EAST COAST TO WEST COAST-18 SANDEEP PANWAR
हम वापिस बाइक के पास आये तो संतोष की माताजी व पिताजी
जो कि खेत में ही निवास करते है। दोपहर के भोजन की तैयारी में संतोष की माताजी तैयार
बैठी थी, जब हम उनके पास पहुँचे तो चूल्हे पर बनी ताजी रोटियाँ देखकर हम अपने आप को
रोक ना सके। रोटियाँ खाते समय बसन्ता की बात का भी ध्यान रख रहे थे उसने कहा था कि
दोपहर का खाना उसके घर पर खाना है। माताजी के हाथ व चूल्हे पर रोटियाँ का स्वाद बेहद
ही स्वादिष्ट था। हमने कब तीन-तीन रोटियाँ चट कर डाली, पता ही नहीं लगा। हम रोटी खाकर
उठे भी नहीं थे कि बसन्ता वहाँ आ पहुँचा। उसने हमें रोटी खाते देखकर कहाँ मैं आपके
लिये दोपहर का भोजन बनवा कर तैयार करवा रखा है और आपने यही पेट फ़ुल कर लिया, अब हमारे
घर क्या खाओगे? मैंने कहा देख भाई तेरा पाला अब से पहले जाट से नहीं पड़ा है जाट वो
बला है जिससे मुगल तो मुगल अंग्रेज भी थर्राते थे।
संतोष के खेत से बसन्ता के गाँव जाने के लिये पहले कुरुन्दा
जाना होता है यहाँ संतोष की बाइक उसके घर पर खड़ी करने के बाद तीनों एक ही बाइक पर बसन्ता
के गाँव के लिये चल दिये। यहाँ भी बाइक चलाने की मेरी बारी थी। अन्जान बाइक उस पर तीन
सवारी, शुरु में बाइक थोड़ी ऊँट पटाँग चली उसके बाद ठीक ठाक सड़क आने पर बाइक आसानी से
चलने लगी। बसन्ता के गाँव का नाम कुरुन्दा वाड़ी है जो कुरुन्दा से लगभग तीन किमी दूरी
पर है। थोड़ी देर में ही हम उसके गाँव पहुँच गये। बसन्ता के गांव मुड़ने वाले मोड़ से
पहले संतोष बोला कि सामने एक बाँध है मैंने कहा चलो देखकर आते है। संतोष सोच रहा था
कि जाट देवता वहाँ जाने को तैयार ना होगा लेकिन जब मैंने बाइक सीधी चला दी तो संतोष
के झूठ का पता लगा कि वहाँ कोई बाँध आदि नहीं है। बसन्ता के घर जाते ही भोजन तैयार
मिला। सबसे पहले भोजन किया गया। भोजन में गुलाब जामुन यानि काले रसगुल्ले भी थे जो
घर पर बनाये गये थे उनका स्वाद बेहद लजीज था। अबकी बार जब भी बसन्ता के घर जाऊँगा फ़िर
से वही रसगुल्ले बनवाने को कहूँगा।
खाना खाकर बसन्ता के खेत देखने निकल पड़े। अब तक तो बाइक सड़क
के ऊपर चलायी जा रही थी लेकिन अब बाइक गाँव से बाहर निकलते ही बरसात के पानी बहने वाले
नाले के अन्दर (सूखा हुआ था) चलायी जा रही थी नाला एकदम उबड़-खाबड़ था जिससे उसमें बाइक
चलाने में मजा आ रहा था। जाते समय तो चढ़ाई थी जिससे बाइक आसानी से चली गयी थी वापसी
में ढ़लान होने के कारण बाइक कई जगह फ़िसलते हुए बच गयी थी। यहाँ एक बार फ़िर संतोष बोला
कि अब बाइक चलानी भूल गये हो। बसन्ता के खेत में पहुँचकर देखा कि वहाँ पर सूखे हुए
नाले किनारे इमली के पेड़ पर पकी हुई इमली लगी हुई थी। थोड़ी सी इमली खाने के बाद ही
अपने दाँत खट्टे हो गये। इमली छोड़कर खेत में पहुँचे तो वहाँ संतरे व मौसमी का पूरा
बगीचा देखकर दिल खुश हो गया। पेड़ से कई संतरे तोड़कर बसन्ता ने मुझे दिये और बोला कि
दिल्ली के लिये कितने संतरे थैले में पैक करवा दूँ। दिल्ली जाने में अभी कई दिन है
तब तक संतरों का जूस निकल कर गायब हो जायेगा।
बसन्ता के घर से चलने में ही दोपहर के एक बज चुके थे। शाम 5
बजे की ट्रेन पकड़ कर बोम्बे भी जाना था उससे पहले नान्देड़ के गुरुद्धारा में एक घन्टा
बिताना था। कुरुन्दा गाँव से नान्देड़ लगभग 25 किमी दूर था लेकिन बस से बसमत होकर जाना
पड़ता है जिससे दूरी कई किमी बढ़ जाती है। इसलिये बसन्ता के खेत से जल्दी ही वापिस चल
दिये। वापसी में बसन्ता के घर परिवार के सदस्यों को मिलकर वहाँ से संतोष के गाँव के
लिये चल दिये। वापसी में संतोष के घर पहुँचने से पहले सड़क पर सामने से आ रहे एक बाइक
सवार ने अपनी बाइक पर गैस सिलेन्ड़र लाधा हुआ था। एक गडड़े के चक्कर में वह हमसे टकराते-टकराते
बचा। लेकिन फ़िर भी हमारी बाइक के हैन्ड़िल में उसका जरा सा हिस्सा छू जाने से टन की
आवाज हुई थी। संतोष ने दिन में तीसरी बार टोक दिया कि मैं कह रहा हूँ कि साईकिल चलाने
के चक्कर में बाइक चलानी भूल गये हो। संतोष को मजाक करते देख, मैंने कहा ठीक है आजकल
के दोस्त ऐसे ही होते है जो बेमतब टाँग खीचने में लगे रहते है। कुछ देर संतोष के गाँव
रुकने के बाद मैंने कुरुन्दा वालों को नमस्कार कहा और बसन्ता की बाइक पर सवार होकर
बसमत होते हुए नान्देड़ के लिये चल दिया।
नान्देड़ पहुँचने से पहले बसमत जाना होता है
क्योंकि बसमत से ही बस की सुविधा प्राप्त है। कुरुन्दा से केवल बसमत तक की बस मिलती
है। बसन्ता ने बसमत में ही बाइक रिपेयरिंग व स्पेयर पार्टस बिक्री का काम किया हुआ
है, मणिमहेश यात्रा के समय संतोष तिड़के के साथ बसन्ता भी अपनी बाइक पर आया था। मैं
और विपिन स्कारपियो के चक्कर में वापसी में बस से कही ओर घूमने निकल गये थे। यह वही
बसन्ता था जिसने मणिमहेश यात्रा नहीं देखी है देख ले। बसमत से कुरुन्दा जाने वाली सड़क
पर ही बसन्ता का काम धाम है बसन्ता मुझे बाइक पर नान्देड़ तक छोड़ने के आमादा था लेकिन
मैंने कहा देख भाई नान्देड़ यहाँ से कम से कम 25 के करीब है आने-जाने में तुम्हे पचास
किमी बाइक चलानी होगी। हाँ यदि बसमत से नान्देड़ तक सीधी/तिरछी बस सेवा उपलब्ध नहीं
होती तो मैं तुम्हे जबरदस्ती नान्देड़ छोड़ने के कहता, लेकिन यहाँ से नान्देड़ के लिये
हर 10-15 में बस मिल जाती है। अत: मुझे बसमत के बस अड़्ड़े पर पहुँचा दो। बसन्ता मुझे
बाइक पर लाधकर बस अड़ड़े के लिये चल दिया। बस अड़ड़े के ठीक सामने एक और बाइक की दुकान
की थी जहाँ बसन्ता का मणिमहेश यात्रा का पार्टनर बैठा हुआ था। दोनों ने मुझे ठन्ड़ा
पिलाने के बाद ही बस में बैठने दिया।
मैं नान्देड़ जाने वाली बस में बैठ गया। बस चलने ही वाली थी कि कैलाश घर से 12 किमी दूर मुझे बाय-बाय करने पहुँच गया। जब मैंने कहा कि मैं घर तो मिलकर ही चला था फ़िर यहाँ क्यों आये हो? कैलाश कुछ नहीं बोला बस मुझे देखता रहा, यह हम सबका आपस का मेल मिलाप है जो हम हजारों किमी दूर बैठे हुए भी आपस में इतने घुल-मिल चुके है। कैलाश का चेहरा देखते ही पहचाना जा रहा था कि वह मेरे जाने से उदास है लेकिन क्या करे? अपुन ठहरे मुसाफ़िर, आज यहाँ कल वहाँ। जैसे ही बस वहाँ से चली, मैंने उन्हे हाथ हिलाकर पुन: मिलने का वायदा किया। सड़क पर वाहनों की ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी जिससे बस बिना किसी गतिरोध के तेजी से नान्देड़ की ओर बढ़ रही थी। मैं खिड़की के साथ ही बैठा हुआ था जिससे मोबाइल से बाहर के फ़ोटो लिये जा रहा था। जैसे ही नान्देड़ आया तो बस की गति भीड़ के कारण कम हो गयी। यहाँ मैंने नान्देड़ में ही रहने मदन वाघमारे को फ़ोन पर पहले ही सूचित कर दिया था कि मैं कुछ ही समय में पहुँच रहा हूँ, जैसे ही मैं बस से उतर कर नजदीक ही रेलवे स्टेशन पर पहुँचा तो वहाँ मदन मेरी प्रतीक्षा करता हुआ मिल गया। मदन की बाइक पर सवार होकर मैं नान्देड़ का श्री सच खन्ड़ गुरुद्धारा देखने चल पड़ा। (क्रमश:)
मैं नान्देड़ जाने वाली बस में बैठ गया। बस चलने ही वाली थी कि कैलाश घर से 12 किमी दूर मुझे बाय-बाय करने पहुँच गया। जब मैंने कहा कि मैं घर तो मिलकर ही चला था फ़िर यहाँ क्यों आये हो? कैलाश कुछ नहीं बोला बस मुझे देखता रहा, यह हम सबका आपस का मेल मिलाप है जो हम हजारों किमी दूर बैठे हुए भी आपस में इतने घुल-मिल चुके है। कैलाश का चेहरा देखते ही पहचाना जा रहा था कि वह मेरे जाने से उदास है लेकिन क्या करे? अपुन ठहरे मुसाफ़िर, आज यहाँ कल वहाँ। जैसे ही बस वहाँ से चली, मैंने उन्हे हाथ हिलाकर पुन: मिलने का वायदा किया। सड़क पर वाहनों की ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी जिससे बस बिना किसी गतिरोध के तेजी से नान्देड़ की ओर बढ़ रही थी। मैं खिड़की के साथ ही बैठा हुआ था जिससे मोबाइल से बाहर के फ़ोटो लिये जा रहा था। जैसे ही नान्देड़ आया तो बस की गति भीड़ के कारण कम हो गयी। यहाँ मैंने नान्देड़ में ही रहने मदन वाघमारे को फ़ोन पर पहले ही सूचित कर दिया था कि मैं कुछ ही समय में पहुँच रहा हूँ, जैसे ही मैं बस से उतर कर नजदीक ही रेलवे स्टेशन पर पहुँचा तो वहाँ मदन मेरी प्रतीक्षा करता हुआ मिल गया। मदन की बाइक पर सवार होकर मैं नान्देड़ का श्री सच खन्ड़ गुरुद्धारा देखने चल पड़ा। (क्रमश:)
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के आंध्रप्रदेश इलाके की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
04. विशाखापट्टनम का कब्रगाह, और भीम-बकासुर युद्ध स्थल।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के महाराष्ट्र यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के बोम्बे शहर की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
यह मेरा देश है जहाँ हर चीज की जुगाड़ सम्भव है। |
अमर सर्कस यह तो दिल्ली में मैंने देखा था। |
4 टिप्पणियां:
जय हो, जाट से मुग़ल अब भी घबराते हैं।
वाह वाह, खाने में आलू और पूरी और गुलाब जामुन बहुत खूब, महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्र को आप बखूबी दिखा रहे हो. धन्यवाद...
वाह जाट
JAT IS GREAT
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