UJJAIN-JABALPUR-AMARKANTAK-PURI-CHILKA-10 SANDEEP PANWAR
उज्जैन का अन्तिम व महत्वपूर्ण पर्य़टन स्थल संजीवनी आश्रम देखने के लिये हम मंगलनाथ मन्दिर से सीधी सड़क पर चलते हुए कुछ ही देर में संजीवनी आश्रम पहुँच गये। आज से कई हजार लगभग 5000 साल पहले यहां इसी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण व उनके भाई बलराम और उनके गरीब दोस्त सुदामा ने यहाँ शिक्षा प्राप्त की थी। आज से कुछ सौ वर्ष पहले तक गुरुकुल पद्धति से पढ़ाई होती थी लेकिन अंग्रेजों के भारत आने के बाद कान्वेन्ट ने गुरुकुल की जगह हथिया ली। आजकल गुरुकुल मुश्किल से ही दिखायी देते है जबकि निजी स्कूल हर गली मोहल्ले में दिखाती दे जाता है। गुरुल में रहते समय छात्र को अपने जीवन यापन के लिये भोजन भी गांव से माँग कर लाना होता था। जबकि स्कूलों में जमकर लूट मची हुई है। चलिये स्कूलों के चक्कर में ना पड़ते हुए संदीपनी आश्रम देखने चलते है।
आश्रम परिसर प्राचीन काल में भले ही काफ़ी बड़ा क्षेत्रफ़ल घेरे हुए रहा होगा लेकिन आजकल यह सीमित क्षेत्र मॆं सिमटा हुआ मिला। इस आश्रम परिसर में सिर्फ़ एक तालाब हमें ऐसा मिला जिसे देखने पर लगता था कि यह सच में कई हजार साल पुराना हो सकता है। इस तालाब का नाम गोमती कुन्ड़ दिया गया है। तालाब की गहराई व पत्थर की सीढ़ियाँ देखकर लगता है कि यह बहुत पुराना है। तालाब देख कर लगता है कि तालाब कुएँ की तरह जमीन के नीचे के पानी के तल तक खोदा गया होगा, जमीनी पानी से आश्रम की प्यास की जरुरत पूरी की जाती होगी!
यहाँ पर दो मुख्य मन्दिर है कुन्डेश्वर महादेव व सर्वेश्वर महादेव मन्दिर-
पहला मुख्य मन्दिर कुन्ड़ेश्वर महादेव मन्दिर है इस मन्दिर के अन्दर की हालत देखकर अंदाजा लगाना आसान है कि यहाँ हजारों साल पहले भी गतिविधियाँ होती रही है। इस मन्दिर के ठीक बाहर पीतल के कई साँप बनाकर रखे गये थे। हमने कई मन्दिर देखे है लेकिन मन्दिर के बाहर पीतल के साँप पहली बार देखे है। हो सकता है कि इसमें भी कुछ कारण हो?
दुसरा मुख्य मन्दिर सर्वेश्वर महादेव मन्दिर है इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है इसे स्वयं संदीपनी गुरु ने अपने हाथों से बनाया था। इस मन्दिर के बाहर लिखा हुआ था कि यह मन्दिर और इसमें बना शिवलिंग संदीपनी गुरु ने बिल्व पत्र से उतपन्न किया था। होने को कुछ भी सम्भव है। चलिये अब आगे चलते है इस आश्रम में देखने लायक बहुत कुछ है। मन्दिर की दीवार पर इसकी उम्र 6000 साल लिखी गयी जबकि महाभारत के बारे में बताया गया है कि यह 5000 साल पुरानी घटना है।
पहला मुख्य मन्दिर कुन्ड़ेश्वर महादेव मन्दिर है इस मन्दिर के अन्दर की हालत देखकर अंदाजा लगाना आसान है कि यहाँ हजारों साल पहले भी गतिविधियाँ होती रही है। इस मन्दिर के ठीक बाहर पीतल के कई साँप बनाकर रखे गये थे। हमने कई मन्दिर देखे है लेकिन मन्दिर के बाहर पीतल के साँप पहली बार देखे है। हो सकता है कि इसमें भी कुछ कारण हो?
दुसरा मुख्य मन्दिर सर्वेश्वर महादेव मन्दिर है इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है इसे स्वयं संदीपनी गुरु ने अपने हाथों से बनाया था। इस मन्दिर के बाहर लिखा हुआ था कि यह मन्दिर और इसमें बना शिवलिंग संदीपनी गुरु ने बिल्व पत्र से उतपन्न किया था। होने को कुछ भी सम्भव है। चलिये अब आगे चलते है इस आश्रम में देखने लायक बहुत कुछ है। मन्दिर की दीवार पर इसकी उम्र 6000 साल लिखी गयी जबकि महाभारत के बारे में बताया गया है कि यह 5000 साल पुरानी घटना है।
इसी आश्रम में 84 बैठक वाला विशाल कक्ष भी देखने लायक स्थान है। हमने पहले तो इस कक्ष को छोड़ ही दिया था लेकिन अपना एक साथी बोला चलो दो-चार मिनट इस कक्ष के नाम भी कर दी जाये। महाप्रभु जी कुल चौरासी बैठक बतायी जाती है यहाँ उन सभी बैठक के बारे में बताया गया है कि कब और कहाँ बैठक की गयी। लिखित और फ़ोटो के साथ सभी बैठक का विवरण इस विशाल कक्ष में दिया गया है। मैंने इस लेख में सिर्फ़ कुछ बैठक का ही चित्र व विवरण दिया है। मैंने खुद भी सभी बैठक का विवरण नहीं पढ़ा था। जो मुख्य स्थल थे सिर्फ़ वही के बारे में देखा था।
संदीपनी गुरु के इस आश्रम को देखने के साथ ही हमारी उज्जैन यात्रा के दर्शनीय स्थलों का समापन हो गया है लेकिन ठहरिये अभी इस यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण मिलन तो बाकि रह ही गया है। जो बन्धु उज्जैन में रहने वाले सुरेश चिपलूनकर जी बारे में जानते है वह यह जानकर खुश हो जायेंगे कि मैं सुरेश जी से दूसरी बार उनके कार्य स्थली पर मिलने के लिये गया था। अगले लेख में सुरेश जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान किया जायेगा। जबलपुर अपने तूफ़ानी भेड़ाघाट वाले धुआँधार जलप्रपात केलिये प्रसिद्ध है। (उज्जैन यात्रा अभी जारी है।)
संदीपनी गुरु के इस आश्रम को देखने के साथ ही हमारी उज्जैन यात्रा के दर्शनीय स्थलों का समापन हो गया है लेकिन ठहरिये अभी इस यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण मिलन तो बाकि रह ही गया है। जो बन्धु उज्जैन में रहने वाले सुरेश चिपलूनकर जी बारे में जानते है वह यह जानकर खुश हो जायेंगे कि मैं सुरेश जी से दूसरी बार उनके कार्य स्थली पर मिलने के लिये गया था। अगले लेख में सुरेश जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान किया जायेगा। जबलपुर अपने तूफ़ानी भेड़ाघाट वाले धुआँधार जलप्रपात केलिये प्रसिद्ध है। (उज्जैन यात्रा अभी जारी है।)
उज्जैन यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
05- हरसिद्धी शक्ति पीठ मन्दिर, राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी।
06- उज्जैन का चार धाम मन्दिर व बिजली से चलने वाली झाकियाँ।
07- राजा भृतहरि की गुफ़ा/तपस्या स्थली।
08- गढ़कालिका का प्राचीन मन्दिर
09- शराब/दारु पीने वाले काल भैरव का मन्दिर
10- श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम का गुरुकुल/स्कूल संदीपनी आश्रम।
11- उज्जैन की महान विभूति सुरेश चिपलूनकर जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान
06- उज्जैन का चार धाम मन्दिर व बिजली से चलने वाली झाकियाँ।
07- राजा भृतहरि की गुफ़ा/तपस्या स्थली।
08- गढ़कालिका का प्राचीन मन्दिर
09- शराब/दारु पीने वाले काल भैरव का मन्दिर
10- श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम का गुरुकुल/स्कूल संदीपनी आश्रम।
11- उज्जैन की महान विभूति सुरेश चिपलूनकर जी से मुलाकात व उज्जैन से जबलपुर प्रस्थान
जबलपुर यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
संदीपनी आश्रम में जाट देवता संदीप पवाँर |
14 टिप्पणियां:
कान्हा को पुराना कान्हा कहाँ रहने दिया है हमने, विकास में मिला लिया है।
कृषण के सकूल मे हाजरी लगा आए संनदीप जी।
दो बार ऐसा हुआ कि हम उज्जैन जाते जाते रह गये। अच्छा परिचय गुरुकुल का, अब सुरेश भाऊ से जाटदेवता की मुलाकात का इंतजार।
पढ़ती चली गई और उज्जैन के दृष्य सामने आते गए -आभार !
23 number wala photo tho bahut he shaandaar hai.
यह मंदिर मैंने नहीं देखा ...
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
कृपया मेरे ब्लॉग को भी देखे againindian.blogspot.com
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