दोपहर में दोना/डोना पाउला (दो सच्चे प्रेमी,) बीच देखने के बाद वापिस मुख्य कैम्प में लौट आये थे। अब हमारे पास कई घन्टे आराम करने के नाम पर रिक्त थे, लेकिन हम जैसे ऊँत खोपड़ी वाले प्राणी/जन्तु को आराम करने का विचार भी दिन में नहीं आ पाता था। मन में हमेशा एक सनक रहती थी कि चलो आसपास कुछ और देख आये, इसी चक्कर में हम कैम्प के ठीक पीछे समुन्द्र किनारे जा पहुँचे थे, यहाँ कमल अपने साथ अपना लैप-टॉप वाला छोटा थैला भी ले आया था, टैन्ट में अकेले किसके भरोसे छोड़ते? लेकिन इस बैग में कमल भाई अपने लिये कुछ माल मसाला भी लाये थे। जिसे उदर में ड़कारने से पहले अनिल ने उसके साथ एक फ़ोटो खिचवा लिया था। वहाँ एकदम सुहानी-मस्तानी ठन्डी पुरवायी चल रही थी, जिस कारण हमारे वहाँ दो घन्टे कब बीत गये? हमें पता ही नहीं लग पाया था।
अनिल का बीयर पीने का स्टाइल |
कमल का एक फ़ोटो पीते हुए ले ही लिया था। |
चल भाई, बीयर रख एक धोरे ने, इब माहरा फ़ोटो फ़ाड़ दे। (गुजराती में फ़ोटो लेने को फ़ाड़ना भी बोलते है।) |
बीयर पिये बिना यह हाल है तो पी के कितना होगा? |
हमारे कैम्प से सटा हुआ एक तरणताल था, जिसके बारे में हमने पता कर लिया था वहाँ कोई बाहरी बन्दा/लड़का/औरत/लड़की/बन्दी/विदेशी/देशी/डालडा/पहाड़ी/बौना/पहलवान यानि कोई भी वहाँ तैरने जा सकता था। इसमें प्रवेश के लिये बस तीन ही शर्त थी कि पहले तीस रुपये वाला टिकट लेकर आये, उसके बाद तैराकी वाली कोस्ट्यूम/कपड़े पहने, और वहाँ किसी का फ़ोटो ना खींचे। पहली दोनों बाते तो हम मान सकते थे लेकिन फ़ोटो वाली बात हमें पूरी नहीं माननी थी जिस कारण जितना मौका लगा हमने उतने फ़ोटो ले ही लिये थे। फ़ोटो के बारे में हमने पूछा कि फ़ोटो पर पाबन्दी क्यो? तो हमें जवाब मिला कि यहाँ महिलाएँ (विदेशी) भी टू-पीस में ही स्नान करती है अत: हमारे देश के पढ़े लिखे शरीफ़ लोग महिलाओं के नग्न फ़ोटो लेने के चक्कर में लग जाते है। बात तो ठीक ही थी हमारे देश के अधिकांश शरीफ़ लोगों को खुले आम कम कपडे पहने (नग्न) महिलाएँ (सोचने का/सभ्यता का फ़र्क है।) समुन्द्र किनारे या किसी तरणताल में ही तो नजर आती है। जिस कारण इन दोनों जगह काफ़ी सतर्कता बरती जाती है कि कोई अजनबी किसी महिला का आपत्ति जनक हालत में फ़ोटो ना लेने पाये।
Time table |
फ़ीस के बारे में, fees chart |
आंमद बहीखाता |
RULES |
एकदम खाली तरणताल |
बच्चों को एक तरफ़ तैरने की चेतावनी दी जा रही है। |
SWIMMING POOL |
हम तीनों ने तरणताल में स्वीमिंग करने के लिये तीन टिकट ले लिये, उसके बाद वहाँ नहाने के लिये तीन निक्कर भी लेने पड़े थे, अपने पास तो एकदम देशी स्टाईल वाले बडे-बडे नाडे वाले निक्कर थे, जिस कारण हमें 150 रुपये के हिसाब से 450 रुपये वहाँ खर्च करने पड़े। हम वहाँ काफ़ी देर तक नहाते रहे। वैसे मुझे ज्यादा खास तैरना तो नहीं आता है फ़िर भी 8-10 मीटर तक हाथ पैर चला लेता था। अनिल भी मेरे जैसा ही था जिस कारण हम दोनों एक ऐसे पुल में तैरने की कोशिश कर रहे थे जिसका एक सिरा पानी की गहराई के मामले में मात्र चार फ़ुट का ही था। जबकि उसी पुल में दूसरे किनारे की ओर बढ़ते रहो तो उसके पानी की गहराई बढ़ती हुई साढे 6 फ़ुट तक हो जाती थी। पहले तो मैंने और अनिल ने पाँच फ़ुट पानी में आधे घन्टे तक हाथ पैर चलाये उसके बाद हम गहरे पानी की ओर धीरे-धीरे बढ़ते रहते, जब पानी हमारे पैर की ऐडी उठाने के बाद हमारे नाक को डूबाने लगता था तो तब हम वापिस कम गहरे पानी की ओर अपनी अधकचरी तैराकी के भरोसे तैरते रहते थे। इसी कोशिश में हम लगभग 15 मीटर तक तैरने लगे थे।
हमारे एक जाबांज साथी कमल भाई वहाँ पर 15 फ़ुट गहरे पानी वाले पुल में ऊँचाई से दे दना-दन छलाँग पर छलाँग लगा रहे थे। पहले दस फ़ुट की आरम्भिक ऊँचाई से बढ़ता हुआ उनका जोश 15 फ़ुट की ऊँचाई से भी देखा था उसके बाद कमल भाई ने 20 फ़ुट की ऊँचाई से भी कई धमाकेदार छलाँग लगायी थी। एक अंग्रेज वहाँ पर सबसे ऊँचे पुल 30/35 फ़ुट की ऊँचाई से छ्लाँग रहा था। कमल भाई ने भी हमारे काफ़ी जोर देने के बाद एक बार 25 फ़ुट ऊँचाई वाले पुल से छ्लाँग लगाने की सोची थी लेकिन वहाँ जाकर कमल भाई की धैर्य शक्ति (हिम्मत) ने जवाब दे दिया था। जिस कारण कमल भाई ज्यादा ऊँचाई से नहीं कूद पाये।
CAMP SITE |
GROUP NO 17 & TENT NO 17 (OUR GROUP & TENT NO) |
चारों विदेशी दोस्त। ANNA, JUHANUSH, INNA, DAVID |
शाम को चार बजे हमारे ग्रुप को वहाँ के जंगलों में आगामी कुछ दिन में होने वाली ट्रेकिंग में बरते जाने वाली सावधानी के बारे में बताया जाना था। जिस कारण मैं एक घन्टे बाद पानी से बाहर आ गया था। जबकि कमल व अनिल दो घन्टे बाद पानी से बाहर निकालने पडे थे। कैम्प में हमें कोबरा साँप के बारे में जानकारी देने के बताया जाने वाला था। लेकिन लगता था कि साँप के डर से बताने वाला उस दिन आया ही नहीं था।
रात में खाना खा पीकर हम अपने-अपने टैन्ट के एकदम बाहर ही बैठे हुए थे। हमने दिल्ली अपने घर पर फ़ोन किया तो पता लगा कि उस समय दिल्ली में कडाके की ठन्ड पड रही थी और हम गोवा में गर्मी के मारे टैन्ट से बाहर बैठे हुए थे। जब रात को कैम्प फ़ायर की घोषणा हुई तो हम एक बार फ़िर वहाँ एकत्र हो गये। आज हमारे ग्रुप में चार विदेशी मेहमानों के शामिल होने की बात पता लगी। ऊपर वाला फ़ोटो उन्ही चारों विदेशियों का है ये चारों भारत में घूमने आये थे। इनके साथ एक लेडी और खडी है यह भी हमारे ग्रुप में थी यह महिला रेणू यादव दिल्ली पुलिस में उप निरीक्षक के पद पर कार्य कर रही है। विदेशी दोस्तों से हमने उनकी मातृ भाषा में एक गीत सुनाने के लिये कहा था जिसे उन्होंने मान लिया था। कैम्प फ़ायर के बाद सोने की बारी थी, अगले दिन हमें यहाँ वाला मुख्य कैम्प छोड़ देना था। यहाँ से हमें अगले कैम्प में समुन्द्र किनारे लगभग 13 किमी की टैकिंग करते हुए जाना था। जहाँ से हमें पैदल यात्रा शुरु/आरम्भ करनी थी वह स्थल हमारे इस कैम्प से लगभग 45 किमी दूरी पर था, जहाँ हमें पहुँचाने के लिये एक घन्टे की बस यात्रा करनी थी उसके बाद पैदल ट्रेकिंग शुरु होने वाली थी।
हम अपने सफ़र पर चलने को तैयार है। |
सुबह कैम्प से तालियों के साथ विदाई की जा रही है। |
एक फ़ोटो बस के अन्दर। |
This photo taken from bus. |
अब हमारी ट्रेकिंग शुरु हो चुकी है। The trekking has began. |
अगले लेख में आपको गोवा के सबसे सुन्दर व सबसे लम्बे बीच पर घूमाया जायेगा। जिसमें हमें समुन्द्र किनारे नहाते व धूप सेकते भारतीयों से ज्यादा विदेशी मिले थे।
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
भाग-14-दूधसागर झरना के आधार के दर्शन।
भाग-15-दूधसागर झरने वाली रेलवे लाईन पर, सुरंगों से होते हुए ट्रेकिंग।
भाग-16-दूधसागर झरने से करनजोल तक जंगलों के मध्य ट्रेकिंग।
भाग-17-करनजोल कैम्प से अन्तिम कैम्प तक की जंगलों के मध्य ट्रेकिंग।
भाग-18-प्राचीन कुआँ स्थल और हाईवे के नजारे।
भाग-19-बारा भूमि का सैकड़ों साल पुराना मन्दिर।
भाग-20-ताम्बड़ी सुरला में भोले नाथ का 13 वी सदी का मन्दिर।
भाग-21-गोवा का किले जैसा चर्च/गिरजाघर
भाग-22-गोवा का सफ़ेद चर्च और संग्रहालय
भाग-23-गोवा करमाली स्टेशन से दिल्ली तक की ट्रेन यात्रा। .
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7 टिप्पणियां:
हमें तो बस लहरें गिनना भाता है..एक के बाद एक..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
क्या बात है-
नया नया सब कुछ-
शुभकामनायें-भाई जी ||
बढ़िया फ़ोटो फ़ाड़े हैं :)
गोवे की तो शान ही निराली है
आपको पढ़ना अच्छा लग रहा है ........आप ने ताला लगा के ये क्यों लिख रखा है,"कि मेरा ब्लॉग सुरक्षित और आपका ??"
किससे सुरक्षा ? कैसी सुरक्षा ?
गोवा की शानदार रंगीन बीचेज को छोड़कर कहाँ पत्थरों में बैठे हैं। :)
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