करेरी-कांगड़ा-धर्मशाला यात्रा के लिंक नीचे दिये है।
01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
05- धर्मशाला के चाय बागान के बीच यादगार घुमक्कड़ी।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान Back to Delhi
01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान Back to Delhi
KARERI-KANGRA-DHARAMSHALA-05
धर्मशाला में दोपहर का भोजन करने के उपराँत शहर से 6 किमी नीचे राकेश के कमरे
पर पहुँच गये। अब तक बारिश लगभग रुक चुकी थी। कमरे पर पहुँचते ही हमने अपने-अपने
बैग को उतार फ़ैंका। इस यात्रा में सबसे ज्यादा तंग टैन्ट के कारण हुए थे। टैन्ट की
पूरी कीमत राकेश ने चुकायी थी। टैन्ट का वजन 6 किलो का था, जिसे टैन्ट लाधकर चलना पड़ता था उसकी
नानी याद आती थी। लेकिन अपनी टोली भी पक्की हिम्मत वाली वाली थी कोई हार मानने को तैयार
नहीं होता था। वो अलग बात है कि जब तक सिर ओखली में नहीं दिया जाता था तब तक ही ड़र
लगता था। कमरे पर पहुँचने के बाद मनु व उसका दोस्त धर्मशाला के चाय बागान देखने निकल
गये। उन्होंने हमें बहुत कहा कि चलो लेकिन मैंने मना कर दिया कि नहीं मैंने पालमपुर
के चाय बागान देखे है, जाओ तुम जाओ। वे दोनों बागान देखने चले गये।
राकेश के कमरे से थोड़ा सा उपर चलते ही एक छोटी सी सड़क उल्टे
हाथ ऊपर को जाती है। इसी सड़क पर यहाँ के चाय बागान है। जब मनु व उसके दोस्त ने वापिस
आकर बताया कि यहाँ के चाय बागान बहुत सुन्दर है उनके कैमरे के फ़ोटो देखे तो मुझे भी
उन्हे देखने की ललक पैदा हुई मनु के दोस्त ने बताया कि चाय बागान जाते समय दो
स्थानीय लड़कियाँ मिली थी। उन्होंने हमें
चाय बागान के बारे में अच्छी तरह बताया था। मैंने पहले ही सोचा हुआ था कि अगले दिन
सुबह-सुबह कुनाल पथरी माता मन्दिर देखने जायेंगे। मन्दिर जाने के लिये चाय के बागान
से ही होकर जाना होता है। इसलिये आज बागान देखने व कल मन्दिर देखने के लिये एक चक्कर
फ़ालतू का क्यों किया जाये?
कमरे में पडे-पडे शाम हो
रही थी। दोपहर का खाना तो ऊपर से ही खाकर आये थे जब बात शाम के खाने की हुई तो करेरी
से वापिस लाये गये मैगी के पैकेट बनाकर खाने की बात हुई। वैसे भोजनालय भी नजदीक ही
था। लेकिन अपने हाथ से मैगी बनाकर खाने की बात निराली थी। हम करेरी से पूरे किलो भर
प्याज बचाकर लाये थे। मैगी बनाने के लिये सबको काम बाँट दिया गया। मिल जुलकर काम करने
का अलग अनुभव होता है। यदि टोली में एक बन्दा भी अकड़/अफ़सरी/साहिबगिरी दिखाने लगे तो
मूड़ खराब होते देर नहीं लगती है। मैगी बनाते समय राकेश की छोटी सी कडाही फ़ुल भर गयी
थी। मैगी बनने के तुरन्त बाद सभी एक साथ मैगी खाने के लिये टूट पडे। सबको बराबर मैगी
दे दी गयी थी कि कही बाद में कोई सा यह ना कहने लगे कि मुझे कम दी गयी थी।
मैगी खाकर, अपने-अपने बर्तन
साफ़ कर रख दिये। उसक बाद कुछ देर तक टीवी देखा गया। रात बीतने के साथ नीन्द आने लगी
तो जिसे जहाँ जगह मिली, वो वही सो गया। राकेश ने सोने के लिये दो पलंग पर मोटे गददे
डाले हुए है मुझे नर्म गद्दों पर सोने की आदत नहीं है इसलिये मैंने अपना बिस्तर फ़र्श
पर लगा दिया था। रात में अच्छी नीन्द आयी थी। अपनी आदत जल्दी उठने की है अत: आँख सुबह
जल्दी खुल गयी। नल के पानी में दो दिन से नहाये नहीं थे वो अलग बात है कि दो दिन से झमाझम बारिश
में घूमते फ़िर रहे थे। इस कारण नहाना बेहद जरुरी हो गया था। सभी बारी-बारी से गर्म
पानी में जमकर नहाये। धर्मशाला में ठन्ड़ थी लेकिन राकेश भाई के कमरे पर पानी गर्म करने
का यंत्र था गीजर से गर्म पानी कर लिया गया था।
नहा-धोकर चाय बागान व कुनाल
पत्थरी माता मन्दिर देखने के लिये बाहर आ गये। अभी सड़क पर पहुँचे ही थे कि राकेश ने
कहा कि चलो पहले नाश्ता कर लेते है। नाश्ता करने के लिये पास की दुकान में पहुँच गये।
नाश्ता करने के बाद, चाय बागान के लिये चल दिये। हमें दिल्ली के लिये रात की बस से
जाना था इसलिये अपना सभी सामान कमरे पर ही छोड़ दिया। बेफ़ालतू में बोझ लादे रखकर क्या
लाभ था? कुछ दूर जाते ही चाय बागान जाने वाला मार्ग अलग हो गया। इस पक्के मार्ग पर
अच्छी खासी चढ़ाई थी जिस कारण हम धीरे-धीरे चढ़ रहे थे। यह चढ़ाई पूरे एक किमी तक मिलती
रही। मार्ग भले ही चढाई वाला था लेकिन मार्ग के दोनों ओर की हरियाली देखकर यात्रा का
आनन्द बढ़ता जा रहा था।
इस मार्ग पर चलते हुए चीड़
के कुछ पेड़ दिखायी दिये। चीड़ के इन पेड़ों का दूध/गौन्द निकालने के लिये पेड़ में कटिंग
की हुई थी कटिंग वाले स्थान पर लोहे की एक कुप्पी भी लगायी गयी थी। इन्ही पेडों
में से एक में केकड़े ने अपना घर बनाया हुआ था। हम नजदीक जाते तो वह अन्दर छुप
जाता, हम दूर जाते तो वह बाहर निकल आता था। जैसे ही चाय बागान आरम्भ हुए तो मनु बताने
लगा कि कल हम यहाँ से बहुत आगे गये थे। अभी तक चाय बागान सड़क से ऊँचे बने हुए थे। कुछ
आगे जाने पर चाय बागान सड़क के बराबरी पर आ गये। हम चाय बागान में फ़ोटो लेने के लिये
एक अच्छे मौके की तलाश में थे चाय बागान की हरियाली को देखकर दार्जिलिंग व केरल के
चाय बागान याद आ रहे थे। (वो बागान मैं फ़ोटो में ही देखे है।) जल्द ही यूथ हास्टल के
कार्यक्रम में सपरिवार दार्जीलिंग जाने की योजना पर कार्य चल रहा है।
बागान सड़क के दोनों ओर फ़ैले
हुए थे। इनमें कई तरह की चिडियाँ दिखायी दे रही थी। मनु मुझे बार-बार कहता कि देखो
जाट भाई वो रही चिडिया। मनु मुझे बताकर, चिडियाओं के फ़ोटो लेने लग जाता था। मेरा मन
हरियाली देखने में व्यस्त था इसलिये मनु की बातों का मुझ पर ज्यादा असर नहीं हो रहा
था। राकेश अपने साथ गाने बजाने का यंत्र लाया था गाने सुनता हुआ राकेश लगभग नाचता हुआ
आगे चलता चला जा रहा था। एक जगह पता नहीं राकेश को क्या सूझा कि वह एक टीले पर चढ़कर
नाचने लगा। सुबह का मस्त मौसम व चारों ओर फ़ैली हरियाली देखकर सबका मन प्रसन्न था।
इस सड़क पर हमें
बिजली का एक खम्बा मिला, वह टूटा हुआ था। जिस पर भारतीय जुगाड़ प्रणाली से जोड़कर काम चलाऊ बना दिया गया था। ऐसा
ही जुगाड़ हमें श्रीखन्ड़ यात्रा में जाते समय शिमला से पहले मिला था। लेकिन इन दोनों
जुगाडों में एक बहुत बड़ा अन्तर है, बताओ? चाय बागान देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे सामने
से एक बन्दा आता हुआ दिखाई दिया।
उसने बारिश से बचने के लिये एक बड़ी मेज सिर पर रखी हुई थी। मेज सिर के ऊपर मेज के ऊपर
सामान रखकर वह चला जा रहा था। इस तरह का जुगाड़ करने में भारतीय हमेशा से अग्रणी रहे है।
इसी जुगाड़ के भरोसे भारत की केन्द्रीय सरकार कई सालों से चलती चली आ रही है फ़िर
बिजली के खम्बे की क्या औकात की वह खड़ा ना रह पाये?
चाय बागान में फ़ोटो लेने
लायक बेहतरीन स्थान दिखायी दिया। सब अपनी-अपनी फ़ोटो खिंचवाने में लग गये। चाय बागानों
में चाय के पौधों के बीच पैदल चलने लायक जगह बनायी गयी होती है ताकि मजदूर लोग इन पौधों
की पत्तियाँ तोड़कर आसानी से बाहर आ सके। यह पैदल मार्ग बेहद पतला होता है। इसमें एक
साथ दो बन्दों का निकलना भी आसान नहीं होता है। हम इन बागान में काफ़ी दूर तक जाकर
देख कर आये थे। सुबह का समय था इसलिये बागान में कोई कर्मचारी दिखायी भी नहीं दे
रहा था। राकेश ने बताया कि अब इन बागानों से बहुत कम बागानों से चाय तैयार होती
है।
यहाँ एक मोड़ पर सामान
बेचने जैसा स्थान दिखायी दे रहा था। जाते समय तो वहाँ कोई नहीं था लेकिन कुनाल
माता मन्दिर देखकर वापसी आते समय यहाँ एक बन्दा मिला था। उसने चाय की कई किस्म से
बनी पैकिंग वाली तैयार चाय की थैलियाँ बेचने के लिये रखी हुई थी। उससे उन चाय की
थैलियों के दाम पता किये। उसने सबसे कम दाम वाली चाय से लेकर महंगी से मंहगी चाय
के बारे में जानकारी ली। उसने बताया था कि सबसे सस्ती चाय मिलना यहाँ मुश्किल है।
सस्ती चाय आपको 150 रु किलों तक में मिल जायेगी जबकि मंहंगी चाय 10,000 रु प्रति किलो तक मिलेगी। चाय इतनी मंहगी भी हो सकती है मैंने
नहीं सोचा था। कुनाल पथरी माता का शक्तिपीठ मन्दिर अभी कुछ दूर बाकि रह गया
था। (यात्रा अभी जारी
है।)
8 टिप्पणियां:
सन्दीप भाई राम-राम.पहाडो की सुबह वाकई खुबसूरत होती है ताजी हवा पंछियो का शोर यह सब मन को एक ताजगी सी प्रदान करती है ओर रही जुगाड वाला अन्तर की बात तो शिमला से पहले वाले खम्बे को लकडी से जोडा गया था(शायद) ओर अब वाले को लोहे की कलेम्प से.
बहुत सुन्दर चित्र आए हे सुबह के.
अब तो भाई वेा दिन इतिहास बनकर ही रह गये जब हमने एक एक किलो प्याज यूं ही मैगी में खा डाली थी । उफ क्या स्वाद था उस मैगी का और उसके पहले सूप भी पिया था
Bahut acha laga aapka yatra vritaant.
अत्यंत रोचक वर्णन...
वो आदमी टेबल पर अपनी दुकान लेकर जा रहा है --जहाँ जगह मिली वही टेबल रखकर बैठ गए। … हे न-- बहुत सुंदर ग्रीनरी है धर्मशाला कि और चाय के बगान तो मेने भी देखे है
thanks sandeep jee aapne to hame ghar baithe hi Dharamshala pahucha diya
सुन्दर , खूबसूरत चित्रो से लवरेज
बहुत सुन्दर बन पड़े हैं चित्र...खासकर चिड़िया वाला...
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