देहरादून-मालदेवता यात्रा-04 लेखक -SANDEEP
PANWAR
इस यात्रा में अभी तक देहरादून में गंधक पानी में स्नान सहस्रधारा व टपकेश्वर मंदिर
के दर्शन उपरांत मालदेवता से आगे ट्रैकिंग मार्ग में गंधक पानी के श्रोत तक यात्रा कर चुके हो। इस लेख में स्नान के बाद कुन्ड गाँव तक की भयंकर चढाई के बारे में पढने के इच्छुक
है तो इस यात्रा का यह अंतिम भाग अवश्य पढ लीजिए। इस यात्रा को आरम्भ से पढने के
लिये यहाँ क्लिक करना न भूले। इस लेख की
यात्रा दिनांक 14 & 15-08-2016 को की गयी थी
DANGER TREK-Maldevta to
Kund Village सौंदणा
गाँव से कुंड गाँव तक खतरनाक ट्रैकिंग
जौंक का आतंक |
दोस्तों, जब सौंग नदी में बहने का खतरा हो गया तो वापिस लौटना
पडा। जीवन बचा रहेगा तो नदी बीस बार पार हो जायेगी। लापरवाही में बह गये तो पहली
बारी ही अंतिम साबित होगी। याद है ना राहुल, क्या कहा? कौन राहुल? (दोस्तों यह यात्रा 15 अगस्त 2016 की है इस यात्रा से ठीक 10 दिन बाद मणिमहेश परिक्रमा
यात्रा में एक राहुल नामक घुमक्कड लापरवाही के कारण मारा गया था। जिसकी लाश भी दस
दिन बाद मिल पायी थी।)
नदी पार करने के लिये चौडा तट मिलेगा। या पत्थर आदि। इस उम्मीद में तीन किमी आगे पहुँच
गये।
उबड-खाबड मार्ग छोड कर पहाड पर दिख रहे पैदल मार्ग पर पहुँचे।
सामने एक पहाड की चढाई दिखाई देने लगी है। हमें नदी पार कर सबसे ऊँचे वाले पहाड पर
चढना था। लेकिन उससे पहले अब नदी पार करने के चक्कर में इस पहाड को अलग से पार
करना पडेगा। इस पहाड की चढाई अभी आधी ही हुई थी कि योगेश भाई ने हाथ खडे कर दिये
कि ये चढाई मुझसे नहीं होगी।
क्या हुआ भाई? पैर लडखडा रहे है। ठीक है योगेश भाई। आपको आगे लेकर
नहीं जाते है। आप यह बताओ। यहाँ से वापिस कैसे जाओगे? योगेश बोला, जैसे आये वैसे
लौट जाऊँगा! अच्छा तीन घंटे पहले की घटना भूल गये क्या? जिसमें पाँच लोगों की हालत
पहली बारी में नदी पार करने में ही पतली हो चुकी है। दूसरी बारी में तो वापिस
लौटना पडा है। तभी इस पहाड को फालतू में चढना पड रहा है। वापिस जाने का इस वर्तमान
मार्ग के अलावा अभी और कोई नहीं है। अब तो साथ चलना ही पडेगा। पहले नदी पार कर
दूसरे किनारे पर पहुँचों। फिर वापिस लौटने की बात उठाना। योगेश समझ गया कि चुप
रहने में ही समझदारी है।
योगेश जमीन पर बैठ चुका था। दोपहर के भोजन का समय होने वाला
था। इससे बढिया समय क्या हो सकता था? सामने एक घर दिख रहा है। चलो पीने का पानी
लेकर आते है। यही भोजन की तैयारी करो। आधा-पौना घंटा यही आराम भी हो जायेगा। तब तक
योगेश भाई को आराम मिल जायेगा। दो बोतलों में पीने का पानी ले आये। पूरी और दाल
खायी। तय हुआ था कि सारा खाना खत्म करके चलेंगे। सबने भर पेट खाया।
करीब एक घंटे सुस्ताने के बाद आगे चढने लगे। आधे घंटे की
कैचीदार चढाई के बाद इस पहाड की चोटी पर पहुँचे। चोटी पर पहुँच कर देखा कि दूर नदी
का कपाट चौडाई लिये हुए है। उम्मीद हो गयी कि अब तो नदी पार हो ही जायेगी। एक किमी
उतराई के बाद नदी किनारे पहुँचे। नदी चौडी भले हो गयी हो लेकिन खतरनाक अब भी थी।
नदी पार एक लडका अपनी भैंस चरा रहा था। उसे आवाज देकर इशारों से नदी पार करने का
स्थान पूछा।
लडका हमें पानी के साथ आगे बढने को कहता हुआ, साथ-साथ चलने
लगा। करीब तीन सौ मीटर चलने के बाद नदी का पानी दो टुकडों में फैला दिखाई दिया।
यहाँ हमने एक बार फिर पाजामे निकाल कर नदी पार की। मेरी जेब में 10-12
टाफियाँ थी। मैंने सारी की सारी ईनाम
स्वरुप उस लडके को दे दी। लडका इनाम पाकर बहुत खुश हुआ। नदी पार करने में निक्कर
गीले हो जाते थे। सभी को गीला निक्कर बदलना पडता था। नदी पार करने के बाद कुछ देर
विश्राम किया। मैं और डाक्टर अजय त्यागी सबसे पहले चल दिये।
अंशुल व अनुराग जी योगेश को दर्द की दवाई देकर पीछे-पीछे
धीरे-धीरे लेकर आ रहे थे। कुन्ड गाँव की भयंकर चढाई के लिये जिस पहाड की चढाई चढनी
पडती है वो पहाड आरम्भ हो चुका था। मेरा अंदाजा था कि इसे चढने में कम से कम डेढ
घंटा लग जायेगा। अनुमानित दूरी दो किमी से कम ना रही होगी।
शुरु के दो-चार मोड तक तो योगेश, अंशुल व पंत जी आवाज सुनाय़ी
दी। उसके बाद उनकी आवाज आनी बन्द हो गयी। अजय त्यागी जी मेरे साथ लगे रहे। इस पहाड
के ऊपर पहुँचने में करीब 60-70 बैंड आये होंगे। अजय भाई हर दो-तीन बैंड
के बाद कहते। कितना रह गया होगा संदीप भाई! अब संदीप भाई पहले इस ट्रैक पर आये हो
तो बता पाये। मैं भी कह देता ऊपर रोशनी सी दिख रही है लगता है 5-7
मोड के बाद खत्म हो जायेगा।
मजेदार बात यह रही कि 5-7 मोड भी 6-7 बार चले गये लेकिन पहाड की चोटी नहीं
आयी। बिजली के खम्बे की लाइन लगातार ऊपर जा रही थी। उसे देख अंदाजा हो गया कि यह
जरुर कुन्ड गाँव जा रही है या वहाँ से आ रही है। ऊपर तक तीन खम्बे दिख रहे थे।
उनसे अंदाजा लगने लगा कि उन्हे तो पार करना ही पडेगा। तीनों खम्बे पार करने के बाद
इस पहाड से पीछा छूटा तो सामने एक दूसरा पहाड दिखाई दिया। इस पहाड की शुरुआत में
एक घर दिखाई दिया।
उस घर के सामने वाले खेत में एक किसान काम कर रहा था। उससे
पूछा कि कुन्ड गाँव वाला रास्ता कौन सा है? उसने कहा कि ऊपर चढते जाओ। कसम से उसपर
इतना गुस्सा आया। एक बार ये कह देता कि बस कुन्ड गाँव आ गया है तो इतनी खुशी होती
कि पूछो मत। उसने ऊपर चढने वाला आदेश देकर हमारे माथे में बल ला दिया। डाक्टर
साहिब की हालत भी मस्त होती जा रही थी। मैंने कहा डाक्टर साहिब आप आराम से आओ। मैं
आपको आगे वहाँ बैठा मिलूँगा जहाँ पर दो पगडंडी मिलेंगी या लेटने लायक घास मिलेगी।
पौन किमी तक कुछ न मिला। ना दूसरी पगडंडी ना घास। मैं भी दे
दना-दन चलता गया। जब दो पगडंडी मिली तो मैंने अपना बैग एक तरफ रखा और मैं एक तरफ
पैर फैलाकर आराम करने लगा। आधे घंटे बाद अजय भाई पहुँचे। आते ही बोले, संदीप भाई
हालत खराब कर दी है इस चढाई ने तो। मैंने कहा, “ना जी थोडी देर, मेरी तरह आराम
करो, फिर देखना चकाचक हो जाओगे।“ डेढ घंटे बाद अंशुल जी व पंत जी योगेश जी को
लेकर आ पहुँचे। अब डाक्टर साहिब आराम पाकर जवान हो चुके थे। थोडी देर पहले डाक्टर
साहब कुछ बोल नहीं पा रहे थे। अब डाक्टर साहब योगेश भाई की हिम्मत बढा रहे थे।
हमारे पास खाने के लिये दो-तीन खीरे थे। सभी ने खीरे खाये।
शरीर में पानी की कमी महसूस हो रही थी। खीरे खाने वो पूरी हो गयी। दो घंटे पडे-पडे
शरीर भी ताजा ताजा सा हो गया जैसे आज कोई यात्रा ही न की हो।
दोपहर के भोजन के बाद शाम के 5 बजने वाले थे यह पहला ऐसा बिन्दु था
जहाँ से वापिस लौटने के लिये दूसरा मार्ग उपलब्ध था। यहाँ से कोई नदी भी पार नहीं
करनी थी। यहाँ से सौंदणा पहुँचने के लिये कम से कम 3-4 घंटे का समय लग सकता है।
योगेश भाई क्या कहते हो? यहाँ से लौटना चाहोगे। अब कोई खतरा
नहीं है। बस जंगल में रात हो जायेगी। आगे कुन्ड की यात्रा मुश्किल से डेढ किमी की
बची है जिसमें से चढाई सिर्फ आधा किमी ही है। योगेश शर्मा के ऊपर निर्णय छोड दिया।
योगेश जी विश्राम कर चुके थे। जोश में बोले कि अब तो कुन्ड देखकर ही लौटूँगा।
आधा किमी की चढाई के बाद इस यात्रा का सबसे उच्चतम शिखर आ
पहुँचा। यहाँ दोनों ओर के इलाके दूर तक दिख रहे है। घास का छोटा सा मैदान भी है।
योगेश महाराज घास देखते ही लम्बलेट हो गये। शिखर पार करते ही कुन्ड गाँव नीचे
दिखने लगा। पन्त भाई के पैर में जौंक चिपक गयी। जौंक के नाम से ही मुझे झुरझुरी
आती है। पता लगा कि इस पहाड की चोटी के दोनों और एक किमी तक जौंके मिलती है। जौंक
का नाम सुनना था कि मुझे अब पौन किमी की दूरी को तीन मिनट में तय करने से कोई नहीं
रोक सकता था।
लगभग पौन किमी की ढलान तीन मिनट में समाप्त कर गाँव के एक घर
की पक्की छत पर खडे होकर सबसे पहले यह चैक किया कि कोई जौंक तो नहीं चिपकी है।
थोडी देर में सभी आ गये। सबने जौंक चैक की। दो के जौंक चिपकी मिली। जौंक छुडा कर
आगे बढे। कुछ दूरी पर ही वह घर आ गया जहाँ हमें रात्रि विश्राम करना है।
रात्रि विश्राम करने के लिये हमारा आज का ठिकाना एक ऐसे घर में
है। जिसके मालिक भी देहरादून में ही रहने लगे है। वह भी साल में दो-तीन बार ही
कुन्ड गाँव आते है। अंशुल जी के पुराने साथी नरेन्द्र सिंह चौहान के यहाँ कुन्ड गाँव में ठहरे है। नरेन्द्र जी भी सरकारी अध्यापक है। रात के भोजन में ताजे हरे पत्तों की सब्जी बनायी
गयी थी। जिसका फोटो मैंने लगाया हुआ है।
अंशुल जी अपने कुन्ड के पुराने दोस्तों के साथ देर रात तक गपशप करते
रहे। मुझे जल्दी सोने की आदत है। मैं तो सो गया। पता नहीं वे रात को कब सोये
होंगे? हाँ एक बात बतानी आवश्यक है कि कुन्ड गाँव में अगस्त में भी बहुत ठन्ड थी
रात को कमरे के अन्दर रजाई में सोना पडा था। रजाई में बहुत दिनों बाद सोने की बारी
आयी थी। रजाई में सोना बहुत अच्छा लगता है। स्लीपिंग बैंग में सोना कैद सी लगती
है।
सुबह चाय नाश्ते के बाद कुन्ड से विदा होने की बारी थी। रात
वाली जौंक की बात कोई नहीं भूला था। इसलिये पौन किमी की चढाई चढने में किसी ने देर
न लगायी। शिखर पर पहुँचकर सबने जौंक चैक की। एक को जौंक चिपकी थी। उसे हटा कर
उतराई आरम्भ की। कल सौंग नदी के किनारे से जो भयंकर चढाई चढी थी आज नदी किनारे तक वह
उतरनी भी है। अन्तर इतना है कि आज कल वाले मार्ग से नहीं उतरना है। आज सीधे हाथ ही
चलते रहना है। एक घन्टा लगातार बिना रुके उतरने के बाद नदी का किनारा आया।
नदी के किनारे से थोडा पहले कुछ बच्चे स्कूल से लौटते मिले। ये
बच्चे पढने के लिये कुन्ड से रोज इस चढाई-उतराई को पार करते है। बच्चों को पार कर आगे बढा तो एक साँप महाराज
धूप सेंकते हुए मिल गये। मैं तेजी में था। निगाहे जमीन पर ही थी। साँप देखकर
तुरन्त ब्रेक लगायी। मेरे ब्रेक लगाते ही साँप अपनी जान बचाता हुआ। झाडियों में
ओझल हो गया।
नदी किनारे पहुँचने से पहले एक छोटी सी धारा में घुसकर निकलना
पडता है। साफ जल मिला तो गला तर कर लिया। नदी किनारे एक मोड पर एक बडा सा पत्थर है
यहाँ से ऊपर वाला मार्ग दूर तक दिखाई देता है। करीब आधा घंटा बैठकर सभी साथियों की
प्रतीक्षा की। आधे घंटे की दूरी से उन्होंने मुझे देख लिया था। आखिर सबने मेरे पास
आकर थोडी देर विश्राम किया।
अब हमें नदी के साथ-साथ ही चलना था। अब आसान पगडंडी थी। अब तक
तो हर कदम के साथ आधा फुट उतरते हुए आये थे। अब लगातार कई किमी तक, लगभग समतल से
ही चलते रहे। कल जिस दुकान से पूडी दाल बनवाकर लेकर गये थे। आज फिर रगड गांव में उसी दुकान पर कुछ देर
रुके। आज पकौडी बनी थी। पकौडी खाकर आगे बढ चले।
पुल पार कर दूसरे किनारे पहुँचे। एक किमी बाद जीप वाली जगह
पहुँच गये। एक जीप कुछ मिनट बाद मालदेवता जाने वाली थी। हमें भी मालदेवता जाना था।
उस जीप में सवार होकर मालदेवता की ओर चल दिये। अंशुल जी सौंदणा गाँव के सामने उतर
गये। हम मालदेवता जाकर उतरे। अनुराग जी अपनी गाडी लेकर टिहरी की ओर बढ चले। मैं और
अजय जी बाइक पर सवार होकर मेरठ की ओर चल दिये।
देहरादून बाईपास से होकर देहरादून बस अडडा पार किया। शिवालिक
पर्वतमाला पार करने के बाद बिहारीगढ नामक कस्बा आता है। यहाँ की दाल पकौडी बहुत
मशहूर है। दोपहर के भोजन का समय हो गया था। एक थम्स अप की बोतल और आधा किलो पकौडी
ले ली गयी। भर पेट पकौडी खायी गयी। जो बची वो रास्ते के लिये पैक कर रख ली गयी।
एक बार फिर हमारी बाइक
छुटमलपुर, देवबन्द, होते हुए मेरठ की ओर चल पडी। मेरठ बाईपास पहुँच बाइक अजय भाई
को सौंप कर दिल्ली की बस में बैठ गया। बस अडडे पहुँचकर घर की बस में बैठ शाम होने
से पहले घर पहुँच गया।
दोस्तों नमस्कार, शीघ्र मिलते है नई यात्रा बिजली महादेव,
पराशर झील, शिकारी देवी के लेख के साथ दीवाली के बाद...............(समाप्त)
सौंग नदी पार करने की तैयारी |
योगेश भाई का धरना |
भोजन का आनन्द |
यहाँ से तो पार हो ही जायेगी |
वो सामने पहाड फालतू में चढना-उतरना पड गया |
ये भाई सैल्फी में लगे रहते है। |
अजय त्यागी दा स्टाइल |
वो दिख रही सौंग नदी, नन्ही सी, अभी और ऊपर जाना है |
इनकी सब्जी खायेंगे |
नदी पार करने के बाद, अब नहीं घुसना है। |
कुन्ड गाँव |
कुन्ड गाँव से सुबह की झलक |
्वापसी |
रगड गाँव का झरना। रगड के मानेगा |
कुन्ड वाले घर में एक पुस्तक से लिया फोटो |
कुन्ड का एक और फोटो |
इस यात्रा के अधिकतर फोटो डाक्टर अजय त्यागी के मोबाइल से लिये गये है।
13 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-10-2017) को "ब्लॉग के धुरन्धर" (चर्चा अंक 2750) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खूबसूरत चित्रण के साथ जीवंत यात्रा वृत्तांत
मेरी टिप्पणी कहाँ गायब हो गयी ?
शायद प्रकाशित नहीं हो पायी।
मैंने लिखा था कि,
संदीप भाई, पूरा लेख पढ़ा, चरों भाग, मजा आ गया।
इस हेतु धन्यवाद् और साधुवाद।
इसमें कुछ जो रह गया वो/-
ट्रैक टूर/ट्रैक मलदेवता से सुरकण्डा वाया कुण्ड तय हुआ था।
वो तो योगेश भाई की हालत देख के कुण्ड से वापसी का प्रोग्राम करना पड़ा। वरना सुबह हम कुण्ड के लिए निकलते।
जहाँ मकान मालिक बल्ली भाई की दुकान है, जहाँ खाना पैक करवाया और झरना गटकने की फोटो हैं, वो स्थान रगड़ गाँव है।
सौंग नदी का नाम सौंध हो गया है, जबकि पार्ट 3 में सौंग व चिफल्डी ठीक है। सौंध तो इस इलाके में कुछ लोगों का जाति उपनाम है।
शायद प्रकाशित नहीं हो पायी।
मैंने लिखा था कि,
संदीप भाई, पूरा लेख पढ़ा, चरों भाग, मजा आ गया।
इस हेतु धन्यवाद् और साधुवाद।
इसमें कुछ जो रह गया वो/-
ट्रैक टूर/ट्रैक मलदेवता से सुरकण्डा वाया कुण्ड तय हुआ था।
वो तो योगेश भाई की हालत देख के कुण्ड से वापसी का प्रोग्राम करना पड़ा। वरना सुबह हम कुण्ड के लिए निकलते।
जहाँ मकान मालिक बल्ली भाई की दुकान है, जहाँ खाना पैक करवाया और झरना गटकने की फोटो हैं, वो स्थान रगड़ गाँव है।
सौंग नदी का नाम सौंध हो गया है, जबकि पार्ट 3 में सौंग व चिफल्डी ठीक है। सौंध तो इस इलाके में कुछ लोगों का जाति उपनाम है।
मेरी टिप्पणी कहाँ गायब हो गयी ?
गुरुदेव आपकी दी गयी जानकारी अपडेट कर दी गयी है।
बहुत ही शानदार ओर थकान वाली यात्रा रही वेसे योगेश भाई की हिम्मत की बात है अलग है उनमें ओर मुझमे ज्यादा फर्क नही होगा भीमकाय शरीर के हिसाब से
कंडेली की भुज्जी मिली की नहीं ........
पहाड़ी घाटियों में जोंक कब पैरों में चिपक जाते हैं पता ही नहीं चलता, देखकर बड़ी बिजबिजी होती है मन में
बहुत सुन्दर रोचक यात्रा
रोचक यात्रा। इधर तो अच्छी ख़ासा टूर हो सकता है।
आने वाले यात्रा वृतांतों का इन्तजार है।
भाई जी पोस्ट ओपन करते ही सबसे पहले तो बेहोशी की हालत मेरी हो गई जोंक देखकर, बचपन में एक बार जोक लगी थी बरसाती पानी में तो जोंक देखकर जो दौड़ा तो करीब 1 किलोमीटर दौड़ता रहा और जोंक कब गिर गया ये भी पता नहीं चला और मैं बदहवाश भागता रहा था। आपको सांप दिखा और सांप से तो हमें डर नहीं लगता पर जोंक देवता से भगवान बचाए। मुझ जैसे आदमी को जोंक दिखा तो एक बार में बिना कहीं रुके मणिमहेश भी चढ़ जाएं हम तो। वैसे पहाड़ी नदी में कहां कितना पानी हो और कितनी खतरनाक है इसका अंदाजा तो किसी को नहीं होता। आप तो पुराने खिलाड़ी हो फिर भी आपको सोचना पड़ा तो नवसिखुए की क्या हालत होगी ये तो वही जाने। शायद वो लड़का नहीं मिलता जो आपको नदी पार करवाने के लिए कुछ दूर तक इशारे से बताकर नदी पार करवाया। आप नदी पार करके खुश हुए वो लड़का अपना मुंह मीठा करके खुशी। हर किसी के खुशी के अपने मायने होते हैं। जिस बड़े पत्ते वाले चीज की सब्जी आपने खाई उस चीज का क्या नाम है भाई जी।
योगेश भाई ने वापसी ना जाकर सही फैसला लिया। बाकी बहुत रोमांचक यात्रा रही आपकी,,, पढ़ कर बहुत अच्छा लगा,,, कैप्शन अच्छे होते है हमेशा से आपके..
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