास की
इमारतों पर भी बर्फ़ ही बर्फ़ मिली। जहाज जमीन पर उतरने के बाद हमारी हवाई यात्रा
समाप्त होने को थी। हवाई जहाज से उतरने के लिये सीढियों से उतरा गया। हवाई जहाज से
बाहर निकलते ही ठन्ड़ी हवाओं ने बता दिया कि श्रीनगर में मौसम काफ़ी खतरनाक मिलने
वाला है।
हवाई अड़ड़े से बाहर निकलने से पहले अपना सामान
ले लिया गया। अपना सामान लेकर बाहर आये। बाहर निकलने से पहले दो काऊँटर दिखायी दिये जिनमें होटल व हाऊसबोट
बुक करने वाले बैठे थे। मैंने पहले ही एक हाऊस बोट वाले से रहने व घूमने के लिये
बोल दिया था। बाहर निकलते ही मैंने वहाँ खड़े वाहन चालकों के हाथ में नाम लिखे
पर्चे पढने शुरु कर दिये। मुझे अपने नाम लिखा कोई पर्चा ना दिखा। जो बन्दा हमे
लेने आया था उसने संगीत तँवर लिखा हुआ पर्चा लिया हुआ था। मैंने बाहर निकलकर हाऊस
बोट वाले को फ़ोन लगाया और कहा कि कार चालक को SBI ATM के सामने खड़ा हूँ,
तो वह हमे लेने ATM के पास आया।
चालक हमारे साथ-साथ हाऊस बोट मालिक की 18-20 साल की लड़की को भी लेने आया था। उस लड़की का
हवाई जहाज हमारे जहाज से पहले आने वाला था लेकिन वह दिल्ली से ही 2 घन्टे लेट होने से हमारे बाद आया। बच्चों को भूख लगी थी
इसलिये उन्हे तब तक समौसे खिलाये गये। हवाई अड़ड़े के बाहर वाली दुकान पर मिलने वाली
समौसे की कीमत 30 रु प्रति समौसा थी। इतना महँगा समौसा? मेरे
जैसे कंजूस के लिये गजब वाली बात थी। दो घन्टे प्रतीक्षा करने के बाद हाऊस बोट
वाले की लड़की की फ़्लाईट भी आ गयी।
हम चारों कार में बैठकर चारों ओर फ़ैली बर्फ़बारी
का लुत्फ़ उठा रहे थे। यह बर्फ़बारी
कल हुई थी यदि यह बर्फ़ आज गिरी होती तो हम बर्फ़बारी का भी मजे लेते। कार चालक के
साथ उसकी 7-8 साल की लड़की भी साथ आयी थी। हाऊस बोट मालिक की
लड़की के आते ही हमारी कार ड़ल-झील स्थित हाऊस बोट की ओर चल पड़ी। हवाई अड़ड़े से ड़ल
झील की दूरी 16-16 किमी थी। यह दूरी तय करने में हमारी कार ने आधा
घन्टा ले लिया था। हवाई अड़ड़ा बड़गाम जिले में स्थित
है।
हमारी कार श्रीनगर बाईपास से गुलमर्ग की ओर
जाने वाले हाईवे पर बने फ़्लाईओवर के नीचे
से होकर निकली तो मैंने कार चालक से कहा यह कौन सा मार्ग है? उसने बताया कि यह
गुलमर्ग वाला मार्ग है। हम ड़ल झील स्थित हाऊस बोट जाने के लिये शिकारा स्टैन्ड नम्बर 7 पर कार से उतर गये।
कार से उतर कर हमने अपना सामान निकाला ही था कि हमें हाऊस बोट तक ले जाने के लिये मई फ़ैयर नामक शिकारा किनारे लग चुका था।
ड़ल झील किनारे पहुँच कर ठन्ड़ी हवाओं ने कुछ
ज्यादा असर दिखा दिया था। वैसे हमारा इरादा आज ही ड़ल झील में शिकारा की सैर करने का
था लेकिन हाऊस बोट मालिक की लड़की की फ़्लाईट में देरी होने से शाम होने को थी।
इसलिये हमने ड़ल झील में शिकारे की सैर कल के लिये टाल दी। चलो पहले हाऊस बोट चलकर
आराम किया जाये। अब कई दिन यही रहना है। देखते है कहाँ-कहाँ जा पायेंगे?
अगले लेख में आपको हाऊस बोट के बारे में विस्तार
से बताया जायेगा जिसमें हम जमाव बिन्दु तक पहुँच चुकी ड़ल झील में
लगातार 4 दिन ठहरे थे। (यात्रा जारी है।)
8 टिप्पणियां:
भाई राम राम आखिर मन्जिल तक पहुंच ही गए,जब फ्लाईट लेट हो जाती है तब मुसाफिरो को कुछ खाने के लिए दिया जाता है वो भी मुफ्त,बोटहाऊस मे बहुत ठण्ड होती है अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा.
छा गए गुरुदेव...यात्रा का आगाज़ बहुत ही सुंदर है...
संदीप जी
राम - राम , बहुत सुन्दर लगा सर्दियों में कश्मीर में घुमक्कड़ी कर रहे हो। अगली पोस्ट का इन्तजार है।
बहुत ही बढ़िया दिख रहा है कश्मीर मानो किसी विदेशी शहर में आ गए हो और वो किसी बस में जंजीरे क्यों बंधी थी --
बेहतरीन चित्रण........
सड़क पर यदि हिमपात हो चुका हो तो सड़क पर कार, मोटर साइकिल आदि वाहनों के पहिये फिसलते हैं। ऐसी किसी दुर्घटना से बचने के लिये पहिये के ऊपर चेन लपेट दी जाती है ताकि बर्फ में वाहन स्किड न करे !
कश्मीर के विभिन्न रंग हैं - गर्मियों में अलग और सर्दी की बर्फबारी के दिनों में बिल्कुल अलग । संदीप भाई, आपका जीवन्त वर्णन पढ़ कर और साथ ही मज़ेदार चित्र देखकर बहुत मज़ा आ रहा है।
बहुत ही सूंदर और सजीव जानकारी देने के लिए आपका धन्यवाद | आपके इस लेख से श्रीनगर जाने वालो को काफी मदद मिलेगी और वह अपने यात्रा का पूरा आनंद ले पाएंगे | श्रीनगर से दिल्ली की यात्रा का बहुत ही सूंदर उदहारण |
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