UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-04 SANDEEP PANWAR
राजा विक्रम का दरबार स्थल विक्रम टेकरी पहुँचने के बाद कुछ देर आराम किया। इसके बाद वहाँ काफ़ी देर तक अच्छी तरह राजा विक्रम का नवरत्न दरबार स्थल देखते रहे। यहाँ लिखे गये बोर्ड़ से यह जाना कि राजा विक्रम भारत के महान राजा क्यों माने गये है। यह वही राजा जिनके नाम पर भारत का अपना तिथि कैलेन्ड़र चलाया गया था। विक्रम संवत के नाम से जाने जाने वाला कैलेन्ड़र दुनिया का सबसे पहला कैलेन्ड़र है। आज वर्तमान दौर में हम जिस अंग्रेजी कैलेन्ड़र के बारे में जानते है उसका आगमन तो इन राजा के कैलेन्ड़र के बहुत सालों बाद हुआ था। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है आज विक्रम संवत का 2070 वर्ष चल रहा है। जबकि अंग्रेजी कैलेन्ड़र में अभी सन 2013 ही चल रहा है।
उज्जैन में प्राचीन काल में आज से कोई 2100 वर्ष पहले राजा भृतहरि नामक राजा अय्याश राजा राज्य करता था। इस राजा की अय्याशी से परेशान होकर इसके छोटे भाई विक्रम ने राज्य छोड़ दिया था। इस राजा की 6 रानियाँ थी| लेकिन राजा इनमें से पिंगला नामक रानी से कुछ ज्यादा ही लल्लों-चप्पों करता था। इसके अलावा इस राजा के चित्रसेना नाम वैश्या के साथ भी घनिष्ट सम्बंध थे। यह राजा अय्याशी में इतना डूब गया था कि इसने अपना सारा राज्य मंत्रियों के भरोसे छोड़ दिया था। धीरे-धीरे समय बीतता रहा लेकिन राजा की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया।
एक दिन एक महात्मा राजा के दरबार में आया, उसने राजा भृतहरि को एक फ़ल दिया और कहा हे राजन! लो यह फ़ल इसे खाने वाला आजीवन जवान रहेगा, उसे कोई रोग नहीं होगा। पिंगला के प्यार में अंधा राजा उस फ़ल को लेकर उसके पास पहुँचा और बोला लो रानी तुम्हारे लिये ऐसा फ़ल लाया हूँ, जिसे खाने के बाद तुम हमेशा जवान रहोगी। इधर रानी की सैटिंग उसके रथ चालक के साथ हो गयी थी यानि रानी भी अय्याशी का लुत्फ़ उठा रही थी। रानी ने सोचा कि चलो अपने प्रेमी को यह फ़ल खिलाती हूँ ताकि वह हमेशा जवान रहे और मुझे खुश रखे। इधर रथ चालक पर भी महल की छाया का असर हो गया था वह एक वैश्या के हुस्न का दीवाना हो गया था।
रथ चालक ने रानी से उस फ़ल को लेकर खाने की बजाय उस वैश्या चित्रसेना के पास पहुँचा जिसे राजा भी दीवानगी की हद तक चाहता था। इधर वैश्या ने रथ चालक से वह फ़ल लेकर खाने की जगह यह सोचकर रख लिया था कि मैं बदनाम औरत इस फ़ल का क्या करुँगी। इस बेशकीमती फ़ल को राजा को खिलाऊँगी। ताकि हमारे राज्य की जनता को स्वस्थ व जवान राजा लम्बे वर्षों तक मिलता रहे। जब वैश्या चित्रसेना ने वह अनमोल फ़ल राजा को खाने को दिया तो राजा की खोपड़ी सटक गयी कि यह फ़ल इस वैश्या तक पहुँचा कैसे?
राजा ने चित्रसेना पर जोर दिया जिससे उसने बताया कि यह फ़ल उसे रथ चालक ने दिया है, रथ चालक को पकड़ा गया तो उसने बताया कि उसे यह फ़ल रानी पिंगला ने दिया है। राजा भृतहरि ने चित्रसेना व रथ चालक को हाथी के पैरों के नीचे कुचलवा कर मरवा दिया। लेकिन उसने पिंगला को नहीं मारा। लगे हाथ उसका भी टंटा साफ़ कर देता तो ठीक होता। इस घटना के बाद राजा का मन संसार से उठ गया उसने सन्यास ले लिया। उज्जैन के नजदीक ही इस राजा भृतहरि की तपस्या स्थली है जिसे हमने देखा भी था। आने वाले लेखों में उसकी सैर करायी जायेगी।
राजा भृतहरि के सन्यास की खबर सुनते ही उसका भाई विक्रम वापिस लौट आया। उसे राज्य का लालच तो नहीं था लेकिन राज्य लावारिस छोड़ने पर उसपर कोई सत्रु कब्जा कर सकता था। इसलिये उसने राज्य शासन सम्भाल लिया। इतिहास में विक्रमादित्य जैसे प्रजा की भलाई चाहने वाले राजा बहुत कम हुए है। इन्ही राजा विक्रम को एक योगी अपने वश में कर लेता है जिसे अपनी कोई इच्छा पूर्ति के लिये किसी भूत की आवश्यकता होती है बेताल नामक भूत को पकड़ने के लिये राजा योगी के वशीभूत होकर बार-बार श्मसान जाता है लेकिन बेताल राजा को बार-बार कहानियाँ सुनाकर उलझा देता था। इस भूत ने राजा विक्रम को कुल 25 कहानी सुनायी थी।
इन्ही राजा विक्रम के सिंहासन में कुल 32 पुतली वाले सिंहासन की बात पुस्तकों में बतायी जाती है।
सभी 32 पुतली के नाम इस प्रकार है-
1. मंजरी, 2. चित्ररेखा, 3. रतिभामा, 4. चन्द्रकला, 5. लीलावती,
6. काम कंदला, 7. कामदा, 8. पुष्पावती, 9. मधुमालती, 10. प्रेमावती, 11. पदमावती,
12. कीर्तिमती, 13. त्रिलोचनी, 14. रुद्रावती, 15. अनूपवती, 16. सुन्दरवती, 18 सत्यवती,
19. तारा, 20, चन्द्रज्योति, 21. अनुराधा, 22. अनूपरेखा, 23 करूपावती, 24 चित्रकला,
25. जयलक्ष्मी, 26. विद्यावती, 27 जगज्योति, 28. मनमोहिनी, 29. वैदेही, 30. रूपवती,
31. कौशल्या और 32. मैनावती।
उज्जैन यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
05- हरसिद्धी शक्ति पीठ मन्दिर, राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी।
06- उज्जैन का चार धाम मन्दिर व बिजली से चलने वाली झाकियाँ।
07- राजा भृतहरि की गुफ़ा/तपस्या स्थली।
08- गढ़कालिका का प्राचीन मन्दिर
09- शराब/दारु पीने वाले काल भैरव का मन्दिर
10- श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम का गुरुकुल/स्कूल संदीपनी आश्रम।
11- उज्जैन की महान विभूति सुरेश चिपलूनकर जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान
06- उज्जैन का चार धाम मन्दिर व बिजली से चलने वाली झाकियाँ।
07- राजा भृतहरि की गुफ़ा/तपस्या स्थली।
08- गढ़कालिका का प्राचीन मन्दिर
09- शराब/दारु पीने वाले काल भैरव का मन्दिर
10- श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम का गुरुकुल/स्कूल संदीपनी आश्रम।
11- उज्जैन की महान विभूति सुरेश चिपलूनकर जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान
6 टिप्पणियां:
kahani sun ker tho anand he aguya.. Waah!
सम्राट विक्रमादित्य, परमार वंश के महान राजा थे. इनका शासन संपूर्ण एशिया में था. आज के अरब देश इनके शासन में थे. वही पर इनके द्वारा स्थापित शिवलिंगम हैं....वन्देमातरम...
सँदीप भाई जी दुनिया गोल है .. कुछ समझे
सँदीप भाई जी दुनिया गोल है .. कुछ समझे
वाह, धारावाहिक याद आ गया।
विक्रम बेताल ओर सिहासन बतीसी तो बहुत फेमस सीरियल भी बन चुके है
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