गोवा यात्रा भाग-09
आज की पद यात्रा निम्न बीच से शुरु होकर BETUL BEACH-MOBOR BEACH-CAVELOSSIM BEACH-VARCA BEACH-ZUMBRAI BEACH-TRINITY BEACH-BENAULIM BEACH तक जायेगी। कैम्प से चलते समय
सुबह का नाश्ता तो सभी ने किया ही था। दोपहर का भोजन जिसे अंग्रेजी में लंच कहते है,
सभी पैक कर अपने साथ ही लाये थे। इसके साथ-साथ चलते समय एक-एक पैकेट हम सभी को दिया
गया था, जिसमें बिस्कुट के 5-5 वाले तीन पैकेट, एक
फ़्रूटी का छोटे वाला पैकेट, एक मूँगफ़ली गुड़ वाली गजक का छोटा सा पैकेट, तथा इसके साथ
एकदम बे स्वाद आठ-दस टोफ़ियाँ भी हमें दिये गये, सारा सामान उसी पैकेट में शामिल था।
चलते समय दिया जाने पैकेट की सामग्री हमें आगामी पाँच दिन के लिये दी थी। दोपहर का
भोजन तो सबको अपने साथ प्रतिदिन पैक कर साथ ही लेकर जाना होता था। अब खाने पीने के
मामले में यहाँ पर पूरी ऐश दिखायी दे रही थी।
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WALK WITHOUT SANDAL |
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BEAUTIFUL BEACH |
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MAP BETUL BEACH TO BENAULIM BEACH |
बस ने हमें जहाँ पर
छोड़ा, उस जगह से समुन्द्र किनारा मुश्किल से आधा किमी दूरी पर भी नहीं था। चलने से
पहले सबने यह पक्का कर लिया कि सब आ गये है कोई रह तो नहीं गया है, हमारे ग्रुप में
एक नवयुवक को ग्रुप लीड़र बनाया गया था, जब उसे ग्रुप लीड़र चुना गया था उस समय हम स्वीमिंग
पूल में गोते लगा रहे थे। अगर उसके चुनाव के समय मैं वहाँ होता तो उसे ग्रुप लीड़र बनने
की कभी सलाह नहीं देता, मना करने का मेरे पास सबसे शसख्त कारण था उसकी पत्नी का इस
यात्रा में उसके साथ होना। यह जोडी वैसे तो गुजराती थी लेकिन वर्तमान में पूना में
रहती थी। इन्हें इस बात का अहसास पहले दो दिन में ही हो गया था कि ग्रुप लीड़र बनना
कितनी मानसिक परेशानी का कार्य होता है। हम तो ठहरे मनमौजी हम ऐसी परेशानी में नहीं
घुसने वाले थे।
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GO-GO |
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लहरों के संग-संग |
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चलते रहो |
बात हो रही थी बस
से उतर कर समुन्द्र किनारे पद यात्रा ट्रेकिंग करने की और बीच में घुस गयी ग्रुप लीड़र
वाली बात, चलो छोड़ो इस बात को, अब समुन्द्र किनारे ही आगे बढ़ते है। आप पढ़ने वाले तो
ज्यादातर जानते ही है कि मैं अपनी चाल से लाचार हूँ, लाचार मतलब टुलक-टुलक चलने वालों
में से नहीं, बल्कि मैं अपनी मस्त-मौला चाल से मद-मस्त रहने वाला बन्दा हूँ मेरी इस
मद-मस्त चाल से मेरे साथ चलने वाले कभी-कभार परेशान हो जाते है, जिस कारण मेरी कोशिश
(सिर्फ़ कोशिश, लग्न नहीं) होती है कि मैं सबसे आखिर में चलू ताकि कोई मुझ मस्त-मौला
जीव-जन्तु पर यह झूठा आरोप ना लगाने पाये कि मैं उन्हें छोड़ कर आगे चला गया था। लेकिन
मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ, एक-दो घन्टे में, मैं अपने जैसे कुछ एक-दो सनकी सिरफ़िरों
के साथ सबसे बाद में चलकर भी सबसे आगे पहुँच जाता हूँ, इसमें मैं ना तो अपनी बढ़ाई मानता
हूँ, ना ही कमजोर पक्ष की कमजोरी मानता हूँ, सब किस्मत का खेल है कही धूप तो कही चाँव
( इसे छाँव पढे ) है।
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पानी में परछाई भी दिख रही है। |
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एक बच्चा रेत से खेलता हुआ। |
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एक जीव अपनी जान बचाने हेतू रेत मे घुसता हुआ। |
पहले दिन चार किमी
की ट्रेकिंग में ही मुझे यह पता लग गया था कि हमारे 35 बन्दे के ग्रुप में कितने मेरा साथ बखूबी निभाने
वाले है? जो अपने जैसा उल्टा-पुल्टा शैतानी खोपड़ी का प्राणी होता है उसके साथ ही तो
अपनी जमती (बनती) है। यहाँ इस ग्रुप में मुझे दो गुजराती भाई एकदम झकास मस्त मौला बन्दे
मिले जो तेज/तीव्र गति से चलने में सक्षम होने के साथ-साथ हास्य वयंग्य बाण चलाने में
अपुन की तरह निपुण थे। इसके साथ एक बोम्बे का बन्दा भी हमारी तरह उल्टी सोच रखने वाला
निकल गया। हम तो दिल्ली से पहले से ही तीन भले मानुष गोवा घूमने आये थे, अब हमारी टोली
की संख्या बढ़ती जा रही थी। समुन्द्र किनारे हम अपनी तूफ़ानी रफ़्तार से नंगे पैर चलते
थे। मैंने व अनिल ने आपस में चप्पल को लेकर थोड़ा सा तालमेल किया हुआ था, हम दोनों में
से कोई भी नंगे पैर चलने का तनिक भी आदी नहीं था, जिस कारण हम एक-एक किमी बाद चप्पल
एक दूसरे को दे दिया करते थे।
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jatdevta is here. |
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JATDEVTA SANDEEP PANWAR IS CLIMBING ON THE COCONUT TREE. |
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यह फ़ोटो नारियल के पेड़ पर चढकर फ़ाड़ा गया है। |
यहाँ यह बताना सही
रहेगा कि पहले तीन दिनों तक अनिल के पास चप्पल नहीं थी। कमल भी सिर्फ़ जूते ही पहन कर
आया था। आज वाली पद यात्रा के दौरान कमल का एक जूता पता नहीं कैसे (बीयर लगायी तो जरुर
होगी लेकिन कितनी यह पता नहीं चल पाया) समुन्द्र में गिर गया? बाद में पता लगा कि उस
जूते को निकालने की बजाय बन्धु ने दूसरा जूता भी पानी में फ़ैंक दिया था। अच्छा काम
किया एक जूता तो कमल के भी किसी काम का नहीं रह गया था। कम से कम समुन्द्र से पानी
के साथ लहरों के जरिये जूते बाहर आकर किसी के काम तो आये होंगे ऐसा अनुमान ही लगाया
जा सका है।
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नेवी के कारण यह सुन्दर घर देखा गया था। |
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गोवा का एक ग्रामीण घर। |
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फ़ूलों का टोकरा। |
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एक चर्च। |
अभी हमारी समुन्द्र
किनारे नंगे पैर वाली ट्रेकिंग चार किमी की ही हुई थी कि हमें आगे बढ़ने से भारतीय नौ
सेना के जवानों ने रोक दिया। हमारे काफ़ी कहने पर भी वे नहीं माने, उन्होंने कहा कि
वायु सेना के विमान यहाँ अभ्यास में फ़ायरिंग करते हुए जायेंगे किसी को गोली लग गयी
तो हम क्या जवाब देंगे? उनकी परेशानी हमारी सुरक्षा के लिये थी जिस कारण हम वहाँ से
सड़क का पता पूछते हुए सड़क की ओर चले गये। एक किमी सीधे हाथ जाने पर हमें सड़क मिल गयी,
जब हम सड़क पर पहुँचे तो एक चर्च देखकर तुरन्त याद आया कि अरे हाँ अपनी बस यही से होकर
तो गयी थी। नेवी वाले जवान ने हमें बताया था कि हमारा अभ्यास क्षेत्र केवल दो किमी
की समुन्द्री लम्बाई के किनारे-किनारे ही फ़ैला हुआ है अत: आप आगे जाकर फ़िर से सड़क पर
जाने के बाद भी समुन्द्र किनारे आ जाओगे।
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यह फ़ोटो नीचे वाले फ़ोटो से केवल पाँच सैकन्ड पहले लिया गया था। |
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ऊपर वाला और यह वाला फ़ोटो एक ही जगह का है समय केवल 5 second का अन्तर है। दोनों में क्या अन्तर है। |
सड़क पर आने के बाद
हमने एक दुकान वाले से यह पता कर लिया कि नेवी वाले इलाके से आगे जाकर समुन्द्र की ओर जाने वाला मार्ग कहाँ से अलग
होता है। उसने हमें बताया था कि थोड़ा आगे जाकर आपको एक पुल मिलेगा जहाँ से आप उल्टे
हाथ पर जाने वाली सड़क पर चलते रहना जो आपको दो किमी बाद समुन्द्र तक पहुँचा देगी। हम
लगभग एक किमी से भी कम दूरी तक ही सड़क पर चले होंगे कि उस व्यक्ति ने जो पुल बताया
था वह आ गया था। यहाँ कोई बोर्ड़ नहीं था जिस कारण एक घर में पता करने गये तो उन्होंने
भी वही मार्ग बताया जो उस बन्दे ने बताया था। जैसे ही हम उस मार्ग पर चलने को तैयार
हुए तभी एक बस आयी और हमारे ग्रुप के तीन चार बन्दे उसमें बैठकर अगले कैम्प की ओर चले
गये। कुछ आगे चलते ही वायु सेना के विमान हमारे ऊपर से धड़धड़ाहते हुए, जा रहे थे, आगे
जाते ही विमानों से की गयी गोलीबारी की आवाज सुनकर ऐसा लगता था जैसे फ़ायरिंग हमारे
ऊपर हो रही हो।
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दोपहर का भोजन करते हुए। |
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भोजन हो गया, चलो फ़िर से यात्रा पर। |
लगभग दो किमी/ एक
घन्टा चलने के बाद एक अच्छी सी जगह देखकर, सबने दोपहर का भोजन करने की सोच एक छाँवदार
खाली खेत में डेरा डाल दिया था। लंच करने के लिये हम लोगों ने दोपहर बाद का बारह और
एक बजे के बीच का समय तय किया हुआ था। अब यहाँ पर बैठकर सबने दोपहर का भोजन किया, उसके
बाद कुछ देर आराम कर समुन्द्र किनारे की ओर आगे बढ़ चले। आगे चलकर कुछ घरों को पार कर
एक चौराहा आ गया था, वहाँ एक दुकान वाले से पता किया, जिसने बताया कि समुन्द्र पास
में ही है। कुछ ही देर में हम समुन्द्र किनारे पहुँच गये। यहाँ पर पहले तो कुछ देर
समुन्द्र में खडे रहे। उसके बाद मंजिल की ओर बढ़ते रहे।
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समुन्द्र में एक बन्दा हवा के बल पर तैरता हुआ। |
पूरा समुन्द्री मार्ग
विदेशी हसीनों व जवानों से भरा हुआ था। हमने यहाँ के बहुत से फ़ोटो लिये थे। जिसमें
विदेशी लोग भी शामिल है। लेकिन मैं यहाँ पर उनके अर्धनग्न फ़ोटो लगाना उचित नहीं समझता
हूँ, क्योंकि विदेशी महिलाओं के इस तरह के अर्धनग्न चित्र लगाने से मेरा बलॉग पढ़ने
वाले अधिकांश पुरुष/महिला भले ही कुछ क्षण अपने चेहरे पर मुस्कराहट ले आये। लेकिन किसी
की आपत्तिजनक फ़ोटो कही लगाना, हमारी संस्कृति/सभ्यता में तो यह कार्य शामिल नहीं है।
हम शाम के चार बजे तक अपने कैम्प के बहुत नजदीक पहुँच गये थे।
कैम्प में जाकर, उसके
बाद समुन्द्र में हमने क्या-क्या उत्पात किया, यह अगले लेख में बताया जायेगा।
गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।
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11 टिप्पणियां:
वन्देमातरम् ! गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!
प्रभावी प्रस्तुति ||
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें-
अरे यार, अगली बार जाओ तो प्रापर्टी का रेट पता करना :)
दिखाई दी सुन्दर सुहानी बीच
बीच बीच में हुस्न की कीच। :)
आपकी पोस्टें पढ़कर यह विचार दृढ़ होता जा रहा है कि अगली बार टहल कर ही घूमेंगे।
चित्र में अंतर दिख तो बहुत रहा है, पांच सैकंड में कैसे आया अंतर?
संजय भाई सब कुदरत का कमाल है।
प्रवीण जी किसी स्थल को देखना हो तो टहल कर देखने के अच्छा कोई विकल्प ही नहीं है।
अगली बार आपको साथ ही लेकर जाऊँगा, कह देना बैंक वालों से की सम्भालो पर अपनी तिजोरी।
संदीप भाई।
देर से ही सही पर आज हम भी आपकी इस यात्रा में शामिल हो गए हैं। आज दो घंटे में 3 से 5 के बीच गोवा के सारे नौ एपिसोड पढ़ डाले। बड़ा मज़ा आया, YHAI के केम्प में इतने सारे साथियों के साथ गोवा की सैर .........सचमुच बड़ा आनंद दायी लग रहा है यह सफ़र। अगली कड़ी के इंतज़ार में ........
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