लो जी अब चलते है सिंहगाड से आगे के सफ़र पर, है ना चारों को मिलाकर चंडाल चौकडी।
आ जाओ, जवानों अभी तो मजा आने लगा है सफ़र का, मेरा पसंदीदा सफ़र।
ऐसे-ऐसे मार्ग भी है, जिन्हे देख आम लोग तो वैसे ही डर जाये।
हम चार बन्दों की मस्त चंडाल चौकडी, दिन के ठीक तीन बजे सिंहगाड में आ चुकी थी। यहाँ पर दो-तीन भंडारे लगते है, रात में रुकने का पूरा प्रबंध है। यही पर इस यात्रा में जाने वाले सभी यात्रियों का विवरण लिखा जाता है, जिसमें नाम पता व मोबाइल नम्बर लिखना होता है, इसे हम यात्रा का पंजीकरण भी कह सकते है। एक दिन में यहाँ 400 से 500 के आसपास तक यात्री इस बेहद कठिन पैदल यात्रा पर, यात्रा के दिनों में आ जाते है। यह यात्रा मुश्किल से पंद्रह दिनों की होती है। सरकार की तरफ़ से इस यात्रा में कैसी भी, किसी प्रकार की कोई मदद नहीं दी जाती है। सब कुछ गिने चुने टैंट वालों व सब मिलाकर सात-आठ भंडारे ही, इस दुर्गम पैदल यात्रा पर आने वाले यात्रियों की बहुत मदद करते है।
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जलेबी का भूखा नम्बर एक। दूसरा कौन बताओ तो जाने?इस यात्रा को शुरु से पढने के लिये यहाँ क्लिक करे।
हमने भी अपना नाम पता यहाँ पर लिखवाया, व इसके साथ में बने भंडारे पर जहाँ सिर्फ़ जलेबी व पकौडी ही खाने को मिलती है। हमने कई-कई बार इस भंडारे से जलेबी व पकौडी ले-ले कर खायी, भंडारे वाला भी कह रहा था कि जितना जी करे, उतना खाओ, बस छोडना नहीं है। जब हमारा पेट व मन भर गया तो हम अपनी आगे की यात्रा पर चल दिये। पिछले एक किलोमीटर से हमारे साथ बिहार की एक टोली के दस-बारह भोले के भक्त हमारे साथ-साथ ही चल रहे थे। वो भी हमारे साथ-साथ आगे के सफ़र पर चल दिये थे।
आ जाओ, जवानों अभी तो मजा आने लगा है सफ़र का, मेरा पसंदीदा सफ़र।
सिंहगाड से चलने के कुछ देर बाद ही इस कठिन पैदल यात्रा के असली दर्शन होने शुरु हो गये थे, जिसे हम कह सकते है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते है, ऐसा ही कुछ मार्ग बराटी नाले तक का है, जिसे हम इस यात्रा का सैम्पल/नमूना कह सकते है, बस जितनी परेशानी हमें या किसी को भी सिंहगाड से बराटी नाले तक होती है, उससे आगे इससे दौ सौ गुणा कठिन मार्ग आता है, आगे-आगे मार्ग ऐसा खतरनाक है कि बंदे को कुछ और सोचने की फ़ुर्सत ही नहीं मिलती है। किसी तरह ले दे के बेचारे साँस ले पाते है।
अब देखो पीछे मुडकर कैसा था, वो नजारा। कैसी भी चूक की कोई गुंजाइस नहीं है।
लो जवानों तुम्हारे से आगे तो बिहारी भाई निकल गये है, अब तो जोर लगा दो, अगर होता तो लगाते जरुर।
लो जी अब हम बराटी नाले के पहले एक ऐसी खतरनाक उतराई पर उतरते है, जिस पर उतरते हुए नितिन की हालत कुछ ज्यादा ही खराब थी। वो सबसे आगे भी था, अत: लग गयी एक लम्बी लाईन उसके पीछे-पीछे, यहाँ मार्ग ऐसा कि एक बंदा अगर बीच में खडा हो जाये तो दूसरे को उसका आने का इंतजार करना ही पडता है, मुश्किल से डेढ फ़ुट चौडाई का मार्ग रहा होगा, बीस-पच्चीस मीटर की लम्बाई में। बीच-बीच में तो दो तीन जगह पर, मार्ग पेड के तने काट के डाल कर किसी तरह उन्हे पत्थरों पर फ़ंसा कर फ़िर उन पर मिट्टी डाल कर मार्ग बनाया हुआ था। अगर यहाँ जरा सी भी लापरवाही होती, और कोई नीचे खाई में गिर जाये तो भईया उसकी तो तलाश करना भी बडी टेडी बात हो जाती होगी।
इसके बारे में भी लिखना पडता क्या?
यही कहीं से एक मार्ग नदी के साथ-साथ बल्कि कुछ दूर तो पानी के अन्दर से भी जाता है, कुछ आसान बताया जाता है, लेकिन हमें किसी ने बताया कि आज सुबह एक नौवी कक्षा में पढने वाली लडकी की मौत इस आसान पानी वाले मार्ग पर हो चुकी है, वो अभागी लडकी अपने पिता के टैंट में सामान ले कर जा रही थी। और जब उस लडकी की लाश निकाली तो वो पीठ पर बंधी गठरी उसकी मौत की असली वजह बन गयी थी, जिसने उस लडकी को बहते हुए तेज पानी में उठने नहीं दिया होगा।
ये है वो बराटी नाला, कैसा लगा इसका पुल? यही से शुरु हो जाती है, फ़ाडू चढाई
बराटी नाला से कुछ मीटर पहले एक भंडारा लगा हुआ था। हम तो एक घंटा पहले ही जलेबी खाकर चले थे, अत: यहाँ बिना रुके हम आगे बढ गये थे। अब आगे जाते ही हमें एक लकडी का पुल नजर आया जो कि बराटी नाले पर बना हुआ था। यहाँ दो नाले का संगम है। एक को हमने पार कर लिया व दोनों नालों के मध्य में हम पहुँच गये थे। हम बिना रुके चलते जा रहे थे, कि सामने चढाई शुरु हो गयी थी। 10-15 मिनट तो हमने ध्यान ही नहीं दिया, सोचा कि बस अब-अब-अब-अब ये चढाई समाप्त होने वाली है। लेकिन जब चढते-चढते एक घंटा हो गया तो हमारे कान खडे होने शुरु हो गये
चलते रहो सुबह-शाम यहाँ आकर और क्या काम।
और हम लगे नीचे आने वालों से पूछने कि भाई अभी कितनी बाकि है, ये चढाई। भैया नीचे आने वाले भी कई घंटे से लगातार उतराई पर थे, वे भी तंग आ गये होंगे इस उतराई से, वे भी सोच रहे होंगे कि अब आयेगा ये बराटी नाला, अत: उन्होंने भी हमें जवाब दिया कि भाई अभी तो आप लोगों ने चढाई शुरु ही की है। अभी आप को दो-तीन घंटे तो लग ही जायेंगे। जब एक घंटा हो जाता तो फ़िर किसी से पूछते कि थाचडू कितनी दूर है, फ़िर वही जवाब मिलता कि अभी दो-तीन घंटे लगेंगे। हम सोचते कि यार ये थाचडू तो हो गया है खाचडू, जिसे हम कहने लगे खचॆडू कब आयेगा। अब सब के सब परेशान थे कि यार ये खचेडू हमारी जान लेकर रहेगा।
तीनों जाट आगे, जाट रे जाट फ़ंस गया विपिन भी, नितिन के साथ।मनभावन वन, जी करता है देखते ही रहो।
इस चढाई का नाम है डंडीधार की चढाई, जो है भी, डंडे जैसी धार पर।
एक बात हमने पहले की साफ़ कर दी थी, कि सब अपनी-अपनी चाल से चलेंगे, जिससे कि किसी की चाल में कोई गडबड ना हो जाये, होता क्या है कि पैदल यात्रा में चलते समय हम लोग यात्रा पर दूसरे की देखा-देखी तेज चलना शुरु कर देते है, जिससे होता ये है कि बंदा अपनी चाल भी भूल जाता है, और जल्दी थक जाता है, कौआ चला हंस की चाल, अपनी भी भूल गया वाली कहावत पैदल यात्रा में सही साबित हो जाती है। अगर पैदल यात्रा एक दो किलोमीटर की ही हो तो बेशक आप किसी का भी मुकाबला करो, लेकिन लम्बी यात्रा पर नहीं।
बादलों का समुंद्र मिलता ही रहता है।
सब अपनी-अपनी चाल से इस दम खेचू, जान निकालू, साँस फ़ाडू, चढाई पर चढने में लगे हुए थे। इस यात्रा में दो जाट सबसे अनुभवी थे पहाडों पर चढने के पहले स्थान पर जाट देवता, दूसरे स्थान पर नीरज जाट जी, बाकि के दोनों बंदों में से तीसरे स्थान पर विपिन गौर जो कि जन्म से ही पहाडी है केदारनाथ के पास के ही रहने वाले है। चौथे स्थान पर आते है, नितिन जाट बंदे को बाइक या कार पर कितनी भी लम्बी यात्रा करा लो, पैदल यात्रा का मेरे साथ ये दूसरा मौका था। इससे पहले नितिन की वाइफ़ भी साथ थी, जब मैं और मेरी वाइफ़ गंगौत्री व यमुनौत्री यात्रा पर गये थे, वो भी बाइक पर, सन 2006 में।
बादलों के समुन्द्र में उफ़ान आ गया है।
कुछ दूर तक तो नीरज साथ-साथ रहा, जैसे-जैसे ये यात्रा आगे चलती रही, नीरज की मशीनरी में ढील आनी शुरु हुई, और अब जाट देवता की बारी थी आगे आने की, विपिन बेचारा फ़ंस गया नितिन के साथ, नितिन के पैर में फ़िर से गिरने से घुटने में चोट लग गयी, जिससे रही सही कसर भी पूरी हो गयी, व नितिन की आगे जाने की उम्मीद भी समाप्त हो गयी। अपना नियम था कि जब भी साँस फ़ूल जाये, तो कुछ पल रुक कर अपनी साँस सामान्य की जाये। इसलिये मैं तो साँस फ़ुलने के बाद दो-तीन मिनट बैठ जाता था, जिससे बहुत आराम मिलता था। लेकिन नीरज का ढंग अलग था, वो खडा-खडा ही फ़ूली हुई साँस सामान्य करता था। विपिन भी इस चढाई से काफ़ी परेशान हो रहा था, बाकि नितिन का तो दर्द से बुरा हाल हो गया था। हमारा शाम तक खचेडू जाने का था, लेकिन किसी से पूछा तो बताया कि हमें खचेडू से उतरते हुऎ आधा घंटा हुआ है, आप को एक घंटा हो जायेगा। अब तो खचेडू के नाम से हमें चिढ सी होने लगी थी।
अरे ताऊ, पीछे मुड के देख ले, ज्वारभाटा आ रहा है।
एक जाट-जाट बन जाता है
दो जाट-मौज बन जाती है।
तीन जाट-कंपनी बन जाती है।
चार जाट -फ़ौज बन जाती है।
कि तभी एक टैंट नजर आया तो मैंने उसके मालिक से रात के रुकने वाले के बारे में पता किया, व रात में वही ठहरे भी थे। सब पीछे चल रहे थे, दस मिनट बाद नीरज भी वहाँ तक आ पहुँचा, विपिन व नितिन भी नीरज के आने के दस मिनट बाद हमारे पास आ गये थे। सबने अपना बैग उतार कर अन्दर रख दिया, यहाँ टैंट में पहले से ही एक बंदा अन्दर लेटा हुआ था। जिसने अपने बारे में बताया कि मैं अपने दफ़्तर के बंदों को तैयार करके इस यात्रा पर लाया था, और मुझे खाँसी व बुखार हो जाने के कारण यहाँ रुकना पडा है, वैसे बंदा रुपयों पैसा वाला था, लेकिन इस यात्रा पर रुपयों वालों के लिये कोई खास सुविधा अलग से नहीं है। जैसे कि खच्चर, हैलीकाप्टर या फ़िर कंडी वाले, यहाँ अपने दम पर यात्रा की जाती है, जिसमें दम व हौसला हो वो ही इस दुर्गम यात्रा पर जाने की सोचे नहीं तो, अपने घर में बैठ आराम करे।
अरे ये कौन सा पेड है, हमें भी नहीं पता है।
रात में सब खा पी कर सोने की तैयारी करने लगे, तो बद्दी में कार्य करने वाला बंदा जो पहले से रुका हुआ था, उसने कहा कि कोई अपने मोबाइल से मुझे मेरे घर पर बात करवा देगा, मेरे मोबाइल की तो बोलती बंद हो गयी है, तो नितिन ने उसकी बात उसकी घरवाली से करवायी, यहाँ पर नीरज ने हम सबको बहुत तंग किया, खासकर नितिन को तो ज्यादा ही सताया, बात कुछ ऐसे ही थी, अब आप ही बताओ कि अगर कोई बंदा दो-तीन दिन तक खाता रहे, व इस खाये पिये को बाहर ना निकाले तो उसके आसपास कोई बैठ या सो भी सकता है क्या? नहीं ना। उसने पूरे टैट में सबका जीना हराम कर दिया था। वो तो शुक्र रहा कि वो पैदल चलते समय मुझसे पीछे रह गया था, अगर कोई उसके साथ चला होगा तो वो भी सोच रहा होगा कि जगह कितनी बदबूदार है। उसे खूब समझाया कि अपना पेट हल्का कर के आजा, पर वो बेशर्म नहीं माना।
सबसे पहले पडा हुआ नितिन, फ़िर नीरज, फ़िर संदीप, सबसे आखिर में मरीज साँस का।सुबह-सुबह जब रामजी ने खिडकी खोली, तो दिल मेरा बोले?
अगली सुबह दिन मंगलवार को सब समय से उठ गये थे, सिर्फ़ नीरज ही देर से उठा था। फ़िर भी सब 6:30 बजे तक चलने को तैयार हो गये थे, नितिन के पैर में अभी भी दर्द था, अत: उसे वापस जाने के लिये कह दिया था, अब आगे के सफ़र में, चंडाल चौकडी का एक चंडाल कम हो गया था। अब हम शिव के त्रिशूल बन गये थे, या कह लो तीन तिगाडा, काम बिगाडा। यहाँ से सवा घंटे में हम खाचडू, खचेडू यानि थाचडू जा पहुँचे थे, समय हुआ था ठीक सवा सात बजे जिस समय हम खचेडू के भंडारे में वहाँ पहुँचे तो वहाँ आरती समाप्त ही हुई थी, यहाँ से श्रीखण्ड महादेव के पहले दर्शन होते है, हमने भी किये, फ़ोटॊ में आप भी करो। भंडारे में हलुवा प्रसाद के रुप में बाँटा जा रहा था, हमने भी लिया। पूरी सब्जी भी दी जा रही थी, उसका भी स्वाद लिया गया था। अब आगे के सफ़र पर चल दिये।
हर तरफ़ बादलों का जलवा, जलवा-जलवा-जलवा।
हम तो यही सोचे बैठे थे, कि ये डंडीधार की चढाई बस इस खचेडू तक ही है, लेकिन भाई ये तो जितना हम आगे चलते ये भी उतनी ही बढती ही दिखाई दे रही थी। जब एक मोड नजर आता तो लगता कि बस अब ये चढाई समाप्त, पर जब हम उस मोड पर जाते तो, वहाँ से उसका बाप आगे की चढाई दिखाई दे जाती थी। क्या करते कुछ लम्बा सा साँस ले कर फ़िर से चलना शुरु हो जाते थे, कोई दूसरा रास्ता तो था ही नहीं। एक बात जरुर हुई कि एक किलोमीटर आगे जाने पर पेडों का वन समाप्त हो गया था। झाडियाँ शुरु हो गयी थी, कुछ आगे जाने पर ये झाडियाँ भी साथ छोड गयी, अब तो सिर्फ़ पत्थर थे, या घास थी, इस स्थिति को वृक्षरेखा समाप्त होना कहते है। हम अपनी बात से बाज नहीं आये थे वो ये कि आने वालों से जरुर पता करते कि भाई ये चढाई कितनी बाकि है। अब सब कह रहे थे कि बस 5-7 मिनट की बात है। काली घाटी आने वाली है, जहाँ से आपको कई किलोमीटर तक उतरना ही उतरना है।
थाचडू/ खाचडू/ खचेडू से पहला दर्शन श्रीखण्ड महादेव का, जय बोलो।दो मेहनती दोनों का सोने-उठने का, सुबह निपटने का, और पहाड पर चलने का सब कुछ अलग तरीके से।
आखिर दस मिनट चलने के बाद वो घडी भी आ ही गयी, जिसका हमें कल शाम चार बजे से इंतजार था। जब हम उस जगह आ गये जहाँ से ढलान शुरु हो रही थी, जिसका नाम है काली घाटी।
अगले भाग में काली घाटी से भीम डवार तक की यात्रा।
इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा
भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा
भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक
भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक
भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में
भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।
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29 टिप्पणियां:
चढाई पर "एक सांस और एक कदम" वाला फ़ार्मुला अपनाना चाहिए। जिससे चढाई आसान हो जाती है। आराम से चलना चाहिए।
अच्छी यात्रा चल रही है, भोले बाबा की जय, जाट देवताओं की जय।
अदभुत सुन्दर नजारों के साथ शानदार प्रस्तुति.
रोचक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
न जाने कितनों के मनों में आग लगा दी, आपने यह सब दिखा कर।
सुन्दर वर्णन सभी फोटो बहुत ही शानदार हैं.
"जाट देवता आप बहुत किस्मत वाले है जो प्रकृति आपको बार-बार अपने पास बुलाती है"
आगे बढते रहो .............
एक जाट-जाट बन जाता है
दो जाट-मौज बन जाती है।
तीन जाट-कंपनी बन जाती है।
चार जाट -फ़ौज बन जाती है।
वाह :)
जाटों ने पाँवों से और लठ से इतनी धरती नाप ली कि बादलों पे चढ़ गए :))
बहुत अद्भुत चित्र लिए हैं.
jat ji
bahut sundar post aur photos
aakele aakele kha gae ham sab ke leya keya laye
श्री खंड जाने से पहले जो शर्ते आपने रखी थी उनमे एक शर्त और होनी चाहिए थी सही वकत पर पेट भरना और सही वकत पर खाली करना आगे से धयान रखना संदीप भाई ...आपकी यात्रा बहुत अच्छी चल रही है लगे रहो
भाई, जो बात अपने बारे में मैं नहीं लिख सका, वो आपने लिख दी. आपका भगवान बहुत भला करे. फिर ये भी तो बताते कि वो जोंकों का इलाका था. रात को अँधेरे में कई कई फुट ऊंची घास में बैठकर सुलटना कहाँ की समझदारी थी. ऐसे हालातों के मद्देनजर ही मैं मामले को स्टोर करता रहता हूँ.
पहले वाले चित्र में आपने पूछा था कि जलेबी का खाऊ कौन है तो जी मैं ही हूँ. जलेबी, पकौड़े और चाय का भी.
मस्त यात्रा चल रही है.
अदभुत सुन्दर चित्रों के साथ रोचक जानकारी...
beautiful pics
food looks tasty
प्रकृति ने दुर्लभ नज़ारे दुर्लभ जगह छुपा कर रखे हैं और उनको देखने के लिए आप जैसे दुर्लभ लोगों को बनाया है ,ये हर किसी के बस में भी नहीं है और न ही नसीब में ! ऐसी यात्राओं की कठिनाईयाँ दूसरों को तब तक समझ में नहीं आती जब तक , उसे खुद करें नहीं और आप लोगों ने जो यात्रा की वो वाकई कठिन और कबीले तारीफ़ है साथ ही मैं खुद को तौलने की कोशिश भी कर रहा हूँकि ये यात्रा मैं कर पाऊंगा या नहीं, फोटो आप के लाजवाब हैं!!!
संदीप भाई लठ्ठ गाड़ दिए आपने टिपियाने में यही तो राष्ट्र प्रेम को समर्पित निरपेक्ष दृष्टि है .शुक्रिया आपका बहुत बहुत .
Thursday, August 11, 2011
Music soothes anxiety, pain in cancer "पेशेंट्स "
.http://veerubhai1947.blogspot.com/ ( सरकारी चिंता राम राम भाई पर )
http://sb.samwaad.com/
ऑटिज्म और वातावरणीय प्रभाव। Environment plays a larger role in autism.
Posted by veerubhai on Wednesday, August 10
Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Otizm, आटिज्म, स्वास्थ्य चेतना
ram ram bhai
बुधवार, १० अगस्त २०११
सरकारी चिंता .
यात्रा जिस शीर्ष पर पहुँच गई है वह आपकी जांबाजी और छायांकन दोनों का शिखर और हमारा सौभाग्य है हम इसके सहभावित यात्री हैं .भाव विभोर करने वाले मनोरम ,दुर्गम दृश्यों का साहचर्य देखते ही बन पड़ा है .
Thursday, August 11, 2011
Music soothes anxiety, pain in cancer "पेशेंट्स "
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Posted by veerubhai on Wednesday, August 10
Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Otizm, आटिज्म, स्वास्थ्य चेतना
ram ram bhai
बुधवार, १० अगस्त २०११
सरकारी चिंता .
बहुत जोखम भरा , लेकिन रोमांचक रहा ये सफ़र ।
लग रहा है जैसे हम भी उन्ही वादियों में विचरण कर रहे हैं ।
शानदार ।
लाजवाब तस्वीरें ! बहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
आप लोगो की ये यात्रा बहुत रोमांचकारी हैं. ऐसे फोटो शानदार फोटो देखने का मौका कम ही मिलता हैं. एह लगता हैं हम लोग भी आपके इस साथ इस यात्रा पर हैं .
माउन्ट आबू : अरावली पर्वत माला का एक खूबसूरत हिल स्टेशन .........2
http://safarhainsuhana.blogspot.com/2011/08/2.html
आपके साथ -साथ हमने भी खूब घूमने का आनंद उठाया .....सब कुछ बहुत ही रोमांचक था
Lovely pictures and amazing trek .
शुक्रिया संदीप भाई आज फिर इस जांबाज़ टोली और मनोहारी दृश्यों की निराली छटी निहारी ,दुर्गमता का एहसास मुखर हुआ ..
कृपया यहाँ भी आपकी मौजूदगी अपेक्षित है -http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_9034.हटमल
Friday, August 12, 2011
रजोनिवृत्ती में बे -असर सिद्ध हुई है सोया प्रोटीन .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बृहस्पतिवार, ११ अगस्त २०११
Early morning smokers have higher cancer रिस्क.
अदभुत रोमांचकारी दृष्य और मनोहर फोटोग्राफी । आपसे ईर्षा हो रही है ।
गज़ब बन्धु...मज़ा आ रहा है...अभी बहुत मसाला बाकी लग रहा है...मै चाहता तो अगली पोस्ट पढ़ सकता था...पर चुस्की ले-ले के पीने का मज़ा ही कुछ और है...हुजूर मै नज़ारों की बात कर रहा हूँ...
जलेबी देख मुंह मे पानी आ गया संदीप !बहुत कठिन चडाई है देखकर घर में ही पसीने निकल रहे हें !
i am very happy to see all of ur pics..I undertook this trek from Mumbai..and was only able to reach the KaaliGhati...:( ..since it was raining...and we have to come back...but ur pics are again inspiring me to complete this trek again...:)
Zamir Gori
i am very happy to see all of ur pics..I undertook this trek from Mumbai..and was only able to reach the KaaliGhati...:( ..since it was raining...and we have to come back...but ur pics are again inspiring me to complete this trek again...:)
Zamir Gori
gajab bemishal yatra vratant jivant mazedar aanand aagaya
solid jankari
wahh bhai wahh.....pura lekh padhte waqt aisa laga ki me bhi aap hi logo k sath ghoom rha hu waha waadiyon me, bahut achhe pics li h aap bhaiyo ne....
आज कल मेरे सबसे पसंदीदा काम है आपका ब्लॉग पढ़ना। संदीप जी श्रीखंड यात्रा इतनी मुश्किल है मुझे आपके ब्लॉग के माध्यम से ही पता चला।
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