बिजली महादेव, पाराशर झील व शिकारी देवी यात्रा-01 लेखक -SANDEEP PANWAR
इस यात्रा
सीरिज में आप हिमाचल के कुल्लू
जिले स्थित बिजली महादेव के दर्शन करेंगे तो मंडी
जिले में स्थित सुन्दर बुग्याल में पाराशर झील व सबसे ऊँची चोटी शिकारी देवी की यात्रा करने का मौका
मिलेगा। इस यात्रा को आरम्भ से पढने के लिये यहाँ क्लिक
करना न भूले। इस लेख की यात्रा दिनांक 27-07-2016 से आरम्भ की गयी थी
हुआ ऐसा कि बहुत दिनों से मन में रेणुका झील जाने का विचार
अटका हुआ था। कई बार रेणुका जी जाने का इरादा बनाया लेकिन नतीजा, ढाक के पीन पात।
वैसे कहने को तो रेणुका जी झील पौंटा साहिब के पास ही है। जहाँ कोई चाहे तो दिल्ली
से दिन के दिन घूम के शाम तक वापिस लौट भी सकता है।
मैंने राकेश बिश्नोई को रेणुका जी का विचार बताया हुआ था।
राकेश बोला भाई जी केवल रेणुका जी ही जाओगे या और कही भी जाना है? क्या बात कर दी
भाई! मैं घर से निकलू और केवल एक जगह ही देख कर लौट आऊँ। ऐसा सम्भव है क्या? नहीं है
तभी तो पूछा! मैं एक यात्रा में एक ही स्थान से कभी संतुष्ट नहीं होता हूँ। मुझे
रुपये पैसे, दौलत, शौहरत की कोई भूख नहीं है। यदि पारिवारिक जिम्मेदारियाँ कंधों
पर ना होती तो घर पर तो मुझे रहना स्वीकार था ही नहीं।
रेणुका जी के साथ चूडधार महादेव के दर्शन भी करेंगे। काफी समय
से दोनों स्थानों की यात्रा सोची हुई थी लेकिन जाने का मुहूर्त नहीं बन रहा था। लग
रहा था जैसे दोनों नाराज चल रहे हो। मैंने तो इन दोनों में से किसी की गाय-भैंस भी
नहीं खोली है। इनकी क्या आज तक किसी की ना खोली। फिर भी इनका बुलावा नहीं आ पा रहा
था। लगता है अन्जाने में कोई पाप हुआ है तो तीन साल से इन दोनों जगहों की योजना
बनने के बाद भी धरासायी हो जाती है।
रेणुका जी के बारे में बहुत से दोस्तों को बोला हुआ था कि किसी
का कार्यक्रम बन रहा हो तो जरुर चैक करे। एक दिन राकेश का फोन आया कि भाई साहब शाम
को बोरी बिस्तर बाँधकर मुकरबा चौक फ्लाईओवर (जहाँ से दिल्ली का करनाल बाइपास आरम्भ
होता है।) पर मिलो। क्यों भाई, अचानक क्या हुआ? कुछ नहीं रेणुका जी व चूडधार चलते
है तीन दोस्त और तैयार है। ठीक है भाई मिलता हूँ।
राकेश अधिकतर शुक्रवार शाम को यात्रा के लिये निकलता है। जबकि
उस समय मेरा अवकाश केवल रविवार को ही रहता था। प्रतिदिन 6
घंटे की नौकरी में और कितने अवकाश
चाहिए। आजकल शनिवार व रविवार दोनों दिन अवकाश रहता है। यह अवकाश का चक्कर
कार्यालयों में तबादलों के अनुसार बदलता रहता है। शनिवार व रविवार वाले कार्यालयों
में सुबह 9 से
शाम 05:30 तक रहना होता है। जबकि रविवार वाले कार्यालयों में सुबह 9
से दोपहर 3
तक ही रहना होता है। ऐसा लगता है जैसे
आधा दिन छुट्टी मिल गयी हो। खैर मेरी राय से अभी सहमत नहीं हो सकते।
तय समय पर राकेश अपनी काले रंग की बिच्छु (स्कारपियो) लेकर
पहुँच गया। गर्मी के दिन थे तो ज्यादा तामझाम लेकर चलना नहीं पडा। अपनी चिर-परिचित
गर्म चददर साथ ली और दो जोडी कपडे बस हो गया तैयारी। आधार कार्ड और ATM
लेना कभी नहीं भूलना चाहिए। मैं भी नहीं
भूलता।
राकेश बोला भाई साहब कहाँ से आरम्भ करना है? रेणुका जी शुरु
में करे या आखिरी में। रेणुका जी तो केवल आधे घंटे का ही काम है। शुरु में करो या
आखिरी में उससे क्या फर्क पडेगा? हम शाम के 7 बजे दिल्ली पार कर चुके थे।
रेणुका जी दिल्ली से अधिकतम 289
किमी ही है। वहाँ पहुँचने में ज्यादा से
ज्यादा रात के 2 बज
जायेंगे। रात को रेणूका जी पहुँचकर क्या करेंगे? ऐसा करते है पहले दूर की जगह चलते
है। वापसी में रेणुका जी होते आयेंगे।
अब बचा चूडधार, चलो वही चलते है। चूडधार महादेव की दो दिन की
ट्रकिंग है। वही चलना है या कही और? जो नये साथी साथ थे, उनकी सलाह ली गयी। वे तीन
दिन तक घूमने के पक्ष में तो थे लेकिन ज्यादा लम्बी ट्रैकिंग करने के इच्छुक नहीं
लग रहे थे। ट्रैकिंग के नाम पर उनका चेहरा थोडा मायूस दिखा। चलो दूसरी जगह चलते
है! लेकिन कहाँ जाये? कहाँ जाये? इसी उधेडबुन में पानीपत पार हो गया। इस बीच
उन्होंने मुझसे दो बार पूछा कि कहाँ का फाइनल माने?
अभी अम्बाला तक सीधे चलते रहो। वहाँ पहुँचकर देखेंगे कि कहाँ
जायेंगे? इसी बीच करनाल के आसपास कही एक ढाबे पर रोककर चाय पी गयी। चाय पीने में
आधा घंटा लग गया। चाय पीने वाले साथी बोल रहे थे कि चाय बडी स्वादिष्ट थी। क्या
चाय भी स्वादिष्ट होती है? मैं तो सोचता था कि मीठी या फीकी होती होगी!
जब तक उन्होंने चाय पी, तब तक मैंने तय कर लिया कि हम सीधे
बिजली महादेव जायेंगे। लाहौल-स्पीति बाइक यात्रा के समय रोहतांग से उतरते समय
राकेश के साथ बिजली महादेव हो सकता था। राकेश कुल्लू से बस में चला गया था। मैं
अकेला बाइक पर रह गया तो मेरा मन भी बिजली महादेव जाने का नहीं हुआ था। उस दिन ना
सही, अब सही। बिजली महादेव का नाम सुनकर सब खुश हो गये। सबसे पहले यह पूछा कि
ट्रकिंग कितनी करनी पडेगी? ट्रैकिंग भी आना-जाना मिलाकर सिर्फ 5
किमी थी। इतना तो कष्ट उठाना ही पडेगा।
सभी सुन्दर स्थल देखने के लिये मेहनत जरुरी है।
अम्बाला पार करने के बाद पंजाब शुरु होते ही टोल टैक्स नाका
आता है। यहाँ टोल देकर थोडा आगे बढते ही शंभू बैरियर आता है। पहले यह टोल इस नाके
से थोडा आगे होता था। लेकिन टोल की कमाई बढाने के चक्कर में कम्पनी ने इसे इस
शंम्भू बैरियर से पहले कर दिया है। यहाँ फ्लाई ओवर का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
हो सकता है कि अब तक तैयार हो गया हो।
जो गाडियाँ पहले चंड़ीगढ की भीड से बचने के लिये इधर शम्भू
बैरियर से होकर जाती थी वे टोल दिये बिना रोपड मनाली की ओर चली जाती थी। इसी बात
का फायदा यहाँ टोल कम्पनी ने उठाया है। सिर्फ एक किमी पहले टोल शिफ्ट करके दिन में
लाखों का लाभ बढा लिया। इसे कहते है बनिया का दिमाग। धंधे में बनिया का दिमाग सबसे
शानदार होता है।
पंजाब खत्म होते-होते हिमाचल के पहाड आरम्भ हो जाते है। रात का
एक बजने वाला था एक ढाबे पर रोककर सभी ने भोजन किया। भोजन प्रकिया में करीब एक
घंटा लग गया था। बिलासपुर शहर पहुँचते-पहुँचते सुबह के तीन बज चुके थे। राकेश बोला,
अब गाडी नहीं चलायी जायेगी। मत चला भाई, सो जा। एक लोकल बस स्टैंड के सामने गाडी
लगाकर सभी लुढक गये। करीब डेढ घंटा आराम करने के बाद आगे बढे। उजाला बिलासपुर में
ही होने लगा था।
रात के मुकाबले दिन में तेज गाडी चलायी जाती है। रात में सामने
वाली गाडियों की हैड लाइट की रोशनी बहुत परेशान करती है। सुन्दर नगर, मंडी होते
हुए सुबह के करीब 9 बजे कुल्लू पहुँचे। कुल्लू की भीड से
बचने के लिये भुन्तर से व्यास पार कर दूसरी तरफ से आगे बढते रहे।
कुल्लू पार कर व्यास नदी (Beas River) के ऊपर जो पुल आता है। उसके ऊपर नहीं
चढे। यदि ऊपर चढ जाते तो व्यास पार कर मनाली की ओर बढ जाते। हमें इस पुल के नीचे
से घूम कर आई सडक पर चढना था। सडक घूम कर इस पुल के बराबर वाले पहाड पर चढती जाती
है। इस सडक पर करीब 22 किमी चलने के बाद जब यह सडक समाप्त होती
है तो पैदल यात्रा आरम्भ होती है। बीच में एक जगह एक सरकारी बस खराब हुई खडी थी।
हमारी गाडी छोटी थी वो तो निकल गयी लेकिन सामने दूसरी बस नीचे कुल्लू जाने के लिये
प्रतीक्षा में न जाने कब से खडी थी?
जहाँ यह सडक समाप्त होती है उस गाँव का नाम चांसरी है। चांसरी
के आसपास बहुत सारे घरों ने पार्किंग का जुगाड बनाया हुआ है। एक ठिकाना देखकर हमने
भी पर्ची कटायी और गाडी खडी कर दी। कुल्लू से बिजली महादेव की पैदल दूरी
सिर्फ 7 किमी
बतायी जाती है। हो भी सकता है नहीं भी। पैदल जाकर ही पता लग पायेगा।
सरकारी बस नीचे जाती व ऊपर आती हुई तीन जगह मिली थी जो कुल्लू
से, भुन्तर से व मंडी से बिजली महादेव के बोर्ड लगाये हुए निकली थी। आजकल सावन का
महीना चल रहा है। हो सकता है भीड के कारण इन सभी जगहों से बस चलायी जाती हो।
अन्यथा कुल्लू से तो हर घंटे एक बस बिजली महादेव के लिये पूरे साल चलती ही है।
अपने बैग गाडी में छोड दिये। केवल पानी की बोतल लेकर पैदल
यात्रा पर चल दिये। चढाई आरम्भ से ही
ठीक-ठाक हो जाती है। आगे चलकर घने जंगल में एक किमी की चढाई चढने में परेशानी नहीं
आयी। घने जंगल की छाव में आराम से ऊपर जा पहुँचे। राकेश सबसे पहले पहुँचा। उसके
पीछे-पीछे हम सभी पहुँच गये। एक भाई 15 मिनट बाद पहुँचा।
आखिरी की आधा किमी चढाई एक बुग्याल जैसे है। बुग्याल बोले तो
घास का मैदान से होकर करनी पडती है। ऊपर काफी दुकाने लगी हुई है जिसमें खाने-पीने
का पूरा प्रबंध है। कुछ टैंट भी लगे है जिनमें रात्रि विश्राम का इंतजाम भी हो
जायेगा। हम अभी ऊपर पहुँचे ही थे कि कार जैसी आवाज सुनाई दी। यहाँ कार कैसे आ सकती
है? नजरे घूमायी तो एक मारुति कार वहाँ घूमती दिखायी दी। कार किसी लोकल की होगी जो
किसी अन्य मार्ग से कार मन्दिर तक लेकर आया होगा।
मन्दिर के बारे में
यह मन्दिर समुन्द्रतल से 2450 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। सर्दियों
में यहाँ भरपूर बर्फबारी होती है। कुल्लू से मनाली पहुँचने में सीधी सडक होने से
कम समय लगता है। जबकि यहाँ पतली व बलखाती सडक व उसके बाद ट्रैकिंग करनी पडती है
जिसमें ज्यादा समय लगता है।
पहाडी के एकदम शीर्ष पर बिजली महादेव का मन्दिर बनाया गया है।
इस मन्दिर के बारे में मान्यता है कि यहाँ मन्दिर के शिवलिंग पर पर 12 साल में एक बार आकाशीय बिजली अवश्य
गिरती है। आकाशीय बिजली गिरने से शिवलिंग बिखर जाता है। खण्डित शिवलिंग को मक्खन
व सत्तू का लेप लगाकर पुन: जोड दिया
जाता है।
यह प्रकिया सालों से ऐसे ही चलती आ रही है। मैने स्वयं अन्दर
जाकर शिवलिंग देखा। शिवलिंग पर मक्खन का लेप लगा था। शिवलिंग की महिमा को प्रणाम
कर बाहर आये। बताते है कि किसी कुलान्त नामक राक्षक को शिव ने मौत के घाट उतारा था
उसी के नाम पर बिगडते-बिगडते कुल्लू शब्द बना है। बिजली महादेव से चारों और गहरी
खाई दिखती है। ब्यास नदी वाली दिशा से तो हम आये ही है। सामने पार्वती नदी भी दिख
रही है। इन दोनों का संगम भुन्तर के नजदीक ही होता है।
मन्दिर के चारों ओर शानदार नजारे है। मौसम साफ हो तो नीचे
उतरने का मन नहीं करेगा। मन्दिर के सामने एक बहुत लम्बी (60
फुट) लकडी का खम्बा है। इतना लम्बा पेड
यहाँ कहाँ से लेकर आये होंगे?
मन्दिर के ठीक बराबर में ढलान पर उतरकर देखने पर भुन्तर हवाई
अडडा दिखाई देता है। भुन्तर हवाई अडडे की पटटी ब्यास नदी के एकदम बराबर है। यह
पटटी बहुत ज्यादा लम्बी नहीं है। जिस कारण इस पर बडे हवाई जहाज उतरना मुश्किल है।
थोडी देर आसपास घूमने के बाद, वापिस लौटने लगे। राकेश भाई अपने
साथ गुजरात से मंगाये पापड लाया था जो खाने में बडे स्वादिष्ट थे। पापड पर हाथ साफ
कर फटाफट गाडी के पास लौट आये। एक बार फिर गाडी में सवार होकर कुल्लू की ओर लौट
आये। हमें कुल्लू शहर से कुछ काम नहीं था। इसलिये इस बार ब्यास के इसी किनारे से
भुन्तर पहुंचे।
भुन्तर से कुछ किमी आगे बजौरा (बाजुरा) आता है यहाँ से हमें
ब्यास के साथ मन्डी जाने वाली सडक छोडनी थी। बाजुरा से चलते ही ठीक-ठाक चढाई आरम्भ
हो गयी। यह चढाई लगातार बनी रहती है। आसमान में घने बादल छाये हुए थे। जोरदार
बारिश आरम्भ हो गयी। एक बाइक वाला हमारे साथ-साथ चल रहा था। बारिश को देखते हुए लग
रहा था आज किसी पहाड को गिराकर ही रहेगी। (पाराशर झील अगले लेख में)
ढाबे पर भोजन तैयार होने की खुशी में एक फोटो |
सुन्दर नगर के नजदीक |
इस बोर्ड अनुसार हर वर्ष बिजली गिरती है। |
बस +60 फुट लम्बा ही |
धूप बत्तई स्टैंड |
मक्खन वाले बिजली महादेव |
मन्दिर में लगी एक प्रवचन तालिका |
भुन्तर हवाई अडडा पृष्टभूमि में |
वो रहा बिजली महादेव मन्दिर |
बिश्नोई भाई जाट देवता स्टाइल में |
इसी पुल के नीचे से होकर बिजली महादेव के लिये ऊपर आते है। |
3 टिप्पणियां:
मैं आजतक बिजली महादेव नहीं गया लेकिन आपके लेख और खूबसूरत फोटो को देखकर महसूस हो रहा है जल्द ही दर्शन के लिए निकलेगाँ। क्या यहाँ जनवरी में पहुँचना मुमकिन है?
कई बार टीवी चैनलों पर बिजली महादेव के बारे देखा है, और आज आपकी नजर से साक्षात् देख लिया। हरेक फोटो अपनी कहानी कह रहे हैं भाई जी। वैसे गजब कर दिया आपने इस यात्रा में आधी दूरी तय कर ली और कहां जाना ये निश्चित ही नहीं। वैसे ऐसी यात्राओं के लिए साथियों के साथ सामंजस्य हो तो मजा आ जाता है, वरना साथी खींचतान वाला हो तो सारा मजा खराब कर देता है। एक बात और आपने लिखा कि अगर पारिवारिक जिम्मेदारियां न होती तो घर में रहता ही नहीं, अपना भी कुछ ऐसा ही हाल है, बचपन से घुमक्कड़ी का जो कीड़ा सोया हुआ था अब जाग गया है तो थोड़ा थोड़ा निकल लेता हूं, और घुमक्कड़ों के लिए परिवार का समर्थन सबसे जरूरी होता है जो कुछ लोगों को ही मिल पाता है। धन्यवाद इतने अच्छे से एक महादेव स्थान का दर्शन कराने के लिए
मैं भी आजतक बिजली महादेव नही जा सका। बिजली महादेव के बारे में प्रचलित कहानी पढकर व दर्शन करके अच्छा लगा आपकी पोस्ट के माध्यम से...
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